बालोद जिला के हल्बा समाज का विवाह संस्कार
बिहाव
के परंपरा
मनखे के जिनगी मा सोला ठन संस्कार होथे जेमां नाम रखई संस्कार से लेके अंत्येष्टि संस्कार तक के माने जाथे। बात अगर देखन बिहाव संस्कार के जेमा दू परिवार, दू कुल, दू गांव ,दू सियार, हर आपस में मिल जाथे। बिहाव संपन्न करे बर बड़कन बिधि -बिधान करे जाथे जेकर कुछ अंश आप सब के आघू परोसत हँव:-
लड़की के खोज
बिहाव करे के पहिली सियानन मन उदीम करथे कि ऐसो हमन अपन बेटा या बेटी के बिहाव करबोन। बेटा वाले टुरी खोजे बर निकलथे, बेटी वाले मन घलक सगा के अगोरा करत रथे।
बहु चिन्हई :-
लड़का पक्ष ला लड़की मिल जाथे । एक दूसर के चिन पहिचान के बाद एक बंधना करे जाथे जेला बहु चिन्हई कहे जाथे। जेगर ले अब वह लड़की ला कौनौं दूसरा सगा ला नहीं दिखाय जाय। ये परकार ले बिहाव के पहिली नेंग बहु चिन्हई से होथे।
सगाई,महलिया, फलदान :-
बिहाव तिथि के तीर मा सगाई के कार्यक्रम रखे जाथे। जेमा लड़का पक्ष और लड़की पक्ष के डहर ले नरिहरफल लायची दाना अउ बड़कन परकार के मेवा मिष्ठान के आदान प्रदान करके लड़का पक्ष द्वारा लड़की पक्ष मुँदरी भेंट कर जाथे। एक दूसरा ल पहनाए जाते ये कार्यक्रम निपटे के बाद जम्मो सगासोदर ल यथाशक्ति तथा भक्ति भोजन प्रसादी करवाय जाथे।
बिहाव के दिन बादर :-
एकर बाद दिन तिथि धरई के काम
शुरू हो जाथे। बड़े-बड़े सियान मन मिलकर बिहाव ला कब मढ़ाना है कहिके शुभ मुहूरत
निकाल के लड़का पक्ष के डहर ले लड़की पक्ष ला संदेश दिए जाथे।ओकर बाद फेर लड़का और लड़का पक्ष कारट छपवा के अपन - अपन
पूरा परिवार
, सगा सोदार ल बिहाव के नेवता दे जाथे।
जइसे-तइसे बिहाव के दिन बादर आथे।तब सब सदस्य मन सकलाके ढेरहीन सुआसीन मिलके बिहाव के नेंग नता ला शुरू करथे।
बिहाव के पहिली दिन :-
बिहाव मा ढेरहीन ढेरहा के विशेष योगदान रथे। जिखर हाथ ले बिहाव के नेंग नता सुरू से अंत तक ईखर भूमिका रथे। बिहाव के दिन ले सबले पहिली गांव की पतिहा भाई मन डारा छाय बर जाथे, जेला मंडप आच्छादन कहे जाथे। ओकर बाद सांझ के समय ढेरहीन हुआ सीन मन ढेरहा सन में बाजा गाजा के संग मडवा पूजन, चुल माटी लानेबर जाथे ।त इही गीत गाथे:- तोला माटी कोड़ेन नंइ आवय मीत धीरे धीरे...तोला पर्रा बोहे नंइ आवय मीत धीरे धीरे... चुलमाटी लाके मड़वा के चारो मुड़ा ला सजाथे। सांझ के पांच सात झन मिलके मड़वा मा चार ठन दीया बार के कुँआरी धागा ले बंधना करत चारो दिशा ला चारों धाम के देवता मनला नेवता देके मंडवा मा बलाथे।गाँव के शीतला माता ल घलक करसा अऊ कच्चा हरदी भेंट करके बिहाव मा नेवता देथे। खाना पीना खाए के बाद रात कुन घर के भीतरी मा दूल्हा दुल्हिन के मुड़ी मा मँऊरर बांध के चोर तेल चढ़ाय जाथे। दूल्हा अउ ढेरहा दोनों मिलकर मडवा मां भीतर ले करसा मड़वा मा लाथे। तहाँन तेल हरदी चढ़ाई शुरू होथे। त इही गीत गाथे :- एक तेल चढ़गे दाई तोर जनामन मड़वा मा दुलरू तोर बदन कुमलाय... झुलना गीत आमा मँऊरे बोईर झंऊरे बोईर झंऊरे...नदी नरवा ल छ़ोडके कुआँ म तँऊरे... तेकर बाद इही दोहा जय जननी ज्वाला मुखी सकल हरन भुइ भार ,लजजा मोरे राखो माता भरे सभा दरबार... के संग मैंन नाचा आणी बाणी के दोहा ददरिया करमा पंथी गाना गा गा के मैंन नाचना शुरू हो जाथे।दूल्हा बाबू के हाथ गोड़ मा मनमाड़े हरदी चुपरथे। हाथ गोड़ म हरदी चुपरे के समय इही गीत कथे :- कोन तोरे लाने दूलरू पथरा के हरदी बने.. कोने तोरे बिरही सजाय चंदन रूख आय सजन घर मड़वा गड़े... अव हाथ मा कंकण नहडोरी घलक बांधथे।
दूसर दिन :-
बिहान दिन दूल्हा राजा ला नउहा खोरा के बरतिया जाए बर नवा नवा कपड़ा लत्ता पहिना के तइयार करे जाथे। जेमा हमर समाज के एक ठन नियम हे कि दूल्हा ला सफेद कमीज अउ धोति पहना के अउ तेंदू सार के लउठी धराके बरतिया जाए बर तइयार करथे। बरतिया घर ले निकल जाथे ।
बारात स्वागत :-
बारात निकलके दुल्हिन के गाँव पहुंच जाथे। ऊँहां जाए के बाद दूल्हा बाबू दुल्हिन के घर मड़वा छुए बर जाथे। तो बढ़िया धूमधाम के साथ स्वागत करत दुल्हिन के कका बाप जम्मो भाई मन मिल के दूल्हा राजा के स्वागत करथे। दूल्हा राजा दुल्हिन के घर मुहाटी म जाथे ।तब दुल्हिन पक्ष के ढेरहीन सुहासिन मन मुहाटी में घघरा मा पानी लेके खड़े रथे। जेमा दुल्हा राजा हा 10 के सिक्का नंइते 5 के सिक्का डालथे अउ पर्रा ला तेंदूसार के लउठी मा 7 घाँव ले धीरे-धीरे ठठाथे। तेकर बाद दूल्हा राजा दुल्हिन पक्ष से दुल्हिन के काकी महतारी मन अपन तरफ से फुल पैंट कमीज घड़ी उपहार में दे थे।
लाल भाजी खवइ :-
यह सब चीज होय के बाद दूल्हा राजा ला लाल भाजी खवा के नियम हे । त जेवनास डेरा मा ढेरहीन सुआसीन मन जाथे जिहाँ दूल्हा के सारी मन, ढेरहीन सुआसीन मन मिलके लाल भाजी खवाय बर जाथे त इही ददरिया गाथे दर दर दर दर आए बरतिया कोठा मा ओईलाई रे भूख लगीस तहाने पैरा भूसा खाई रे अईसन ढंग ले भडौनी गीत आनंद लेथे।अऊ लड़की पक्ष में लड़की के तेल हरदी कंकण नहडोरी के बाद नहवाथे।
लगिन भाँवर :-
अऊ सांझ की बढ़िया शुभ मुहूरत देखके नवा नवा साज सिंगार के संगे दुल्हा अउ दुल्हिन के लगिन चाँऊर संग लगिन भाँवर परथे।तेखर बाद दाई ददा मन अपन हाथ ले कन्यादान करथे। त इही गीत आगू मा गाथे...तोरे धरम ले धरम हे वो आओ मोरे दाई तीनों तिलीक जीत डारे ओ... सेन्दूरदान होय के बाद ममा नंइते जेठ के डहर ले मुड़ी ढंकइ के नेंग पूरा करे जाथे। ढेरहीन सुवासीन.मन टिकान देव इय्या मन ल इही गीत सुनाके का कथे :- भैंसी के दूध भैंसाईन ओ आगा मोरे ममा चना खायबर पैसा देबे गा... पूरा परिवार मिलके अपन इच्छा मुताबिक उपहार , भेंट करथे अउ दूल्हा- दुल्हिन ला आशीर्वाद देथे।पूरा टिकावन होय के बाद एक साथ हिल मिल के प्रीतिभोज कराए जाथे।
बेटी बिदाई :-
सब जन अंतिम समय में दुल्हिन ला दूल्हा सन में जोरन धरा के बेटी ला विदा करथे त इही गीत कथे :- जा दूलौरीन बेटी तै मईके के सुध झन लमाबे... बहिनी के बिदा करत घलक भाई ह कल्हरत नानकुन गुड़ खवाके बहिनी के मुँह ल मीठ करथे। बेटी के विदा हो जाथे। सीधा दूल्हा और दुल्हिन ला लेके अपन गांव आजथे। तब गांव के सियान मन सदस्य मन दूल्हा दुल्हिन के बाजा गाजा के साथ पटाखा फोड़त स्वागत करथे। माई घर में जाके माता रानी के , अपन पुरखा के देवी देवता के आशीर्वाद लेथे।बिहाव घर म जाय के बाद जम्मो परवार मन दूल्हा दुल्हिन के मँऊर सौंप के आशीष देथे।
चवथिया स्वागत :-
दुल्हिन पक्ष के पूरा परिवार मन अपन बेटी के डेहरी ल देखे खातिर अउ बेटी ल संग म लेगे बर चवथिया बनके आथे। बाजा गाजा के साथ बने- बने स्वागत सत्कार घलक होथे। समधी ह समधी ल दूबी चाऊँर खोचके समधी भेंट करथे। समधीन ह समधीन ल दूबी चाऊँर खोचके समधीन भेंट करथे। अऊ एक दूसर के हाथ ल धरके घर कोती आएल लगथे।
धरम टीकावन :-
सांझ के समय दुल्हा पक्ष के जम्मो परिवार मध धर्म टिकावन के अवसर मा अउ सगा सोदर मन अपनी इच्छा अनुसार दूल्हा- दुल्हिन ला उपहार भेंट करके आशीर्वाद देथे । फेर अंत में सबो सगा संबंधी मन ला प्रीतिभोज कराय जाथे।
ये परकार ले हमर हल्बा समाज में बिहाव की संस्कृति परंपरा साफ व सुंदर रूप
से संचालित करे जाथे।
1 Comments
Bahut sunder dhang le Hamar saga bhai ha bihav ke neg Nata LA batais jekar bar hum dhangaiha ji Dhanyavad Debo.
ReplyDeleteअपना विचार रखने के लिए धन्यवाद ! जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी !