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रावण और दशहरा को लेकर धर्मिक मतभेद[डॉ सूर्या बाली] ravan or dashrah ko lekar dhrmik matbhed[dr.surya bali]

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    रावण और दशहरा को लेकर धर्मिक मतभेद

    रावण और दशहरा को लेकर धर्मिक मतभेद[डॉ सूर्या बाली] ravan or dashrah ko lekar dhrmik matbhed[dr.surya bali]
    आजकल एक बात देखने में आ रही है कि लोग रावण को कुछ ज्यादा ही महत्व दे रहे हैं और रावण को लेकर कुछ ज्यादा ही संवेदनशील हो रहे हैं. और तरह-तरह की कहानियां, किस्से, धार्मिक विश्लेषण, मूर्ति और मंदिर इत्यादि के द्वारा रावण को पुनः प्रतिस्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि मैं राम या रावण के प्रति प्रेम रखने वालों के खिलाफ हूं बस इसके पीछे के मनोविज्ञान और ब्राह्मणवादी षड्यंत्र को लेकर थोड़ा चिंतित हूं और परेशान हूं.
    अगर आप यह सोच रहे हैं आप रावण का मंदिर बना कर, रावण को अपनाकर या रावण की पूजा करके अपने पक्ष को मजबूत कर रहे हैं या ब्राह्मणवादी मान्यताओं के विरुद्ध खड़े हो कर उसे नकार रहे हैं और सदियों से अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों


    के खिलाफ खड़े हो रहे हैं तो यकीन मानिए आप बहुत बड़ी गलतफहमी में जी रहे हैं. 
    राम और रावण की द्वय (बायनरी) एक ब्राह्मणवादी विचारधारा और मान्यता की उपज है जिसे रामायण, रामलीला, सुंदरकांड पाठ, भजन-कीर्तन, पूजापाठ, रावण दहन और अन्य तरह-तरह के धार्मिक उपक्रमों के द्वारा स्थापित किया जाता है और इस तरह आम जनमानस में राम के प्रति एक आदर्शवादी पुरुष की छवि स्थापित की जाती है. उसके विपरीत दशहरा में रावण को जलाकर एक बुरे व्यक्ति की छवि बनाई जाती है.

    यहाँ आप को समझना होगा कि ऐसा क्यों किया जा रहा है? कई शोधों और अध्ययनों ने यह बार-बार स्पष्ट हुआ है कि राम या रावण नाम का कभी अस्तित्व ही नहीं था यह महज एक कहानी है(1-4)




    .
    आजकल सोशल मीडिया ने युवाओं की जीवन शैली को वेहद प्रभावित किया है(5). विगत दशकों में कोइतूरों में बेहतर शिक्षा और सोशल मीडिया के द्वारा बृहद रूप से मिली जानकारी और ज्ञान से एक नई चेतना का विकास हुआ है और अब कोइतूर लोग पुरानी मान्यताओं पर प्रश्न उठाने लगे हैं. जनजातीय क्षेत्रों में लोग अपनी जड़ों को तलाशने लगे हैं, लोग अपने अस्तित्व और अस्मिता की बात करने लगे हैं, और इस तरह से ब्राह्मणवादी


    व्यवस्था द्वारा पोषित किस्से कहानियों और उन कहानियों पर आधारित तीज त्योहारों को नकारने लगे हैं और उनसे दूर जाने लगे हैं. लोगों का ब्राह्मणवाद और उसके कर्मकांड से मोहभंग हो रहा है. जन जातियाँ अपने लिए अलग धर्म कोड़ की मांग कर रही हैं(6)
    रावण और दशहरा को लेकर धर्मिक मतभेद[डॉ सूर्या बाली] ravan or dashrah ko lekar dhrmik matbhed[dr.surya bali]
    उभरती जनजातीय चेतना को देखते हुए ब्राह्मणवाद से लोगों का विश्वास धीरे-धीरे उठने लगा है और लोग इस झूठ मूठ के कहानी से बाहर आने लगे हैं और यह बदलाव ब्राह्मणवादी व्यवस्था के बिलकुल खिलाफ जा रहा है जो


    ब्राह्मणवादी व्यवस्था को बनाए रखने वालों के लिए बेहद गंभीर और चिंताजनक है. इसलिए इस कहानी को जिंदा रखने के लिए ब्राह्मणवादी लोगों ने राम के साथ साथ कुछ स्थानों पर रावण को भी जिंदा रखना शुरू किया क्योंकि राम को जहां-जहां लोग नहीं मानते हैं वहां पर रावण के द्वारा इस


    कहानी को जिंदा रखा जाएगा. मीडिया भी इन खबरों को खूब बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत करती है (7-10)
    रावण और दशहरा को लेकर धर्मिक मतभेद[डॉ सूर्या बाली] ravan or dashrah ko lekar dhrmik matbhed[dr.surya bali]इस बात को आप इस तरह देखिए, मान लीजिए आपको राम पसंद नहीं हैं या राम का आदर्शवाद पसंद नहीं हैं

    या राम के क्रियाकलाप पसंद नहीं है और आप उस ब्राह्मणवादी व्यवस्था से असंतुष्ट हैं और आप उस व्यवस्था से दूर अपनी जड़ों को तलाश रहे हैं और ब्राह्मणवादी व्यवस्था से आपका मोहभंग हो रहा है तो ब्राह्मणवाद को बनाए रखने वाले यह कभी नहीं चाहेंगे कि आप उनकी बनाई हुई व्यवस्था से दूर जाएं और अपनी कोइतूर व्यवस्था को पुनर्स्थापित करें. इसलिए आपको उसी ब्राह्मणवाद से संतुष्ट करने की पूरी कोशिश की जाएगी, और यही हो रहा है. आज रावण


    को पुनर्स्थापित करके पूरे कोइतूर समाज को ब्राह्मणवाद में पुनः लाया जा रहा है. आप हर तरह से उसी ब्राह्मणवादी व्यवस्था और उसके कर्मकांड जैसे मंदिर, व्यक्तिवाद और मूर्ति पूजा में उलझ रहे हैं. आजकल बड़े स्तर पर राम के प्रति आक्रोश और विद्रोह दिखाने के लिए युवा पीढ़ी रावण शब्द को


    अपने नाम से जोड़ रही है. यहं तक की अगर किसी के नाम में कभी राम लगा था Tumesh chiram   तो उसे भी हटाकर उसकी जगह रावण लिखने लगी है जिसे सोशल मीडिया और मुख्या धारा की मीडिया में आसानी देखा जा सकता है(11)
    रावण और दशहरा को लेकर धर्मिक मतभेद[डॉ सूर्या बाली] ravan or dashrah ko lekar dhrmik matbhed[dr.surya bali]
    रावण नाम के साथ सोशल मीडिया पर नाम लिखने का बढ़ता चलन
    एक बात ध्यान देने वाली है आजकल जहां जहाँ पर राम और उनके अस्तित्व को नकार दिया गया है और जहाँ जहाँ पर युवापीढ़ी राम और रामायण की कोरी कल्पना के ऊपर प्रश्नचिन्ह लगा रही हैं

    तथा राम को अपना आदर्श मानने से इनकार कर रही है उन्हीं स्थानों पर रावण का प्रभाव और अस्तित्व धीरे-धीरे उभर रहा है. इसका मतलब यह होता है कि अब रामायण की कहानी में नायक बदल रहा है. मतलब अब इन जगहों में कहानी वही रहेगी लेकिन


    राम की जगह रावण नायक का स्थान ले लेगा और जब रावण रहेगा तो उसके पीछे पूरी रामायण और उसकी कहानी जिंदा रहेगी. अब राम का चरित्र पर्दे के पीछे से वह सब कुछ करता रहेगा जो वह पर्दे के सामने से नहीं कर पाया. अगर आप रावण के अस्तित्व को, चाहे जिस रूप में भी, स्वीकार करते हैं तो इसका मतलब यह हुआ


    कि आप पूरी रामायण की व्यवस्था को स्वीकार करते हैं, रामायण को स्वीकार करने का मतलब है कि आप हिंदूवादी व्यवस्था में विश्वास करते हैं और हिंदूवादी व्यवस्था में विश्वास करने का मतलब हुआ है कि आप ब्राह्मणवाद को पोषित करते हैं.
    रावण और दशहरा को लेकर धर्मिक मतभेद[डॉ सूर्या बाली] ravan or dashrah ko lekar dhrmik matbhed[dr.surya bali]जब तक राम और रावण की कहानी रहेगी तब तक हिंदूवाद रहेगा. अगर आप राम को भुलाते हैं तो अच्छी बात है लेकिन अगर आप रावण को जिंदा रखते हैं तो और भी बुरी बात है. क्यूंकि कोइतूर व्यवस्था या कोयापुनेमी व्यवस्था में अगर आप रावण को खड़ा करते हैं रावण को जिंदा रखते हैं और रावण के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं तो राम का चरित्र अपने आप जिंदा रहेगा

    इसका मतलब ब्राह्मणवाद जिंदा रहेगा. आप इस गलतफहमी में बिल्कुल मत रहिए कि आप रावण की पूजा करके, रावण को अपने नाम में शामिल करके, रावण की तस्वीर बनाकर, रावण की मूर्ति बनाकर, रावण का मंदिर बना कर सनातन से चली


