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घाट पावनी प्रथा // ghat pawni prtha

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प्रिय पाठकों 
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हम आज जिस विषय मे चर्चा करने वाले है उस विषय का नाम आपने पहले ही जान चुके है । घाट पावनी यह प्रथा बस्तर में पहले प्रचलित था परंतु समय के साथ बंद हो गया, मैं यह एक बात यह बताने वाला हूँ कि पहले से ही हल्बा जनजाति समाज का स्थिति कितनी सुदृण था हल्बा समाज छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख जनजाति समाज है जिनका स्थिति राजाओं के जमाने से ही कांफी सुसभ्य व सुदृण है व बस्तर क्षेत्र में अन्य जनजाति व जातीय समाज के मध्य एक बड़े भाई की पदवी धारण किये हुए है सभी जनजातियों से इनका संबंध बहुत ही मैत्रीयपूर्ण है व सभी हल्बा समाज के लोगो के साथ पारिवारिक सम्बंध रखते है ठाकुर केदारनाथ ने 1908 में अपने पुस्तक बस्तर भूषण में इस बात का जिक्र भी किया हुआ है कि हल्बा समाज उस समय का सबसे सभ्य व सुसंस्कृतिक समाज है इसी कड़ी में हम बात करने वाले है उस समय के प्रथा घाट पावनी के बारे में घाट पावनी जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि किनारा लगना पहले जब किसी महिला की पति की मृत्यु हो जाता था तो उस महिला को बाजार में बेचा जाता था तथा उनसे जो आय प्राप्त होता था उन्हें राज कोष में जमा किया जाता थ|हल्बा समाज इस प्रथा से मुक्त था क्योंकि उस समय हल्बा जनजाति की स्थिति कांफी मजबूत थी Tumesh chiram   क्योकि हल्बा समाज के लोग उस समय मोकासादर हुआ करते थे उस समय जो गांव का राजस्व वसूली करता था उसे मोकासादार कहा जाता था और हल्बा जनजाति घाट पावनी प्रथा से मुक्त तो था ही साथ ही अन्य कई सुविधाएं भी प्राप्त थी हल्बा जनजाति को राजस्व कर से भी छूट था साथ ही मुख्य पुजारी का भी कार्य केवल हल्बा जनजाति के भाई करते थे साथ ही राज परिवार का अंगरक्षक या आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा भी हल्बा जनजाति के हांथो में था क्योकि हल्बा सेनापति के एक इशारे से हजारों आदिवासी मारने मरने को सदैव तत्पर रहते थे जिसके कारण हल्बा समाज को उस समय एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था |जिसके कारण हल्बा जनजाति के भाई कई महत्वपूर्ण प्रथाओं को बंद करवाने में अपना पक्ष रखे फलतः सन 1898 में इस घाट पावनी जैसे कुप्रथा को बंद करवाने महत्वपूर्ण भूमिका अदा किए ....धन्य थे वे लोग जो उस समय राज परिवार के इतने विश्वासपात्र रहे व राजाओं के हर आज्ञा का पालन अपने प्राण दे कर चुकाए ....धन्य है वे लोग जो अंतिम क्षण तक  राज भक्ति की लाज रखे व धन्य है मेरा समाज जो आज भी हमे ईमानदारी की पाठ पढ़ाने के लिए एक प्रेरणार्दर्शक के रूप में हमे प्रेरणा दे रहा है मैं ऐसे समाज मे जन्म लेकर बहुत ही गर्वान्वित महसूस करता हूँ ....जय हल्बा जय माँ दन्तेश्वरी जय हो हल्बा विरो मैं आप सभी के बलिदानी को बारंबार प्रणाम करता हूँ 
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आपका अपना आर्यन चिराम

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