- महिषासुर और भैसासुर में भ्रमित होते आदिवासी
- हिन्दू कहानी के अनुसार
- मेरा कुछ संका है इस कहानी में
- आदिवासी कहानी के अनुसार
- मेरा प्रश्न
- यादवो कहानी के अनुसार
- मेरा प्रश्न
- वध के सम्बन्ध में मतभेद
- महिषासुर के नाम विश्लेषण
- तर्क संगत लेख
- गाँव में भैसासुर की पूजा क्यों की जाती है
- बस्तर का हर मूलनिवासी
- सन्दर्भ:-
महिषासुर और भैसासुर में भ्रमित होते आदिवासी

मै आप लोगो को बताना चाहूँगा की जो हिन्दू रीति रिवाज वाले दुर्गा और महिषासुर है उनका उनका इतिहास आज से लगभग ८५ साल पुराना है एक न्यूज़ के अनुसार लगभग १६०६ से दुर्गा पूजा आरम्भ हुआ 413 साल पहले एक न्यूज़ के अनुसार दुर्गा पूजा लगभग आरम्भ हुआ सन १७५७ पलासी के यूद्ध के समय आज से लगभग 262 साल पूर्व अगर देखा जाए तो दुर्गा पूजा का इतिहास ख़ास पुराना नही लगता तथा उपरोक्त संदर्भित लेख और न्यूज़ बुलेटिन में एक समानता यह देखने को मिला की सभी तथ्यों में जगह कोलकाता से ही start बताया और बंगाली समुदाय से इसका शुरुवात बताते है तो इन सभी कहानियो से यह ज्ञात तो होता है की दुर्गा पूजा कोलकाता और बंगाल क्षेत्र में ही आरम्भ हुआ साथ में बेंगोली समुदाय का विशेष त्यौहार है साथ में इस में जो राक्षस है महिषासुर उन्हें कई बार आदिवासी अपने पूर्वज मानने लगते है
हिन्दू कहानी के अनुसार
रंभ दानव और महिष के सम्भोग से महिषासुर का जन्म हुआ माना जाता है दानव और भैस के सम्भोग से महिषासुर पैदा हुआ इसलिए वह इच्छा अनुसार मनुष्य और असुर बन सकने की शक्ति प्राप्त थी ऐसा माना जाता है और उसने ब्रम्हा से मनुष्य और देवताओ और दानवो से न मरने की की शक्ति प्राप्त की थी परन्तु ब्रम्हा ने किसी किसी से मरना ही होगा क्योकि जो जन्म लेता है तो मरता है ही है कहा तब तथा नारी को कमजोर मानकर नारी के हाथो से मरना स्वीकार किया ऐसा माना जाता है और फिर महिषासुर को मारने के लिए दुर्गा का जन्म हुआ ऐसा माना जाता है और इनके बीच में 9 दिनों तक घनघोर यौध हुआ जिसमे लगभग 60 लाख सैनिक और कई प्रकार के अस्त्र सस्त्र प्रयोग हुआ माना जाता है तथा 10 दिन महिषासुर का वध दुर्गा के द्वारा किया गया ऐसा माना जाता है
दुर्गा पूजा के विरोध करने वालो के लिए कहा गया है की hindi.news18.com
"हालांकि हर बात में दूसरों से तथ्य और प्रमाण मांगने वाले ये महिषासुर के मुट्ठी भर आधुनिक मानस-पुत्र अपने इस मनगढ़ंत और वाहियात इतिहास के विषय में आजतक कोई ठोस प्रमाण नहीं दे सके है; बस हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबल्स की तरह इस झूठ को बार-बार रट-रटकर सही साबित करने की नाकाम कोशिश में लगे रहते हैं। यहां तक कि इस पर झूठों, कपोल-कल्पित वाहियात तथ्यों और कुतर्कों से भरी पत्रिका तक निकाल चुके हैं।
वैसे, इनके इस बौद्धिक कुकृत्य का विडंबनात्मक पक्ष ये है कि एक तरफ तो ये भारतीय पौराणिक इतिहास को मिथक और कपोल-कल्पित कहके खारिज करते हैं
और दूसरी तरफ उसीसे दुर्गा-महिषासुर जैसे चरित्रों को उठाकर मनगढ़ंत ढंग से पेश भी करते हैं। यह देखते हुए कह सकते हैं कि जैसे महिषासुर समय और आवश्यकतानुसार रूप बदल लेता था, वैसे ही उसके ये आधुनिक मानस-पुत्र भी अवसर देखकर चेहरे बदलने की कला में पूरे माहिर हैं."
और दूसरी तरफ उसीसे दुर्गा-महिषासुर जैसे चरित्रों को उठाकर मनगढ़ंत ढंग से पेश भी करते हैं। यह देखते हुए कह सकते हैं कि जैसे महिषासुर समय और आवश्यकतानुसार रूप बदल लेता था, वैसे ही उसके ये आधुनिक मानस-पुत्र भी अवसर देखकर चेहरे बदलने की कला में पूरे माहिर हैं."
मेरा कुछ संका है इस कहानी में
1. मै विज्ञान को मानने वाला हूँ
तो मनुष्य का वीर्य कभी भी किसी भी जानवर के अन्दर प्रवेश करवा भी दिया जाए तो सुक्राणु विपरीत गुणसूत्र होने के करना आटोमेटिक मर जायेगा तो महिषा(भैस) से महिषासुर का जन्म नामुमकिन है यह कल्पना मात्र है ?
तो मनुष्य का वीर्य कभी भी किसी भी जानवर के अन्दर प्रवेश करवा भी दिया जाए तो सुक्राणु विपरीत गुणसूत्र होने के करना आटोमेटिक मर जायेगा तो महिषा(भैस) से महिषासुर का जन्म नामुमकिन है यह कल्पना मात्र है ?
2. 60 लाख सैनिक भाग लिए तो जब यौद्ध ख़तम हुआ आज तक 60 लाख सैनिको मेसे एक का भी कंकाल क्यों प्राप्त नही हुआ
3. और उस समय 0 का अविष्कार नही हुआ था तो 60 लाख सैनिक की गिनती कैसे किया गया होगा ?
4. अगर वह रूप बदलने में माहिर था तो उनकी जेनेटिक गुणसूत्र सबसे एडवांस था क्योकि आज तक ऐसा कोई गुणसूत्र और जेनेटिक आटोमेशन नही हुआ की आदमी भैस और भैस फिर आदमी बन जाय पूरा पूरा जेनेटिक स्ट्रेचर बदलना कोई आसान काम नही है?
5. पृथ्वी के अलावा कोई अन्य लोक की कल्पना करना केवल एक मिथक मात्र है न ही इंद्र लोक है न स्वर्ग लोक है ही और कोई अन्य लोक जो हमे बताया और डराया जाता है ?
आदिवासी कहानी के अनुसार

इसी परिपेक्ष्य में hindi.news18.com में जो लेख है उसका एक अंश
"आप बेशक महिषासुर को पूजिए लेकिन, मां दुर्गा जो देश की बहुसंख्य आबादी के लिए प्राचीन काल से परम पूजनीय रही हैं, के अपमान का आपको कोई अधिकार नहीं, फिर भी, अगर आप अपनी बातों को लेकर इतने ही प्रतिबद्ध हैं
तो हिम्मत दिखाइये और पश्चिम बंगाल जो एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां अभी आपके वाम का कुछ राजनीतिक वजूद शेष है, की राजधानी कलकत्ता की सड़कों पर जाकर जरा अपने इस इतिहास का एक वाचन करके देखिये तो कि कितनी स्वीकार्यता है इसकी ?"
तो हिम्मत दिखाइये और पश्चिम बंगाल जो एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां अभी आपके वाम का कुछ राजनीतिक वजूद शेष है, की राजधानी कलकत्ता की सड़कों पर जाकर जरा अपने इस इतिहास का एक वाचन करके देखिये तो कि कितनी स्वीकार्यता है इसकी ?"
मेरा प्रश्न
1. अगर महिषासुर कोई राजा था तो उनका राज्य के बारे में कोई दस्तावेज क्यों प्राप्त नही है?
2. अगर महिषासुर आदिवासी था तो कन्हा का राजा था और दुर्गा से क्या सम्बन्ध थे उनके ?
3. अगर दुर्गा वैश्य नही है तो वैश्यालय से मिटटी लाकर मूर्ति क्यों बनाया जाता है ?
4. जब दुर्गा आर्य कन्या थी तो 9 दिन रात तक महिषासुर उनके साथ क्यों रहा?
5. महिषासुर का जन्म कब और कहा हुआ वध कहा हुआ ?
6. महिषासुर के माँ पिता का क्या नाम था और उनके वंश को लेकर अभी भी भ्रम की स्थिती क्यों है ?
7
यादवो कहानी के अनुसार

”जिन पशुपालक लोगों (गवलियों) ने इन वर्तमान देवों को स्थापित किया है, वे इन पुराने महापाषाणों के निर्माता नहीं थे, उन्होंने चट्टानों पर खांचे बनाकर महापाषाणों के अवशेषों का अपने पूजा स्थलों के लिए स्तूपनुमा शवाधानों के लिए सिर्फ पुनः उपयोग ही किया है।
उनका पुरूष देवता म्हसोबा या इसी कोटि का कोई देवता बन गया, आरम्भ में पत्नी रहित था और कुछ समय के लिए खाद्य संकलनकर्ताओं की अधिक प्राचीन मातृदेवी से उसका संघर्ष भी चला। परन्तु जल्दी ही इन दोनों मानव समूहों का एकी करण हुआ और फलस्वरूप इनके देवी देवता का भी विवाह हो गया। कभी-कभी किसी ग्रामीण देव स्थल में महिषासुर-म्हसोबा को कुचलने वाली देवी का दृश्य दिखाई देता है तो 400 मीटर की दूरी पर वही देवी, थोड़ा भिन्न नाम धारण करके, उसी म्हसोबा की पत्नी के रूप में दिखाई देती है। यही देवी ब्राह्मण धर्म में शिव पत्नी पार्वती के रूप में प्रकट हुई, जो महिषासुर मर्दिनी है। कभी-कभी यह पुराने रूप में लौटकर शिव का भी मर्दन करती है। इस सन्दर्भ में यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि सिन्धु सभ्यता की एक मुहर पर त्रिमुख वाले जिस आदि रूप शिव की आकृति उकेरी हुई है, उसके सिर के टोप पर भी भैंस के सींग हैं।” उक्त उद्धरण में गवलियों का नाम आया है। गवली और यादव एक ही हैं। इस प्रकार इतिहासकार डी॰ डी॰ कौशम्बी ने महिषासुर या म्हसोबा को गवली या यादव माना है।
मेरा प्रश्न
1. रंग और रूप के माध्यम से अनुमान लगाना की महिषासुर यादव है यह तो सरासर अज्ञानता का निसानी है जैसे मेरे बेटे के पास लाल शर्ट है उसमे 6 बटन है इसका मतलब जो आज एक्सीडेंट में मरा मेरा बेटा है यह कैसे तर्क है भाई
2. रंग रूप के माध्यम से और कल्पना से ही महिषासुर को यादव कहना सरासर न इंसाफी है
3. भैस पालने वाले कैसे महिषासुर हुआ महिषापालक हुआ न ?
“कल्पना के पात्र को सभी अपना बनाने के लिए एक दुसरे के आस्था पर इस कदर घाव करने में लगे है की आपसी रिश्ते नाते दोस्ती तक भूल बैठे है इस मिथक कथा के लिए”
वध के सम्बन्ध में मतभेद

जहाँ यह माना जाता है कि महिषासुर का वध भी यहीं हुआ था। इसी तरह पूर्वी भारत अर्थात हिमांचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में नैना देवी शक्तिपीठ अवस्थित है। पुराणों के अनुसार देवी सती के नैन गिरने के कारण यह शक्तिपीठ स्थापित हुआ किंतु महिषासुर की कथा भी इसी स्थल से जुडी हुई मानी जाती है तथा उसका वध-स्थल भी यहीं पर माना जाता है। कहानियाँ और भी हैं; झारखण्ड के चतरा जिले का भी यह दावा है कि महिषासुर का वध वहीं हुआ। इसके तर्क में तमासीन जलप्रपात के निकट क्षेत्रों में प्रचलित कथा है कि नवरात्र के समय आज भी यहाँ तलवारों की खनक सुनाई देती है तथा यत्र-तत्र सिंदूर बिखरा हुआ देखा जा सकता है।
1. असम नागालैण्ड जैसे राज्यों में जिस भैंसासुर से दुर्गा देवी का संघर्ष हुआ बताया जाता है
वही सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुआ
2. मान्यता ऐसी है कि मैसूर से 13 किलोमीटर दक्षिण में एक चामुंडा पहाड़ी है। इस पहाड़ी की चोटी पर चामुंडेश्वरी मंदिर है। जो देवी दुर्गा को समर्पित है। कहा जाता है कि इसी जगह पर देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था।
3.बड़े डोंगर में महिषासुर का वध हुआ माना जाता है
ऐसे अनेक स्थल है जंहा महिषासुर का वध हुआ माना जाता है पर अभी इसमें एक मत नही दिखाई पड़ता
3.बड़े डोंगर में महिषासुर का वध हुआ माना जाता है
ऐसे अनेक स्थल है जंहा महिषासुर का वध हुआ माना जाता है पर अभी इसमें एक मत नही दिखाई पड़ता
महिषासुर के नाम विश्लेषण

सत्य है कि आज महिषासुर एक ऐतिहासिक चरित्र से मिथक बन चुका है, मगर ध्यान रहे कि इतिहास के अति लोकप्रिय नायक मिथक हो जाया करते हैं. महिषासुर का इतिहास तो लोकमानस की यादों में जीवित है, उसे इतिहास ग्रंथों में खोजना बेईमानी है. कारण कि प्राय: इतिहास ग्रंथ उसके विरोधियों द्वारा प्रायोजित हैं.
जैसा कि हम कह आए हैं कि महिषासुर का एक नाम बाद में चलकर ‘भैंसासुर’ भी हो गया. भारत में भैंसासुर के नाम पर कई गांव बसे हैं और कई चौक चौराहे तथा मोहल्ले भी हैं. ये सब महिषासुर के ऐतिहासिक चरित्र होने के प्रमाण हैं. झारखंड के पलामू जिले के मनातु प्रखंड के अंतर्गत पद्मा पंचायत में भैंसासुर गांव है. एक भैंसासुर गांव उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के अंतर्गत पूरनपुर विधानसभा क्षेत्र में भी है.
मध्य प्रदेश भी भैंसासुर गांव के कई प्रमाण समेटे हुए है. मध्यप्रदेश की तहसील अंतागढ़ में भैंसासुर गांव है. ऐसे ही सतना जिले के मैहर थाना क्षेत्र के अंतर्गत भी ग्राम भैंसासुर है. जिला महोबा प्रखंड चरखारी में भी भैंसासुर कस्बा है. स्वयं महोबा भी महिषासुर की स्मृति में बसाया गया नगर है. महिषासुर को डीडी कोसंबी ने ‘म्हसोबा’ लिखा है. यही म्हसोबा ही नगर महोबा है. महोबा का क्षेत्र महिषासुर की स्मृतियों से पटा हुआ है.
कई नगरों में भैंसासुर की स्मृति में तिराहे और चौराहे हैं. मध्यप्रदेश के जबलपुर में भैंसासुर तिराहा है और बिहार के शहर बिहार शरीफ में भैंसासुर चौराहा है. भारत के कई स्थलों पर महिषासुर के पूजा स्थान हैं. सीहोर शहर के निकट इछावर मार्ग पहाड़ी पर भैंसासुर बाबा का स्थान है. मध्य प्रदेश के छतरपुर में भैंसासुर मुक्ति धाम है.
