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सिन्धु लिपि बनाम गोंडी लिपि का समीक्षात्मक अध्ययन // sindhu lipi banam gondi lipi ka samikshatmak adhyayan

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    प्यारे भाइयो आज हम जिस विषय पर चर्चा करने वाले है उस विषय का नाम तो आपने ऊपर पढ़ा ही होगा, तब भी बता देते है आज का विषय है सिन्धु लिपि व गोंडी  लिपि का तुलना करना व विभिन्न लेखो व पुस्तकों का सन्दर्भ  लेते हुए समीक्षा करना
    समीक्षा करने से पहले कुछ मूल बातो पर चर्चा कर लेते है जैसे भाषा किसे कहते है व लिपि किसे कहते है व गोंडी लिपि का इतिहास आदि 

    भाषा का परिभाषा :-

    भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त कर सकते हैं Tumesh chiram   और इसके लिये हम वाचिक ध्वनियों का प्रयोग करते हैं।  सामान्यतः भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। व भाषा को विस्तृत क्षेत्र में बोली व समझी जाती है 

    ए. एच. गार्डिनर के विचार से 

    “The common definition of speech is the use of articulate sound sybols for the expression of thought.” अर्थात् विचारों की अभिव्यक्ति के लिए जिन व्यक्त एवं स्पष्ट ध्वनि-संकेतों का व्यवहार किया जाता है, उन्हें भाषा कहते हैं।

    बोली

     और भाषा में अन्तर होता है। यह भाषा की छोटी इकाई है। इसका सम्बन्ध ग्राम या मण्डल अर्थात सीमित क्षेत्र से होता है। इसमें प्रधानता व्यक्तिगत बोलचाल के माध्यम की रहती है और देशज शब्दों तथा घरेलू शब्दावली का बाहुल्य होता है। यह मुख्य रूप से बोलचाल की भाषा है, इसका रूप (लहजा) कुछ-कुछ दूरी पर बदलते पाया जाता है तथा लिपिबद्ध न होने के कारण इसमें साहित्यिक रचनाओं का अभाव रहता है। व्याकरणिक दृष्टि से भी इसमें विसंगतियॉं पायी जाती है।

    'लिपि व  लेखन प्रणाली का अर्थ होता है 

    किसी भी भाषा की लिखावट या लिखने का ढंग। ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है, वही लिपि कहलाती है। लिपि और भाषा दो अलग अलग चीज़ें होती हैं। भाषा वो चीज़ होती है जो बोली जाती है, लिखने को तो उसे किसी भी लिपि में लिख सकते हैं। किसी एक भाषा को उसकी सामान्य लिपि से दूसरी लिपि में लिखना, इस तरह कि वास्तविक अनुवाद न हुआ हो, इसे लिप्यन्तरण कहते हैं। कई भाषाओ की लिपि एक हो सकती है जैसे हिन्दी के अलावा -संस्कृत ,मराठीकोंकणीनेपाली आदि भाषाएँ भी देवनागरी में लिखी जाती है।

    चित्रलिपि 

    ऐसी लिपि को कहा जाता है जिसमें ध्वनि प्रकट करने वाली अक्षरमाला की बजाए अर्थ प्रकट करने वाले भावचित्र (इडियोग्रैम) होते हैं। यह भावचित्र ऐसे चित्रालेख चिह्न होते हैं जो कोई विचार या अवधारणा (कॉन्सॅप्ट) व्यक्त करें। कुछ भावचित्र ऐसे होते हैं कि वह किसी चीज़ को ऐसे दर्शाते हैं कि उस भावचित्र से अपरिचित व्यक्ति भी उसका अर्थ पहचान सकता है, चीनी भाषा की लिपि और प्राचीन मिस्र की लिपि ऐसी चित्रलिपियों के उदाहरण हैं।

    सरस्वती लिपि 

    सिंधु घाटी की सभ्यता से सम्बन्धित छोटे-छोटे संकेतों के समूह को सिन्धु लिपि (Indus script) कहते हैं। इसे सैंधवी लिपि और हड़प्पा लिपि भी कहते हैं।[4] यह लिपि सिन्धु सभ्यता के समय (२६वीं शताब्दी ईसापूर्व से २०वीं शताब्दी ईसापूर्व तक) परिपक्व रूप धारण कर चुकी थी। इसको अभी तक समझा नहीं जा पाया है (यद्यपि बहुत से दावे किये जाते रहे हैं।) उससे सम्बन्धित भाषा अज्ञात है इसलिये इस लिपि को समझने में विशेष कठिनाई आ रही है। हड़प्पा लिपि (सिन्धु लिपि) का सर्वाधिक पुराना नमूना 1853 ई. में मिला थ
    भारत में लेखन ३३०० ईपू का है। सबसे पहले की लिपि सिन्धु लिपि (इंडस स्क्रिप्ट) थी, उसके पश्चात ब्राह्मी लिपि आई।

    ब्राह्मी लिपि

    कई विद्वानों का मत है कि यह लिपि प्राचीन सरस्वती लिपि (सिन्धु लिपि) से निकली, अतः यह पूर्ववर्ती रूप में भारत में पहले से प्रयोग में थी। सरस्वती लिपि के प्रचलन से हट जाने के बाद प्राकृत भाषा लिखने के लिये ब्रह्मी लिपि प्रचलन मे आई।

    देवनागरी

     एक भारतीय लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कई विदेशी भाषाएँ लिखी जाती हैं। यह बायें से दायें लिखी जाती है। इसकी पहचान एक क्षैतिज रेखा से है जिसे 'शिरोरेखा' कहते हैं।

    तेलुगु लिपि,

     ब्राह्मी से उत्पन्न एक भारतीय लिपि है जो तेलुगु भाषा लिखने के लिये प्रयुक्त होती है। अक्षरों के रूप और संयुक्ताक्षर में ये अपने पश्चिमी पड़ोसी कन्नड़ लिपि से बहुत मेल खाती है।

    गोंडी लिपि 

    गोंडी भाषा, को वर्त्तमान समय में प्रचलित रूप से, सामान्यतः देवनागरी लिपि अथवा तेलुगु लिपि में लिखी जाती है। हाल ही में, वर्ष २०१४ में, हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुछ शोधकर्ताओं द्वारा गोंडी की जन्मज, गुंजल गोंडी लिपि की खोज से पूर्व, गोंडी भाषा की जन्मज लिपि अज्ञात थी। सन १९१८ में मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के निवासी मुंशी मंगल सिंह मासाराम ने गोंडी के लिए एक लिपि अभिकल्पित की जो ब्राह्मी लिपि से व्युत्पन्न अन्य भारतीय लिपियों से चुने हुए वर्णों पर आधारित है, जिसे मंगल सिंह मासाराम लिपि या केवल मासाराम लिपि कहा जाता है। इस लिपि को गोंडी की एक निजी लिपि के रूप में देखा जाता है, किन्तु यह लिपि बहुत कम प्रचलित है। गुंजल गोंडी लिपि के खोज से पूर्व यह गोंडी की एकमात्र ज्ञात निजी लिपि थी। वर्त्तमान स्थिति में, हालाँकि गोंडी को प्रचलित रूप से अधिकांशतः देवनागरी या तेलुगु लिपि में लिखा जाता है, परंतु मनसाराम लिपि को भी सिखाया जाता है। तथा हालही में खोजे गए गुंजल गोंडी लिपि के भी पुनरुथान की योजना है।
    दोनों प्रकार के लिपि के बारे में 

    मुंशी मंगल सिंह मनसाराम लिपि

    [मासाराम लिपि ] 

    लिपि को सन १९१८ में मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के निवासी मुंशी मंगल सिंह मासाराम ने गोंडी भाषा के लिए अभिकल्पित किया था। यह ब्राह्मी लिपि से व्युत्पन्न अन्य भारतीय लिपियों से चुने हुए वर्णों पर आधारित है, जिसे मंगल सिंह मासाराम लिपि या केवल मासाराम लिपि कहा जाता है। इस लिपि को गोंडी की एक निजी लिपि के रूप में देखा जाता है, किन्तु यह लिपि बहुत कम प्रचलित है।  गुंजल गोंडी लिपि के खोज से पूर्व यह गोंडी की एकमात्र ज्ञात निजी लिपि थी।

    गुजल गोंडी लिपि

    [गुंजल गोंडी लिपि ]



    गुंजल गोंडी लिपि की खोज, हाल ही में, वर्ष २०१४ में, हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुछ शोधकर्ताओं द्वारा तेलंगाना के आदिलाबाद ज़िले के  गुंजल गाँव में पाए गए लगभग दर्जन भर पाण्डुलिपियों के खोज द्वारा हुई थी। हाल ही में हुए इस महत्वपूर्ण खोज से पूर्व, गोंडी लोगों की यह महत्वपूर्ण धरोहर सामान्य जनमानस से लुप्त हो चुकी थी, और गोंडी को एक लिपिहीन भाषा के तौरपर जाना जाता था। बहरहाल, ऐसी एक गोंडी लिपि के अस्तित्व में होने की बात तो जानी जाती थी, मगर ना ही इसका ज्ञान किसी को था, ना ही इस लिपि के कोई पाण्डुलिपि इससे पहले कहीं पाए गए थे

    कोया 

    एक द्रविड़ भाषा है जो भारतीय राज्यों आंध्र प्रदेश और ओरिसा में लगभग 300,000 लोगों द्वारा बोली जाती है। भाषा को कौरव, काया, कोया, कोइ, कोइ गोंडी, कोइटर, कोयटो, कोइ और राज कोय के नाम से भी जाना जाता है।
    सिंधु घाटी सभ्यता: 3300 ईसापूर्व से १७०० ईसापूर्व तक, परिपक्व काल: 2600 ई.पू. से 1900 ई.पू.)
    विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। जो मुख्य रूप से दक्षिण एशिया के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में, जो आज तक उत्तर पूर्व अफगानिस्तान, पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम और उत्तर भारत में फैली है। प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यता के साथ, यह प्राचीन दुनिया की सभ्यताओं के तीन शुरुआती कालक्रमों में से एक थी, और इन तीन में से सबसे व्यापक तथा सबसे चर्चित। सम्मानित पत्रिका “नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सभ्यता कम से कम 8000 वर्ष पुरानी है। यह हड़प्पा सभ्यता और 'सिंधु-सरस्वती सभ्यता' के नाम से भी जानी जाती है।
    इसका विकास सिंधु और घघ्घर/ हकड़ा (प्राचीन सरस्वती) के किनारे हुआ मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमुख केन्द्र थे। दिसम्बर २०१४ में भिर्दाना को सिंधु घाटी सभ्यता का अब तक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर माना गया है। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं।
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    हड़प्पा संस्कृति के स्थल

    7वी शताब्दी

    में पहली बार जब लोगो ने पंजाब प्रांत में ईटो के लिए मिट्टी की खुदाई की तब उन्हें वहां से बनी बनाई इटे मिली, जिसे लोगो ने भगवान का चमत्कार माना और उनका उपयोग घर बनाने में किया। उसके बाद 1826 में

    चार्ल्स मैसेन  

    ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता को खोजा। कनिंघम ने 1856 में इस सभ्यता के बारे में सर्वेक्षण किया।

    1856 में कराची से लाहौर के मध्य रेलवे लाइन के निर्माण के दौरान बर्टन बंधुओं द्वारा हड़प्पा स्थल की सूचना सरकार को दी। इसी क्रम में 1861 में एलेक्जेंडर कनिंघम के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की। 1904 में लार्ड कर्जन द्वारा जॉन मार्शल को भारतीय पुरातात्विक विभाग (ASI) का महानिदेशक बनाया गया। फ्लीट ने इस पुरानी सभ्यता के बारे में एक लेख लिखा। १९२१ में दयाराम साहनी  ने हड़प्पा का उत्खनन किया। इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया व दयाराम साहनी को इसका खोजकर्ता माना गया। यह सभ्यता सिन्धु नदी घाटी में फैली हुई थी इसलिए इसका नाम सिन्धु घाटी सभ्यता रखा गया। प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है। प्रथम बार कांस्य के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है।

    सिन्धु घाटी सभ्यता के १४०० केन्द्रों को खोजा जा सका है, जिसमें से ९२५ केन्द्र भारत में है। ८० प्रतिशत स्थल सरस्वती नदी और उसकी सहायक नदियों के आस-पास है। Tumesh chiram   अभी तक कुल खोजों में से ३ प्रतिशत स्थलों का ही उत्खनन हो पाया है।

    खोजः-

    सबसे पहले हड़प्पा सभ्यता के विषय में जानकारी 1826 ई0 में चार्ल्स मैसन ने दी। 1852 और 1856 ई0 में जान ब्रिन्टन एवं विलियम ब्रिन्टन नामक इंजीनियर बन्धुओं ने करांची से लाहौर रेलवे लाइन निर्माण के समय यहाँ के पुरातात्विक सामाग्रियों को तत्कालीन पुरातत्व विभाग के प्रमुख कनिंघम से मूल्यांकन करवाया। कनिघंम को भारतीय पुरातत्व विभाग का जनक कहा जाता है। भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना लार्ड कर्जन के समय में अलिक्जेन्डर कनिंघम ने की थी। जब पुरातत्व विभाग के निर्देंशक जान मार्शल थे तभी दयाराम साहनी ने 1921 ई0 में हड़प्पा स्थल की खोज की। अगले ही वर्ष 1922 ई0 में राखलदास बनर्जी ने इसके दूसरे स्थल मोहनजोदड़ों की खोज की।
    यह सभ्यता विश्व के प्राचीनतम सभ्यताओ मे से एक मानी जाती है इस सभ्यता की खोज ने कई सारे रहस्योद्घाट किया है साथ है अभी भी कई सारे रहस्य बनी हुई है जैसे की इस सभ्यता का अंत किस कारण से हुआ होगा अभी भी इसका कोई प्रमाणिक सबुत हाँथ नही लग सका है साथ ही इस सभ्यता की और सबसे बड़ी रहस्य यह है की इस सभ्यता की जो चित्रलेख या चित्रलिपि मिला है उसको पढ़ सकने में कोई भी समर्थ नही हो सका यह आज भी एक पहेली बनी हुई है वैसे इस सभ्यता को लगभग ३००० वर्ष पूर्व की मानी जा रही है साथ ही यह भी ज्ञात हुआ है की इस सभ्यता में कांफी चीजों का ज्ञान हो गया था फिर भी इनकी चित्रलिपि न पढ़ सकने की वजह से सही सही बता पाना संभव नही हो पा रहा है जिस दिन इन लिपियों को पढ़ लिया जायेगा उस दिन कई सारे रहस्यों से पर्दा हट जाएगा कास जल्द पढ़ लिया जाए यह लिपि,,सिन्धु लिपि को एक द्रविण भाषा परिवार का लिपि माना गया है तब से कई जनजातीय समुदाय द्वारा इसे पढ़ सकने का दावा किया जाते रहा है इस लिपि को पढ़ सकने के प्रबल दावेदारो में संथाली भाषा लिपि परिवार , व तमिल भाषा परिवार, साथ ही गोंडी भाषा परिवार ने भी अपना दावा प्रस्तुत किया है सभी समुदाय अपना अपना दावेदारी अपने अपने समुदाय स्तर पर कर रहे है व अपने दावेदारी को सही मानते हुए चल रहे है पर आज भी भाषा विज्ञानीयो ने व खोजकर्ताओ ने उनको मान्यता नही दिए है , , गोंडी भाषा जानकार कंगाली जी ने अपने स्तर पर इसे गोंडी भाषा समूह का होने व गोंड समुदाय से सम्बंधित होने सम्बंधित कई दावे प्रस्तुत किया है परन्तु वह दावे भी कई सारे वजहों से केवल मिथक बनकर रह गया है जैसे की आप सभी को ज्ञात होगा की गोंडी लिपि में ४७-४८ वर्ण समूह है व सिन्धु लिपि की बात करें तो इनका मूल वर्ण ही लगभग ६०-६४ मानी जाती है गोंडी लिपि  की  मात्राओ की संख्या व अर्ध वर्णों की संख्या मिलाये तो २३ व गिनतियो की संख्या मिलाये तो ९ होती है जो की कुल किया जाए तो ३२ होती है जब की सिन्धु लिपि की मात्राओ , सहायक वर्णों और अर्ध संख्या की संख्या लगभग १०० से 6०० मानी जाती है व उसमे से लगभग ३९ शब्द कई बार प्रयोग हुआ है व सिन्धु लिपि की अब तक लगभग ३७००० शब्द  समूहों की खोज की जा चुकी है परन्तु अभी तक इनको किसी भाषा का होने का दावा नही किया जा सका है, कंगाली जी ने इन समूहों को शब्दों के रूप में पढने की कोशिश किया है जबकि सिन्धु सभ्यता में प्राप्त चित्रलिपि भावात्मक लिपि मानी जाती है व गोंडी लिपि बाए से दाए लिखी जाती है जब की सिन्धु लिपि दाए से बाए लिखी जाती है तो यह गोंडी लिपि से सम्बन्ध रखता हो यह तो संभव ही प्रतीत नही होता, साथ ही अगर गोंडी लिपि और सिन्धु लिपि की तुलना की जाए तो ९८%  लिपि चिन्ह मैच नही करता निचे फोटो साभार के लिए दिया गया है जिसमे सिन्धु लिपि और गोंडी लिपि की तुलना आप स्वय कर सकते है और अभी तक किसी भाषा विज्ञानी ने यह नही कहा है की इस सिन्धु लिपि को पढ़ लिया गया है इसका एक आप्शन गोंडी लिपि है करके,,अगर आप लोगों ने इस लेख पर १००० से या उससे अधिक कमेट किये व अपना राय दिए तो मै जरुर कंगाली जी द्वारा लिखा गया "सैंधवी लिपि का गोंडी लिपि में उद्वाचन" का सम्पूर्ण समीक्षात्मक लेख लिखूंगा , सिन्धु लिपि को ब्राम्ही लिपि का पूर्वज माना जाता है व जैसे की आपने पहले है पढ़ लिए है की गोंडी लिपि को देवनागरी लिपि का व तमिल लिपि से पहले लिखा जाता था फिर १९१८ में गोंडी लिपि का निर्माण किया गया मासाराम लिपि का फिर २०१४ में गुंजल गोंडी लिपि का निर्माण किया गया जबकी १८५३ में ही सिन्धु लिपि को सर्वप्रथम प्रयास किया गया व जिन चिन्हों का प्रयोग सिन्धु लिपि में किया गया है वैसा लिपि गोंडी लिपि में मिलना मुश्किल ही नही नामुमकिन है अगर एक दो परसेंट मिल गया तो बहुत है मै कुछ तुलनात्मक अध्ययन किया है उसका तालिका अग्रलिखित है व उसके बाद संदर्भित पुस्तकों के फोटो जिनसे यह परिणाम आया की अभी तक सिन्धु लिपि को नही पढ़ा जा सका है उनका पेपर कटिंग व हड्डपा सभ्यता के खोज करने वाले सर्वेक्षण  ओफिसियल लिंक व बहुत सारे सोर्स जंहा से यह जानकारी जुटाया गया है उनका  लिंक आपको अग्रलिखित मिलेंगे

    सिन्धु लिपि बनाम गोंडी लिपि

    क्रमांक
    सिन्धु लिपि
    गोंडी लिपि
    सिन्धु लिपि में लगभग ६४ मुक्त अक्षर है
    गोंडी लिपि में ४७-४८ वर्ण माला है
    इसके प्रथम पंक्ति दाए से बाय लिखा जाता है
    इसके सभी लिपि बांये से दाए लिखा जाता है
    दूसरा पंक्ति बाए से दाए लिखा जाता है
    इसके सभी लिपि बांये से दाए लिखा जाता है
    इस लिपि को प्रथम १८५३ में पढने का प्रयास किया गया
    इस लिपि का निर्माण १९१८ में व दूसरी लिपि २०१४ में निर्माण किया गया
    लिपि के बारे में सर्वप्रथम विचार करने वाला व्यक्ति अलेक्जेंडर कनिघम था
    इस लिपि का निर्माण करने वाला प्रथम व्यक्ति मुंशी मंगल सिंह मासाराम था
    सिन्धु लिपि को सर्वप्रथम पढने का असफल प्रयास एल.ए.वैन्डल ने किया था
    गुंजल गोंडी लिपि का निर्माण २०१४ में किया गया
    सिन्धु लिपि भाव चित्रात्मक लिपि है
    यह एक शाब्दिक लिपि है
    इसके अब तक लगभग ४०० मूल संकेत व ३७००० शब्द समूह की खोज होने के बावजूद इनको अभी तक नही पढ़ा जा सका है
    इनकी संकेतो के बारे में अभी तक ठोस दस्तावेज उपलब्ध नही है वर्ण माला के अलावा कोई भी अलग से संकेत चिन्ह नही है अगर वर्ण माला की बात की जाय तो ४८ वर्ण और २३ मात्राए अर्ध चिन्हों के साथ में
    इस लिपि में तौंल के लिए १६ आवर्तको का प्रयोग किया जाता था
    इसमें ० से ९ तक का गोंडी चिन्हों का उपयोग किया जाता है
    १०
    यह लिपि ब्राम्ही लिपि की पूर्वज मानी जाती है
    यह लिपि को ब्राम्ही लिपि और तमिल लिपि के लिपि व अन्य भारतीय लिपि के चुने हुए वर्णों से बनाया गया है
    ११
    इसकी अलग से और लिपि नही है
    इसको तमिल व देवनागरी लिपि में पहले लिखा जाता था अभी गोंडी लिपि निमार्ण के बाद गोंडी लिपि का उपयोग कई जगहों पर किया जा रहा है
    १२
    इस लिपि को द्रविण भाषा परिवार से माना जाता है पर अभी तक कोई भी द्रविण लिपि इसको डिकोड कर सकने में सफल नही रहा है
    यह एक द्रविण लिपि है
    १३
    सिन्धु लिपि को और बहुत सारे नामो से जाना जाता है जैसे सरस्वती लिपि, हडप्पा लिपि, सिन्धु लिपि, गंगा लिपि, आदि
    इसको केवल गोंडी लिपि नाम से जाना जाता है
    १४
    सिन्धु लिपि को कई जनजातीय समुदाय Tumesh chiram   अपना लिपि मानती है व पढ लेने की चेष्ठा करती है पर यंहा भी असफलता ही हाँथ लगती है
    गोंडी लिपि को सिन्धु लिपि से जोड़ने का अथक प्रयास मो. छ. कंगाली द्वारा किया गया पर वह भी असफल सिद्ध हुआ
    १५
    इस लिपि को द्रविड़ भाषा परिवार का कहा जाने पर विभिन्न जनजाति समुदायो द्वारा इस सिंधु लिपि को अपना लिपि बताने के लिए होड़ लग गई है अभी तक इस होड में गोंड समुदाय, संथाल समुदाय, तमिल लिपि समुदायों ने कई तरह से अपना मत रख रहे है
    सैंधवी लिपि का गोंडी में उद्वचन नामक पुस्तक में मो,छ.कंगाली द्वारा सिन्धु लिपि को गोंडी लिपि बताने का व गोंड समुदाय से सम्बन्ध होने का कई तरह से प्रयास किया है पर गोंडी लिपि और सैंधवी लिपि को मिलाकर देखने व एक ही चिन्ह का अलग अलग जगहों में अलग अलग अर्थ होना शंका के दायरे में लाकर खड़ा करती है
    टीप:- सिन्धु लिपि को पढ़ सके ऐसे कोई भी भाषा व लिपि ,कंप्यूटर भाषा(प्रोग्राम भाषा) का निर्माण शायद अभी तक नही हो सका है ऐसा भाषा वैज्ञानिको का विचार है

                                          गोंडी लिपि पहाडा और अन्य पुस्तक 

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    गोंडी लिपि 

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    अन्य संदर्भित पुस्तक जो मानती है की अभी तक सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि नही पढ़ी जा सकी है 


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    बहुत जल्द हम सिन्धु लिपि बनाम संथाल लिपि का समीक्षात्मक अध्ययन या सिन्धु लिपि बनाम तमिल लिपि का समीक्षात्मक अध्ययन पढेंगे, , ऊपर आपने संथाल लिपि पुस्तक और तमिल लिपि पुस्तक का कवर तो देख ही लिए होंगे कुछ संदर्भित लिंक निचे है वंहा जाकर भी आप जानकारी देख सकते है आपको मेरे द्वारा दी गई जानकारी कैसा लगा बताना न भूले जल्द से जल्द १००० कमेंट करने फिर अगले लेख में ऊपर दोनों विषय पर पोस्ट लिखूंगा आपका अपना आर्यन चिराम


    संदर्भित लिंक 

    गोंडी लेखन 
    हड्डपा सभ्यता खोज ऑफिसियल वेबसाइट
    मेकिंग इंडिया
    bpscrightway.com
    pappunehru.blogspot.com
    rochhak.com
    गोंडी भाषा
    सिन्धु लिपि
    हड्प्पा लिपि
    हङप्पाई लिपि
    लिपि
    चित्रलिपि
    हड़प्पा लिपि विडियो
    सिन्धु घाटी की लिपि विडियो
    the popular indian
    डॉ ऐरावतम महादेवन
    सरस्वती लिपि
    ब्राह्मी लिपि
    सिन्धु सभ्यता की विशेषता
    सिंधु लिपि को लेकर भाषाविद का तर्क
    प्राचीन भारत का इतिहास
    सैन्धव लिपि
    सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि की उत्पत्ति
    सिंधु लिपी // संथाल लिपि
    वर्णत्मक  लिपि
    सिंधु घाटी लिपि कैसे पढ़ें [{तमिल दावेदार}(बुक)]

    // लेखक // कवि // संपादक // प्रकाशक // सामाजिक कार्यकर्ता //

    email:-aaryanchiram@gmail.com

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    2 Comments

    1. आपका लेख समीक्षात्मक विश्लेषण बहुत अच्छा है इसको अध्ययन करने से एक बात है कि जो भी भाषा रहा हो सिंधु सभ्यता का जिसे हम आज अपना2 मानने का दावा कर रहे है, कुछ अलग ही निकलकर आने वाला है भविष्य में यदि इसे पढ़ लिया जाए।बहरहाल डीएनए वाली बातों में द्रविण से कुछ हद तक मैच वाली बातों के कारण सभी मूलवासी अपने2 निकटता से जोड़ने का प्रयास कर रहे है। आशा है आगे और लेख पढ़ने मिलेगा। धन्यवाद

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    अपना विचार रखने के लिए धन्यवाद ! जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी !

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