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गोत्र (बरग) क्या है ? gotra kya hai?

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आदिवासियों की गोत्र व्यवस्था // adiwasiyo ki gotra vyvastha

गोत्र का सामान्यतः आशय एकीकरण से है। इसे अन्य उदाहरणों से इस प्रकार समझा जा सकता है स्वंय के बापू के बापू के बापू के बापू के...............इस प्रकार पूर्वजों से अनवरत चलने वाली रक्त संबंध श्रृंखला को गोत्र कहा जाता है। 

गोत्र का शाब्दिक अर्थ गो अर्थात इंद्रियां या अंग त्र यानि रक्षा करना अर्थात अपने अंगो की रक्षा करना इसका अर्थ संकीर्ण नही अपितु विस्तृत है गोत्र का नाम मुलतः पेड़ पौधो जीव जंतु पशु पक्षियों और भौतिक वस्तुओं के नाम से होती है। अर्थात जिस गोत्र का नाम जिस भी पेड़ पौधे जीव जंतु पशु पक्षिओं या भौतिक वस्तुओं के नाम से है। उनकी रक्षा करना उनका कर्त्तव्य है।

गोत्र शब्द स्काटलैड़ कें गैलिक शब्द से लिया गया है। जिसका अर्थ है वंश या कुल

गोत्र का अर्थ सजातीय वंशानुक्रम से है। गोत्र माता या पिता के वंश से लिया जाता है यह इस बात पर निर्भर करता है। कि संबंधित सदस्य किस सत्ता को मानने वाले है। मातृसत्ता या पितृसत्ता

आदिवासी गोत्रज मुख्यतः पेड़ पौधे पशु पक्षिओं जीव जंतुओं और भौतिक वस्तुओं के नाम से होती है। इसी पहचान प्रणाली को टोटम कहा जाता है। टोटमवाद परालौकिक शक्ति के उपस्थिति को मानते हुए प्राकृतिक शक्ति को यर्थात रूप से मानते है।

टोटम प्रणाली के बारें में पहले ही लिख चुका हूं फिर भी कुछ बिन्दुओं को चिन्हाकिंत करना चाहूंगा जब इंसानों में समझ विकसित होना चालू हुआ तो वे अपने लिए खाना को बचाकर रखना और अगले दिनों के लिए खाना बचाकर रखना सिखने लगें इसी के साथ उनके विचार में डर भाव का भी विकास होने लगा उन्हे यह डर लगा रहता कि कोई उसके खाने को छीन न लें या फिर खाना खा न ले इसलिए अपने खाने को विशेष प्रकार से छुपाकर उस जगह को  चिन्हांकित करने के लिए विशेष पेड , खोल या चिन्ह का प्रयोग करनें लगें फिर अपने संबंधित के मृत्यु पर शोक करना और उनके मृत्यु स्थल को चिन्हांकित करना आदि का विकास होता गया जब कोई अपने घनिष्ट संबंधित की मृत्यु हो जाती थी तो विशेष पेड के लकडी लताओं पत्तीयों से ढंककर उनका दह संस्कार किया जाता रहा होगा और उस विशेष पेड में अपने मृत पुर्वजों की शक्ति का अनुभव होता गया होगा और उस पेड की रक्षा 


करने का जिम्मेदारी लिया गया होगा और वही कालांतर में टोटम व्यवस्था के अंतर्गत जब वे लोग अपने को व्यवस्थित करने लगे होंगे तो उन्ही पेंड-पौधो के नाम को अपने कुल के नाम को दर्शाने के लिए करने लगे यह व्यवस्था चलता रहा धीरे-धीरे लोग जंगली जानवरों को पालतु पशुओं की तरह पालना पालना शुरू कियें और फिर समय के साथ साथ पक्षियों को भी पालना सिख गयें पर अभी भी वे नियमित फसल उत्पादन की तकनीक नही सिख पायें थे जिसके कारण वे अपना भोजन जंगली जानवरों की शिकार करके व पालतु पशुओं की मांस खाकर जीवन व्यतीत कर रहे थे एक समय पश्चात उस क्षेत्र विशेष में जंगली जानवरों की संख्या में शिकार के कारण काफी कमी आई होगी जिसके कारण सभी कबीलें और समूहों ने अन्य भोजन के साधन तलाशना शुरू किये और अपने आस-पास के जंगली जानवरों-पशु पक्षियों को संरक्षित करने लगें, साथ ही पेड़ पौधों के पत्तियों फल फुलों कों भोजन के रूप में प्रयोंग करना सिखें तत्पश्चात वे फसल उत्पादन करने के तकनीक जैसे झुम खेती आदि का विकास किये और अब वे झोपडीयों में रहना प्रारंभ कर चुके थें परंतु अभी भी वें उस व्यवस्था और नियम को नही भूलें जिसमें वे सालों पहले पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों को संरक्षित करने के लिए बनायें थें कि यह समुह इस पशु-पक्षि-पेड की रक्षा करेगा यही आगे चलकर टोटम व्यवस्था का रूप ले लिया जिसे जिस पेड-पोंधों और पशु-पक्षियों के रक्षा के लिए चुना गया था उन पशुपक्षियों, पेंड-पौधों के नाम से ही उन समुह या कुल को पहचानें लगे और धीरे धीरे यह व्यवस्था बन गई जिसे आज हम सरनेम (बरग) के 


नाम से जानते है। जैसे एक सरनेम है सिवना सिवना सरनेम एक पेड के नाम से पडा है जो उस सरनेम के लोगों को रक्षा करने हेतु मिला था उसी प्रकार एक सरनेम है पिद्दा जो एक पालतु पशु के नाम से पडा है जिसे उस पशु को संरक्षित करने हेतु दिया गया था। ठीक एैसे ही हमारे आदिवासी समाजों के सरनेम(बरग) गोत्रों का नामकरण इन्ही व्यवस्था के अनुरूप होते है। परंतु कुछ वर्शो से हमारें कुछ विशेष कार्यो को भी सरनेम के रूप मे लिखा जाने लगा है।जैसे भंडारी, माहला, घरत गढिहा आदि जैसे कि उपर हम लोगों ने जाना जिस गोत्र से हमें संबोधन किया जाता है। वह पुर्वजों के समय 


से निर्धारित किया गया है और जो हमें संरक्षित करने हेतु पेड़-पौधो पशु-पक्षियों को दिया गया आज वही हमारी पहचान का जरिया है। और उन्ही के नामों से हमारा गोत्रज बना है।  और गोत्रज को ही बरग कहा जाता है। बरग एक हल्बी शब्द है। गोत्र का अर्थ कुल, सरनेम गोत्र, वर्ग को दर्शाने के लिए किया जाता है। और वर्ग के लिए हल्बी में शब्द है "बरगबरग में भी वर्तमान में कई उप बरग भी हो चुके है जैसे भुआर्य में करसा भोयर पर्रा भोयर, एैसे ही अन्य बरग के साथ भी है। बरग के बारे में आज के लिए बस इतना ही आगे अगर और जानना चाहें तो जरूर कमेंट कीजिएगा


// लेखक // कवि // संपादक // प्रकाशक // सामाजिक कार्यकर्ता //

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CEO & Founder

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2 Comments

  1. भूआर्य

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  2. खंडवा ड्रग का क्या अर्थ है

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अपना विचार रखने के लिए धन्यवाद ! जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी !

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