दूर की बात छोड़िए, बनारस में भी भैंसासुर का मंदिर और घाट है. मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के पास एक बड़ागांव कस्बा है. यहां ‘भैंसासुर का मंदिर’ है. वह मंदिर भैंसासुर की मड़िया के नाम से जाना जाता है. भैसासुर बाबा नगर के देवताओं के प्रमुख हैं. वे आल्हा सुनते हैं. भारत की कई नदियों, टीले और पोखर में भी भैंसासुर बाबा बसे हुए हैं. कहां कहां इतिहास उन्हें मिटाएगा? झारखंड और बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक आप बाबा भैंसासुर के दर्शन कर सकते हैं. सच मिटाए नहीं मिटता. वह अपना निशान कहीं न कहीं छोड़ जाता है-टीलों पर, पत्थरों पर, डीह डिहवारों में. छतीसगढ़ के कांकेर जिला में भी कई गाँव के नाम भैसासुर भैसबोड भैसगाँव भैसाकन्हार भैसदहरा आदि है
तर्क संगत लेख
उपरोक्त लेख से ज्ञात होता है की एक दुसरे के भावनाओ को ठेस पहुचाने के उद्देश्य से कुछ लेख लिखे गए है अब आते है निष्कर्ष और वास्तविक ज्ञान पर महिषासुर हिन्दुओ का काल्पनिक पात्र है जिन्हें कई जनजाति समुदाय अपना वंशज मानती है और कुछ पिछड़े जाति भी अपने आपको महिषासुर के वंशज मानती है और आज इसी मिथक कथा वाले महिषासुर को कई समाज के दिक्भ्रमित करने वाले लोग गाँव के सियार में रहता है
उस भैसासुर है करके भ्रम फैलाकर लोगो को धरम के नाम से लदा रहे है मै बता दूँ दुर्गा वाले महिषासुर का इतिहास जायदा पुराना नही है किन्तु गाँव वाले भैसासुर का इतिहास इतना पुराना है की जब से गाँव व्यवस्था लागू हुआ तब से भैसासुर की पूजा की जाती है जिनको सभी गाँव वाले पूजते है और यह प्रत्येक गाँव में विराजित होता है अगर आपको दुर्गा वाले महिषासुर और गाँव वाले भैसासुर के बारे में पता करना है न तो आपके गाँव के गायता और सिरहा से पता कीजियेगा बहूत सटीक जवाब मिल जायेगा मेरे गाँव के गायता अनुसार दुर्गा वाले महिषासुर और गाँव वाले देव भैसासुर में पूर्व पश्चिम का अंतर है और उसे एक बता कर लोगो में मतभेद करना और भ्रम फैलाना कोई भ्रमित विचारधारा वाले लोगो से सीखे
उस भैसासुर है करके भ्रम फैलाकर लोगो को धरम के नाम से लदा रहे है मै बता दूँ दुर्गा वाले महिषासुर का इतिहास जायदा पुराना नही है किन्तु गाँव वाले भैसासुर का इतिहास इतना पुराना है की जब से गाँव व्यवस्था लागू हुआ तब से भैसासुर की पूजा की जाती है जिनको सभी गाँव वाले पूजते है और यह प्रत्येक गाँव में विराजित होता है अगर आपको दुर्गा वाले महिषासुर और गाँव वाले भैसासुर के बारे में पता करना है न तो आपके गाँव के गायता और सिरहा से पता कीजियेगा बहूत सटीक जवाब मिल जायेगा मेरे गाँव के गायता अनुसार दुर्गा वाले महिषासुर और गाँव वाले देव भैसासुर में पूर्व पश्चिम का अंतर है और उसे एक बता कर लोगो में मतभेद करना और भ्रम फैलाना कोई भ्रमित विचारधारा वाले लोगो से सीखे
गाँव में भैसासुर की पूजा क्यों की जाती है
खेतो की फसल अच्छी हो और खेतो के रक्षा हेतु भैसासुर की पूजा की जाती है यह कोई भी दिशा में विराजित हो सकता है और पहले अछे फसल के कामना के लिए भैसासुर के स्थल में एक जिन्दा भैस की बली दी थी परन्तु अभी वर्तमान में नही दिया जाता है मेरे गाँव में भैसासुर गाँव के उत्तर पूर्व दिशा जिसे भंडारा भी बोलते है स्थापित है यंहा बहुत सारे पेड़ पौधे है और समय समय पर गाँव के सियानो दुवारा अर्जी विनती की है और अंत में मै फिर एक बार पूर्ण तथ्य के साथ कहता हूँ की महिषासुर दुर्गा वाले और गाँव वाले भैसासुर दोनों अलग अलग है उन्हें एक बताकर लोगो के मध्य भ्रम की स्थिति निर्मित न करें
कुछ अन्य तर्क
सबसे पहले सार्वजनिक तौर पर दुर्गा पूजा क्षुरुआत 1757 की प्लासी की लड़ाई में बंगाल के एक मुगल नवाब सिराजुद्दौला को अंग्रेज लार्ड क्लाइव द्वारा हराये जाने की ख़ुशी में लार्ड क्लाइव का हिन्दू मित्र कृष्णदेव द्वारा दुर्गा पूजा की गई।जिसे ईस्ट इंडिया कम्पनी के नाम पर कम्पनी पूजा कहा गया---सन्दर्भ--महिषासुर एक जननायक --।
सबसे पहले सार्वजनिक तौर पर दुर्गा पूजा क्षुरुआत 1757 की प्लासी की लड़ाई में बंगाल के एक मुगल नवाब सिराजुद्दौला को अंग्रेज लार्ड क्लाइव द्वारा हराये जाने की ख़ुशी में लार्ड क्लाइव का हिन्दू मित्र कृष्णदेव द्वारा दुर्गा पूजा की गई।जिसे ईस्ट इंडिया कम्पनी के नाम पर कम्पनी पूजा कहा गया---सन्दर्भ--महिषासुर एक जननायक --।
यदि 1757 में शुरू हुआ तो रेल सड़क आदि निर्माण होते होते---और देश की आजादी सन् 1947 के बाद हुए औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरुप लगभग 1950--55 के आस पास बंगाली लोग देश के दूसरे भसगों में बड़े पैमाने पर रोजी रोटी नौकरी हेतु गए होंगे और अपने साथ दुर्गा को भी ले गए होंगे ---ऐसा आंकलन किया जा सकता है।तब धीरे धीरे दुर्गा पूजा फैला होगा---और इसे जल्दी से भी मान लिया जाय तो लगभग 1960 से ही सर्वत्र दुर्गापूजा की शुरुआत हुई होगी----इस तरह वर्तमान 2019 तक अंदाजन बमुश्किल 60 साल पुराना ही मालुम हो रहा है।
[10/10, 11:14 PM] कुम्भकरण पिस्दा: नही---महिसासुर को छत्तीसगढ़ी में भैंसासुर कहते हैं।गोंडी में बोदालपेन ।
इसकी स्थापना गाँव के भूमियार ने गाँव स्थापना के समय ही करता है---यह अत्यंत प्राचीन है।प्रत्येक गाँवों में है।जब आर्य लोग इस देश में कदम भी नही रखे थे और आर्यपुत्रि दुर्गा के दादा परदादा का जन्म भी नही हुआ रहा होगा तब से--
असम नागालैण्ड जैसे राज्यों में जिस भैंसासुर से दुर्गा देवी का संघर्ष हुआ बताया जाता है
वही सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुआ
बस्तर का हर मूलनिवासी
#बैंसासूर को अपने आराध्य पेन के रूप मे हजारो वर्षो से सेवा करते हुए आ रहा है.
वास्तव मे यह #नार व्यवस्था / ग्राम संरचना से संबंधित पेन है जिसमे बैंसासुर को भूमिगत जल संसाधनो के प्रबंधन व वितरण प्रणाली के निति निर्धारक पेन माना जाता है इस पेन के अदभूत #जल संरक्षण सिस्टम के कारण ही #कोया कोयतूर गावों में आज भी जल स्तर बहुत ही ऊपर लगभग सतह के समानांतर ही होता है भैंसासुर #सेवा स्थल गाँव के जल प्रबंधन के नियंत्रण केन्द्र की तरह होता है इन जगहो पर लगभग वर्ष भर पानी की प्राकृतिक प्रवाह नियमित बनी हुई रहती है. अक्सर इन जगहो पर हम भरी गर्मियो में भी "#भैसा कुलीय" पशुओ को पानी मे डुबे हुए या किचड़ पर बैठे हुए देख सकते है. दरअसल बस्तर में गाय- बैल के साथ ही भैस -भैसा चौपाये पशुओ का संतुलन भी बना हुआ है क्योंकि बस्तर मे भैंसासुर पेन सेवा केन्द्र के रूप मे ऐसे जगह हर गांव में होते है जो इन पशुओ को भारी गर्मी वह डिहाइड्रेशन से निजात दिलाने में अहम भूमिका निभाते है.। ऐ जल केन्द्र #जैव विविधता से भी परिपूर्ण होते है । इसलिए आज भी गाव के #गायता/ #पेरमाओ द्वारा इन जगहो पर कृत्रिम निर्माण कार्यो पर पाबंदी लगाते है संक्रमित मानवो को भी इनसे दूर ही रखने का फरमान जारी करते है। जल स्रोत का प्रबंधन इस पेन के हाथ मे होने से इन्हे "#कृषि उत्पादन" का भी नियंत्रक पेन माना जाता है इसलिए प्रथम धान फसल पकने पर "#पुनांग पंडुम"/नवाखाई त्योहार के पूर्व "#बांलिग नेंग" पर इसी भैसासूर पेन को सेवा अर्जी कि जाती है. । इसी तरह से इन्हे गांव के सुरक्षा प्रणाली से सम्बंधित 10 "#राव पेनों" में भी प्रमुख स्थान दिया गया है. इसके साथ ही "जल व भूमि" पर विचरण करने वाले एक सांप की दुर्लभ प्रजाति "#एहरांज" सांप/सर्प को भी भैसासूर से जोड़कर देखा जाता है जो खेतो के मेंढो को समांतर छेद कर गांव वालो मे जल का समान /#बराबर #वितरण सुनिश्चित करती है इसतरह से बैंसासुर गांव की #आत्मा की तरह है यहां तक कि हमारे पंडुम/त्योहारो व #विवाह संस्कारो में भी भैसासूर को विभिन्न रश्मो मे ससम्मान याद करते हुए इनके नाम से सेवा अर्जी दिया जाता है विवाह संस्कार का "#ऐर्र दोसाना"/पनबुड़ी नेंग" इसी का एक उदाहरण है. इस तरह के भैसासूर से जुड़े अनंत उदाहरण हर आदिवासी बहुल गांवो मे भरे पड़े है अनेक #रेला पाटा /गीत, #पीटोंग/कहानियो में इस पेन का वर्णन आता है. अगर कोई संकलित करना चाहे तो इनसे किताबो के लाखो पन्ने भरे जा सकते है. दुसरे शब्दो में कंहे तो भैसासूर किसी कोयतूर गांव की धड़कन की तरह है, इसी तरह हमारा गांव भिमाल पेन , तलुरमुत्ते, कण्डरेगाल, 10 राव पेन , जिमिदारीन/चिकला याया , भूमियार पेन, आदि पेन के सुव्यवस्थित प्राकृतिक ऊर्जा केन्द्रो से लयबद्ध होती है.। अब प्रकृति विरोधी, पुंजीवाद के पोषक तत्व, विभिन्न धर्मो के लबादे ओढ़ आडम्बरो से चिपचिपाऐ कुछ लोगो के द्वारा दुनिया के सबसे #स्वच्छ व #आत्मनिर्भर इकोनॉमी वाले इन #कोयतोरिन गावों में अपने #धार्मिक #कचरो को फैलाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है
महिश्सुर यादव http://www.yadavshakti.org/mahesasuryadavking.html
गाँव के नाम के बारे में http://thewirehindi.com/19976/mahishasur-adivasis-durga-puja-asur/
सन्दर्भ--महिषासुर एक जननायक --।
deshtv.in https://deshtv.in/around-the-city/country-specific-did-mahishasura-slaughter-in-bhainsadond-dongri/haribhoomi https://www.haribhoomi.com/astrology_and_spirituality/mahishasur-ka-vadh
2 Comments
सही बात है श्रीमान हमारे कुछ युवा बहुत जल्दी भ्रमित हो जाते है । उन सही जानकारी पहुँचाना आवश्यक है।
ReplyDeleteआदिवासी एतिहासिक परंपरा का सार्थक संग्रह करने के लिए साधुवाद..
ReplyDeleteअपना विचार रखने के लिए धन्यवाद ! जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी !