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"मुरिया क्रांति के जनक" झाड़ा सिरहा के बारे में muriya kranti ke janak jhada sirha ke bare me

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    Bastar India History.

    झाड़ा सिरहा, झाड़ा मुरिया, jhada sirha, jhada muriya,


     बस्तर ईस्टेट!

    * बस्तर का मुरिया क्रांति!

    * सिरहा सार!

    * लाल पगड़ी! 

    * मुरिया दरबार!

    * 'बस्तर दशहरा उत्सव की अभिन्न अंग'

    * Who Is "Jhada Sirha" 1876 .Ev.'

    * "झाड़ा सिरहा "कौन है।"१८७६ ईस्वी."

    विश्व इतिहास में सबसे लंबे समय तक 75 दिन तक मनाये जाने वाला बस्तर का दशहरा उत्सव। इस उत्सव ने अनेक परंपरा को जन्म दिया है । इसमें प्रमुख परंपरा - बाहर रेनी के दूसरे दिन "सिरहा सार" भवन में आयोजित की जाने वाली "मुरिया दरबार"। इस "मुरिया दरबार" में स्टेट,महाराजा, अंग्रेज पॉलिटिकल एजेंट,स्टेट के दीवान (प्रधानमंत्री) जमीदार,मालगुजार,प्रमुख,अधिकारी तथा पुजारी,सिरहा,प्रजा के प्रतिनिधि ,मुखिया, मांझी, महिला, मेंबररान एवं सभी जाति, समाज वर्ग के लोग उपस्थित होते थे/होते हैं! Tumesh chiram   सभी वर्ग के लोगों को "मुरिया दरबार" में निडर होकर स्टेट के कानून व्यवस्था,अधिकारी/ कर्मचारियों के द्वारा की गई शोषण, लूटपाट, भ्रष्टाचार,बलात्कार,दुर्व्यवहार आदि बातों को खुलकर कहने बोलने का अधिकार होता था। इस दरबार में कही गई बोली गई शिकायतों के लिए बोलने वाले शिकायतकर्ता को विशेष संरक्षण प्राप्त था,और उस पर किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं जा सकती थी। परिवर्तन के साथ आज भी यह व्यवस्था यथावत है।

    * आइए इस प्रजातांत्रिक - शासन - प्रणाली के देन की इतिहास को संक्षिप्त में जाने..

    १.) "1876.ईस्वी. मुरिया क्रांति" के महानायक

    1853 ईस्वी.मैं बस्तर पर अंग्रेजों का अधिकार हुआ।अंग्रेजों का लक्ष्य आदिवासी समुदाय को समाप्त करके उसे गुलाम बनाए रखना था।आदिवासियों ने देखा कि जमीदारों तथा अंग्रेज शासकों का शोषण एवं अत्याचार बढ़ता ही जा रहा है,तब उन्होंने शोषण एवं अत्याचार के विरुद्ध विद्रोह करने का फैसला किया। क्रांतिकारियों ने"ग्राम बड़े आरापुर"में बैठक लिए।बैठक में स्टेट के गांव के सभी वर्ग के लोग शामिल हुए। इस बैठक में "आगरवारा परगना"  के ग्राम आरापुर "के  "झाड़ा सिरहा एवं (पुजारी)"नाम के व्यक्ति को जो देव सिरहा भी था, उसे क्रांतिकारियों ने अपना नेता चुना। "झाड़ा सिरहा" चमत्कार शक्तियों से युक्त योद्धा था। वह "परगना मांझी एवं सिरहा"भी था। उसने आदिवासी विद्रोह को राजनीतिक एवं धार्मिक जामा पहनाया ।उसने आम के वृक्ष की डगाली को प्रतीक रूप में चुनकर संदेश एक गांव से दूसरे गांव क्षेत्र में भेजा साथ में लाल मिर्च एवं तीर धनुष भी भेजा ताकि सभी लोग शोषण एवं अत्याचार के विरुद्ध एक हो इस बैठक में 3000 लोग शामिल। हुए अंग्रेजों को जानकारी मिलने पर बस्तर महाराजा भैरव देव के नेतृत्व में क्रांतिकारियों को दबाने के लिए सैनिक भेजे क्रांतिकारियों ने अंग्रेज एवं दीवान द्वारा की जा रही शोषण एवं अत्याचार से महाराजा को अवगत कराया। क्रांतिकारियों ने दीवान को सौंपने की मांग किया "ग्राम आरापुर"में सैनिकों तथा क्रांतिकारियों के मध्य घमासान युद्ध हुआ। जिसमें "6 मुरिया क्रांतिकारी शहीद हुए। यह घटित हुआ 1874-75 ईस्वी. में। 

    क्रांतिकारी" मुरिया आदिवासी आरापुर से- जगदलपुर 8:00 बजे रात्रि पहुंचे। "झाड़ा सिरहा " के नेतृत्व में 3000 मुरिया आदिवासी जमा हुए । बाद में इसकी संख्या 20,000 से अधिक थी। क्रांतिकारियों ने किला का 4 माह तक घेरा डाला। राजा ने किले के चारों और 500 सुरक्षाकर्मियों को तैनात कर के तोप लगा दिए । क्रांतिकारियों को दबाने के लिए रायपुर से 3 रेजीमेंट,जयपुर उड़ीसा से 500,तथा विशाखापट्टनम, सिरोंचा से 450 सैनिक आए । मार्च 1876 ईस्वी. तक 5000 से अधिक सैनिक आए। इस प्रकार शोषण एवं अत्याचार के विरुद्ध आदिवासियों ने आवाज बुलंद किया। जिसमें अंग्रेजों द्वारा बस्तर महाराजा को सामने लाकर क्रूरता पूर्वक दबा दी गई।

    1876 ईस्वी. में हुई क्रांति का " नायक आरापुर" निवासी झाड़ा सिरहा (मांझी एवं पुजारी) "मुरिया समाज "का वीर सैनिक था। जिसके नेतृत्व में '"मुरिया क्रांति" हुआ। शायद इसकी मौत अंग्रेज फौज द्वारा हुई । यह भी संभव है कि "झाड़ा सिरहा "पुजारी "का इंद्रावती के तट घाटी में वध कर दिया हो।

    2.) "सिरसा सार " का निर्माण:-

    जगदलपुर पहुंचकर झाड़ा में क्रांतिकारियों को रहने के लिए झोपड़ी बनाया। वह "देव सिरहा " था । तथा सुबह-शाम पूजा अर्चना करने के बाद देव बैठता था । तथा दिन प्रतिदिन की कार्रवाई का समीक्षा करता था । इस पवित्र स्थान को " सिरहा सार"अर्थात । " सिरहा चो सार "  सिरहा चो खोली " कहा जाने लगा । इसी शहर में रथ बनाने वाले ठहरते हैं तथा" जोगी" बिठाई जाती है। एवं "मुरिया दरबार "का आयोजन होता है । वर्तमान में "सिरहा सार " टाउन हाल" के नाम से जाना जाता है । ऐतिहासिक परंपरा को बनाए रखने के लिए" सिरहा सार "भवन को "झाड़ा सिरहा" स्मृति " सिरहा सार"भवन के रूप में चिन्हित किया जाना चाहिए।

    3.) लाल पगड़ी क्रांति के प्रतीक रूप में स्वीकार।

    1874-75 ईस्वी.की क्रांति को गति देने के लिए 2 मार्च 1876 ईस्वी. को इस ऐतिहासिक घटना को घटित करने वाला एक गुप्त बैठक" झाड़ा सिरहा "की अध्यक्षता में संपन्न हुई ।इस बैठक में भावी रणनीति तैयार की गई । क्रांतिकारी संघर्ष के इतिहास में इसे" लाल दिवस" कहा जाता है "लाल पगड़ी " इसका प्रतीक चिन्ह था । आज भी दशहरा उत्सव में मांझी मुखिया को "लाल पगड़ी "से सम्मानित किया जाता है! 

