भाइयो नमस्कार आज हम जिस विषय के बारे में चर्चा करने वाले है वह है विषय है गोतामी किसे कहते है या क्या है गोतामी शब्द हिंदी शब्द के गोत्र का छत्तीसगढ़ी रुपान्तरण है जिसे गोत कहा जाता
है और उसी को बोल चाल में गोतामी कहा जाता है गोतामी एक समूह वाचक वाक्य है जिसमे
एक ही कुल या परिवार के सदस्यों के समूह को इंगित करता है इसी का बहुवचन शब्द है
गोतामिल जिसमे एक या एक से अधिक गोत्र समूह के लिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है
गोतामी शब्द एक वचन के रूप में है इसी का एक वाक्य और है जिसे गोतियार कहा जाता है
इसका अर्थ है एक ही गोत्र वाले समूह,जैसे मै चिराम हूँ अगर मै किसी और क्षेत्र के
चिराम गोत्र के व्यक्ति को मिलूँगा तो मै उनको गोतियार भाई से संबोधित कर सकता हूँ
! गोत्र किसे कहा जाता है इस पर एक मेरा अन्य लेख है उसका अवलोकन करें गोतामी किसे कहा जाता है इस चर्चा को आगे बढ़ाते है जैसे उपर मेरे द्वारा बताया
गया है की एक ही गोत्र के समूह को गोतामी कहा जाता है और हमारे समाज में प्रत्येक
गोत्र के लिए एक भाई गोत्रज है जो एक दुसरे को सुख दुःख में हमेशा साथ दे और हर
कार्य, समस्या, को साथ में हल करें और रीती रिवाज परम्पराओ, नीति नियमो का पालन
करते हुए अपना कार्य सम्पादित करें भाई गोत्रज(गोतामिल) गोत भाई उन्हें माना गया है जिन्हें हमारे बुजुर्गो ने
अपना गोत्र का भाई माना है सामान्य शब्दों में गोत्रज भाई वे है जिनसे हमारा
वैवाहिक संबंध पूर्वजो(दादा-परदादाओ) के समय से नही हो रहा है वो हमारे गोत्रज(गोतामिल)
भाई है और अन्य प्रकार से भी इसका पता लगाया जा सकता है गोतामी गोत्र में वैवाहिक
लेन देन(बेटी-रोटी) नही होता है लेकिन मृत्यु कार्यक्रम में मुंडन कार्यक्रम में
गोतामिल गोत्रज सम्मिलित होता है और पकबंधी कार्यक्रम में भी साथ में गोतामी
गोत्रज भाई बैठता है साथ ही मृत्यु संस्कार के अंतिम में जो घर पहूनने का
कार्यक्रम होता है उसमे भी गोतामिल भाई सम्मिलित होते है गोतामिल भाई देवी देवता
कार्यक्रम में भी सहभागिता ले सकते है ,,जैसे पारिवारिक देव जात्रा, आंखा चौर में
जो देव प्रसाद जो केवल परिवार के लोगो के लिए होता है उसे भी ग्रहण कर सकते है इतने
हिंट से पता तो चल ही गया होगा की आपके गोत्रज भाई कौन कौन है अगर अभी भी पता नही
चल पाया होगा तो अपने घर में जो बुजुर्ग सियान होंगे उनसे पूछ कर हमे भी बताये
तांकि हल्बा समाज के किस गोत्र का गोत्रज भाई कौन सा गोत्र है इसकी जानकारी रख सके
और गोतामिल भाई गोत्र और समधन गोत्र सूची बनाने में हमे सहायता हो सके पोस्ट के
अंतिम में एक फॉर्म है जिसमे आप अपने गोत्र और अपने गोत्रज भाई की जानकारी हमे दे सकते
है तांकि आने वाले पीढ़ी भी इस जानकारी के अनुसार ही चल सके व उन्हें भी पता रहे की
उनका गोतामिल गोत्र भाई कौन से गोत्र है कृपया कर सहयोग करें
*कुछ दिनों से हल्बा समाज के गोत्रज भाइयों की सूची तैयार कर रहा हूँ जिसमे बहुत से भाइयों ने अपना समय निकालकर अपने अपने गोत्रज भाइयों का गोत्र लिखे है अगर सभी भाइयों का सहयोग मिल जाता तो यह कार्य और भी आसान हो जाता क्योकि हमारे समाज मे लगभग 200 या इससे अधिक सरनेम है परंतु अभी तक केवल 30 सरनेम का ही गोत्रज भाई सूची बन पाई है बांकी लोगों का नही अगर यह सूची पूरी तरह या लगभग 200 के करीब भी पता चल पाता तो गोत्रज भाई सरनेम और समधी सरनेम लिस्ट बनाने में हमे आसानी होगी क्योकि कई बार गोतामि पता नही होने के चलते गोतामि भाई में शादी हो जाने से कई प्रकार के सामाजिक विकृति उत्पन्न होने लगते है जो आगे चलकर और विकृतियों को जन्म देते है अगर सभी सहयोग करें तो यह विकृति दूर की जा सकती है कई भाइयों का मत है कि क्षेत्र और महासभा के अनुसार गोतामि भिन्न भिन्न होते है हम आपके विचार से बिल्कुल सहमत है पर आप अपने क्षेत्र और महासभा के अनुसार भी तो अपने गोतामि (गोत्रज)भाई के गोत्र नाम बताए क्योकि यह सूची तैयार करना बहुत ही जरूरी इसलिए हो रहा है क्योकि आजकल गोत्र( सरनेम ) का पोस्टमार्टम कर अपभ्रंश आपके और हमारे द्वारा किया जा रहा है जिसके चलते गोतामि भाइयों को पहचानना तो दूर खुद के गोतियार भाई को पहचानने में पसीना निकल जा रहा है जैसे कई खंडहा भाई खरे लिख रहे है कई आर्य लिख रहे है कई खंडहे कई लोग खरांसु , ठाकुर आदि तो फिर अपने ही गोत्र को पहचानने में परेशानी का सामना करना पड़ है तो गोतामि भाई को जानना तो दूध में से पानी अलग करने जैसी समस्या है आप सभी से निवेदन है सहयोग करें तांकि लिस्ट के अनुसार गोतामि भाई और समधि सरनेम लिस्ट तैयार किया जा सके
विनीत आर्यन चिराम व्हाट्सअप 7999054095
अपना गोत्र और गोत्रज भाई की जानकारी नीचे क्लीक कर दे सकते है!
// लेखक // कवि // संपादक // प्रकाशक // सामाजिक कार्यकर्ता //
1 टिप्पणियाँ
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअपना विचार रखने के लिए धन्यवाद ! जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी !