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halbi boli हलबी बोली के बारे में

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    हल्बी बोली(भाषा)

    हल्बी बोली (भाषा) के बारे में जानने से पहले हमे विश्व की भाषा और भाषा विज्ञान की कुछ जानकारियां होनी बहुत ही जरुरी है| भाषा वैज्ञानिको ने अपने सुविधा के लिए विश्व के सभी भाषाओ को कई प्रकार से विभाजित किया है उन्ही में से एक प्रकार है भौगोलिक रूप जिसके बारे में आज हम बात करने वाले है Tumesh chiram   भाषाओ को भौगोलिक रूप से बांटा गया है जो अग्रलिखित है|

    दुनिया भर में बोली जाने वाली क़रीब सात हज़ार भाषाओं को कम से कम दस परिवारों 

    में विभाजित किया जाता है जिनमें से प्रमुख परिवारों का ज़िक्र नीचे है

    1.       भारत-यूरोपीय भाषा-परिवार (भारोपीय भाषा परिवार)

    (Indo-European family)

    2.       चीनी-तिब्बती भाषा-परिवार

    (The Sino - Tibetan Family)

    3.       सामी-हामी भाषा-परिवार या अफ़्रीकी-एशियाई भाषा-परिवार

    (The Afro - Asiatic family or Semito-Hamitic family)

    4.       द्रविड़ भाषा-परिवार

    (The Dravidian Family)

    5.        Altaic अलैटिक

    6.       niger-congo नाइजर-कांगो भाषाएँ

    7.       astronesian ऑस्ट्रोनेशियन

    8.       austroasiatic  आस्ट्रोएशियाटिक भाषाएँ

    9.       tai-kadai ताई-कडाई

    10.   other अन्य

    हल्बी भाषा भी इन्ही दस भाषाओ के प्रकार मे से एक भाषा परिवार का सदस्य है हल्बी भारत-यूरोपीय भाषा-परिवार (भारोपीय भाषा परिवार)

    (Indo-European family) के अंतर्गत इनके साखाओ के उप-साखाओ में आता है इंडो यूरोपियन को भी निम्नांकित 15 भागो में बांटा गया है

    (Indo-European family)

    1.   albanian

    2.   anatolian

    3.   armenic

    4.   balto-salvic

    5.   celtic

    6.   dacian

    7.   germanic

    8.   graeco-phrygian

    9.   indo-iranian

    10.               itlic

    11.               lusitanian

    12.               messapic

    13.               thracian

    14.              tokharian

    15.               venetic

    इन्ही 15 मे से एक साखा indo-iranian के 09 उप शाखाओ के उप 01 शाखाओ में हल्बी आता है

    (indo-iranian family)

    1.   indo-aryan

    2.   dhivehi-sinhala

    3.   indo-aryan central zone

    4.   indo-aryan eastern zone

    5.     indo-aryan northern zone

    6.     indo-aryan northeastern zone

    7.     indo-aryan southern zone

    8.     sanskrit

    9.     unclassified indo-aryan

    इन्ही 09 मे से एक साखा indo-aryan eastern zone के 02 उप शाखाओ के उप 01 शाखाओ में हल्बी आता है

    (indo-aryan eastern zone)

    1.   halbic

    2.   oriya-gauda-kamarupa

    इन्ही 02 मे से एक साखा  halbic के 05  उप शाखाओ के उप 01 शाखाओ में हल्बी आता है

    (halbic)

    1.   bhatri

    2.   bhunjiya

    3.   halbi

    4.   kamar

    5.   nahari

    इन्ही 05 मे से एक साखा  halbi हल्बी है हल्बी का भी 9 प्रकार है

       (halbi)

    1.   adkuri

    2.   bastari

    3.   bhujiya

    4.   chandari

    5.   gachikolo

    6.   kawari

    7.   mehari

    8.   muri

    9.  sundi

     

    अगर हम सीधा सीधा सम्बन्ध देखे तो कुछ इस प्रकार होगा

    अ)   (Indo-European family)

    ब) (indo-iranian family)

                ) (indo-aryan eastern zone)

                   द) (halbic)

                      इ) (halbi)

    अगर हम आसान शब्दों में कहे तो मुख्य १० भाषाओ में से भारतीय यूरोपीय भाषा परिवार के अंतर्गत भारतीय ईरानियन के शाखा के भारतीय हिन्द साखा जिसे इंग्लिश में इंडो आर्यन भाषा समूह कहा जाता है के अंतर्गत पूर्वी इंडो आर्यन ईस्टर्न के अंतर्गत हल्बी बोली आती है जिन्हें हम हिंदी में भारोपीय हिन्द पूर्वी भाषा परिवार का सदस्य कहते है| आप इंडो आर्यन मतलब आर्यों की बोली से निकली होगी ऐसा सोच रहे थे होंगे तो गलत है आर्यों की बोली संस्कृत है जो इंडो ईरानियन फैमली का एक सदस्य है| चूँकि संस्कृत और हल्बी एक ही भाषा फैमली के सदस्य है जिसके चलते कई सारी समानताये आपको दृष्टिगोचर हो सकती है

    अब जानते है हल्बी के बारे में

    हमारे मातृ बोली हल्बी भाषा

    हल्बी बोली हल्बा जनजाति की बोली है अगर हम इसका इतिहास टटोलते है तो पता चलता है की इनका इतिहास बहुत पुराना है जनगणना रिपोर्ट 1931 के अनुसार हल्बी बोलने वालो की संख्या लगभग 1,74,681 है वा जनगणना रिपोर्ट 1938 के अनुसार हल्बी बोलने वालो की संख्या लगभग 1,71,293 है वा अनुसन्धान 2000 के अनुसार इनको बोलने और समझने वालो की संख्या लगभग 5,00000 थी तथा 2001 के अनुसार इसको जानने और समझने वालो की संख्या करीब 7,00000 है वा जनगणना रिपोर्ट 2011 के अनुसार हल्बी बोलने वालो की संख्या लगभग 7,66,297 है वर्तमान में हल्बी की वर्णमाला(लिपि) निर्माण की जा चुकी है हल्बी की कुछ मुख्य विशेषता निम्नांकित है हल्बी में केवल 10 स्वर है वा 28 व्यंजन है| हल्बी में कृ, औ, अए की मात्रा भी नही होता हल्बी में ग्राम लिखते समय जो गा में मात्रा लगाया जाता है वह हल्बी में नही होता विसर्ग बिंदु(:) गाँव वाली अम की बिंदु नही होती है जैसे हिंदी में बारहखड़ी होती है वैसी ही हल्बी में आठखड़ी होती है

    स्तर में दो वृहद रूप से पहचानी जाने वाली संस्कृतियाँ हैं गोंड़ी तथा हलबी भतरी परिवेशों में। भूत पूर्व बस्तर रियासत ने इन दोनों संस्कृतियों को भाषाई एकता के सूत्र में बाँधा था। एक लम्बे समय तक हल्बी बस्तर रियासत की राज भाषा रही किंतु इसका कारण किसी संस्कृति विशेष को महत्व दिया जाना अथवा जिसी जनजाति विशेष का वर्चस्व दिखाना नहीं था अपितु यह इस लिये किया गया था चूंकि रियासत में अवस्थित सभी जनजातियों की संपर्क भाषा तब हलबी ही थी। लाला जगदलपुरी की पुस्तक बस्तर. लोक कलाए संस्कृति प्रसंगश् के पृष्ठ.17 मे उल्लेख है कि दृ श्बस्तर संभाग की कोंडागाँव, नारायनपुर, बीजापुर, जगदलपुर और कोंटा तहसीलों में तथा दंतेवाडा में दण्डामि माडिया अबूझमाडियाए घोटुल मुरिया, परजा, धुरवा और दोरला जनजातियाँ आबाद मिलती हैं और इन गोंड जनजातियों के बीच द्रविड मूल की गोंडी बोलियाँ प्रचलित है। गोंडी बोलियों में परस्पर भाषिक विभिन्नतायें विद्यमान हैं। इसी लिये गोंड जनजाति के लोग अपनी गोंडी बोली के माध्यम से परस्पर संपर्क साध नहीं पाते यदि उनके बीच हलबी बोली न होती। भाषिक विभिन्नता के रहते हुए भी उनके बीच परस्पर आंतरिक सद्भावनाएं स्थापित मिलती है और इसका मूल कारण है हलबी। अपनी इसी उदात्त प्रवृत्ति के कारण ही हलबी भूतपूर्व बस्तर रियासत काल में बस्तर राज्य की राज भाषा के रूप में प्रतिष्ठित रही थी। Tumesh chiram   और इसी कारण आज भी बस्तर संभाग में हल्बी एक संपर्क बोली के रूप में लोकप्रिय बनी हुई है।डॉ हीरा लाल शुक्ल की पुस्तक बस्तर का मुक्तिसंग्राम के पृष्ठ.6 में उल्लेख मिलता है कि वर्तमान में निम्नांकित मुख्य जातियाँ बस्तर के भूभागों में रहती हैं 1 ब्रामन, 2 धाकड, 3 हलबा,4 पनारा 5 कलार 6 राउत, 7 केवँट, 8 ढींवर 9 कुड़्क 10 कुंभार 11, धोबी 12 मुण्डा 13जोगी 14 सौंराए 15 खाती 16 लोहोरा 17 मुरिया 18 पाड़ 19गदबा 20घसेया 21माहरा22 मिरगान 23परजा 24 धुरवा 25 भतरा 26सुण्डी 27माडिया 28झेडिया 29दोरला तथा 30 गोंड। उपर्युक्त मुख्य जातियों में 1 से 22 तक की जातियों की हलबी मातृ बोली है और शेष जातियों की हलबी मध्यवर्ती बोली है। कुछ जातियों की अपनी निजी बोलियाँ भी हैं जैसे क्रम 23 और 24 में दी गयी जातियों की बोली है परजी जबकि 25 और 26 की बोली है भतरी। क्रम 27 से 30 तककी बोलियाँ हैं माडी तथा गोंडी।उपरोक्त उद्धरणों से यह बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि आज भी हलबी बोली बस्तर की एक मान्य और कोंटा से लेकर कांकेर तक बोली. समझी जाने वाली भाषा है। हलबी बस्तर के साहित्य की भी भाषा है और सौभाग्य से इसका अपना व्याकरण और शब्दकोश भी है

     

     1224-1324 ई. का विकास हुआ जिसमें स्थानीयता का तेजी से सम्मिश्रण भी होने लगा। एक ऐसी भाषा में संस्कृत बदलने लगी जिसके बहुत निकट आज की हलबी प्रतीत होती है। इस कारण को प्रमुखता से पडना होगा कि क्यों हलबी सभी जनजातियों के बीच बोली जाती है जाहे वे गोंड हो या हलबा-हलबी। यह प्रवीर ही थे जिन्होंने सबसे पहले आदिवासी आईसोलेशन के खतरे को भांपा और इसे रोकने के लिये एक एक्टिविस्ट की तरह प्रयास भी किये उन्होंने अजेर हल्बी बोली में अजेर का अर्थ है उजाला नाम का पत्र निकाला जो हिन्दी भाषा तथा आदिवासी बोलियों में संयुक्त रूप से प्रकाशित होता था। लाला जगदलपुरी नें भी बाद में इस बात की अहमियत को समझते हुए हिन्दी भाषा व जनजाति बोलियों में संयुक्त रूप से प्रकाशित होने वाला पत्र बस्तरिया प्रारंभ किया था जिनमें वे देश के ख्यातिनाम साहित्यकारों की रचनाओं का जनजातीय बोलियों में अनुवाद प्रस्तुत कर एक पुल बनाने का कार्य कर रहे थे। शायद यही सर्वश्रेष्ठ तरीका है समन्वय का क्योंकि जब आप बस्तर के जनजातीय क्षेत्रों की बात करते हैं तो केवल गोंडी कह कर स्पष्ट विभाजन नहीं किया जा सकता लेकिन इस सवाल पर उनका आईसोलेशन अवश्य किया जा सकता है चूंकि भाषा.बोली के सौहार्द वाले इस जनजाति क्षेत्र में तीस से अधिक बोलियाँ अवस्थित हैं। हलबी बोली नें सभी जनजातियों को एक सूत्र में पिरोने का कार्य नागयुगीन बस्तर से ही आरंभ कर दिया था यही कारण है कि यहाँ दो गोंड जनजातियाँ आपस में बात करते हुए अपनी अपनी बोली में जब गूंगी हो जाती हैं तो हल्बी उनकी ज़ुबान बनती रही है।

    भाषा विदो का भाषा पर किये गये शोध में यह स्पष्ट देखने को मिलता हैं। बस्तर क्षेत्र में जो भी भाषा बोली जाती हैं। उन सभी में मुख्य 3 ही भाषा हैं। आर्यन भाषा परिवार, द्रविड़ भाषा परिवार और मुंण्डा भाषा परिवार इन्ही तीनो भाषा से बाकि बोलियो का विकास या उत्भव हुआ हैं। तथा उन बोलियों का भी अपना अलग-अलग उपबोलियां दृश्टिगोचर होता हैं। तथा सभी बोली अपने आप में एक विषेशताए लियें हुए हैं। तथा सभी बोली कई मामलों में एक दुसरे से काफी भिन्नता हैं। तथा कुछ-कुछ समानता को भी परिलक्षित करते हैं। जिस भाषा से जो बोलियां उत्पन्न हुई हैं। उन बोलियों में बहुत कुछ समानताएं परिलक्षित होता हैं। तथा अन्य भाषा से उत्पन्न बोलीयों से कोशो दुर हो जाते हैं। वे आपस में काफी दुर होने के साथ ही साथ कुछ समानता अवस्य दिखाई पडता हैं। भाषा और उससे उत्पन्न बोलियों तथा उपबोलियों का एक क्रम अग्रलिखित प्रस्तुत है।

    जैसा कि ऊपर देखा जा रहा हैं। कि तीन मुख्य भाषा है। तथा उन भाषाओं को कई बोलियां हैं। और कुछ बोलियां जो अपने आप में समृध्द हैं। एैसे कुछ बोलियों के कई उपबोलियां भी दिखाई पडता हैं। उसी में सें एक बोली हैं हल्बी, हल्बी काफी समृध्द बोली माना गया हैं। तथा हल्बी बोली का उपबोलियां मिरगानी अंदकुरी घसिया परघी पंकी को कुल 9 माना गया हैं। हल्बी बोली और उनके जो 9 उप बोलियां माना गया हैं। उन 9 उपबोलियों में काफी समानता हैं साथ ही साथ भतरी के उपबोलियों रूप में भी यें पांचों बोलियां सामिल होता हैं। आप लोगो को 1 बात बताना चाहूँगा कि हल्बी और भतरी बोली में इतना समानता हैं। की कभी कभी आप खुद को मालुम नही पडेगा कि आप हल्बी में बात कर रहें हैं। या भतरी में, मेंरे कहने का ये मतलब नही हैं। कि उन में असमानता नही हैं। असमानता हैं। लेकिन नही के बराबर और कुछ कुछ जगह काफी असमानता भी हैं। जैसेः-

    1..छत्तीसगढी (ले बता तो)

    हल्बी(आले सांग नूं)

    भतरी(आले सांग नूं)

    2..हिन्दी(क्या को खाएगा?)

    छत्तीसगढी(का ला खाबे)

    हल्बी(काय के खासे)

    भतरी(काय के खायबिस)

    आदि शब्दों में कुछ समानता तथा कुछ असमानता प्रतीत होते हैं। लेकिन ज्यादा असमानता नही पाया जाता ।

    लाला जगदलपुरिया के अनुसार बस्तर क्षेत्र में हल्बा जनजाति द्वारा बोली जाने वाली हल्बी बोली के प्रकार और उनकी उपबोलियां अग्रलिखित हैं।

     हल्बा जनजाति की बोली को हल्बी कहते हैं। छत्तीसगढ में निवास करने वाले हल्बा समाज के लोग वहाँ छत्तीसगढी ही बोलते हैं। बालाघाट और छिंदवाडा जिलों के हल्बों की बोली बुंदेलखंडी और मराठी से प्रभावित हैं। बस्तरिया हल्बी के संस्कार अवधी , बघेली, और छत्तीसगढी से सामंजस्य स्थापित करते हैं।दरअसल बस्तरिया, हल्बी पूर्वी हिन्दी की एक मिश्रित बोली हैं। हल्बा जनजाति के लोग कृषि कार्य करते है, और राजाओं की सेनाओं में सैनिक कार्य में जुडे थे।लगता है। कि बस्तर अंचल में स्थापित हल्बा जनजाति के लोग समय समय पर अवधी बघेली छत्तीसगढी और उडिया क्षेत्रों में अधिक रहे बसे होगें। बस्तर में बस्तरिया हल्बी की उपबोलियां प्रचलित हैं। जैसे भतरी, कुनबुचिया, मिरगानी, चंडारी, घसिया, पनारी, और पंडई। बस्तरी हल्बी अपने अंचल में संम्पर्क बोली(लिग्वा फ्रैंका)के रूप में प्रतिष्टित हैं। पहले यह बस्तर रियासत की राज भाषा रही थी ग्रिगसन, हाईड और बेट्टी आदि अंग्रेज दीवान इसमें दिलचस्पी रखते थे। और समय-समय पर वे हल्बी में आवश्यकतानुसार वक्तव्य भी देते थें। हल्बी लोक - साहित्य तो संपन्न हैं। ही, साथ-साथ उसका लिखित साहित्य भी संभावना पूर्ण होता दिखाई दे रहा हैं। Tumesh chiram   बस्तर संभाग हल्बी साहित्य परिशद् इसके लिए सतत् प्रयत्नशील हैं। बस्तर के हल्बी लोक जीवन में जगार, लेंजा, छेरता, मारीरोसोना, तारा, और खेल गीत, उनकी अपनी आकर्शक लोक धुने तथा विभिन्न लोक-नृत्य प्रचलित हैं। बस्तर अंचल के कुल 15,124 वर्गमील क्षेत्र(मध्य बस्तर)को हम हल्बी भाषा क्षेत्र के रूप में पाते हैं।

    हल्बा जनजाति में युगानुरूप सामाजिक चेतना का प्रादुर्भाव हुआ हैं। अब हल्बा जनजाति के लोग संगठनो में और अधिक रूचि लेने लगें हैं। उनके रहन सहन खान पान और वेषभुषा  में परिवर्तन आने लगा हैं। हल्बा जनजाति के लोग समय-समय पर इधर-उधर जातीय सम्मेलनों में मिलकर बैठकर अपनी विभिन्न समस्याओं का समाधान तलाशते दिखाई पडते हैं। कुछ जानकारी छुट गया हो तो क्षमा करें

                                                           आपका अपना

                                                           आर्यन चिराम

    सन्दर्भ ग्रन्थ

    विकिपीडिया

    https://glottolog.org/

    https://wikimedia.org/wikipedia/

    http://www.elinguistics.net

    जनगणना रिपोर्ट 2011

    जनगणना रिपोर्ट 1931

    हल्बी-भाषा-बोध (ठा.पुरन सिंह)

    हल्बी पहाडा भाग-1 (आर्यन चिराम)

     

    aaryan ji

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