गेंड़ी रवानगी
गेड़ी रवानगी हमारे क्षेत्र उत्तर बस्तर कांकेर अंतागढ़ परिक्षेत्र में गेड़ी रवानगी विशेष रूप से मनाया जाता है ज्ञात हो कि गेंडी नृत्य छतीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र के माड़िया जनजातियों का लोक नृत्य है जिन्हें केवल पुरुषों द्वारा बाजे
के ताल के साथ नए नए स्टेप में किया जाता इसे गोंडी में डिटोंग भी कहा जाता है यह गेड़ी नृत्य आपने कभी न कभी tv या youtube में जरूर देखें होंगे यह होता क्या है इस पर भी एक नजर रखते है गेंड़ी बांस का बना होता इसकी पाँव
(पैडल) या पैर रखने की ऊँचाई 1 फिट से लेकर 3-4 फिट भी हो सकता है यह बनाने वाले के बैलेंस के ऊपर निर्भर करता है , इनकी पाँव की ऊँचाई अगर 1 फिट है तो उनके हैंडल हांथ पकड़ने की ऊँचाई लगभग 4.5फिट होगा इसको बनाने के लिए 2 बांस जिसकी ऊँचाई लगभग 5 फिट व अन्य बांस की 1 फिट की 2 टुकड़ा जिसको बीच से फाड़ना है व फाडे गए टुकड़े को 5 फिट के बांस पर लंबवत कील व रस्सी की सहायता से बांधना है ऊँचाई अपने शक्ति व बैलेंस अनुसार बस तैयार हो गया
गेंड़ी विशेष :-
यह बस्तर क्षेत्र में हरियाली/हरेली के दिन बनाया जाता है व कृषि औजारों के साथ इनकी भी पूजा की जाती है व इसका प्रयोग करना प्रारंभ की जाती थी पहले उत्सव के तौर पर गेंड़ी दौड़ , गेंड़ी नृत्य का आयोजन की जाती थी जो कि वर्तमान में नही किया जाता गेंड़ी को एक प्रकार से आराध्य रूप (संकेत)में भी बनाकर पूजा करते है गेड़ी नृत्य मुख्यतः माड़िया जनजाति के युवागृह में सिखाया जाता है परंतु वर्तमान में केवल बच्चे लोग मनोरंजन के रूप में बनाकर खेलते है व इसका
विसर्जन:-
पोला के एक दिन बाद कर देते इसे बस्तर क्षेत्र में गेंड़ी रवानगी के रूप में विशेष रूप में मनाया जाता है इसके लिए गांव के बच्चों के द्वारा बनाया गया गेंड़ी 1, 2 सेट लेते है व कुछ गेड़ी जिस दिन विसर्जन करते है उसी दिन तुरंत बनाया जाता है व इस रवानगी कार्यक्रम गॉव के सियार या सीमा पर किया जाता है इसका चित्र आगे दिया जा रहा है तांकि आप भी देख और समझ सके इसके पीछे यह मान्यता है कि जब हम गेड़ी बनाकर उसका देव रुप मानकर पूजा हरेली/हरियाली के दिन करते है और उसका प्रयोग करते है चुकी इसको हम बनाये रहते या यूं कहें बुलाये रहते है मेहमान के तौर पर तो जब पोला होता है तो उसके एक दिन बाद उन्हें गांव के सियार/सीमा तक सम्मान छोड़ने जाते है यह अद्भुत मान्यता आज भी अंतागढ़ के आमाबेड़ा परिक्षेत्र मलांजकुडुम के आस पास देखा जा सकता है और हमारे कांकेर ब्लॉक में गेंड़ी को नदी तालाब में बहा देने का रिवाज है मलांजकुडुम के पास गेड़ी रवानगी का
एक फोटो
2 Comments
bahut achha sangrah hai
ReplyDeleteThankyou bro
Deleteअपना विचार रखने के लिए धन्यवाद ! जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी !