नाम--- सत्यजीत ठाकुर
जाति--- हल्बा जनजाति
जन्म स्थान--- ग्राम जुनवानी पोस्ट चारामा जिला (बस्तर)
जन्मतिथि 06-02 1954
प्रारंभिक शिक्षा
प्रारंभिक शिक्षा ग्राम पोस्ट जुनवानी के निकट ग्राम भिलाई में हुए छठी से 11वीं की कक्षा शिक्षा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय चारामा में हुई विज्ञान विषय लेकर 11 वीं की बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण की 56% अंक प्राप्त कर अपने विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया कक्षा ग्यारहवीं तक अपनी सभी कक्षाओं में सदैव प्रथम आते रहे मैट्रिक करने के बाद इनकी इच्छा यह थी की वे रायपुर जाकर पढ़े किंतु उनके पिता उन्हें प्रारंभिक शिक्षक बनाना चाहते थे उन्होंने अपने पिता को बहला-फुसलाकर राजी कर लिया| कि उन्हें रायपुर जाने व पढ़ने की अनुमति दें
इसके बड़े भाई ने भी उन्हें उत्साहित किया सत्यजीत कहना है कि इस समय तक हिंदी ठीक से नहीं बोल पाते थे
पारिवारिक परिवेश
छः भाइयों में से सबसे छोटे थे उनके तीन भाई गूंगे तथा बहरे थे पिता चौथी पास है धार्मिक प्रवृत्ति के सीधे-साधे व्यक्ति थे| सत्यजीत बचपन में बहुत गरीबी देखा था| उनके पिता चाहते थे कि सत्यजीत कम से कम कपड़े पहने वह सत्यजीत के लिए आयरन स्त्री खरीदना भी नहीं चाहता था वह यह भी नहीं चाहते थे कि सत्यजीत साबुन का प्रयोग करें किंतु पिता ने उन्हें किताबें खरीदने से कभी मना नहीं किया सत्यजीत ने 11वीं कक्षा के पूर्व रेल गाड़ी नहीं देखी थी सत्यजीत की रूचि प्रारंभ से पढ़ाई की ओर रही एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि अंग्रेजी विषय उन्हें बहुत प्रिय था भार्गव के डिकशनरी को भी गीता के समान मानते थे
विवाह
इनका विवाह 6 वर्ष की आयु में हो गया था 7 वर्ष की उम्र में विद्यालय में प्रवेश प्राप्त किया था पत्नी भी आठवीं और 11वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की और बी.ए. तक शिक्षा ग्रहण किये तथा उन्हें सत्यजित को शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग देती थी उनके बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं उनके अनुसरण कर उनके चचेरे भाई भी ऊंची शिक्षा प्राप्त किये|
लक्ष्य
वह जिज्ञासु प्रवृत्ति के रहे उन्होंने बताया कि उनके प्रारंभिक शिक्षक का बड़ा गहरा प्रभाव उनके जीवन पर पड़ा प्रारंभिक शिक्षक गांव के बड़े सम्मानीय व्यक्ति थे उन्हें देखकर सत्यजीत की अभिलाषा प्राथमिक शिक्षक बनने की थी जब मिडिल स्कूल में भर्ती हुए तो वहां के प्रधानाध्यापक की प्रतिष्ठा देखकर उनकी इच्छा मिडिल स्कूल का प्रधान पाठक बनने की हुई फिर उत्तर माध्यमिक विद्यालय में पहुंचे तो प्राचार्य पद की गरिमा को देखकर प्राचार्य बनने की कामना करने लगे उन्हें कभी किसी आदिवासी शिक्षक से पढ़ने का मौका नहीं मिल ा उन्हें विद्यार्थी जीवन में अनेक कठिनाई का सामना करना पड़ा महानदी पारकर वे अपनी स्कूल जाते थे अंग्रेजी पढ़ने में उन्होंने बड़ी मेहनत की कलेक्टर बनने का अपना सपना पूरा करने के लिए उन्होंने अंग्रेजी पूरी की क्योंकि विद्यार्थी जीवन से ही उनका लक्ष्य था कलेक्टर बनना
उच्च शिक्षा
प्रारंभिक शिक्षा के उपरांत वे रायपुर आकर विज्ञान विषय में रायपुर के एक महाविद्यालय में बीएससी कक्षा में प्रवेश प्राप्त किये 1 दिन विज्ञान विषय में प्रयोग कार्य के बीच प्रोफेसर द्वारा अवमानना किए जाने के कारण विज्ञान विषय छोड़कर उनके द्वारा बी.ए. संकाय में प्रवेश ले लिया गया ,,,वे पढ़ाई में खूब मेहनत किये वे प्रथम आने का प्रयास करते रहे बीए प्रथम वर्ष उत्तीर्ण करने के पश्चात दुर्गा महाविद्यालय में प्रवेश लिया और वहां से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण किये और 1977 में अंग्रेजी एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की
प्रशासनिक पद
शासन के विभिन्न पदों पर कार्य करते रहें केंद्र तथा मध्य प्रदेश शासन के अधीन आबकारी अधिकारी प्रॉपर्टी टैक्स अफसर संसद में अनुवादक इनकम टैक्स ऑफिसर आदि के रूप में कार्य किये उसकी महत्वाकांक्षा आई.ए.एस. करने की थी 1983 में उन्होंने आई.ए.एस. किये| यह बस्तर के प्रथम आदिवासी हैं जिन्होंने प्रतियोगिता का के द्वारा आईएस किया |
शिक्षा का महत्त्व
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने वहां कहा कि मैं अपने गांव के गरीब लोगों को कभी नहीं भूलूंगा| वे जनता की विशेषकर मध्य प्रदेश के गरीब लोगों की सेवा करना चाहते थे| उनके अनुसार आईएएस एक ऐसा पद होता है जिसके माध्यम से जनसाधारण के संपर्क में आसानी से आया जा सकता है और उनकी सेवा की जा सकती है श्री ठाकुर के विचार से शिक्षा के बिना जनजाति की उन्नति संभव नहीं है उन्हें शिक्षित करना परम आवश्यक है |
संदर्भ- साक्षात्कार का एक अंश दिनांक 31 06 1986 को दिल्ली में लिए गए साक्षात्कार के आधार पर प्रस्तुत
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