टीप:-सभी क्षेत्रो के विवाह संस्कार के बारे में जानने के लिए पोस्ट के सबसे नीचे लिंक में क्लीक कर उस क्षेत्र के जानकारी ले सकते है
हल्बा समाज सामाजिक शोध ग्रुप
- शोधार्थी का नाम- तुमेश कुमार चिराम आर्यन चिराम
- पुरा पता ग्रा. पो.- कोदागांव पटेलपारा संम्पर्क नंम्बर..9407749514..
- चुनाव किया गया -ग्राम कोदागांव ब्लाक कांकेर
- .जिला- उ.ब कांकेर राज्य छत्तीसगढ़
- पिन नंबर- 4 9 4 6 7 0
मौखिक बताने वाले(सहयोगी)का नामः-
1...........................................2.............................................
3.............................................
4.............................................
- जिन बिन्दुओं पर शोध किया जाना है। वह बिन्दु अग्रलिखित है।
- वहां हल्बा जनजाति के कौन कौन से सरनेम(गोत्र) के लोेंग निवास करते हैं। चिराम, फांफा कोरटिया,कोटपरिया भुआर्य, चुरेन्द्र, राना, प्रधान,गढ़िया बुर्रा, नायक, आंधिया,गवर्ना,पिद्दा,सिवना कोकिल्ला,भुरकुरिया,भेड़िया गांवर घरत, मेरिया
- 2.वहां के हल्बा जनजाति की आर्थिक स्थिति कैसी है।उनके बारे में वहां के किसी बुजुर्ग से पुछकर यह जानकारी भरी जायें?
ग्राम कोदागांव की हल्बा जनजातियों की आर्थिक स्थिति मध्यम स्तर का है।यहा कें आधे से अधिक हल्बा जनजाति सुषिक्षित व सामाजिक रूप सें सुदृढ़ हैं। तथा वर्तमान मे वे उघोग धंधो से धीरे-धीरे जुड़ रहें है। यहां के अधिक से अधिक हल्बा जनजाति कृशि कार्य करते है।
तथा यहां के युवक प्रत्येक महिने के 5 तारिख को सामाजिक मिटिंग आहुत करते है। तथा वहा समाजिक तथा अन्य विशयों से संबंधित चर्चा करते है।तथा यहंा के युवा समाजिक कार्य में अपना सक्रिय भुमिका निभाते है।तथा यहां की न्याय व्यवस्था बहुत ही सुदृढ है। यहां की न्याय समिति मे गांव के प्रमुख बुजुर्ग लोग सभी समाज से विचार साझा करने के बाद दण्ड निर्धारित करते है।तथा नषामुक्त समाज बनाने के लिए लगभग आज से लगभग 5 वर्श पहले समिति का निर्माण किया गया था जो प्रत्येक हल्बा परिवार के यहां षराब निरीक्षण के लिए जाते थे।और किसी हल्बा भाई के यहां षराब बनाते या अधिक मात्रा में षराब मिलता था उन पर कडी कार्यवाही होती थी इसी कारण वर्तमान में यहां के हल्बा समाज के कोई भी परिवार में षराब नही बनाया जाता है।
- 3.वहां की हल्बा जनजाति का प्रमुख व्यवसाय क्या है।
जनसंख्या के आधार पर लिखिए? - 1.गा्रम कोदागांव में कुल 125 हल्बा परिवार निवास करते है।अगर प्रति परिवार सदस्य निकाला जाये ंतो प्रति परिवार 4 सदस्य हैं।
- सदस्यों का वर्ग जनसंख्या
- कृशि- 360
- व्यवसाय धंधा- 25
- मजदुरी या बेरोजगार- 57
- नौकरी पेषा- 28
- प्राईवेट नौकरी - 30
- परिवार के कुल सदस्यों की संख्या - 500
- 4.वहां की हल्बा जनजातियों द्वारा मनायें जाने वाले प्रमुख त्यौहार हरियाली, पोला आम जगोनी, ईतवारी, सावन सोमवारी, माता पहुंचानी,गणेष चतुर्थी, दुर्गा पुजन, लक्ष्मी पुजन, षिवरात्रि, कृश्ण जन्माश्टमी, पित्तर पक्ष,नवाखाई एकता दिवस षक्ति दिवस, षहादत दिवस,स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस,रक्षाबंधन, तीज त्यौहार, होली, रामनवमी, राम सप्ताह, रथयात्रा तीलसक्रात,
- 5.वहां के हल्बा जनजातियों के द्वारा पुजे जाने वाले प्रमुख देवी देंवता का नाम पहाड़ वाली, काली माई, डोकरी, डोकरा सितला माता, भंगाराम, पाटदेव,मावली दन्तेष्वरी दुल्हादेव,महादेव, नाग देव, दुर्गा,सभी प्रकार के हिन्दु देवी देवताओं की पुजा की जाति है।तथा वे कई प्रकार के अन्य संस्था से भी जुडें है। जैसे राधास्वामी सत्संग व्यास, मानव धर्म सतपाल महराज तथा अन्य धर्म को भी मानते है।जैसे कबीर पंथी व ईसाई आदि
- 6.वहां निवास करने वालें हल्बा जनजातियों के द्वारा पहनने वाले प्रमुख आभुशण एंव वस्त्रों के नाम पायल चुटकी अंगुठी बहुंठा चुड़ी फीता नथनी बाली बाला फुंदरा पैजन नागमोरी रूपया माला, डोरा एैठी कंगन मंगल सुत्र किलीप, बारी चुडा कमर पटटी आदि,
- वस्त्र साडी ब्लाउज लहंगा सलवार कुर्ती व सामान्य प्रयोग होने वाले कपडें पहनते है।व पुरूश षर्ट फुलपेंट जिंस पटका धोंती पजामा आदि
- 7.वहां निवास करने वाले हल्बा समाज के सदस्यो का रहन सहन निवास स्थान के बारें में लिखिए तथा भोज्य पदार्थो के बारें में बताईये? यहां के हल्बा जनजाति के लोग मकानों में निवास करते है। जो कि प्रायः कच्ची है। तथा कुछ लोगों का मकान पक्की ईटो से बना है। तथा कुछ लोग अपने मकान को पक्की ईटो का बना रहें है। जैसे जैसे विकास हो रहा है। सभी लोग अपने मकानों में भौतिक सुविधा व आर्कशण लगें एैसा बनानें लगें हैं।
तथा यहां की रहन सहन है। प्रायः सामान्य स्थिति की है। यहां के हल्बा जनजाति के लोग सभी लोगों के साथ भाई चारें तथा षिश्टचारी व्यवहार करते हैं। तथा सभी मिलजुलकर रहतें है। तथा एक दुसरें के साथ दुख सुख व एक दुसरें के कार्यों में अपना सहयोग देतेे हैं, चाहें वे कोई त्यौहार का कार्य हो या फिर कोई संस्कार कार्य हो सभी में वे एक दुसरे का मदद करतें है। हल्बा जनजाति के लोग प्रायः साफ सुथरी पसंद करनें वाले होते है। वे अपने घर के आस पास आंगन व बाडी को साफ करतें है। वें अपनें घर को सुही से पोताई करते है। तथा जो षिक्षित व नौकरी पेषा व्यक्ति है। वे अपना मकान को चुने व अन्य वैज्ञानिक पोताई के साज समानों का प्रयोग करते हैं। तथा अपने मकानों में अपने श्रध्देय देवी देवताओं का तैलीय चित्र रखतें है। तथा उनका पुजा करते है। वे सामान्य खाना बनाने के लिए मिट्टी का चुल्हा प्रयोग करते हैं।तथा कुछ लोग गैस सैलेन्डर का प्रयोग करना प्रारंम्भ किये है।तथा वे सामान्य स्टील व जर्बन,कांषा पीतल का होता है।
तथा किसी किसी के यहां आज भी मिट्टी के बर्तनो से खाना बनाया जाता है। - खाद्य पदार्थः- यहां के लोग का मुख्य रूप से चांवल व सब्जी खातें है।तथा कभी कभी अग्रलिखित भोज्य पदार्थ बनाते है। तथा कुछ कुछ भोज्य पदार्थो कों विषेश त्यौहारों पर बनाते है। अंगाकर रोटी पुडी खिर खिचड़ी चावंल आटा का रोटी प्राय सभी के यहां बनाया जाता है।भजीया बड़ा षक्कर पारा सुजी, फोआ गुजीया,ठेठरी खुरमी,आदि मुख्य भोज्य पदार्थ है।
- उत्पादित सब्जी यहां सेमी बरबटटी, आलु प्याज कुंदरू जिर्रा लहसुन चेंच भाजी लाल भाजी पालक भाजी टमाटर जरी मुनगा बैगन करेला फुल गोभी पत्ता गोभी आलु चुरचुटिया भिंडी कददू लौकी रखिया खिरा ककडी मुली भुटटा आदि प्रायः सभी के घर उत्पादित किया जाता है।
- 8.वहां निवास करने वाले हल्बा जनजातियों के द्वारा पाले जाने वाले प्रमुख पालतु जानवर के बारें में?
यहां के हल्बा जनजाति मुर्गी, गाय बैल बकरी तोता कुत्ता बिल्ली पालते है।
- 9.उस गांव के आस पास या उस क्षेत्र में हल्बा जनजातियों का कौन कौन सा लोक नृत्य,लोक गीत प्रचलित था?...है? धनकुल गायन का आयोंजन वर्तमान में कुछ साल पहले से किया जा रहा है। तथा यहां के हल्बा जनजाति का लोक नृत्य चैत परब नृत्य को कुछ कुछ बुजुर्ग आज भी जानते है।पर उनका आयोजन नही किया जाता है।
10.उस क्षेत्र में हल्बा जनजातियों के सदस्यों द्वारा प्रचलित रिष्ते नाते किस प्रकार का है?
- मामा भांजा का रिश्ता भाभी के पिताजी से मामा भांजा का रिष्ता होता है।
- मम्मी के भाई तथा, जीजा के पिता जी से
- मां बेटा,बेटी का रिश्ता मां से, चाची से,बडी मां से,मौसी से मां के बडी बहन से
- बाप बेटा का रिश्ता पिता से, पिता के भाईयों से, मौसा से, मौसा के भाईयों से,
- दादा पोता का रिश्ता अपने दादा से, दादा के भाईयों से,मौसा के पिता तथा उनके भाईयो,
- हंसी का रिश्ता दादा दादी, नाना नानी से भाभी तथा उनके भाई बहनों से, जीजा और उनके भाई बहनों से,बुआ के पुत्र पुत्रीयों से, मामा के पुत्र पुत्रीयों से,
- ससुर पति के मामा कोः-मामा ससुर,पति के बड़े भाईयों कोः-पुरा ससुर,पति के पिता को तथा उनके भाईयों को या पत्नी के पिता को तथा उनके भाईयों को,
- साला व साली पत्नी के भाई बहनों तथा उनके बडे पापा व चाचा के पुत्र पुत्रीयों कों
- 11.उस क्षेत्र में हल्बा जनजातियों द्वारा मानें जानें वाले वालें प्रमुख रीति रिवाज?
- हल्बा समाज के सदस्यों के यहां कोई मेहमान आते है। तो सबसे पहले उनका अभिवादन किया जाता है। तथा उन्हे पैर धोने के लिए लोटे से पानी दिया जाता है।
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हल्बा जनजाति में मामा के द्वारा अपने भांजा का पैर छुआ जाता है। तथा चाची,भाभी व सभी प्रकार की मामा मामी वाले रिश्ता भांजा का पैर छुते है। - हल्बा जनजाति में पति के बडे़ भाईयों(बडा ससुर) को दुर से पैर छुआ जाता है। तथा मामा ससुर को भी दुर से पैर छुआ जाता है।तथा सिर ढ़का जाता है।
- किसी परिवार के बड़े बहन द्वारा छोटे बहन के पति को दमाद का रिश्ता बनता है। तथा उनको नही छुआ जाता है।
- 12.उस क्षेत्र में हल्बा जनजातियों का समाजिक एंव आर्थिक स्थिति से संबंधित जानकारी
- 13.उस क्षेत्र में हल्बा जनजातियों द्वारा मनायें जानें वाले प्रमुख संस्कार किस प्रकार मनाया जाता है?
- 1 जन्म संस्कारः-जिस दिन बच्चे का जन्म होता है। उस दिन से लगभग 3 व 7 से 9 दिन बाद बच्चें का नामकरण या सट्टी कार्यक्रम का आयोंजन रखा जाता है।इसके लिए अपने सभी मेहमानों को निमंत्रण भेजा जाता है। तथा गांव में सटटी कार्य के दिन सुबह समाज के सामाज सेवक द्वारा सभी हल्बा परिवार के घरों में जाकर सट्टी कार्यक्रम को निमंत्रण दिया जाता है। की फलाने के यहां सट्टी हजामत बनाने जाना है।करके सुबह आस पडोस तथा हल्बा भाईयों के द्वारा हजामत बनाया जाता है। तथा सुबह नाष्ते के तौर पर मेहमानों को चाय नाष्ता व सौफ सुपारी दिया जाता है। तथा षाम को सट्टी कार्य किया जाता हैं।बच्चे का नामकरण किसी बैगा या कोई जानकार के मार्गदर्षन में किया जाता हैं।सभी मेहमान के द्वारा सुझायें गये नाम लिया जाता हैं तथा जय बुलाया जाता है। तथा बुजुर्गो तथा उपस्थित मेहमानो के द्वारा बच्चें व मां की सेहत ठीक रहे इसलिए कामना कि जाती है। तथा बच्चें तथा मां को अपने तरफ से कुछ तोहफे दिये जाते है। तत्पष्चात सांय काल का भोजन दिया जाता है। इस प्रकार सटटी कार्यक्रम का समापन होता हैं।
2.विवाह संस्कारः-हल्बा जनजाति का विवाह संस्कार अन्य जनजातियों कें विवाह संस्कार से भिन्न होता हैं।
घ् लड़का शादी
घ् पहला दिन किया जाने वाला रीति-रिवाज एंव नियम (नेग जोंग)
1.मउर परघवनीः-सबसे पहले मउर को परघाने जाते हैं। जिनके यहाँ बनाने दिया गया रहता है।उसके यहाँ परघाने जाते हैं।
2.तेल हल्दीः-मउर परघाने गांव के शितला मंदिर में जाते हैं।तथा वहां तेल हल्दी लगन पत्रिका ले जाया जाता हैं।तथा पुजा करके वहां माता शितला से आशीर्वाद लिया जाता हैं।यैसा माना जाता हैं।कि माता शितला को शादी के लिए इजाजत मंागा गया हैं। क्योकि गांव की वह माता हैं।
3.कुरवर बांधनाः-लडकें(दुल्हा) को नया धोती नया कपड़ा पहनाया जाता हैं।तथा षादी का प्रथम नेग किया जाता हैं। जिसे कुरवर बांधना कहा जाता हैं।इसे देखने के लिए पारा पडोस के लोगो को देखने बुलाया जाता हैं।
4.मड़वा परघवनीः-कुरवर बांधने के पष्चात् मड़वा परघाने के लिए जाते हैं।तथा जिस स्थान पर मड़वा को रखा गया रहता हैं।
वहाँ मड़वा का पूजा किया जाता है।उसके बाद उसे घर लाया जाता हैं।तथा घर लाकर उसे सुधारा जाता हैं।
5.मंण्डप छावनीः-मंडवा लाने से पहले से लेकर मंडवा लाकर लगाने तक मंडवा को सजाया जाता है उसे मंडप छावनी कहा जाता हैं। तथा मंण्डप को महिलाओं द्वारा सिंगारा जाता हैं। तथा मंण्डप के आस पास छाया जाता हैं।छांव के लिए यह सब मंण्डप छावनी रीति के अंर्तगत आता हैं।
6.चुल माटीः-गाँव के चैराह पर बाजा गाजा के साथ जाकर वहाँ पुजा किया जाता है। तथा वहा से थोड़ी मात्रा में मिट्टी चुल बनाने के लिए लाया जाता हैं।इस नेग को चुल माटी लाना कहा गया हैं।
7.आग लानाः-किसी धोबी के यहां से पहले आग लाया जाता था किन्तु वर्तमान में यह नियम धीरे-धीरे छूट रहा हैं।
षाम के समय का नियम
1. कन कन बांधना:-दुल्हे के हाथ में आम के पत्ते को नियम करके बांधा जाता हैं। इसे कनकन बांधना कहा जाता हैं।कनकन कच्चे धागे से बांधा जाता हैं।कनकन इसलिए बांधा जाता हैें।क्योकि आम के पत्ते को पवित्र माना गया हैं।
तथा हर पुजा तथा धार्मिक कार्यो में इसका प्रयोग किया जाता हैं।इससे दुल्हा को कोई बाधा नही आता येसा माना जाता हैंे।
2. तेल चढ़ानाः-शाम को तेल चढाया जाता हैं।कुछ समय पष्चात् तेल उतारा जाता हैं।तेल को 7 बार चढ़ाया जाता हैं। तथा 7 बार उतारा जाता हैं।
3. चोर तेल चढ़ानाः- और उसी रात को चोर तेल चढाया जाता हैं।
चोर तेल घर के अंदर संकल लगाकर किया जाता हैें।इसमें कुवांरे लोग भाग नही ले सकतें तथा विधवा भी भाग नही ले सकती इसमें केवल सुहागिन महिलाएं भाग ले सकती हैं।
4. पर्रा झुलानाः-तेल चढाना और उतारना खत्म हो जाने के पष्चात् अन्त में पर्रा झुलाया जाता हैं।
द्वितीय दिन का नियम
सुबह कुछ समय तक नाचतें हैं।तत्पष्चात् बारात जाने की तैयारीयां कि जाती हैं।घर के सभी सदस्य बारात जो जाना चाहता है।तैयार हो जाने के पष्चात् भोजन ग्रहण करते हैं।फिर दुल्हे को तैयार किया जाता हैं।
1. बारात निकालनाः-दुल्हे को तैयार करने के पष्चात् बारात निकालने की प्रक्रिया प्रारंम्भ किया जाता हैं।दुल्हे को नया कपडा पहनाया जाता हैं।तथा उसे मुस्सल पकडाया जाता है।बारात निकलते समय चमकीला माउर बांधा जाता हैें।
फिर उन्हे घर से बाहर निकाला जाता हैं।
2. बर सोपनाः-दुल्हे को आंगन में लाकर बर सोपा जाता हैं।यह काम घर के परिवारिक महिलाओं द्वारा किया जाता हैं।
3. बारात रावानगीः-दुल्हे द्वारा जो गाड़ी बारात के लिए बुलाया गया रहता हैं।उसकी पुजा की जाती हैं।तत्पष्चात् बारात की रावानगी करवाई जाती हैं।
4. बारात ठहरानाः-दुल्ही तरफ बारात को महलिया के घर ठहराया जाता हैं।तथा उन्हे नाष्ता तथा पानी वगैरहा पिलाया जाता हैं।तथा कुछ समय आराम करने दिया जाता हैं।
5. लाल भाजी खिलानाः-दुल्हे की शालियो द्वारा दुल्हे तथा(साथी) लोकडाहा को लाल भाजी खिलाया जाता हैं।
6. मंडवा छुने जानाः-लाल भाजी खिलाने के कुछ समय पष्चात् मण्डवा छुने जाते हैं।
मंडवा छुकर आने के बाद भोजन दिया जाता हैं।
7. बारात परघानाः-दुल्हन तरफ के सदस्यो द्वारा बारात परघाने आया जाता हैं।फिर समधी जोहार होने के पष्चात् महलिया घर से परघाकर दुल्हन के घर ले जाया जाता हैं।
शाम का नियम
शाम को किया जाने वाला नियम
1. लगन मारने जानाः-बारात परघाने के पष्चात् दुल्हन के घर दुल्हे तथा सभी बारात को लाया जाता हैं। तथा लगन के लिए दुल्हन को तैयार किया जाता हैं।दुल्हन के तैयार हो जाने के बाद लगन मारने की प्रक्रिया किया जाता हैं।लगन मारने से पहले दुल्हा दुल्हन के मध्य एक कपड़ा को पर्दा किया गया रहता हैं। तथा दुल्हा दुल्हन के हाथ में लगन मारने के लिए लगन चांवल दिया जाता हैं। तथा उन्हे अच्छी तरह समझाया जाता हैं।
उस कपड़ा को हटातें ही दुल्हा दुल्हन एक दुसरे को लगन चांवल मारते हैं। दुल्हा दुल्हन के हाथ को पकड़ लेता हैं।फिर उस कपड़ा जिसे पर्दा ंिकया गया था उसमें दुल्हा दुल्हन को एक साथ बांध देते हैं।
2. भाँवर घुमनाः-भांवर दोनो तरफ के ढेडहीनो के द्वारा घुमाया जाता हैं।एक ढेडहिन दुल्हन का हाथ पकड़ कर भांवर घुमाता हैं।तो एक ढेडहीन पर्रा को लेकर पीछे भांवर घुमती हैं।3 भांवर लड़की कों आगे करकें भांवर घुमाया जाता हैं
4भांवर दुल्हा को आगे रखकर घुमाया जाता हैं।
3. टीकावनः-7 भांवर हो जाने के बाद टीकावन बैठाया जाता हैं। टिकावन बैठाने के पष्चात ् सबसे
4. पहले
दुल्हन के माता पिता टीकतें हैं।तथा पाँव पखारतें हैं।तत्पष्चात् क्रमषःचाचा-चाची मामा-मामी आदि टीकते हैं।उसके बाद गाँव से आये मेंहमान टीकतें हैं। टीकावन खत्म होने के पष्चात्
5. मँाग भरनाः-दुल्हे के द्वारा मांग भरा जाता हैं।तथा मंगलसुत्र पहनाया जाता हैं।
6. मुड ढंकनाः-दुल्हन के पुरा ससुर द्वारा दुल्हन की मुंड ढ़का जाता हैं।
तत्पष्चात् टीकावन में नवदम्पती को प्राप्त उपहारो का विवरण बताया जाता हैं।उसके बाद बुर्जुगांे द्वारा नवदम्पती को समझाया जाता हैं।
तथा आर्षीवाद दिया जाता हैं।तथा उपहार को लडके पक्ष को सौपते हैं।तत्पष्चात् वर तथा वधु द्वारा वधु के भाई को कुछ अपने उपहार मेंसे कोई एक चीज देतें हैं।फिर टीकावन उठाया जाता हैं।तथा रात्रि भोज किया जाता हैं।
7. बिदाई समारोहः-पहले बिदाई समारोह बाद मे किया जाता था किन्तु वर्तमान में टीकावन के दिन ही बिदाई दिया जाता हैं।दुल्हन के भाई द्वारा अपने बहन को गुड पानी पीलाया जाता हैं। तथा आर्षीवाद दिया जाता हैें।रास्ता तक छोड़कर आया जाता हैं।तथा इसके बाद दूल्हे के पिता द्वारा बिदाई मांगा जाता हैं। बिदाई के पष्चात् समधी जोहार कर बारात अपने घर को प्रस्थान करते हैं।
तृतिया दिन किया जाने वाला नियम
1. बारात ठहराना(दुल्हा तरफ)ः-बारात रात में दुल्हा के गाँव आगमन हो जाता हैं।
लेकिन उनको घर में जाने की इजाजत नही रहती है।इसलिए बारात को किसी रंगमंच या कोई सार्वजनिक स्थान में ठहराया जाता हैं।
2. बारात परघाना(दुल्हे तरफ)ः-रात में आकर रूके हुए बारात को सुबह दुल्हे तरफ के परिवार जो बारात नही गयें रहते हैं।परघाने जातें हैं।तथा परघाकर लातें हैं।तथा नाष्ता पानी दिया जाता हैं।और दुल्हन को एक रूम उनके सहेलियो के साथ रहने के लिए दिया जाता हैं। जिसे दुल्हीन कुरीया कहा जाता हैं।कुछ समय दुल्हा तरफ नाचा गाया जाता हैं। तथा साथ ही साथ सगा निंगने का का कार्यक्रम चलता हैं।यह कार्यक्रम षाम तक चलता हैं।
3. चहुथिया परघानाः-अगर दुल्हन तरफ से (चहुथिया)बारात आता हैं।आते हैं। तो उन्हे (स्वागत करना)परघाया जाता हैं।तथा दुल्हे के घर लाया जाता हैं।
4. टिकावनः-षाम ढलने के पष्चात् टिकावन बैठाया जाता हैं।टीकावन के खत्म होने के पष्चात्
5. कनकन निकालनाः-टिकावन के पष्चात् कनकन निकालने का कार्यक्रम किया जाता हैं।तत्पष्चात रात्रि भोज किया जाता हैं।
6. डोर छेकनाः-दुल्हे के बहनो द्वारा दुल्हन को घर के अंदर जाने से रोका जाता हैं।
जब दुल्हे द्वारा बहनो को पैसा दिया जाता हैं। तब उन्हे अंदी जाने देते हैं।
7. दान देनाः-दूल्हा तथा दुल्हन द्वारा अपने भाँजे को दान दिया जाता हैं।
8. चहुथिया बिदाईः-आयें हुए चहुथिया को रात्रि भोज के पष्चात् बिदाई दिया जाता हैं।
9. गोतियारी खाना:-चहुथिया के बिदाई के बाद सभी वर पक्ष के परिवार के सदस्य एक साथ उपस्थित होते हैं।तथा दुल्हन को उन सभी से परिचय कराते हैं।जिसे हम मुंहदेखवनी भी बोलते हैं।इसी समय दुल्हन से पैर धोवाने का कार्यक्रम किया जाता हैं।
फिर एक साथ भोजन किया जाता हैं।
10. हिरन मारनाः-पहले हिरन मारने का रीति रिवाज था किन्तु वर्तमान में यह नियम को छोड़ दिया गया हैं।
- 3.मृत्यु संस्कारः-हमारें समाज मे अलग अलग प्रकार के मृत्यु के लिए अलग अलग विधि किया जाता है। मृत्यु संस्कार को किये जाने से पहले मृत्यु के प्रकारों को जानना जरूरी है। तो चलो जानें व समझें
- मृत्यु के प्रकार
- 1. सामान्य मृत्यु
- 2.दुर्घटना मृत्यु
- 3.गर्भवती मां की मृत्यु
- 4.जहर सेवन व अन्य विधि से आत्महत्या से मृत्यु, हत्या से मृत्यु
- किसी गंम्भीर बिमारी से मृत्यु
- अविवाहित लडकी व लडका की मृत्यु
- बच्चे की मृत्यु
- नामकरण से पहले
- नामकरण के बाद
- 1. सामान्य मृत्युः-हमारें हल्बा समाज मे किसी परिवार के किसी सदस्य का देहांत सामान्य रूप से होता है। तो उनका मृत्यु संस्कार निम्न लिखित प्रकार से किया जाता है। जिस दिन किसी परिवार के किसी सदस्य का निधन होता है। तो सबसे पहले समाज के सेवक को बताया जाता हैं। तथा उनके द्वारा पुरे गांव में निवास करने वाले हल्बा समाज के सभी सदस्यों को उनके द्वारा सुचना पहुंचाई जाती है।
तथा अगर आस पास के गांव में उनके गरीबी रिष्तेदार मौजुद होते है। और वे आने में सक्षम होतो उनके आने का ईन्तजार किया जाता है। तथा आस पड़ोस के गांव के निवास करने वाले भी इस अंतिम षोक यात्रा में षामिल होते है।तथा पटाखे की आवाज किया जाता है।ताकि गांव में निवास कर रहें लोगों को पता चल सकें की षव को निकाला जा रहा है।इसलिए पटाखा फोड़ा जाता है।तथा 2-3 घंटे इंतजार करने के पष्चात् जितने लोग आ जाते वे षव यात्रा में षामिल होते है। तथा 2-4 लोगों को गडढा बनाने के लिए पहले से ही मरघट भेज दिया जाता है।जो मरघट में जाकर षव के लिए गड़ढा खोदते है।
शव को निकालने से पहले किया जाने वाला नियम निम्न प्रकार है।
पहले आंगन को गोबर से लिप लिया जाता है। तथा उस हुए जगह में चैका बनाया जाता है। तथा षव को नया कपड़ा से ढकते जाते है। जितने लोग अपने साथ कफन लायें रहते है।
लाष को ढंकते जाते है। तथा लाष के सामने दिपक जलाते है। तथा घर व परिवार के महिलाओं द्वारा व आस पड़ोस के महिलाओं द्वारा (रोया जाता हैं)षोक व्यक्त किया जाता है। ततपष्चात् (षव रखने का बांस का खाट )या खाट षव ले जाने के लिए तैयार किया जाता है।अगर खाट है। तो उसे उल्टा कर रखा जाता है। तथा चारो खुरों पर केला पत्ता बांधा जाता है। तथा चांवल का आंटा का दिपक चारों , खुरों में रखा जाता है। तथा घर के पुरूश सदस्यों के द्वारा खाट कों घाट तक ले जाया जाता है।
साथ ही साथ उस आदमी जिसका मृत्यु हुआ है। उसका सभी प्रयोंग किया जा रहा समान को भी ले जाते है। जो वे केवल व्यक्तिगत प्रयोग मे लाता था उसको, और षव लेजाने के लिए लेकिन अगर मरनें वाला का बेटा रिष्ता वाले अधिक हैं तो उनको पहले प्राथमिकता दी जाती है।अगर मरने वाला कोई पुरूश है।तो उनके पुत्र व उनके भाईयों को पहले प्राथमिकता दी जाती हैं।तथा षव को घर से निकालते है। तो धान व चिल्लर पैसा व रूई साथ में सिचते जाते हैं
तथा रास्ते में थोडी देर के लिए रूकते है। जिसे खुर बदलना बोलते हैं जिसमें सभी लोग अपना अपना खुर को बदल लेते हैं (जिस खुर को वे कंधे मे लिए रहते है। उसे दुसरे सदस्य को दिया जाता है।)जब वे मरघट के पास पहुचते है। तो किसी छायादार वृक्ष के पास षव को उतारते है। तथा उनकी सारी चीजे उतारी जाती हैं।अंगुठी ,करधन,माला ,कपडा ,बाला नाथनी आदि सभी निकाल लिया जाता है। तथा उन्हे नया कपडा जो कफन ढंका रहता है। उसे षव पर लपेट दिया जाता है।तथा उसके बाद पुनः षव को उठाया जाता है। तथा षव के लिए बनाया गया गडढा को 7 बार घुमा जाता है। तथा अंतिम चक्कर के बाद उन्हे गडढें में डाल दिया जाता है। तथा अगर (जिसका मृत्यु हुआ हैं)उसका बडा बेटा उपस्थित है। तो उनके द्वारा मुखागनि दिया जाता है।
जो थोडा से घास का पैर या पैर को षव के षिर तरफ खडें होकर तथा विपरीत दिषा में मुहकरके उल्टे हाथ दिया जाता है। तत्पष्चात् बडे बेटे के द्वारा ही थोडी सी मिटटी व नमक डाला जाता है। तत्पष्चात सभी उपस्थित सदस्यों द्वारा नमक व मिट्टी डाला जाता है। तथा इस प्रकार मिट्टी से पुरी तरह ढंक देते है।
तथा उसकों पत्थर से अच्छी तरह से दबा देते है। तथा सिर के तरफ 1 बडा सा पत्थर रख देते है। तथा जो कफन रहता है। उसमे से 1-2 कफन आस पास के वृक्षो में बांध दिया जाता है। बाकी कपडा व कफन को जला दिया जाता है। तथा मुर्दा के समानों को समानो को गडढें के आस पास रख दिया जाता है। तथा उनके खाट को भी वही रख दिया या जला दिया जाता है। उसके बाद सीधें नदी या तालाब में नहाने जातें है। ताकि असुत धुल सके,तथा उसके बाद बाहर से आयें मेहमानों के लिए गांव के हल्बा सदस्यों द्वारा खाना बनाया जाता है।तथा उन्हे खिलाया जाता है।
उसी रात को हमारे गांव में मिटिंग का आयोंजन किया जाता है। जो उस परिवार जिनके यहां देहांत हुआ है। के घर में रखा जाता हैं।जिसमें यह चर्चा की जाती है। कि काम कब रखना है? तीजनाहन रखना है? की सातनाहन रखना है? इसपर चर्चा किया जाता है। तथा उनके मेहमानों को निमंत्रण किस प्रकार भेजना है।
तथा कौन कौन जायेगा निमंत्रण के लिए यह तय किया जाता है।यह सब तय होने के पष्चात जिन जिन को जो जो कार्य सौपा जाता है। उनको करना अनिवार्य होता है। नही तो उनपर सामाजिक कार्यवाही की जाती है। तथा तय किया गया दिन तक जिन लोगो को खाना बना कर उस देहांत परिवार को खिलाने के लिए सौपा जाता है।वे खाना बनाकर उस परिवार को खिलाते है। तथा काम के दिन सुबह सभी घर से लकडी चांवल तथा 20रूपयें लेकर जमा करते है। जिनके यहा काम हो रहा होता है। जिससे उनको थोडा बहुत मदद हो जाता है। तथा साथ ही साथ सुबह दाढी मुंछ बनाते है। तथा घर के पुरूश सदस्यों का सिर मुढाया जाता है। जिस वार्ड खाना बनाने का कार्य दिया जाता है।उनके द्वारा खाना बनाया जाता है। तथा बाकि सदस्यों द्वारा अन्य विधानों में सहयोंग दिया जाता है।
जैसे नहाने जाना व अन्य कार्य को करने में मदद करते है।तथा खाना बांटना आदि कार्य करते है। तथा साम को बिक्षर बैठा जाता है। इसमें परिवार के वे पुरूश सामिल होते है। जिसका मुढन किया गया होता है।तथा इस बिछर में जिनके साथ गोतियारी खाते है। वे सदस्य भी सामिल होते हैं। बिछर में सभी सदस्यों द्वारा मुढन हुए सदस्यों के सर में पटका बांधा जाता है। तथा कुछ पैसा भी पकडाया जाता है।तथा रात में चांवल आटा को माई खोली में गोल बनाकर उसको बहुत ही चिकना किया जाता है।
तथा उसके उपर दिया को जलाया जाता है। तथा पहरा दिया जाता है। तथा सुबह देखा जाता है। उस आटा में किसी भी जीव जन्तु के पैरों का निषान पाया जाता हैं इससे एैसा माना जाता है। कि जिसका मृत्यु हुआ वह अन्य जीव के रूप में जन्म लिया है। जो उस आटा में चिन्ह है।उसके अनुसार तथा कभी समय निकाल कर उसी आटा को सभी केवल घर के सदस्य रोटी बनाकर खाते है। जिसे गोतियारी खाना बोला जाता है।
- 2.दुर्घटना मृत्यु
दुर्घटना से हुआ मृत्यु में पहले पोस्टमार्डम किया जाता है।तथा पुलिस केष के अनुसार तथा स्थिति के अनुसार उनको कभी कभी दफनाया जाता है। तो कभी कभी चीता जलाया जाता है।तत्पष्चात् उनका काम पुर्वावत तरीके से ही किया जाता है।
- 3.गर्भवती मां की मृत्यु
अगर गर्भवती मां की मृत्यु जेचकी के दौरान हो जाता है। तो एैसी मां को गांव के सियार से बाहर दफनाया जाता है। तथा उनका काम सामान्य तरीके से किया जाता है। जो पुर्वावत बताया जा चुका है।
- 4.जहर सेवन व अन्य विधि से आत्महत्या से मृत्यु, हत्या से मृत्यु
इस प्रकार से हुआ सभी मृत्यु को सबसे पहले पुलिस केष होता है। तत्पष्चात् छानबीन के पष्चात पोस्टमार्डम रिपोर्ट आनें के बाद दफनाया या चीता जलाया जाता है। तथा इनका काम सामान्य तरीके से ही किया जाता है। जो पुर्वावत बताया जा चुका है।
- 5.किसी गंम्भीर बिमारी से मृत्यु
अगर गंम्भीर बिमारी से मृत्यु होती है। तो एैसे षवों को दहन किया जाता है। तथा काम सामान्य तरीके से ही किया जाता है।
घ् 6.अविवाहित लडकी व लडका की मृत्यु
अगर किसी अविवाहित लड़का या लड़की की मृत्यु हो जाता है। तो उनको गांव के सियार से बाहर दफनाया जाता है। तथा गंम्भीर रूप से बिमार हो तो उन्हे चीता भी जलाया जाता है।तथा उनका काम सामान्य तरीके से ही किया जाता है।
- 7.बच्चे की मृत्यु
- नामकरण से पहले
अगर बच्चे का मृत्यु नामकरण से पहले हो जाता है। तो काम करने की जरूरत नही होती है। तथा सामान्य तौर पर एैसे मृत्य ु पर काम नही किया जाता है।
- नामकरण के बाद
नाम करण के 1 दिन बाद भी अगर किसी कारण वष बच्चे की मृत्यु हो जाता है। तो उनका काम किया जाता है। जैसा सामान्य तरीके से होता है।उन्ही विधि द्वारा होता है। किन्तु इसमें उतना ज्यादा मेहमानो को नही बुलाया या निमंत्रण नही दिया जाता है।
- 14.उस क्षेत्र में समाज के द्वारा किया जा रहा समाजिक जागृति के बारें में उठायें जा रहें कदम क्या-क्या है?
हमारें कांकेर ब्लाॅक में प्रति वर्श वार्शिकोत्सव का आयोजन किया जाता है। जिसके अन्तर्गत प्रतिभाषाली बच्चों का सम्मान किया जाता है। तथा हमारे समाज के बुजुर्गो का भी सम्मान किया जाता है। जो समाज के लिए उत्कृश्ट कार्य कियें हैं।तथा सभी पढने वाले बच्चों को समाज के युवा संगठन के माध्यम से कम ब्याज दर पर राषि उपलब्ध करवाया जा रहा है। तथा गरीब बच्चों को पढाई करने के लिए कुछ राषि प्रोत्साहन स्वरूप दिया जाता है। ताकि वे पढाई न छोडे़ तथा अधिक प्रतिषत लाने वाले बच्चों को अलग अलग स्तर पर सम्मान किया जाता है। तथा पुरूस्कार वितरण किया जाता है।मेरे द्वारा हल्बा समाज का हल्बा समाज समाजिक षोध व्हाटसअप ग्रुप बनाया गया है। जिसके माध्यम से हमारे समाज की समाजिक संबंधित षोध किया जा सकें तथा उनको सभी सदस्यों तक पहुंचाई जा सके इसलिए प्रयास किया जा रहा है।हमारे समाज के सभी युवा सदस्यों को समाज में आने व समाज के बारें में जानने के लिए विषेष प्रयास किये जा रहे है।
- 15.उस क्षेत्र में हल्बा जनजाति द्वारा उत्पादित प्रमुख फसल व रहन सहन वातावरण व हल्बा जनजाति के भवन की स्थिति व हल्बा जनजाति के प्रमुख धार्मिक स्थल तथा, प्रचलित रीति रिवाज,स्वतंत्रता सेनानीयों हल्बा समाज की वीर सैनिकों के बारें में,एंव अन्य समाज से संबंधित जानकारी, इतिहास,प्रमुख त्यौहार, व कार्यक्रम, सामाजिक कार्य मिटिंग व किया जा रहा प्रयास व समाज ग्राम स्तरीय या ब्लाक स्तरीय, जिला स्तरीय प्रयास का वर्णन व अन्य जानकारी विस्तृत लिखें ?
मै हमारे समाज की समाजिक षोध के लिए निम्नलिखित जगहो से जानकारी इक्ट्ठा किया है। कोदागांव, पोटगांव धनेलीकन्हार कन्हारपुरी मोदे तेलावट कापसी तालाकुर्रा संबलपुर भानुप्रतापपुर बोगर बारदेवरी चारामा मावलीपारा अंडी केवटीनटोला बागडोंगरी कोटतरा लिलेझर मयाना मरकाटोला डौण्डी लोहारा कांकेर तथा प्रायः प्रायः कांकेर जिले का रीति रिवाज व संस्कार इसी प्रकार का है। तथा धार्मिक स्थलों तथा अपने सामाज की इतिहास जानने के लिए बड़े ड़ोगर की यात्रा भी किया है।
तथा दंन्तेवाडा तथा गढबासला व गढ धनौरा का भी यात्रा सामाजिक इतिहास के लिए किया है। इसके साथ ही साथ बस्तर,कोंडागांव व जगदलपुर आदि का भी दौरा किया है।तथा हमारें गांव के आस पास सभी गांवों में हमारें समाज का सामाजिक भवन बन चुका है। तथा वहां समाजिक मिटिंग का आयोंजन किया जाता है। समाज से संबंधित पुस्तक व अन्य जैसे कैलेण्डर आदि बनवाने के लिए प्रयास किया जा रहा है। तथा समाजिक कार्यो को तेजी से करने का प्रयास जारी है। तथा सभी हल्बा भाईयों को समाज से जोंडनें के लिए प्रयास किया जा रहा है।तथा समाज की गतिविधियों को प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए प्रयास किया जा रहा है। तथा कुछ हद तक प्रयास सफल भी हो रहा है। तथा सतत् प्रयास जारी है।
जय हल्बा जय मां दन्तेष्वरी
आर्यन चिराम
संलग्न चित्र
बालोद जिला का हल्बा समाज का विवाह संस्कार के लिए यंहा क्लीक करें अधिक जाने
10 Comments
Jai Halba samaj
ReplyDeleteI know you r Halba & halbi which is in tribal community but do not under stand some people are claiming in Halba & halbis but those belongs to koshti... basically Nagpur, Bhopal, Jabalpur, Indore, Amaravati, Chhindwara, & rest of the part of M.P., MAHARASHTRA, CHHATISGARH.
ReplyDeleteYes
DeleteI request your senior peoples to visit every district collectors & SP office and give a letter to address the issue.. becaus they are planting their selves to claim Halba & halbi... I do not know how much realty in it. But wake up and ask u r rights to govt and courts...
ReplyDeleteFor what is the letter written to sp & collector sir
Deleteभांवर ४ हि होता है ३ में लडकी आगे व १ में लडका आगे,७ केवल फिल्म में दिखाया जाता है
ReplyDeleteकिसी कि शादि में गिनती किजिए ।
हल्बा समाज मे 7 भावर होता है sir ji हल्बा समाज के शादी में आप गिनती कीजियेगा
DeleteColor dhoti (readymade patti pavadai) means
ReplyDeletewhat about intercast marriege in halba samaj. is it acceptable in this socity
ReplyDeleteनागपुर के हलबा समाज के लोगो के बारे मे भि अपना विचार बताए आरयनजी
ReplyDeleteअपना विचार रखने के लिए धन्यवाद ! जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी !