दोस्तों नमस्कार आज जिस प्रथा के बारे में बात करने वाला हूँ उस प्रथा का सामान्य नाम है बंधुआ मजदुर प्रथा जैसा की नाम से ही स्पष्ट हो जा रहा है जिसमे मजदूरो को उनके इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती मजदूरी करवाया जाता है
तो इस प्रकार कांफी दिक्कतों का सामना बंधुआ मजदुर व उनके परिवार के लोग करते आ रहे थे व आजादी के 29 साल बाद इस पर कानून बना व इस प्रथा को सन 1976 में प्रतिबंध लगा दिया तब भी आज भी कई जगह इस प्रकार का केस देखने को मिलता है
जैसे अन्य राज्यों में काम करने या अन्य देशो में काम करने के बहाने लोगों को ले जाते है व उन्हें बंधक बना कर या उनके इच्छा न होने के बावजूद उनसे जबरदस्ती काम लिया जाता है यह आज भी कई दैनिक समाचारों व न्यूज़ पेपरों के माध्यम से देखने सुनने को मिलता है पहले और वर्तमान के बंधुआ मजदुर में कांफी भिन्नता परिलक्षित होता है पहले के बंधुआ मजदुर अपने पिता या
परदादा के कर्ज छूटने के लिए मजबूर करके कार्य लिया जाता था किन्तु वर्तमान में अन्य राज्यों में काम दिलवाने के नाम से लेजाकर मजदूरो का सौदा किया जाता है भारत सरकार की नजरो में किसी से जबरदस्ती कार्य करवाना कानूनी रूप से अवैध है इस पर रोक लगाया जा चूका है फिर भी किसी को ऐसा करता पाया जाता है या ऐसे कार्यो में सलिप्त पाया जाता है तो उनके ऊपर भारत के कानून को तोड़ने के अपराध में कड़ी कार्यवाही होती है
किस प्रकार का कार्यवाही की जाती है नीचे देख सकते है
उन्हें हम बंधुआ मजदूरी प्रथा कहते है पहले इनका स्वरुप वर्तमान से कांफी भिन्न था किन्तु वर्तमान में इसका स्वरुप बिलकुल बदल गया है आप लोगों को बता दूँ की आजादी से पहले से लेकर आजादी के लगभग 28-29 सालो तक यह प्रथा लागू था ! क्या होता था पहले के सियान लोग
सेठ साहुकारो से कर्ज में धन राशी लिए रहते थे व उस धन राशी को नही चूका पाने के कारण उन सेठ साहुकारो के यंहा उन धन राशी को छूटने के लिए नौकर बनकर उनका सभी छोटे बड़े कार्य को करना पढता था इस प्रथा में कभी कभी ऐसा होता था
की कई पीढ़ी पहले के कर्ज को छूटते छूटते एक दो पीढ़ी निकल जाता था तब भी इन सेठ साहुकारो का कर्ज नही छुट पाते थे जिसके कारण कर्ज दार के कई पीढ़ी को कई सारी परेशानी का सामना करना पड़ता था जैसे जो बंधुआ मजदुर (नौकर) सेठ साहूकार या मालगुजार के यंहा कार्य करता था
सेठ साहुकारो से कर्ज में धन राशी लिए रहते थे व उस धन राशी को नही चूका पाने के कारण उन सेठ साहुकारो के यंहा उन धन राशी को छूटने के लिए नौकर बनकर उनका सभी छोटे बड़े कार्य को करना पढता था इस प्रथा में कभी कभी ऐसा होता था
की कई पीढ़ी पहले के कर्ज को छूटते छूटते एक दो पीढ़ी निकल जाता था तब भी इन सेठ साहुकारो का कर्ज नही छुट पाते थे जिसके कारण कर्ज दार के कई पीढ़ी को कई सारी परेशानी का सामना करना पड़ता था जैसे जो बंधुआ मजदुर (नौकर) सेठ साहूकार या मालगुजार के यंहा कार्य करता था
उसके एवज में या तो तो कुछ नही दिया जाता था यह बोलकर की आपके परदादा का कर्ज अभी उतरा नही है करके या बहुत कम दिया जाता था जिससे परिवार का पालन पोषण करना संभव न था या केवल उसी आदमी को खाने व पहनने को दिया जाता था सेठ लोगों के द्वारा जो उनके यंहा बंधुआ मजदूरी कर रहा है उनके परिवार के लिए कुछ नही दिया जाता थ
ा जिससे तंग आकर बंधुआ मजदुर के परिवार वाले खाना खर्च के लिए कई गलत कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाते थे उस समय की ईसी प्रथा को बंधुआ मजदुर प्रथा कहा जाता था इस प्रथा में कभी कभी कई पीढ़ी कर्ज छूटने में निकल जाता था
फिर थक हार कर ऐसे परिवार अपना घर द्वार खेत खार उन सेठ साहूकार या मालगुजार या जमीदार को सौपकर अन्यत्र जाने के लिए बाध्य हो जाते थे , सुनने में यह भी आता है की उस समय खाने के लाले पड़ते थे और परिवार में सदस्यों की संख्या भी बहुत अधिक होती थी कहते है की कई कई रात पानी पसिया पीकर ( खाना को बनाने से पहले जो पानी निकालते है उसे छत्तीसगढ़ी में पसिया कहा जाता है ) निकलते थे या कोढ़हा रोटी खाकर दिन गुजारना पढता था
या डूमर पेज( डूमर एक प्रकार का फल है जिसको पकने पर खाया जाता है इसका स्वाद मीठा रहता है पेज का अर्थ चावल बनने पर अधिक पक जाता है जस्ट खीर जैसे उन्हें छत्तीसगढ़ी में पेज बोलते है) पीकर रहना पड़ता था ऐसे मेरे दादा जी बताते थे और बहुत सारी बाते है
पर हमे मुख्य रूप से बंधुआ मजदुर पर बात करना है आपको बता दूँ इस बंधुआ मजदूर प्रथा को अलग अलग राज्यों में अलग अलग नामो से जाना जाता है जैसे राजस्थान में सागडी प्रथा, आँध्रप्रदेश में वैत्ती प्रथा, उड़ीसा में गोठी प्रथा, कर्नाटक में जेठा प्रथा और मध्यप्रदेश में नौकयीनामा
ा जिससे तंग आकर बंधुआ मजदुर के परिवार वाले खाना खर्च के लिए कई गलत कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाते थे उस समय की ईसी प्रथा को बंधुआ मजदुर प्रथा कहा जाता था इस प्रथा में कभी कभी कई पीढ़ी कर्ज छूटने में निकल जाता था
फिर थक हार कर ऐसे परिवार अपना घर द्वार खेत खार उन सेठ साहूकार या मालगुजार या जमीदार को सौपकर अन्यत्र जाने के लिए बाध्य हो जाते थे , सुनने में यह भी आता है की उस समय खाने के लाले पड़ते थे और परिवार में सदस्यों की संख्या भी बहुत अधिक होती थी कहते है की कई कई रात पानी पसिया पीकर ( खाना को बनाने से पहले जो पानी निकालते है उसे छत्तीसगढ़ी में पसिया कहा जाता है ) निकलते थे या कोढ़हा रोटी खाकर दिन गुजारना पढता था
या डूमर पेज( डूमर एक प्रकार का फल है जिसको पकने पर खाया जाता है इसका स्वाद मीठा रहता है पेज का अर्थ चावल बनने पर अधिक पक जाता है जस्ट खीर जैसे उन्हें छत्तीसगढ़ी में पेज बोलते है) पीकर रहना पड़ता था ऐसे मेरे दादा जी बताते थे और बहुत सारी बाते है
जैसे अन्य राज्यों में काम करने या अन्य देशो में काम करने के बहाने लोगों को ले जाते है व उन्हें बंधक बना कर या उनके इच्छा न होने के बावजूद उनसे जबरदस्ती काम लिया जाता है यह आज भी कई दैनिक समाचारों व न्यूज़ पेपरों के माध्यम से देखने सुनने को मिलता है पहले और वर्तमान के बंधुआ मजदुर में कांफी भिन्नता परिलक्षित होता है पहले के बंधुआ मजदुर अपने पिता या
परदादा के कर्ज छूटने के लिए मजबूर करके कार्य लिया जाता था किन्तु वर्तमान में अन्य राज्यों में काम दिलवाने के नाम से लेजाकर मजदूरो का सौदा किया जाता है भारत सरकार की नजरो में किसी से जबरदस्ती कार्य करवाना कानूनी रूप से अवैध है इस पर रोक लगाया जा चूका है फिर भी किसी को ऐसा करता पाया जाता है या ऐसे कार्यो में सलिप्त पाया जाता है तो उनके ऊपर भारत के कानून को तोड़ने के अपराध में कड़ी कार्यवाही होती है
किस प्रकार का कार्यवाही की जाती है नीचे देख सकते है
भारत सरकार ने देश में बाध्य श्रम या बंधुआ मजदूरी के मुद्दे पर निरन्तर कठोर रुख अपनाया है। यह इस क्रूरता से प्रभावित नागरिकों के मौलिक मानवाधिकारों का हनन मानता है और यह इसके यथा संभव न्यूनतम समय में पूर्ण समापन को लेकर अडिग है। बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976 को लागू करके बंधुआ मजदूरी प्रणाली को २५ अक्टूबर १९७५ से संपूर्ण देश से खत्म कर दिया गया। इस अधिनियम के जरिए बंधुआ मजदूर गुलामी से मुक्त हुए साथ ही उनके कर्ज की भी समाप्ति हुई।
यह गुलामी की प्रथा को कानून द्वारा एक संज्ञेय दंडनीय अपराध बना दिया। इस अधिनियम को संबंधित राज्य सरकारों द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है।
बंधुआ मज़दूरी प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, १९७६ बंधुआ मज़दूरी की प्रथा उन्मूलन हेतु अधिनियमित किया गया था ताकि जनसंख्या के कमज़ोर वर्गों के आर्थिक और वास्तविक शोषण को रोका जा सके
और उनसे जुड़े एवं अनुषंगी मामलों के संबंध में कार्रवाई की जा सके।
इसने सभी बंधुआ मज़दूरों को एकपक्षीय रूप से बंधन से मुक्त कर दिया और साथ ही उनके कर्जो को भी परिसमाप्त कर दिया। इसने बंधुआ प्रथा को कानून द्वारा दण्डनीय संज्ञेय अपराध माना।
यह कानून श्रम मंत्रालय और संबंधित राज्य सरकारों द्वारा प्रशासित और कार्यान्वित किया जा रहा है। राज्य सरकारों के प्रयासों की अनुपूर्ति करने के लिए मंत्रालय द्वारा बंधुआ मज़दूरों के पुनर्वास की एक केन्द्र प्रायोजित योजना शुरू की गई थी। इस योजना के अंतर्गत, राज्य सरकारों को बंधुआ मज़दूरों के पुनर्वास के लिए समतुल्य अनुदानों (५०:५०) के आधार पर केन्द्रीय सहायता मुहैया कराई जाती है।
अधिनियम के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं:-
- बंधुआ मजदूर प्रणाली को समाप्त किया जाए और प्रत्येक बंधुआ मजदूर को मुक्त किया जाए तथा बंधुआ मजदूरी की किसी बाध्यता से मुक्त किया जाए।
- ऐसी कोई भी रीति-रिवाज़ या कोई अन्य लिखित करार,जिसके कारण किसी व्यक्ति को बंधुआ मज़दूरी जैसी कोई सेवा प्रदान करनी होती थी,अब निरस्त कर दिया गया है।
- इस अधिनियम के लागू होने से एकदम पहले कोई बंधुआ ऋण या ऐसे बंधुआ ऋण के किसी हिस्से का भुगतान करने की बंधुआ मज़दूर की हरेक देनदारी समाप्त हो गई मान ली जाएग ी।
- किसी भी बंधुआ मज़दूर की समस्त सम्पत्ति जो इस अधिनियम के लागू होने से एकदम पूर्व किसी गिरवी प्रभार, ग्रहणाधिकार या बंधुआ ऋण के संबंध में किसी अन्य रूप में भारग्रस्त हो, जहां तक बंधुआ ऋण से सम्बद्ध है, मुक्त मानी जाएगी और ऐसी गिरवी, प्रभार,ग्रहणाधिकार या अन्य बोझ से मुक्त हो जाएगी।
- इस अधिनियम के अंतर्गत कोई बंधुआ मज़दूरी करने की मज़बूरी से स्वतंत्र और मुक्त किए गए किसी भी व्यक्ति को उसके घर या अन्य आवासीय परिसर जिसमें वह रह रहा/रही हो, बेदखल नहीं किया जाएगा।
- कोई भी उधारदाता किसी बंधुआ ऋण के प्रति कोई अदायगी स्वीकृत नहीं करेगा जो इस अधिनियम के प्रावधानों के कारण समाप्त हो गया हो या समाप्त मान लिया गया हो या पूर्ण शोधन मान लिया गया हो ।
- राज्य सरकार जिला मजिस्ट्रेट को ऐसी शक्तियां प्रदान कर सकती है और ऐसे कर्तव्य अधिरोपित कर सकती है जो यह सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी हो कि इस अधिनियम के प्रावधानों का उचित अनुपालन हो।
- इस प्रकार प्राधिकृत जिला मजिस्ट्रेट और उसके द्वारा विनिर्दिष्ट अधिकारी ऐसे बंधुआ मज़दूरों के आर्थिक हितों की सुरक्षा और संरक्षण करके मुक्त हुए बंधुआ मज़दूरों के कल्याण का संवर्धन करेंगे ।
- प्रत्येक राज्य सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना के ज़रिए प्रत्येक जिले और प्रत्येक उपमण्डल में इतनी सतर्कता समितियां, जिन्हें वह उपयुक्त समझे, गठित करेगी।
- प्रत्येक सार्तकता समिति के कार्य इस प्रकार है :-
- इस अधिनियम के प्रावधानों और उनके तहत बनाए गए किसी नियम को उपयुक्त ढंग से कार्यान्वित करना सुनिश्चित करने के लिए किए गए प्रयासों और कार्रवाई के संबंध में जिला मजिस्ट्रेट या उसके द्वारा विनिर्दिष्ट अधिकारी को सलाह देना;
- मुक्त हुए बंधुआ मज़दूरों के आर्थिक और सामाजिक पुनर्वास की व्यवस्था करना;
- मुक्त हुए बंधुआ मज़दूरों को पर्याप्त ऋण सुविधा उपलब्ध कराने की दृष्टि से ग्रामीण बैंकों और सहकारी समितियों के कार्य को समन्वित करना;
- उन अपराधों की संख्या पर नज़र रखना जिसका संज्ञान इस अधिनियम के तहत किया गया है;
- एक सर्वेक्षण करना ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या इस अधिनियम के तहत कोई अपराध किया गया है;
- किसी बंधुआ ऋण की पूरी या आंशिक राशि अथवा कोई अन्य ऋण, जिसके बारे में ऐसे व्यक्ति द्वारा बंधुआ ऋण होने का दावा किया गया हो, की वसूली के लिए मुक्त हुए बंधुआ मज़दूर या उसके परिवार के किसी सदस्य या उस पर आश्रित किसी अन्य व्यक्ति पर किए गए मुकदमे में प्रतिवाद करना।
- इस अधिनियम के प्रवृत्त होने के बाद, कोई व्यक्ति यदि किसी को बंधुआ मज़दूरी करने के लिए विवश करता है तो उसे कारावास और जुर्माने का दण्ड भुगतान होगा।
इसी प्रकार, यदि कोई बंधुआ ऋण अग्रिम में देता है, वह भी दण्ड का भागी होगा।
- अधिनियम के तहत प्रत्येक अपराध संज्ञेय और ज़मानती है और ऐसे अपराधों पर अदालती कार्रवाई के लिए कार्रवाई मजिस्ट्रेट को न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियां दिया जाना ज़रूरी होगा।
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