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Lokur committee |
लोकुर समिति (1965) ने भारत में किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe - ST) के रूप में घोषित करने के लिए निम्नलिखित पाँच लक्षणों (मानदंडों) का निर्धारण किया:
1.आदिम लक्षणों के संकेत (Indications of Primitive Traits):
समुदाय का जीवन स्तर, संस्कृति, और प्रथाएँ प्राचीन या पारंपरिक प्रकृति की हों, जो आधुनिक समाज से अलग और पुरातन दिखाई दें।
2.विशिष्ट संस्कृति (Distinctive Culture):
समुदाय की अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान हो, जैसे भाषा, रीति-रिवाज, परंपराएँ, और जीवन शैली, जो उन्हें अन्य समुदायों से अलग करती हो।
3.भौगोलिक अलगाव (Geographical Isolation):
समुदाय मुख्य रूप से दुर्गम क्षेत्रों जैसे जंगलों, पहाड़ों या दूरस्थ स्थानों में निवास करता हो, जिसके कारण उनका मुख्यधारा के समाज से सीमित संपर्क हो।
4.बड़े पैमाने पर समुदाय के साथ संपर्क में संकोच (Shyness of Contact with the Community at Large):
समुदाय का अन्य समुदायों, खासकर मुख्यधारा की आबादी, के साथ सीमित या संकोची संपर्क हो, जिससे उनकी सामाजिक अंतर्क्रिया कम हो।
5.आर्थिक और सामाजिक पिछड़ापन (Economic and Social Backwardness):
समुदाय आर्थिक, सामाजिक, और शैक्षिक रूप से पिछड़ा हो, जिसके कारण उन्हें विकास की मुख्यधारा में शामिल होने में कठिनाई हो।
क्या किसी जनजाति को बाहर किया जा सकता है?
भारत में किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) की सूची से बाहर करने की प्रक्रिया जटिल है और यह सीधे तौर पर केवल लोकुर समिति के मानदंडों पर आधारित नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत, अनुसूचित जनजातियों की सूची को संशोधित करने का अधिकार केवल भारत की संसद को है।
इसके लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार किया जाता है:
प्रक्रिया:-किसी समुदाय को ST सूची में शामिल करने या हटाने का प्रस्ताव सबसे पहले राज्य सरकार द्वारा शुरू किया जाता है। इसके बाद, प्रस्ताव को भारत के रजिस्ट्रार जनरल (Registrar General of India - RGI) और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes) की सिफारिशों के लिए भेजा जाता है।इन सिफारिशों के आधार पर, केंद्र सरकार एक विधेयक तैयार करती है, जिसे संसद में पारित करना आवश्यक होता है।अंत में, राष्ट्रपति की सहमति से सूची में संशोधन लागू होता है।
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