    आई व्यवस्था को त्याग दिया है या उसका अंत कर दिया. अगर ऐसा है तो आप गलतफहमी का शिकार हैं. ऐसा आपने स्वयं नहीं किया है ऐसा आपको करने के लिए मजबूर किया गया है जिसमें ब्राह्मणवाद ने बड़ी सावधानी के साथ स्वयं हारकर आपको विजयी बनने का अवसर दिया है. आपको लगा कि आपने


    ब्राह्मणवाद का अंत कर दिया लेकिन आप फिर से हार गए. इस बार आपको कोई अन्य आदमी नहीं हरा रहा है  बल्कि आप स्वयं हार रहे हैं और खुशी-खुशी हार रहे हैं क्योंकि ब्राह्मणवाद हार कर भी

    अपनी संकल्पनाओं और अपनी विचारधारा को आप में स्थापित करने में सफल हो गया है और आप जीत करके भी उसकी विचारधारा में डूब चुके हैं और जैसे राम- रावण, मूर्ति-मंदिर में उलझ कर अपनी कोया पुनेमी व्यवस्था से दूर हो चुके हैं.
    रावण के अस्तित्व को स्वीकार करने का मतलब हुआ कि आप रामायण को और उसकी स्थापित मान्यताओं को स्वीकार कर रहे हैं. जैसे ही आप रावण को स्वीकार करेंगे और उसके प्रति सम्मान व्यक्त करना शुरू करेंगे आपके मन में एक तस्वीर उभरना शुरू होगी और जो एक मूर्ति के रूप में आकार लेगी. आप फोटो लगाएंगे, मूर्ति की स्थापना करेंगे,


    मंदिर बनाएंगे, पूजा पाठ करेंगे और खुद को समझाएंगे कि आप हिंदूवादी व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं लेकिन वास्तव में देखा जाए तो आप उसी व्यवस्था को पोषित कर रहे हैं. आप रावण को नहीं बल्कि ब्राह्मणवाद को संरक्षित और पोषित कर रहे हैं.
    रावण और दशहरा को लेकर धर्मिक मतभेद[डॉ सूर्या बाली] ravan or dashrah ko lekar dhrmik matbhed[dr.surya bali]
    सोचिए कि ऐसा पिछले कुछ वर्षों से ही क्यों हो रहा है? ऐसा देखा जा रहा है कि कोइतूरों की युवा पीढ़ी ब्राह्मणवाद द्वारा पोषित रामायण, रामायण के पाठ, रामलीला, राम झांकियां इत्यादि से दूर होती जा रही है. ब्राह्मणवाद के झंडा बरदारों को यह डर सताने लगा है कि कहीं

    ब्राह्मणवाद का पोषक और हिंदू धर्म को पोषित करने वाला महानायक और उसकी कहानी वक्त के साथ धूमिल ना हो


    जाए इसलिए ब्रह्मणवादी पत्रकारों और ब्राह्मणवादी विचारधारा के लोगों ने जनजाति क्षेत्रों में मुख्यतः महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना इत्यादि में जहां-जहां कोया पुनेम विचारधारा उभरकर सामने आ रही है और जहां-जहां मूर्ति पूजा और कर्मकांड का विरोध हो रहा है वहां इस नई परिकल्पना को जन्म दिया है.
    कुल मिलाकर योजना यह है कि ब्राह्मणवाद का पोषक रामायण और उसके कर्मकांड जिंदा रहने चाहिए उसके लिए चाहे नायक ही क्यों ना बदलना पड़े और यही रणनीति आजकल जनजातीय इलाकों में काम कर रही है.


    बहुत सारे युवा अपने को रावण से जुड़कर गर्व कर रहे हैं और रावण को अपना वंशज मानकर तस्वीरें और मूर्तियां बना रहे हैं. कहीं-कहीं तो मंदिर बनाकर पूजा पाठ भी शुरू कर दिए हैं. बस यही तो चाहता था ब्राह्मणवाद कि आप अपनी कोयापुनेमी व्यवस्था से अलग हो जाएं और ब्राह्मणवाद की दूसरी शाखा का हिस्सा बन जाएं.
    जब तक आप ऐसा करते रहेंगे तब तक देश में संबैधानिक मूल्यों की स्थापना कभी नहीं हो सकती और इस देश में असमानता, अन्याय, वैमनस्य, गुलामी इत्यादि का प्रभुत्व और अस्तित्व बना रहेगा. इस बात को आप भी जानते हैं कि इन्हीं बातों की नींव पर ब्राह्मणवाद की ईमारत टिकी हुई है. यह आप पर निर्भर करता है कि आप अपनी संस्कृति सभ्यता,


    रीति रिवाज, अपनी कोयापुनेमी विचारधारा को पोषित और पल्लवित करते हैं या दूसरे की विचारधारा के झंडे को लेकर आगे जाते हैं. यह कोई छोटी बात नहीं है आप और हमारे लिए एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रश्न है जो आपको अन्दर से झकझोर देगा. 
    रावण और दशहरा को लेकर धर्मिक मतभेद[डॉ सूर्या बाली] ravan or dashrah ko lekar dhrmik matbhed[dr.surya bali]दूसरे की गढ़ी हुई कहानियों को सुधारने का वक्त नहीं है और न ही दूसरे की कहानियों में से अपने नायक चुनने का वक़्त हैं अगर कुछ नया ही करना है तो अपनी कहानियों को जिंदा करो और अपने असली नायकों को ढूंढो और उनका गुणगान करो. दूसरे की लिखी हुई कहानियों में अपना नायक खोज कर,


    दूसरे के कर्मकांडों में अपने आपको फंसने से आप कभी भी महान नहीं बन सकते.  इस तरह से आपके अपने समाज की मान्यताएं और धार्मिक व्यवस्थाएं कभी भी ऊपर नहीं आ पाएंगी और अब उसी कट्टरपंथी और अवैज्ञानिक विचारधारा में ही उलझ कर रह जाएंगे. इसलिए आप ठंढे दिमाग से सोचिए, समझिए और विचार कीजिए

    और नक़ल करने से बचिए. आपके पास बेहतर संस्कृति और सभ्यता है जिसको आप सुदृढ़ और समृद्ध करके फिर से


    खड़ा कर सकते हैं. किसी पुरानी व्यवस्था को मात्र विरोध करके खत्म नहीं किया जा सकता है बल्कि उस पुरातन व्यवस्था को खत्म करने के लिए जरूरी है कि उसके समक्ष एक नई प्रगतिशील और वैज्ञानिक व्यवस्था की स्थापना की जाए.
    अगर आप रामायण या ब्राह्मणवादी व्यवस्था के ग्रंथों से किसी भी चरित्र को लेकर किसी नई व्यवस्था का गठन करते हैं तो यकीन मानिये देर सबेर उस व्यवस्था के दायरे में आप और आपका समाज आएगा ही.


    इसलिए आपको रावण को खड़ा करके बहुत खुश होने की जरूरत नहीं है बल्कि आपको अपनी कोयापुनेम की व्यवस्था को अपनाकर प्राकृतिक रूप से अपनी मान्यताओं को खड़ा करना है और उसका अनुपालन सुनिश्चित करना है इसी से पूरे कोइतूर समाज का भला होगा और कोइतूर भारत का सपना सार्थक होगा. 
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    सन्दर्भ सूची 
    4. पेरियार रामास्वामी नायकर और ललई सिंह यादव: सच्ची रामायण और सच्ची रामायण की चाभी , प्रथम संस्करण, मई २०१३, प्रकाशक आंबेडकर प्रचार समिति , महादेव गली, मोती कतरा आगरा उत्तर प्रदेश 
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    डॉ. सूर्य बाली एक विख्यात मेडिकल साइंसेज इंस्टीट्यूशन में एडिशनल प्रोफेसर हैं.
    Surya Bali


















    डॉ सूर्या बाली (Dr. Surya Bali)



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    लेख कॉपी पेस्ट न करें और अगर लेख कॉपी पेस्ट करते है तो लेखक का नाम और कहा से लिए है  सन्दर्भ देना न भूले लेखक या शोध कर्ता इतने मेहनत  से जानकारी इकठ्ठा करके अपना लेख लिखता है और लोग कॉपी पेस्ट कर देते है यंहा तक नाम को भी हटा देते है और खुद का नाम डाल देते है मेहनत करे मुर्गी अंडा खाए फ़क़ीर वाली बात हो जाती है तो कृपया लेख कॉपी पेस्ट न करे और अगर करते है तो सन्दर्भ देना न भूले अगर लेख अच्छा लगा है तो लिंक शेयर करे कॉपी पेस्ट नही

    मै सभी सगा बंधुओ और आदिवासी भाइयो से आग्रह करता हूँ


    की जब तक हमे वास्तविकता का पता न हो किसी भी बात को न अपनाये न ही बिना कुछ जाने टिप्पड़ी दें उस विषय में जानकारी इकट्टा करके ही अपना मत देवे और किसी के भावनाओ को ठेस न पहुचाएं "किसी के भावना को ठेस पंहुचाकर हम तर्क से भले ही किसी को हरा सकते है पर उनके नजर में एक बार गिर गए तो ता उम्र नही उठ सकते" जय माँ दंतेश्वरी 
                                                                                                                   

    // लेखक // कवि // संपादक // प्रकाशक // सामाजिक कार्यकर्ता //

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    1 Comments

    अपना विचार रखने के लिए धन्यवाद ! जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी !

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