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हल्बा शब्द की उत्पत्ति halba shabd ki utpatti

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    हल्बा शब्द की उत्पत्ति कैसे हुआ?

    प्रिय, 

    पाठकों आज हम बात करेंगे हल्बा जनजाति के नामकरण कैसे हल्बा हुआ और क्या-क्या कारण हो सकते है हल्बा होने के पीछे उन सभी कारणों पर प्रकाश डालेंगे साथ ही "हल्बा" नामकरण के पीछे कौन कौन सी मिथक कथाएं प्रचलित है उन सभी मिथक कथाओं पर भी चर्चाये करेंगे,, व कुछ सबूतों के रूप में कुछ पुस्तको का सहारा लेंगे जैसे की आप सभी को ज्ञात होगा सभी जनजातीय या जातीय अपने आप को किसी न किसी ईश्वरी शक्ति से उत्पन्न मानते है तो वैसी ही हल्बा समाज का भी कुछ मिथक लोक कथाये प्रचलित है जो अग्रलिखित है।। 

    पहला मिथक कथा

    कहा जाता है कि पुराने समय मे उड़िया राजा फसल से रक्षा करने के लिए अपने खेतों में काकभगोड़ा लगाया था जिसे देखकर फसल को बर्बाद करने वाले पशु पक्षी मनुष्य समझकर फसल को नुकसान नही पहुचाते थे Tumesh chiram   एक दिन शिव पार्वती पृथ्वी की भ्रमण करते करते इस जगह से गुजरे तो पार्वती शिव से कहा कि देखिए स्वामी ये सभी पुतले कितना जीते जागते लग रहे है,,,, इसमे प्राण प्रतिष्ठा करने की देरी है,,, यह बात सुन शिव प्रसन्न होकर उनमें प्राण डाल दिया फिर वे जीवित हो उठे फिर दोनों पुतले भागते भागते उड़िया राजा के पास गए व उन्हें काम देने की निवेदन किया तब उड़िया राजा ने कहा तुम्हारा पता क्या है कैसे काम दे दूं बिना नाम गाँव के फिर राजा ने कहा जिन्होंने तुम्हे बनाया है उन्हें अपना नाम पूछकर आओ (शिव पार्वती) से नाम पूछकर आने को कहा फिर दोनों पुतले शिव पार्वती के पास जाकर अपने नाम गाँव जानने की इच्छा जाहिर किये तब पार्वती ने कहा जैसे की तुम खेतो के बीच मे रहकर हवा के अनुसार हिल डुल रहे थे तो तुम्हारा नाम हॉलीबाटा है फिर वे दोनों उड़िया राजा के पास गए व अपना नाम गाँव बताकर कार्य करने लगे ,,,,,,,,,, यह मिथक कथा में कितनी सच्चाई है यह तो कहा नही जा सकता परंतु इस कहानी में यह बात स्पष्ट है कि हमारे पूर्वज कृषि से जुड़े हुए थे ।।

    हालीबाटा का अर्थ हिलने डुलने से लगाया जाता है व अन्य अर्थ कृषि सबंधित कार्य करने से है

    हाली बिता का अपभ्रंस है हॉलीबाटा

    जैसे हल्बी में मिट्टी के काम करने वालो को कहते है माटी चो बुता करतो बिता कुमरा ,,, लोहा चो पिटतो बिता लुहार,,, टेड़ा पाटी टेडतो बिता मरार अरु नागर चो जोततो बिता हल्बा(यचो नाव हली बिता बोलसोत) 

     हाली बिता एक हल्बी शब्द है  जिसका अर्थ है कृषक वही कालांतर में हालीबाटा हुआ जिसे उक्त प्रथम मिथक कथा में बहुत ही सटीकता से प्रयोग में लाया गया है और वही आगे चलकर हल्बा में अपभ्रंस हो गया 

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    दूसरा मिथक कथाये

    रूखमणी विवाह के समय कृष्णा और रूखमणी के भाइयों के बीच घमशान युद्ध क्षीण गया उस युद्ध मे बीच बचाव हेतु बलराम ने अपना हल उठाया और उनसे प्रेरित होकर हल्बा भाइयों ने अपना लिय ा जिसे कालांतर में हल्बा के नाम से जाना जाता है ,,,,,क्योकि बलराम का एक अन्य नाम हलधर है जिनसे हल्बा लोग हल प्राप्त कर हल्बा कहलाये यह मान्यता भी कितनी सार्थक है आप सभी तय करे मैं तो केवल इन्हें एक मिथक लोक किवदंती मानता हूं

    तीसरा मान्यता

    हल्बा शब्द की उत्पत्ति हल+बहाना से मिलकर बना है कहने का तात्पर्य यह है कि हल्बा लोग हल से खेत जोतते है व बहाना से चिवड़ा कूटते है अर्थात हल+बहाना 


    चौथा मान्यता

     

    हल्बा शब्द कन्नड़ भाषा के "हलबारु" शब्द से बना है जिसका अर्थ है "कृषि कार्य करने वाला",,,इसका एक अन्य अर्थ है "प्राचीन निवासी" चुकी हल्बा जनजाति मुख्यत: दक्षिण बस्तर क्षेत्र में निवास करते रहे है और यह क्षेत्र कन्नड़ हल्बी भतरी उड़िया भाषी क्षेत्र है तो तेलंगाना का कई क्षेत्र विभाजन से पहले मध्य बरार में आता था तो यह परिभाषा अन्य मिथक लोक कथाओं और मान्यताओ से ज्यादा सार्थक व सटीक लगा

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    पांचवा मेरे अनुसार 

    हल्बा शब्द उत्पत्ति से संबंधित मेरा विचार यह है कि हल्बा समाज का पारंपरिक कार्य चिवड़ा कूटना तथा कृषि कार्य था  पारम्परिक रूप से चिवड़ा कूटने के लिए मुसर और बहाना का प्रयोग किया जाता था मुसर को एक हांथ से पकड़कर कूटाई(उठा पटक ) किया जाता है एक हांथ से बहाना में धान डालने और हिलाने का कार्य किया जाता है तांकि मुसर और बहाना में चिपके न करके साथ ही सभी तरफ एक साथ अच्छे से कुटाई (छिलका निकले) हो सके, साथ ही कुटाई करने वाला स्वयं भी हिलते-डुलता है रहता है क्योकि एक हांथ से मुसर को ऊपर नीचे पटकना पड़ता है एक हांथ से हिलाना पड़ता है तो पूरे शरीर हिलते डुलते रहता है इसी हिलने को हल्बी में हलना कहा जाता है औऱ बहाना को बहाना ही कहा जाता है इसी से हलबहाना हुआ और कालांतर में यह अपभ्रंश होते होते हल्बा हो गया।। यह हलबहाना शब्द ब्रिटिशकालीन गजेटियरों में भी दृष्टिगोचर होते है

    (वैसे मुसर बहाना से धान, कोदो, कुटकी को भी कूटा (छिलाई किया) जाता है) सम्बंधित लोकगीत और लोक कथा कहावते मुहावरे आने वाले समय में जरुर शेयर करूँगा 

    निष्कर्ष:-

    चूंकि आदिवासी संस्कृति को भगवान से या अन्य नामो से जोड़कर देखना एक तरह से सही नही है व ईश्वरी शक्ति के द्वारा प्राण डालने की घटना के कारण यह चमत्कारिक प्रतीत होता है Tumesh chiram   पहला मिथक कथा इसलिए मैं इसे महज एक मिथक कथा मानूंगा व दूसरी मिथक कथा में आदिवासी संस्कृति को पुराणों और महाभारत कथा में जोड़ना चुकी सही नही है इसलिए यह भी महज एक मिथक कथा मात्र है। तीसरी मान्यता का निष्कर्ष:- चूंकि हल एक हिंदी शब्द है और बहाना एक छतीसगढ़ी व हल्बी शब्द है तो यह परिभाषा पूरी तरह यही पर रिजेक्ट हो जाता है।

    चौथा निष्कर्ष चूंकि यह एक सार्थक व किसी भी प्रकार से मिथक कथाओ से नही जुड़ा है व अपने सारगर्भिक शब्दार्थ लिए हुए है इसलिए मैं चौथे नामकरण पद्धति का समर्थन करता हूँ आपका और मेरा विचार सर्वथा भिन्न हो सकता है

    पांचवा मान्यता भी वास्तविक और सही प्रतीत होता है क्योकि हल्बा जनजातीय का पारम्परिक व्यवसाय चिवडा कुटना और कृषि कार्य था और जो मुसर और बहाना है उसी से पूर्व में चिवड़ा कुटा जाता था और चिवड़ा कुटते समय पुरे शरीर हिलता डुलता है इसलिए यह मान्यता भी सार्थक हो सकता है आपके और हमारे विचार ,में कुछ भिन्नता हो सकती है 
     

    सन्दर्भ

    1. ट्राइब कल्चर एंड चेंज

    2.द लाइफ एंड कल्चर ऑफ सहरिया

    3 TheTribes and Castes of the Central Provinces of India vol-3

    4.census of india 1961 m.p

    5.मैजिक एंड डिविजन्स इन द असियेन्ट वर्ड

    6 बस्तर इतिहास एवं संस्कृति

    7.बस्तर भूषण

    // लेखक // कवि // संपादक // प्रकाशक // सामाजिक कार्यकर्ता //

    email:-aaryanchiram@gmail.com

    Contect Nu.7999054095

    CEO & Founder

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    3 Comments

    1. चौथा मान्यता मुझे भी सार्थक एवं सटीक लगा

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    2. किंवदंती भी सही हो सकत हे, लेकिन चौथा सटिक हे,जय हल्बा समाज ,जय आदिवासी 🙏🙏

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    अपना विचार रखने के लिए धन्यवाद ! जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी !

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