    4.) "मुरिया दरबार "का सूत्रपात प्रारंभ:-

    "ग्राम बड़े आरापुर" के "मुरिया विद्रोह" को ब्रिटिश हुकूमत ने राजा से लेकर उसके छोटे से छोटे कर्मचारियों को 'इस विद्रोह के लिए जिम्मेदार ठहराया। इसके समाधान के लिए ब्रिटिश डिप्टी कमिश्नर श्री मैक जॉर्ज को बस्तर भेजा गया। 8 मार्च 1876 ईस्वी.को उन्होंने जगदलपुर में पहली बार "सिरहा सार"में एक "मुरिया दरबार "की व्यवस्था की'जिसमें ब्रिटिश डिप्टी कमिश्नर मेक जॉर्ज ने राजा एवं उनके अधिकारी तथा क्रांतिकारियों को संबोधित किया। उन्होंने आदिवासियों को समझाया, कि भविष्य में भी प्रकार की शिकायत हो तो कानून को हाथ में ना लें। अपनी शिकायत दर्ज कराएं। मेक जार्ज ने राजा तथा क्रांतिकारी आदिवासियों को आपस में मेल मिलाप कराया और राजा से निवेदन किया की आदिवासियों द्वारा की गई शिकायतों को दूर करें । इसी में स्टेट की भलाई है।

    इस प्रकार 1876 ईस्वी.से बस्तर में "सिरहा सार" भवन में "मुरिया दरबार" आयोजन की परंपरा है। "मुरिया दरबार" में भाग लेने वाले "मांझी मुखियाओं"को "लाल पगड़ी "से सम्मानित किया जाता है। जो अब बस्तर दशहरा उत्सव का अभिन्न अंग बन चुका है। अतः इस ऐतिहासिक "मुरिया दरबार"को बनाए रखना हम सब का कर्तव्य है।

    5.)1876. ईस्वी! के मुरिया क्रांति का कारण:-

    सन 1853. ईस्वी! मैं बस्तर पर अंग्रेजों का अधिकार हुआ।अंग्रेजों का लक्ष्य आदिवासी समुदाय को समाप्त करके उन्हें गुलाम बनाए रखना था । उन्होंने यहां सामंतवादी,बीज बोए । ताकि अपना "स्वामी भक्त" तैयार कर सकें। इस प्रकार उन्होंने आदिवासियों की आर्थिक, समाजिक ,राजनैतिक ,धार्मिक, न्यायिक, शैक्षणिक ,शोषण ,के चक्र प्रारंभ किए। संक्षिप्त में विद्रोह के निम्न कारण थे।(1) शासकीय मशीनरी तथा  ठेकेदारों की मिलीभगत से आदिवासी जनता का शोषण चक्र प्रारंभ हुआ!(2) आदिवासियों की भूमि को बड़े किसानों ठेकेदारों तथा सरकार के द्वारा स्वामित्व में हरण किया जाने लगा।(3) बेगारी (बंधुआ मजदूरी) प्रथा का चक्र चला! Tumesh chiram   (5) आदिवासी मांझी मुखियो के अधिकारों में कमी की जाने।

     लगी।

    (6) 1876. ईस्वी! मुरिया क्रांति से प्रशासनिक सुधार

    मुरिया क्रांति के कारण संक्षिप्त में प्रशासनिक सुधार निम्नानुसार की गई।  (1) 1877-78 मैं एक नया 10 वर्षीय भू- राजस्व बंदोबस्त स्वीकार की गई। जिसमें भूमि की लगान नगदी एवं पैदावार दोनों में उगाही जा सकती थी। (2) आदिवासियों को भूमि का मालिकाना हक मिला।(3) सिंचाई के लिए तालाब खुदाए गए।, सड़क बनवाया गया तथा फलदार वृक्ष लगाए गए।(4) शिक्षा के लिए स्कूल, पाठशाला खुलवाए गए।(5) "झाड़ा सिरहा "की स्मृति में " सिरहा सार" का निर्माण किया गया।(6) "मुरिया दरबार" का सूत्रपात हुआ जिसमें बिना भय के शासन के पक्ष विपक्ष में बोलने का अधिकार प्राप्त हुआ

    !! दंतेश्वरी माता की जय!!


    संदर्भ सूची:-

    फेसबुक:- मुरिया समाज बस्तर इस्टेट

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