- दिक्भ्रमित हो रहा आदिवासी समाज और यूवा
- अगर सही में भगवान होता तो ये होता क्या
- अगर भगवान काल्पनिक है तो उनके द्वारा वध किया गया राक्षस कैसे वास्तविक हो सकते है काल्पनिक कपोल से बाहर निकालिए
- विज्ञान न देव असुर संग्राम को मानता है न ही रामायण काल यूद्ध को और न ही महाभारत के यूद्ध को न भगवान को न ही आत्मा परमात्मा को
- अगर धर्म की गहराई जानना चाहते हो तो एक बार
दिक्भ्रमित हो रहा आदिवासी समाज और यूवा
अगर आदिवासी हिन्दू नही है तो हमे जबर्दस्ती किसी हिन्दू आदर्शो देवी देवताओ और उनके द्वारा मारे गए या कहे गये राक्षसों की पूजा करने की जरुरत ही नही क्योकि हमारी संस्कृति और उनकी संस्कृति में जमीनों असमान अंतर है तो फिर उनके द्वारा मारे गये राक्षसों की पूजा क्यों करे न उनके देवी देवता हमारे है न उनके द्वारा मारे गये कोई राक्षस अगर हिन्दू दुर्गा की पूजा करे तो हम महिषासुर की और अगर हिन्दू राम की पूजा करे तो हम रावण,सुर्फन्खा की अगर वे कृष्णा की पूजा करे तो हम कंस की,अगर वे भक्तप्रह्लाद की पूजा करे तो हम हिरण्यकश्यप और होलिका की अगर वे और कोई का पूजा करे तो हम देखेंगे की उनके अपोजिट कौन है उनकी पूजा करेंगे यह कोई कम्पीटीशन है क्या या कोई चुनावी पार्टी जो
उनके विपक्ष की भूमिका निभा रहे है और सभी त्योहारों का भी विरोध जोरो पर है हरियाली पोला रक्षाबंधन होली दीपावली आदि आदि एक बात मै क्लियर कर दूँ आदिवासी प्राकृतिक पूजक है और रहेंगे, हमे किसी धर्म या मूर्ति पूजा की न पहले जरूरत थी न आगे कभी होगा,राजनीतिज्ञो द्वारा समाज को अपने अपने तरीके से बढ़िया इस्तेमाल किया जा रहा है सब अपने अपने रोटी सकने में लगे है,
और समाज के लोग इस गुमराह में गेहू संग कीड़ा पिसा रहे है हमारे समाज के लोगों और उनकी भोलेपन का अच्छा मजाक बनाया जा रहा है और फ़ायदा उठाया जा रहा है, हमारे लोगों के तर्क न कर सकने और बिना विचारे ही किसी के भी बात में आने के कारण यह सब हो पा रहा है, इसलिए लोग
आदिवासियों को परबुधिया कहने लगे है साहब पहले जब बाहरी लोग आते थे तो लोग महेमान समझकर उन्हें पीडहा देते थे और खुद जमींन में बैठते थे और उनके मन की मनसा न जानकर उनकी तरह तरह से सेवा करते थे मेहमान मानकर, उनको अपना दुःख पीड़ा और अपना सब कुछ बयाँ कर देते थे उसी का फ़ायदा बाहरी लोग उठाते थे और दुखती पीड़ा में हाँथ रखकर सहारा का वादा कर उनकी सभी सम्पति हजम कर जाते थे अगर कभी पढने का मौका मिले तो जरुर हमारे आदिवासियों का मितान और गंगाजल भोजली तुलसी आदि मितान परम्परा के बारे में पढना कैसे बाहरी लोगो से मितान बदते थे फिर बाहरी लोगो को हमारे सियान लोग जमीन देते थे मितान परम्परा की बात हुई तो थोडा से अपना अनुभव शेयर करता हूँ मेरे दादा जी बताये की उनके मितान जो की एक अन्य आदिवासी समुदाय से है मेरे दादा के मितान के मितान एक सामान्य वर्ण के सदस्य है पहले वे सामान्य वर्ण के मितान अपने मितान के यहाँ आया अपना सब दुखड़ा सुनाया फिर उनके मितान अपना दुखड़ा सुनाया फिर दोनों में धीरे धीरे अछे सम्बन्ध बन गये फिर मेरे दादा के मितान अपने मितान (सामान्य वर्ण) को रहने के
