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हलबा आदिवासी समुदाय में विषम का महत्व halba samaj me visham ka mahatava

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    हलबा आदिवासी समुदाय में विषम का महत्व



    हलबा आदिवासी समुदाय में विषम अर्थात ऋण(--) जिसे मातृ शक्ति का प्रतीक माना जाता है। विशेष महत्व है।जन्म से लेकर मृत्यु संस्कार तक समस्त परंपरा में विषम संख्या से संबंधित प्रथा का पालन करने की मान्यता है 

    १.हलबा जनजाति में तीन प्रकार के संस्कार है जन्म, विवाह व मृत्यु
    २.जन्म संस्कार में छठी के अवसर पर शिशु को  पहनाये जाने वाले करधन में पांच गांठ बांधे जाते हैं।
    ३ .फलदान में दोनो पक्ष मिलाकर ७,९,११.सदस्य मिलकर गौरा गौरी की पूजा किया जाता है।
    ४.   तीन प्रकार के शादी का प्रचलन है मंझली,जयमाला व आदर्श
    ५. विवाह प्रारंभ होने के पहले दुल्हे पक्ष द्वारा दुल्हीन के घर ३ कलशा,सात देव मौर,१ सफेद साडी व १ सूपा  पहुचाया जाता है।
    ६. मुख्य द्वार पर ७,९,११ जगह केंवारी में नीम व आम के पत्ते बांधे जाते हैं।
    ७.मंझली विवाह दोनो पक्ष मिलाकर ३ दिनो का होता है।
    ८.  विवाह के समय दुल्हे के घर माई कलशा मे ७ व दुल्हीन के घर माई कलशा में ५ आम के पत्ते बांधे जाते है।
    ९.  शादी में ७ फेरे (चक्कर) होता है
    १०. गठबंधन में पांच चीजों को बांधा जाता है।
    ११.मंडवा  के नीचे  पांच चीजों को  रखा जाता है।
    १२.मृत्यु संस्कार में पूर्व समय में बच्चे की मृत्यु पर ५वे,किशोर की मृत्यु पर ७ वे वयस्क की मृत्यु पर ९वे वृद्ध की मृत्यु पर ११वे दिन स्नान करते थे
    १३,तीजनहावन तीन दिन में संपन्न होता है। Tumesh chiram  
    १४.तीन रंग का सामाजिक झंडा होता है।
    १५.तीन रंग का देव झंडा लाल,सफेद व काला रंग का होता है।
    १६. बैसाख महीने के अंजोरी पक्ष के तीसरी तिथि को अक्ती परब मनाया जाता है।
    १७.भादो महीने के अंजोरी पक्ष के तीसरे तिथि को तीज परब मनाया जाता है।


    १८.किसी भी सामाजिक कार्य संपन्न होने के पूर्व पांच लोगो द्वारा ईष्ट देवी देवता को हुम धूप दिया जाता है।
    १९.शादी के अवसर पर दुल्हीन व दुल्हा को सात बार तेल चढाया व उतारा जाता है।
    २०.दुल्हे पक्ष के यहां ७ पापड व ७ कुरूवर बनाया जाता है।
    २१.अपने कुल देवी देवता को मांघ के महीने में तीन प्रकार के सब्जी (चना भाजी,लाल भाजी,गोलेंदा भाटा)का भोग चढाया जाता है।
    २२.मंडवा परघौनी,चुलमाटी व कुर्वर के समय ५,७ ,9 नग का भात व गोबर का मेची बनाया जाता है।
    २३.दुल्हा व दुल्हीन का पांव पखारने के समय ३ प्रकार के द्रव्य घी,दूध व पानी से चरण धोकर चरणामृत ग्रहण किया जाता है।
    २४.गवना के समय दुल्हीन के भाई द्वारा  ५ या ७ बार दुल्हीन के मुँह में छुवाकर गुडपानी पिलाया जाता है।
    २५.सगाई के समय दुल्हीन पक्ष को भेंट देने के लिए लड्डू लिया जाता है उसमें दुल्हीन हेतु ५ नग लड्डू दिये जाने का प्रावधान है
    २६.धरम टीकावन के समय दुल्हीन व दुल्हा के हाथ में  चांवल को  ७ बार 
    अंजली में रखकर दिया जाता है।
    २७.टीकावन के समय आशीर्वाद हेतु दुल्हीन व दुल्हा को ५ या ७ बार माथा लमाया जाता है।

    💐💐लेखक:-अशोक औरशा💐💐
    यह विचार लेखक का अपना स्वतंत्र विचार है।।

    // लेखक // कवि // संपादक // प्रकाशक // सामाजिक कार्यकर्ता //

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