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सती प्रथा स्त्रियों का दर्दनाक व्यथा // sati prtha striyo ka dardnak vyatha

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    सती प्रथा दोस्तों प्रथा के इस एपिसोड में हम और आप आज पढने वाले है सती प्रथा जी हां आपने सही सुना सती प्रथा इस प्रथा का इतिहास क्या है और कैसे शुरुआत हुई इन सभी बिंदुओ पर प्रकाश डालेंगे सती प्रथा  कुछ पुरातन भारतीय समुदायों को: प्रचलित एक ऐसी धार्मिक प्रथा था, जिसमें किसी पुरुष की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी उसके अंतिम संस्कार के दौरान उसकी चिता में प्रविष्ट होकर आत्मत्याग करती थी।जानकार मानते हैं कि यह प्रथा क्षत्रियों में पहले शुरू हुई. लड़ाइयों में जब क्षत्रिय हार जाते थे, तब उनकी पत्नियों पर हमेशा दुश्मनो से सताए जाने और बलात्कार का खतरा रहता था. तब अपना ‘मान बचाने’ के लिए औरतें सुसाइड करना ही सही समझती थीं. तब इस प्रथा को ‘सहगमन’ मतलब कि पति के साथ जाना, या फिर ‘सहमरण’ यानी पति के साथ मरना कहते थे. राजपूतों में इसी को जौहर कहा गया है. Tumesh chiram   युद्ध के समय जब कई सैनिक एक साथ मारे जाते थे, तो उनकी पत्नियां एक साथ जलती हुई आग में कूद जाती थीं. जौहर प्रथा और सती प्रथा में मुख्य अंतर यह देखने को मिलता है की पति के मृत्यु पश्चात स्त्री के इच्छा हो या न हो उन्हें सती प्रथा के अनुसार आत्मदाह करना होता था किन्तु जौहर प्रथा में रानियाँ अपने इच्छा के साथ आत्मदाह करती थी जैसा की पहले ही चर्चा में आ चूका है

    औरतें सुसाइड करना ही सही समझती थीं. तब इस प्रथा को ‘सहगमन’ मतलब कि पति के साथ जाना, या फिर ‘सहमरण’ यानी पति के साथ मरना कहते थे. राजपूतों में इसी को जौहर कहा गया है. Tumesh chiram   युद्ध के समय जब कई सैनिक एक साथ मारे जाते थे, तो उनकी पत्नियां एक साथ जलती हुई आग में कूद जाती थीं. जौहर प्रथा और सती प्रथा में मुख्य अंतर यह देखने को मिलता है की पति के मृत्यु पश्चात स्त्री के इच्छा हो या न हो उन्हें सती प्रथा के अनुसार आत्मदाह करना होता था किन्तु जौहर प्रथा में रानियाँ अपने इच्छा के साथ आत्मदाह करती थी जैसा की पहले ही चर्चा में आ चूका है

    सती प्रथा के मामले

    देश की आजादी के बाद से अब तक सती होने के करीब 40 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से 28 मामले केवल राजस्थान के सीकर जिले और उसके आसपास के गांवों से हैं। कहने को तो कानून में सारे प्रावधान हैं।
     हालांकि 1857 की लड़ाई के कुछ साल बाद ही यह प्रथा बैन कर दी गई। फिर भी कुछ कम दिमाग के लोगों ने उसे जीवित रखा और कुछ साल पहले तक ऐसे मामले सामने आते रहे। रिकॉर्ड्स के मुताबिक सती का लेटेस्ट केस 1987 में राजस्थान के सीकर जिले में देवराला गांव से आया था। शादी के 8 महीने बाद ही जब पति की मौत हो गई तो 18 साल की रूप कंवर भी उसकी चिता के साथ जल गई। कुछ लोगों ने कहा कि उसके साथ ज़बरदस्ती की गई।कुछ का मानना ​​था कि ऐसी उसकी इच्छा से किया गया था।

    पौराणिक कथा 

    इस प्रथा को इसका यह नाम  देवी सती के नाम से मिला है जिसे  के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा अपने पति महादेव शिव के तिरस्कार से व्यथित हो यज्ञ की अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर लिया था। सती शब्द को अक्सर अकेले या फिर सावित्री शब्द के साथ जोड़कर किसी "पवित्र महिला" की व्याख्या करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। इसके अलावा सती माद्री सती अनुसुया, सती अहिल्या और सती सीता आदि भी सती प्रथा को बढ़ावा देने वाली पौराणिक कथा है 

    सती प्रथा पर विश्वसनीय रिकॉर्ड

    गुप्ता साम्राज्य (सी। 400 सीई) के शासन से पहले सती तिथि पर कुछ विश्वसनीय अतिरिक्त रिकॉर्ड। इसे कैसंड्रेया के यूनानी इतिहासकार अरस्तोबुलस द्वारा 

    रिकॉर्ड किया गया था, जबकि उन्होंने सिकंदर महान के साथ सी में भारत के अभियान पर भाग लिया था। 327 ईसा पूर्व, उन्हें पता चला कि कुछ जनजातियों की 

    विधवाओं ने खुद को अपने पतियों के साथ रखने में गर्व महसूस किया और जिन्होंने इनकार किया, वे बदनाम थे। डायोडोरस सुकीलस (सी। प्रथम शताब्दी ईसा 

    पूर्व) ने उल्लेख किया कि ब्यास और रावी नदियों के बीच रहने वाले कैथेई लोगों ने विधवा-जल को देखा। उन्होंने कहा कि भारतीय कप्तान केटस की छोटी पत्नी, 

    जो गैबिन (316 ईसा पूर्व) के युद्ध में मृत्यु हो गई, ने अपने पति के अंतिम संस्कार की चिता में विसर्जित कर दिया। डियोडोरस ने उल्लेख किया कि भारतीयों ने 

    प्यार से शादी की और जब इस तरह की शादियां हुईं, तो कई बार पत्नियों ने पतियों को जहर दिया और फिर नए प्रेमी के साथ चली गईं। इस प्रकार ऐसी हत्याओं 

    को रोकने के लिए एक कानून पारित किया गया। यह कहा गया कि या तो विधवा अपने पति के साथ मौत को गले लगा लेती है या विधवापन में अपना बाकी 

    जीवन बिता देती है। एक्सल माइकल्स ने उल्लेख किया कि सती के 464 सीई में वापस आने के पहले शिलालेख का प्रमाण नेपाल से है और भारत में 510 सीई से 

    है। सती के प्रारंभिक अभिलेखों से पता चलता है कि यह आम जनता द्वारा देखा गया था।हेनरी यूल और 

    आर्थर कोक बर्नेल ने अपने हॉब्सन-जॉब्स (1886) में 

    सुझाव दिया कि सुट्टी (सती) दक्षिण-पूर्व यूरोप में थोरासियों, वोल्गा के निकट रूसियों और टोंगा और फिजी 

    द्वीपों के कुछ जनजातियों का एक प्रारंभिक अभ्यास 
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    था। उन्होंने सती की उस सूची को भी संकलित किया, जो कि 1200 ईसा पूर्व से 1870 के दशक की थी। इसमें 

    केटस का मामला भी शामिल था। पुरातत्वविद ऐलेना 

    एफिमोवना कुजमीना ने देखा कि प्राचीन एशियाई स्टेपी एंड्रोनोवो संस्कृतियों (fl। 1800-1400 ईसा पूर्व)और 

    वैदिक युग के दोनों दफन प्रथाओं में एक सख्त 

    रिवाज 

    के बजाय एक पुरुष और एक महिला / पत्नी के सह-दाह संस्कार का अभ्यास प्रतीकात्मक था। । यह कई 

    लोगों द्वारा माना जाता है कि मुस्लिम शताब्दियों में 

    भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम आक्रमणों और उनके विस्तार के साथ कस्टम में वृद्धि हुई थी।

    सती प्रथा कितनी व्यापक थी?

    सती प्रथा कब, कहां, क्यों और कैसे फैली, इस पर कोई आम सहमति नहीं है। अनंत सदाशिव अल्टेकर ने कहा कि सती भारत में ग के दौरान वास्तव में व्यापक हो गई। 700००-११०० CE, विशेष रूप से कश्मीर में। उसके विकास पर कुछ आँकड़े उसके द्वारा दिए गए थे। 1000 सीई से पहले, राजपूताना में सती के दो या तीन अनुप्रमाणित मामले थे, जहां बाद में रिवाज को प्रमुखता मिली। 1200 से 1600 सीई तक सती के कम से कम 20 उदाहरण पाए गए। कर्नाटक में 1000 से 1400 CE से 41 और कर्नाटक क्षेत्र में 1400 से 1600 CE तक 11 शिलालेख हैं। अल्टेकर के अनुसार सती के प्रसार में धीरे-धीरे वृद्धि हुई जो संभवत: 19 वीं शताब्दी के पहले दशकों में अपने चरम पर पहुंच गई जब अंग्रेजों ने हस्तक्षेप करना शुरू किया।

    आनंद ए यांग द्वारा बताए गए एक मॉडल से पता चलता है कि भारत के इस्लामिक आक्रमणों के दौरान सती वास्तव में व्यापक हो गई थीं और उन महिलाओं के सम्मान की रक्षा के लिए प्रथा थी, जिनके पुरुष मारे गए थे। साशी ने कहा कि तर्क यह है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों से सम्मान की रक्षा के लिए यह प्रथा प्रभावी हो गई, जिन पर कब्जा किए गए शहरों की महिलाओं का सामूहिक बलात्कार करने की प्रतिष्ठा थी। हालांकि ऐसे मुस्लिम आक्रमणों से पहले सती के मामले भी स्पष्ट नहीं हैं। उदाहरण के लिए, एक 510 CE शिलालेख, जिसे सती पत्थर के रूप में माना जाता है, इरान ने कहा कि भानुगुप्त की जागीरदार गोपराजा की पत्नी ने अपने पति की चिता पर खुद को डुबो दिया। सती का एक विशेष रूप जिसे जौहर कहा जाता है, महिलाओं द्वारा सामूहिक आत्मदाह, राजपूतों द्वारा हिंदी-मुस्लिम संघर्षों के दौरान कब्जा, दासता और बलात्कार से बचने के लिए देखा गया था।इसके साथ ही सती 13 वीं और 15 वीं शताब्दी के बीच नए स्थानों में फैल गई। ओडेरिक ऑफ़ पोर्डेनोन के अनुसार, 1300 के दशक की शुरुआत में चम्पा साम्राज्य (वर्तमान दक्षिण / मध्य वियतनाम में) में विधवा-दहन देखा गया था। अल्टेकर ने उल्लेख किया कि दक्षिण पूर्व एशियाई द्वीपों में हिंदू प्रवासियों के निपटान के साथ, सती ने जावा, सुमात्रा और बाली जैसी जगहों का विस्तार किया। डच औपनिवेशिक रिकॉर्ड में उल्लेख किया गया है कि इंडोनेशिया में, सती दुर्लभ प्रथा थी, शाही घरों में मनाया जाता था। 15 वीं और 16 वीं शताब्दी के दौरान, कंबोडिया के मृत राजाओं की पत्नियों और पत्नियों ने खुद को स्वेच्छा से जला दिया। यूरोपीय यात्री खाते 15 वीं शताब्दी में म्यांमार (बर्मा) में मृगुई में विधवा-जलाने का अभ्यास करने का सुझाव देते हैं। कुछ स्रोतों के अनुसार, रिवाज श्रीलंका में प्रचलित था, हालांकि केवल रानियों द्वारा और सामान्य महिलाओं द्वारा नहीं।
    (Source: https://en.wikipedia.org/wiki/Sati_(practice), https://www.thoughtco.com/what-is-sati-195389)


    पहली सती

    गुप्तकालीन एरण में 510 ई. के दौरान सती प्रथा का पहला अभिलेखीय साक्ष्य देखा गया है। इस अभिलेख में महाराजा भानुगुप्त का वर्णन किया गया है जिनके साथ युद्ध में गोपराज भी मौजूद थे। युद्ध के दौरान गोपराज वीर गति को प्राप्त हुए जिसके बाद उनकी पत्नी ने सती होकर अपने प्राण त्याग दिए थे।

    इस्लाम का कहर

    इसी लेख को भारत में पहली बार सती होने के लिए उदाहरण के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन पूरे भारत में सती प्रथा कैसे फैली यह भी एक प्रश्न है। यह तब की बात है जब भारत में इस्लाम द्वारा सिंध, पंजाब और राजपूत क्षेत्रों पर आक्रमण किया जा रहा था।

    जौहर प्रथा

    इन क्षेत्रों की महिलाओं को उनके पति की हत्या के बाद इस्लामी हाथों में ज़लील होने से बचाने के लिए पति के शव के साथ जल जाने की प्रथा पर जोर दिया गया। खासतौर पर राजपूत परिवारों में इस परम्परा पर ज्यादा जोर दिया गया। इन क्षेत्रों में ‘जौहर’ नाम की प्रथा चलाई गई जो सती प्रथा से काफी मिलती-जुलती थी।

    सती प्रथा के मामले

    देश की आजादी के बाद से अब तक सती होने के करीब 40 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से 28 मामले केवल राजस्थान के सीकर जिले और उसके आसपास के गांवों से हैं। कहने को तो कानून में सारे प्रावधान हैं।
     हालांकि 1857 की लड़ाई के कुछ साल बाद ही यह प्रथा बैन कर दी गई। फिर भी कुछ कम दिमाग के लोगों ने उसे जीवित रखा और कुछ साल पहले तक ऐसे मामले सामने आते रहे।

    पहला मामला:- रिकॉर्ड्स के मुताबिक सती का लेटेस्ट केस 1987 में राजस्थान के सीकर जिले में देवराला गांव से आया था। शादी के 8 महीने बाद ही जब पति की मौत हो गई तो 18 साल की रूप कंवर भी उसकी चिता के साथ जल गई। कुछ लोगों ने कहा कि उसके साथ ज़बरदस्ती की गई।कुछ का मानना ​​था कि ऐसी उसकी इच्छा से किया गया था।

    दूसरा मामला:-

     1999 की एक घटना भी सुर्खियों में रही। चरण शाह नाम की एक दलित महिला पति के साथ जल गई। 55 साल की इस महिला का पति तीस बरसों से बीमार था, उस महिला ने सभी के सामने अपने पति के साथ जलने का फैसला किया। गांव वालों के सामने वो सज धज कर चिता पर बैठी और जिंदा जल गई।
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    बाद में गांव वालों ने सफाई दी कि सबकुछ इतनी जल्दी हुआ कि वो चरण शाह को नहीं बचा सके।

    मामला:-

     छत्तीसगढ़ आजादी के 60 साल के बाद छत्तीसगढ़ के कसडोल जिले के छेछर गांव में में एक शर्मनाक हादसा हुआ। 75 साल के शिवनंदन वर्मा की लंबी बीमारी के बाद मृत्यु हो गई। अपने पति की मौत से दुखी उनकी पत्नी लालमती से ये सहन नहीं हुआ और अपने पति की जलती चिता में कूद गईं।

    मामला:- 2002 में भी मध्यप्रदेश में पैंसठ साल की कुट्टू बाई भी जलती चिता में बैठ गई। इस केस में कुट्टू बाई के दो बेटों को उम्र कैद मिली। उनके खिलाफ आरोप था कि उन्होंने अपनी मां को अपनी नजरों के सामने जिंदा जल जाने दिया।

    मामला:- इससे पहले 2004 में बिहार के समस्तीपुर जिले में अस्सी साल की रुकिया देवी भी पति के साथ जल मरीं, मौत के बाद रुकिया को सती के तौर पर महिमामंडित करने की कोशिश भी की गई।

    मामला:- मालूम हो कि साल 2006 में बिहार के गया जिले के एक गांव में एक शर्मनाक घटना सामने आई। सिद्दपुर गांव में सुग्रीव प्रसाद नाम के एक शख्स की मौत होने पर उसकी पत्नि ने जलती चिता पर बैठकर अपनी जान दे दी, परिवार वालों ने इसे सती का नाम दिया।

    सती के स्मारक

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    सती के स्मारक: –रानियों, महारानियों अथवा सामान्य स्त्री द्वारा किसी तरह के सर्व जन हिताय बनाये गये सरोवर, कूप आदि Tumesh chiram   के किनारे उनकी छतरी आदि बनाकर उसके अंदर उनके पदचिन्ह स्थापित कर उस पर समय, वार, तिथि, संवत् आदि नाम अंकित किये जाते हैं । अनूपसागर में अनूपबाव के आगे बना स्मारक जो महारावल जसवंतसिंह की माता अनूपदे की स्मृति में निर्मित करवाया

    सती प्रतिमाएं :-

    सतियों की स्मृति में सती स्तंभ बनवाने की परंपरा रही है । सती स्तंभों पर प्रायः अभिलेख भी रहता है । जोधपुर के दक्षिण-पश्चिम मे लगभग 4-5 मील की दूरी पर स्थित पाल में बारहवीं तेरहवीं शदी के सती स्तंभ लेख उपलब्ध है । सती स्तंभों पर सतियों के पति की प्रायः अश्वारूढ़ प्रतिमा रहती है जो लोक देवताओं की प्रतीमा के समान ही होती है । तथा अश्व के सामने सती की स्थानक प्रतिमा रहती है । सती स्थानीय बनावट के घाघरा, ओढ़ना, कंचुकि व आभूषण धारण किये हुए करबद्ध रूप में प्रदर्शित की जाती हैं । एक पुरुष के साथ जितनी सतियां होती हैं उतनी ही सती प्रतिमाएं पुरुष के साथ दिखाई जाती हैं । उदाहरण के लिये जोधपुर के महाराजा चन्द्रसेन के स्मारक अभिलेख को लिया जा सकता है । पाली जिले में सारण स्थित इस स्मारक पर राव चंन्द्रसेन की अश्वारूढ़ प्रतिमा के साथ पांच स्त्रियां की स्थानक प्रतिमाएं हैं । साथ ही अभिलेख में यह कहा गया है ‘ सती कुल पंच हुई’ ।
    सती प्रथा का अंत

    राजा राम मोहन राय और वह घटना

    राजा राम मोहन राय किसी काम से विदेश गए थे और इसी बीच उनके भाई की मौत हो गई। उनके भाई की मौत के बाद सती प्रथा के नाम पर उनकी भाभी को जिंदा जला दिया गया। इस घटना से वह काफी आहत हुए और ठान लिया कि जैसा उनकी भाभी के साथ हुआ, वैसा अब किसी और महिला के साथ नहीं होने देंगे।
    ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के खिलाफ समाज को जागरूक किया। जिसके फलस्वरूप इस आन्दोलन को बल मिला और तत्कालीन अंग्रेजी सरकार को सती प्रथा को रोकने के लिए कानून बनाने पर विवश होकर पड़ा था। अंतत: उन्होंने सन् 1829 में सती प्रथा रोकने का कानून पारित किया। इस प्रकार भारत से सती प्रथा का अन्त हो गया। 

    सती प्रथा पर कानून

    (सती प्रथा निवारण अधिनियम, 1787)
     
    सती प्रथा 
    यदि कोई स्त्री सती होने की कोशिश करती है उसे छः महीने कैद तथा जुर्माने की सजा होगी।
     
    सती होने के लिए प्रेरित करना या सहायता करना 
     
    यदि कोई व्यक्ति किसी महिला को सती होने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रेरित करे या उसको सती होने में सहायता करे तो उसे मृत्यु दण्ड या उम्रकैद तक की सजा होगी।
     

    समान काम, समान वेतन 

    समानता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में है पर यह लैंगिक न्याय के दायरे में 'समान काम, समान वेतन' के दायरे में महत्वपूर्ण है। 'समान काम, समान वेतन' की बात संविधान के अनुच्छेद 39 (घ) में कही गयी है पर यह हमारे संविधान के भाग चार 'राज्य की नीति के निदेशक तत्व' के अन्दर है। महिलायें किसी भी तरह से पुरुषों से कम नहीं है। यदि वे वही काम करती है जो कि पुरुष करते हैं तो उन्हें पुरुषों के समान वेतन मिलना चाहिये। यह बात समान पारिश्रमिक अधिनियम में भी कही गयी है।

    सन्दर्भ सूची


    wikipedia.org

    lallantop.com

    hindi.news18.com

    भारत की खोज

    नवभारत टाइम्स

    बोलने वाली श्री

    सती प्रथा का अंत

    सती प्रथा की शुरुआत से लेकर अंत तक

    सती प्रथा का पाखंड

    अंग्रेजों ने बंद कर दिया था। रिवाज

    सती प्रथा-देश की सबसे दर्दनाक परंपरा का गवाह है

    patrika.com

    सती प्रथा: एक समग्र विश्लेषण

    नवोदित सती प्रथा

    क्या आज भी यह प्रथा भारत में होती है?


    जर्नल ऑफ़ इंटरनेशनल


    मल्टीडिसिप्लिनरी एजुकेशन एंड रिसर्च सती प्रथा और व्यक्ति से जुड़े चिह्न

    फर्स्टपोस्ट

    सती प्रथा का प्रतिगामी

    सब लोग: - सतीप्रथा

    जौहर प्रथा और सती प्रथा में अंतर

    सती प्रथा के अवशेष

    ज्ञान उपकरण

    सती प्रथा का प्रथम अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त हुआ है?

    सती प्रथा पर कानून

    न्यूज़ पुराण

    वेद का भेद

    चौहान सट्टा का विकाश


    गुन ऐसे और


    सती प्रथा क्या है


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