लिए अपने घर के पास एक छोटा से जमींन दिया फीर उनके काम करने के लिए थोडा से मितान समझकर कुछ भर्री दे दिया कुछ दिनों बाद वह मितान अपने आदिवासी मितान से आगे निकल गया और उससे हजार गुना जायदा अमीर हो गया और खेत खार भी खूब बना लिया और आदिवासी मितान जंहा था व्ही का व्ही है, इस घटना से स्पष्ट होता है की आदिवासी बहुत अधिक भावनात्मक और दयालु किस्म के है जिसके चलते कोई भी अन्य लोग हमारे लोगों का फ़ायदा आसानी से उठा लेते है किसी ने सच ही कहा है की “जब बाहरी लोग आये तो उनके हांथो धर्म की किताब थी हमारे पास सम्पति उन्होंने आकर अपना धर्म कर्म के बारे में बताने के लिए हमे आँख बंद करवाया जब आँख खोले तो हमारे हांथो में किताबे थी और उनके पास सम्पति”
उनके विपक्ष की भूमिका निभा रहे है और सभी त्योहारों का भी विरोध जोरो पर है हरियाली पोला रक्षाबंधन होली दीपावली आदि आदि एक बात मै क्लियर कर दूँ आदिवासी प्राकृतिक पूजक है और रहेंगे, हमे किसी धर्म या मूर्ति पूजा की न पहले जरूरत थी न आगे कभी होगा,राजनीतिज्ञो द्वारा समाज को अपने अपने तरीके से बढ़िया इस्तेमाल किया जा रहा है सब अपने अपने रोटी सकने में लगे है,
आदिवासियों को परबुधिया कहने लगे है साहब पहले जब बाहरी लोग आते थे तो लोग महेमान समझकर उन्हें पीडहा देते थे और खुद जमींन में बैठते थे और उनके मन की मनसा न जानकर उनकी तरह तरह से सेवा करते थे मेहमान मानकर, उनको अपना दुःख पीड़ा और अपना सब कुछ बयाँ कर देते थे उसी का फ़ायदा बाहरी लोग उठाते थे और दुखती पीड़ा में हाँथ रखकर सहारा का वादा कर उनकी सभी सम्पति हजम कर जाते थे अगर कभी पढने का मौका मिले तो जरुर हमारे आदिवासियों का मितान और गंगाजल भोजली तुलसी आदि मितान परम्परा के बारे में पढना कैसे बाहरी लोगो से मितान बदते थे फिर बाहरी लोगो को हमारे सियान लोग जमीन देते थे मितान परम्परा की बात हुई तो थोडा से अपना अनुभव शेयर करता हूँ मेरे दादा जी बताये की उनके मितान जो की एक अन्य आदिवासी समुदाय से है मेरे दादा के मितान के मितान एक सामान्य वर्ण के सदस्य है पहले वे सामान्य वर्ण के मितान अपने मितान के यहाँ आया अपना सब दुखड़ा सुनाया फिर उनके मितान अपना दुखड़ा सुनाया फिर दोनों में धीरे धीरे अछे सम्बन्ध बन गये फिर मेरे दादा के मितान अपने मितान (सामान्य वर्ण) को रहने के
लिए अपने घर के पास एक छोटा से जमींन दिया फीर उनके काम करने के लिए थोडा से मितान समझकर कुछ भर्री दे दिया कुछ दिनों बाद वह मितान अपने आदिवासी मितान से आगे निकल गया और उससे हजार गुना जायदा अमीर हो गया और खेत खार भी खूब बना लिया और आदिवासी मितान जंहा था व्ही का व्ही है, इस घटना से स्पष्ट होता है की आदिवासी बहुत अधिक भावनात्मक और दयालु किस्म के है जिसके चलते कोई भी अन्य लोग हमारे लोगों का फ़ायदा आसानी से उठा लेते है किसी ने सच ही कहा है की “जब बाहरी लोग आये तो उनके हांथो धर्म की किताब थी हमारे पास सम्पति उन्होंने आकर अपना धर्म कर्म के बारे में बताने के लिए हमे आँख बंद करवाया जब आँख खोले तो हमारे हांथो में किताबे थी और उनके पास सम्पति”
कहा भी गया है की “भय बिनु होई न भक्ति”
इस अर्थात अगर आपके मन में भय न बिठाया जाए तो आप कोई भी भक्ति नही कर पाएंगे इसलिए तो आज के इस यूग में भगवान धर्म भीरूओ की जागीर बन गई है आपने देखा भी होगा छात्र छ्त्राए साल भर अछे से पढाई नही करते और पेपर के आते आते भक्ति भाव में उतर जाते है की हे भगवान् भौतिक को देख लेना बांकी मै संभाल लूँगा और होता भी व्ही है भौतिक में सप्लीमेंट हे हे अब तो सुधरो मेहनत से ही सफलता मिलती है पूजा उपास ध्यास साल भर भी रहोगे और पढाई लिखाई नही करोगे कोई भगवान आपकी बेडा पार नही कर सकता कहते भी है ऊपर वाला भी उसका मदद करता है जो
खुद का मदद करता है मेरे प्यारे भाइयो कृपा कर तुम भगवान के भरोसे मत बैठो क्या पता भगवान् तुम्हारे भरोसे बैठा हो हमारे आदिवासियों में ये भक्ति भाव इतनी हावी हो गया है की हर बात के लिए भगवान् और किस्मत के सहारे रहते है पर ब्राम्हण नही रहते क्योकि उन्हें पता है की भगवान नही होता इसलिए हमे भक्ति में लगा कर खुद पढाई में लग जाते है और टॉप कर जाते है सम्भलो मेरे भाइयो
खुद का मदद करता है मेरे प्यारे भाइयो कृपा कर तुम भगवान के भरोसे मत बैठो क्या पता भगवान् तुम्हारे भरोसे बैठा हो हमारे आदिवासियों में ये भक्ति भाव इतनी हावी हो गया है की हर बात के लिए भगवान् और किस्मत के सहारे रहते है पर ब्राम्हण नही रहते क्योकि उन्हें पता है की भगवान नही होता इसलिए हमे भक्ति में लगा कर खुद पढाई में लग जाते है और टॉप कर जाते है सम्भलो मेरे भाइयो
अगर कोई दान नही दोगे तो श्राप दे देंगे जल के राख हो जाओगे या ऐसा नही करोगे तो दुःख भोगना पड़ेगा और अगर ये किया तो नरक में जाना पड़ेगा आदि आदि ये सब छलावा है और डर है
उसी डर के कारण ही लोग दान और भक्ति में लगे है वर्ना अगर कोई डर न रहता तो कोई भक्ति न कर पाते पोंगा पंडित लोगो की इतनी मान भी नही होती और
स्वर्ग के लालच में अपना वर्तमान सम्पति से हाँथ भी न धोते जैसे की गाय दान जमींन दान ले लेकर पंडित लोग जमींनदार हो गए और जमीनदार मजदुर हो गए,
स्वर्ग के लालच में अपना वर्तमान सम्पति से हाँथ भी न धोते जैसे की गाय दान जमींन दान ले लेकर पंडित लोग जमींनदार हो गए और जमीनदार मजदुर हो गए,
आप इस विडियो के माध्यम से समझ भी सकते है अछि तरह से
पर अब लोग धीरे धीरे समझ रहे है की ऐसा कोई नर्क स्वर्ग नही होता और कोई पाप पूण्य नही होता और तब से इसके दो निष्कर्ष निकल के आ रहे है 1 लोग विज्ञान के क्षेत्र में आगे आ रहे है और तर्कशीलता में वृद्धि हो रही है और वैज्ञानिक तर्कों और नियमो के अनुसार चल रहे है तथा उन्ही रीतिरिवाज को मान रहे है जो तर्क सम्मत हो, वही दुसरे तरफ नैतिक पतन आरंभ हो रहा है अब न पाप पूण्य भगवान का डर मंदिरों और गुरुआश्रमों में बलात्कार और मंदिरों गिरजाघरो में चोरी करने से भी इंसान
नही घबरा रहा क्योकि वे जान रहे है की भगवान मंदिरों में नही होता यह ब्राम्हणों द्वारा बनाया गया एक चाल है
नही घबरा रहा क्योकि वे जान रहे है की भगवान मंदिरों में नही होता यह ब्राम्हणों द्वारा बनाया गया एक चाल है
जैसे बचपन में बच्चो को बाऊ चाबही चुप हो जा बोलकर चुप करवाते थे और बाहर न घुमे इसलिए भुसकी कार में बच्चा चोर आता है करके डरवाकर मनाते थे और नैतिक और शिष्टाचार की शिक्षा डर के साथ देते थे सेम वही ट्रिक ब्राम्हण हम दलितों पर अजमाए और वे एक तरह से उसमे सफल भी हो गए भगवान और भक्ति और दान श्राप के
डर से हमे भ्रमित करने में सफल हुए फीर वह इतना हावी हो गया की अब उनके बनाये काल्पनिक पात्र हमे सही लगने लगे है और आज हम उन्ही के बनाये राक्षसों वाली पात्रो को मानने को तुले है
डर से हमे भ्रमित करने में सफल हुए फीर वह इतना हावी हो गया की अब उनके बनाये काल्पनिक पात्र हमे सही लगने लगे है और आज हम उन्ही के बनाये राक्षसों वाली पात्रो को मानने को तुले है
और देखो क्या क्या मांग लेकर आ रहे है

































हद हो गया यार
अगर सही में भगवान होता तो ये होता क्या




अगर भगवान काल्पनिक है तो उनके द्वारा वध किया गया राक्षस कैसे वास्तविक हो सकते है काल्पनिक कपोल से बाहर निकालिए



विज्ञान न देव असुर संग्राम को मानता है न ही रामायण काल यूद्ध को और न ही महाभारत के यूद्ध को न भगवान को न ही आत्मा परमात्मा को





अगर धर्म की गहराई जानना चाहते हो तो एक बार
फिल्म और
pk
फिल्म
देखे और डॉ भीम राव अम्बेटकर
पहले लोग हमसे भगवान से दूर रखने तरह तरह के ढकोसले करते थे और अब भगवान से दुर होने नही दे रहे है क्या यूग आ गया है भाई
हमे न ही कोई भगवान की जरुरत है न किसी धर्म की बस यह मान लीजिये की जो हमे सामाजिक रूप से रीतिरिवाज और नियम मिला है उसी पर चले किसी के बहकावे में ना आये हम आदिवासी है और प्राकृतिक के और अपने पूर्वजो की पूजा से ही हमे सुख और शांति मिलती है और अगर किसी को अपने पूर्वज और प्राकृतिक पूजा से सुख नही मिलता तो एक बात लिख
के ले लो आप किसी भी धर्म को अपना लो कोई सुख और शांति नही सुख शांति के लिए ही दुसरे धरम में जाते है और लोग इसिबात का फ़ायदा उठाते है आप अगर रोज पूजा पाठ करो और कोई काम धंधा नही करोगे तो आपके भगवान कमा के नही खिलायेगा याद रखियेगा कम्पीटीशन के लिए कई तथाकथित समाज सेवक भी बहती नदिया में अपना हाथ
धो रहे है और समाज को भ्रमित करने में कोई कसर नही छोड़ रहे है,पर उन भ्रमित करने वालो का तरकीब असफल होते नजर आ रहा है
और धीरे धीरे वे भ्रम से दूर हो रहे है और फिर हरियाली को हरेली के नाम से मानने को तैयार हो रहे है और दिवाली को देवारी या दियारी के रूप में मानने को तैयार हो रहे है और दशहरा को दसेरा के रूप में मानने को तैयार हो रहे है साथ ही अब धीरे धीरे रावण दहन का विरोध
भी कम होने लगा क्योकि रावेन और रावण में भ्रम के कारण ऐसा हो रहा था ठीक उसी प्रकार महिषासुर और भैसासुर में भी अंतर को समझना होगा और धीरे धीरे सब सही हो जायेगा और मै पहले भी और आज भी कहता हूँ आदिवासीयो को किसी भी प्रकार का न पाप होता है न पूण्य और न हमे किसी धर्म की जरुरत है हमे गर्व है अपने पुरखो और प्राकृतिक शक्ति पर जय माँ दंतेश्वरी
के ले लो आप किसी भी धर्म को अपना लो कोई सुख और शांति नही सुख शांति के लिए ही दुसरे धरम में जाते है और लोग इसिबात का फ़ायदा उठाते है आप अगर रोज पूजा पाठ करो और कोई काम धंधा नही करोगे तो आपके भगवान कमा के नही खिलायेगा याद रखियेगा कम्पीटीशन के लिए कई तथाकथित समाज सेवक भी बहती नदिया में अपना हाथ
धो रहे है और समाज को भ्रमित करने में कोई कसर नही छोड़ रहे है,पर उन भ्रमित करने वालो का तरकीब असफल होते नजर आ रहा है
और धीरे धीरे वे भ्रम से दूर हो रहे है और फिर हरियाली को हरेली के नाम से मानने को तैयार हो रहे है और दिवाली को देवारी या दियारी के रूप में मानने को तैयार हो रहे है और दशहरा को दसेरा के रूप में मानने को तैयार हो रहे है साथ ही अब धीरे धीरे रावण दहन का विरोध
भी कम होने लगा क्योकि रावेन और रावण में भ्रम के कारण ऐसा हो रहा था ठीक उसी प्रकार महिषासुर और भैसासुर में भी अंतर को समझना होगा और धीरे धीरे सब सही हो जायेगा और मै पहले भी और आज भी कहता हूँ आदिवासीयो को किसी भी प्रकार का न पाप होता है न पूण्य और न हमे किसी धर्म की जरुरत है हमे गर्व है अपने पुरखो और प्राकृतिक शक्ति पर जय माँ दंतेश्वरी
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अपना विचार रखने के लिए धन्यवाद ! जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी !