खरसावां गोलीकांड को जानें
1947 में आजादी के बाद पूरा देश राज्यों के पुनर्गठन के दौर से गुजर रहा था. तभी अनौपचारिक तौर पर 14-15 दिसंबर को ही खरसावां व सरायकेला रियासतों का विलय ओड़िशा राज्य में कर दिया गया था. औपचारिक तौर पर एक जनवरी को कार्यभार हस्तांतरण करने की तिथि मुकर्रर हुई थी.
इस दौरान एक जनवरी, 1948 को आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा ने खरसावां व सरायकेला को ओड़िशा में विलय करने के विरोध में खरसावां हाट मैदान में एक विशाल जनसभा का आह्वान किया था. कोल्हान के विभिन्न क्षेत्रों से जनसभा में हजारों की संख्या में लोग पहुंचे थे.
लेकिन, किसी कारणवश जनसभा में जयपाल सिंह मुंडा नहीं पहुंच सके. रैली के मद्देनजर पर्याप्त संख्या में पुलिस बल भी तैनात किये गये थे. इसी दौरान पुलिस व जनसभा में पहुंचे लोगों में किसी बात को लेकर संघर्ष हो गया. तभी पुलिस की गोलियों से हजारों की संख्या में लोगों की मौत हो गयी. हालांकि, मृतकों की संख्या कितनी थी, इसका सही आकलन नहीं हो सका है.
शहीदों की संख्या बताने वाला कोई सरकारी दस्तावेज नहीं
खरसावां गोलीकांड में शहीद हुए लोगों की संख्या बताने वाला कोई सरकारी दस्तावेज सरकार के पास नहीं है. खरसावां या सरायकेला थाना में इससे संबंधित कोई प्राथमिकी या अन्य दस्तावेज नहीं है. खरसावां गोलीकांड के 73 साल बाद भी अब तक शहीद हुए लोगों की वास्तविक संख्या का पता नहीं चल सका है. आजादी के बाद यह देश का सबसे बड़ा गोलीकांड था. जांच के लिए ट्रिब्यूनल बनाये गये, लेकिन उसकी रिपोर्ट कहां गयी आज तक पता नहीं चल सका. इस घटना के कुछ दिन बाद सरायकेला और खरसावां को ओडिशा से अलग कर बिहार में शामिल किया गया.
खरसावां के शहीदों के सम्मान में 4 वर्ष पूर्व शहीद पार्क का निर्माण किया गया है. इस वर्ष श्री झारखंड सीमेंट कंपनी की ओर से CSR के तहत पार्क का सौंदर्यीकरण किया गया है. साथ ही अगले एक साल तक शहीद पार्क के रख- रखाव पर कंपनी हर माह 50 हजार रुपये खर्च करेगी.
1 Comments
Apne bahut hi achhi jankari pradan ki apko bahut bahut dhanyavad
ReplyDeleteImportant Gyan
अपना विचार रखने के लिए धन्यवाद ! जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी !