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सुखदेव पातर (हल्बा) की जीवनी-2 // sukhdev patar halba jiwani-2

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प्रिय पाठकों इससे पहले भी हमने हमारे समाज के गौरव व हमारे स्वतंत्रता सेनानी सुखदेव पातर जी के बारे में संक्षिप्त जानकारी ले चुके है फिर भी आज हम उनके ऊपर की गई कानूनी कार्यवाही व कुछ ऐतिहासिक दस्तावेजो के बारे में इस भाग में जानेंगे तो आइए शुरू करते है आज का चर्चा 
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"ग्राम भेलवापानी के सुखदेव पातर हल्बा आजादी के लड़ाई में इंदरू केंवट और कंगलू कुम्हार के साथ कदम से कदम मिलकार लड़ाई लड़े थे। विडंबना है कि इंदरू केंवट और कंगलू को सेनानी होने का दर्जा तो मिल गया, लेकिन सुखदेव पातर को सेनानी का दर्जा अब तक नहीं मिल पाया। जबकि साक्ष्य प्रमाण सभी मिले हैं। सुखदेव पातर का परिवार हर साल 9 जनवरी को शहादत दिवस मनाता है। परिवार के ढालसिंह पात्र, कन्हैया पात्र ने बताया कि इसके लिए लगातार प्रयास कर रहे है, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली है। अब सरकार बदल गई है, तो उम्मीद जागी है कि अब कुछ हो सकता है। पिछले वर्ष विधायक मनोज मंडावी ने भी भरोसा दिलाया था कि हमारी सरकार आएगी तो इस पर जरूर पहल होगी। पुराने रिकार्ड बताते हैं कि 1920 से ही इस क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध सत्याग्रह, जुलूस, प्रदर्शन, चरखा झंडे का प्रचार आदि शुरू हो चुका था। इंदरू केंवट, सुखदेव उर्फ पातर हल्बा तथा कंगलू कुम्हार ने महात्मा गांधी के नारों के साथ क्षेत्र में जागरूकता पैदा कर दी थी। भानुप्रतापपुर के तहसीलदार द्वारा इन क्रांतिकारियों के बारे में ठोस सबूत कार्यालय तहसीलदार विस्तृत रिपोर्ट तथा सिफारिस सहित पातर हल्बा तथा कंगलू कुम्हार को स्वतंत्रता सेनानी घोषित करने को प्रेषित किया गया था, जो अपूर्ण था। इनके बारे में जांच करने पर जानकारी के अनुसार इंदरू केवट, कंगलू कुम्हार के साथी थे। 1932 में गांधी के अनुयायी हो गए थे तथा देश को आजाद कराने इनका महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। इनके राजनीतिक गतिविधियों को जानने, सुनने, एवं देखने वालों में से कुछ लोग आज भी जीवित हैं। अब इनके रिकार्ड भी ब्रिटिश समय के थाना रिकार्ड में से ढ़ूंढ कर सामने लाये गये हैं। भानुप्रतापपुर के तहसीलदार द्वारा इन क्रांतिकारियों के बारे में विस्तृत रिपोर्ट तथा सिफारिश प्रस्तुत है, तहसीलदार की विस्तृत रिपोर्ट तथा सिफारिश सहित पातर हल्बा तथा कंगलू कुम्हार के बारे में ठोस सबूत... कार्यालय तहसीलदार भानुप्रतापपुर जिला उत्तर बस्तर कांकेर (छ.ग.) :ज्ञापन: क्रमांक/ /रीडर/तह.2006,भानुप्रतापपुर, दिनांक 25.07.06 प्रति, अनुविभागीय अधिकारी,(राजस्व) भानुप्रतापपुर विषय:- स्व.सुखदेव पातर हल्बा को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित करने संबंधी। संदर्भ:- 1.विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी सामान्य प्रशासन विभाग मंत्रालय रायपुर का पत्र क्रमांक/136/02/वीआईपी/1-7-06,दिनांक 2.3.06 2. अधीक्षक केन्द्रीय जेल रायपुर का पत्र क्रमांक/1399/वारंट/06,दिनांक 13.04.06 संदर्भित विषयांतर्गत लेख है कि पूर्व में दिनांक 20.3.06 को इस कार्यालय द्वारा स्व.सुखदेव पातर हल्बा निवासी भेलवापानी को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित किये जाने हेतु जाँच प्रतिवेदन नायब तहसीलदार दुर्गूकोंदल द्वारा प्रेषित किया गया था, जो अपूर्ण था। पुनः तहसीलदार भानुप्रतापपुर द्वारा जाँच किया जाकर प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जा रहा है। व्ही.सी.एन.बी ग्राम भेलवापानी के अवलोकन से पता चलता है कि स्व.सुखदेव पातर एवं कंगलू कुम्हार को भारत रक्षा कानून के तहत दिनांक 17.4.1943 को 25 रूपये का जुर्माना एवं अदम अदायगी 4 माह की सख्त कैद की सजा हुई थी। अतः स्व.सुखदेव उर्फ पातर हल्बा निवासी भेलवापानी एवं कंगलू कुम्हार निवासी घोटुलमुंडा को स्वतंत्रता सेनानी घोषित करने हेतु अनुशंसा करता हूँ। संलग्न- जाँच प्रतिवेदन तहसीलदार भानुप्रतापपुर न्यायालय तहसीलदार भानुप्रतापपुर जिला उत्तर बस्तर कांकेर (छ.ग.) रा.प्र.क्र./बी-121/2005-06 ग्राम -भेलवापानी तहसील- भानुप्रतापपुर विषय: स्व.सुखदेव उर्फ पातर हल्बा को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित करने विषयक। प्रस्तुत प्रकरण में छत्तीसगढ़ शासन सामान्य प्रशासन विभाग मंत्रालय दाऊ कल्याण सिंह भवन रायपुर को पत्र क्रमांक 136/2/व्हीआईपी/1-7 रायपुर 2.3.06 के द्वारा स्व.सुखदेव उर्फ पातर हल्बा निवासी भेलवापानी को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित करने हेतु जाँच एवं प्रतिवेदनार्थ कलेक्टर उत्तर बस्तर कांकेर के माध्यम से प्राप्त हुआ है। प्रकरण इस न्यायालय में पंजीबद्ध कर जाँच की कार्यवाही की गई एवं स्व.सुखदेव पातर हल्बा के परिवार के सदस्यों से पातर हल्बा के संबंध में जानकारी रखने वालों से जानकारी ली गई। 1. स्व.सुखदेव उर्फ पातर हल्बा स्व.रघुनाथ हल्बा का पुत्र था। इसका जन्म ग्राम राऊरवाही में संभवतः 1892 के आसपास हुआ होगा। वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इंदरू केंवट, कंगलू कुम्हार के साथी थे और 1932 से गाँधी जी के अनुयायी हो गये थे। सुखदेव के पिता रघुनाथ,राऊरवाही से ग्राम भेलवापानी में आकर बस गये थे, यहीं से इनका राजनीति के प्रति रूझान पैदा हुआ अपने साथी इंदरू केंवट, कंगलू कुम्हार के साथ मिलकर देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। इनके राजनीतिक गतिविधियों को जानने, सुनने एवं देखने वालों में से कुछ लोग आज भी जीवित हैं, इनसे संपर्क कर बयान लेखबद्ध किया गया। सुखदेव पातर की दो पत्नियाँ थीं और दोनों से एक-एक संतानें हैं। पहली पत्नी लखमी बाई से एक पुत्री इतवारीन बाई जिसकी शादी ग्राम चेमल में हुई थी। दूसरी पत्नी थनवारीन बाई थी,जिसका पुत्र श्री रामानंद पिता सुखदेव पातर है। 2. स्व.सुखदेव पातर की गतिविधियों को जानने वालों में से श्री जंगलूराम पिता जितऊ हल्बा उम्र 80 वर्ष ने अपने बयान में बताया कि एक बार खण्डी नदी के पास पातर बगीचा में पहली बार बैठक हुई थी जिसमें लगभग एक-डेढ़ हजार लोग उपस्थित हुए थे। मानपुर, राजनांदगांव जिला से लेकर आसपास के लोग उपस्थित हुए थे। वे अपना भोजन साथ लेकर आये थे। लोग अपने साथ चरखा युक्त तिरंगा झण्डा लेकर आये थे। झण्डे को आम के वृक्ष में सभी लोग रखे एवं उसकी पूजा की,उस आम के वृक्ष को आज भी लोग झण्डा आमा के नाम से जानते हैं। इस बैठक में सुखदेव पातर और कंगलू कुम्हार तथा इंदरू केंवट ने भाषण दिया था। एक बार कोड़ेकुर्से के बाजार में भी जुलूस निकाले थे। सुखदेव पातर और कंगलू कुम्हार को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेजा था। 3. दुआरूराम पिता उजियार जाति हल्बा उम्र 70 वर्ष ने अपने बयान में बताया है कि सुखदेव पातर,कंगलू कुम्हार, रंजन हल्बा, विनायकपुर का भूरका माँझी मिलकर स्वराजी झण्डा लेकर गाँव-गाँव में घूमते थे। ग्राम चेमल में स्वराज आंदोलन की शुरुआत हुई थी। उस समय मेरी उम्र 10-12 साल की रही होगी। वे निम्नानुसार गीत गाते थे- 1. झण्डा ऊँचा रहे हमारा, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा... 2. भारत देश आजाद हो-आजाद हो। 3.छिन में गोली खईले, पर हित जान जईले, नाम तेरा अमर रहिबो गाँधी बाबा जी अपने विजय लगईले, लड़कर विजय लगईले, नारीओं को जेल भेजईले चक्की में पेरईले,कोल्हू में पेरईले हाथ में हथकड़ी लगवाये बाबा गाँधी जी। 4. जरे अंगरेजवा के रिंगी चिंगी कपड़ा, गाँधीजी हमला बताईसे, चरखा चलाई दिये,राहंटा कटई दिए, खादी के कपड़ा पहिनाये गाँधी बाबा जी। झण्डा आमा पातर बगीचा में है यहाँ कभी-कभी स्वराज वाले बैठक करते थे। पातर हल्बा,कंगलू कुम्हार और इंदरू केंवट पहले दुर्ग गये और बाद में धमतरी गये वहीं से उनको चरखा वाला झण्डा मिला। सुखदेव पातर की मृत्यु 1962 में हुई। 4.धरमूराम पिता जयराम जाति हल्बा उम्र 79 वर्ष ने अपने बयान में बताया कि मैं ग्राम सुरूंगदोह में इंदरू केंवट के घर में नौकरी करता था। सुखदेव पातर,कंगलू कुम्हार और इंदरू केंवट को पुलिस गिरफ्तार करने के लिए ढ़ूंढती रहती थी। एक बार इंदरू केंवट की पत्नी और पुत्री मिलकर पुलिस वालों को गाली-गलौज कर भगा दिये उस समय मैं वहीं था। एक बार पुलिस सुरूंगदोह के घर से इंदरू केंवट को गिरफ्तार किये और कांकेर जेल ले गये। सजा नहीं हुई रिहा किया गया। सुखदेव पातर,कंगलू कुम्हार अपनी जान की परवाह किये बगैर स्वराजी आँदोलन चलाते थे। गाँव-गाँव पैदल जाकर ग्रामीणों को समझाते थे और जुलूस निकालते थे। अंग्रेज भागे,उस दिन इंदरू, सुखदेव और कंगलू अपने-अपने गाँव में रहकर लोगों को इकट्ठा किये। जंगल से सागौन वृक्ष काट कर लाये और झण्डा बनाकर पूजापाठ करके त्यौहार के रूप में स्वतंत्रता दिवस मनाया। ग्राम सुरूंगदोह और गोटुलमुंडा में आज भी 1947 का गाड़ा हुआ खम्भा मौजूद है। 5. भारतसिंह पिता घड़वा उम्र 75 वर्ष ने अपने बयान में बताया कि मैं सुखदेव पातर,कंगलू कुम्हार,इंदरू केंवट को जानता हूँ। ये लोग झण्डा लेकर गाँव-गाँव जाते थे और लोगों को बताते थे कि अंग्रेजों को भगाना है और कांग्रेस को लाना है। सन् 1941-42 में सात आठ लोग इंदरू केंवट,सुखदेव पातर,कंगलू कुम्हार, ठंगू पातर,रोहिदास गोंड़,ढोंगिया ठाकुर आदि हमारे गाँव अमोड़ी में आये और अपने साथ लाये झण्डों को गाँव के देवगुड़ी के खम्भे में गाड़ दिये। गाँव वाले को इकट्ठा किये एक बकरा लाये,देवगुड़ी में पूजा किये और बकरे की बलि चढ़ाये भारत माता की जय,महात्मा गाँधी की जय,नारा लगाये और भाषण दिये। दोपहर भोजन के बाद शाम को चले गये। इस तरह इन लोगों का आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान था। स्व.सुखदेव पातर के संबंध में और जानकारी प्राप्त करने के लिए पुलिस थाना दुर्गूकोंदल एवं भानुप्रतापपुर में संधारित व्ही. सी.एन.बी. ( विलेज क्राईम नोट बुक) का अवलोकन किया गया। ग्राम चेमल के व्ही.सी.एन.बी.में दिनांक 7.12.1941 में लिखा गया है कि इस मौजे में आजकल स्वराजी हरकत की गड़बड़ शुरू हुआ है। इंदरू केंवट के बहकावे में इस अतराफ के लोग स्वराज में शामिल हो रहे हैं। मानपुर से (राजनांदगाँव जिला) स्वराजी झण्डीयाँ खरीद कर लाये हैं और अपने-अपने घरों में रखे हैं। दिनांक 22.3.42 को लिखा गया है कि आज खास खण्डी घाट में कंगलू कुम्हार ने एक बड़ा बैठक झण्डी वालों का किया इस बैठक में करीब 200-300 आदमी जमा हुए। 30-32 झण्डा वाले भी थे,इस बैठक के मुखिया 4 थे। कंगलू कुम्हार, सुखदेव हल्बा भेलवापानी, इंदरू केंवट कोड़ेकुर्से, सहगू गोंड़ पालवी। सुखदेव पातर ने अपने भाषण में कहा है कि लड़ाई के काम में चंदा, बरार या किसी तरह की मदद नहीं देंगे। इसकी इत्तला मजिस्ट्रेट को दी गई। दिनांक 5.4.1942 को भानुप्रतापपुर बाजार में जब भानुप्रतापपुर डाक बंगले में जु.साहब बहादुर का मुकाम था। स्वराजी झण्डे वाले जुलूस के साथ आये इसमें मुखिया कंगलू कुम्हार, सुखदेव हल्बा एवं दारसू गोंड़ हेटारकसा थे। Tumesh chiram   जु.साहब ने उन्हें समझाया मगर ये कोई ध्यान नहीं दिये और झण्डा को ऊँचा करके चले गये। दिनांक 11.4.1942 को लिखा गया है कि खण्डी घाट में मीटिंग तारीख 25.3.1942 को हुआ था और कंगलू एवं सुखदेव ने इस बैठक में लड़ाई में कोई मदद या चंदा वगैरह न देने की नाजायज बात कही थी इसकी रिपोर्ट होने पर जु.साहब बहादुर ने इन पर रूल नंबर 38 भारत रक्षा कानून के अनुसार मामला चलाने की मंजूरी दी है। हुक्म मुताबिक जाँच कर रिपोर्ट जु.साहब पुलिस को भेजी गई और उनके हुक्म से मुकदमा कायम कर चालान की कार्यवाही कंगलू एवं सुखदेव हल्बा के खिलाफ की गई। दिनांक 17.4.42 को लिखा गया है कि दोनों मुलजिमों को 25-25 रूपये जुर्माने की सजा हुई। ग्राम भेलवापानी के व्ही.सी.एन.बी.में दिनांक 25.4.42 को लिखा गया है कि सुखदेव हल्बा एवं कंगलू कुम्हार साकिन चेमल को अदालत जु.जा.कांकेर से 25-25 रूपये जुर्माने की सजा खादिर हुआ। अदम-अदाय जुर्माने के 4 माह सख्त कैद (17.4.43)। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.इंदरू केंवट के हिस्ट्री शीट में लिखा है कि सुखदेव पातर,इंदरू केंवट,कंगलू कुम्हार एवं उनके साथियों ने दिनांक 18.3.1942 को कोड़ेकुर्से के बाजार में स्वराजी झण्डी का जुलूस निकालने का इरादा कर लिया था। इसकी सूचना मिलने पर पुलिस गार्ड भेजी गयी थी तहसीलदार साहब भी थे। सुखदेव पातर एवं रंजन हल्बा झण्डी लेकर आये हुए थे मगर पुलिस का इंतजाम देखकर जुलूस निकालने की हिम्मत नहीं कर सके। दिनांक 20.3.42 को सुखदेव पातर और रंजन हल्बा ने 10 आदमियों को लेकर अचानक कोड़ेकुर्से के बाजार में जुलूस निकाला। इससे इनको हिम्मत हुई तो स्वराजी झण्डी का जुलूस बरहेली और तरहूल के बाजार में भी निकाला गया। दिनांक 28.3.42 को मौजा चेमल खण्डी घाट में एक जबरदस्त बैठक हुआ जिसमें स्वराजी झण्डी की पूजा की गई। जुलूस निकाला गया। इस बैठक में सुखदेव पातर,इंदरू एवं कंगलू कुम्हार ने लड़ाई में मदद न पहुँचाने और सरकार का कोई काम नहीं करने का नाजायज लैक्चर दिया गया था और इस बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया था कि भानुप्रतापपुर के बाजार में स्वराजी झण्डी का जुलूस निकाला जाय। दिनांक 5.4.42 को भानुप्रतापपुर के बाजार में दो तीन सौ आदमियों का जुलूस स्वराजी झण्डी के लिए निकाला गया। उस दिन पोलिटीकल एजेन्ट से बहुत कहा सुनी हुई,ये लोग नहीं माने और झण्डा को ऊँचा कर चल दिये। इस इलाके में जुलूस आदि को बंद करने के गरज से दरबार आर्डर नं. 7 ता. 7.4.42 जारी किया गया और जुलूस, बैठक आदि पर प्रतिबंध लगाया गया। दिनांक 28.5.42 को ग्राम भेलवापानी में सुखदेव पातर हल्बा के घर में दरबार आर्डर के खिलाफ एक बैठक रात के वक्त कर रहे थे कि मुखबिर की सूचना के आधार पर पुलिस ने दबिश दी इसने सुखदेव पातर,कंगलू कुम्हार और रंजन हल्बा गिरफ्तार किये गये। इंदरू केंवट पुलिस को चकमा देकर भाग गया। सुखदेव पातर,कंगलू कुम्हार पर डि.आई.रूल्स 38 (भारत रक्षा कानून की धारा 38 ) के तहत चालान पेश किया गया था। जिसमें अदालत जु.जा.काँकेर के आदेश दिनांक 17.4.43 को सुखदेव पातर और कंगलू कुम्हार को 25-25 रूपये जुर्माने की सजा हुई अदम अदाय जुर्माने के 4 माह सख्त सजा हुई थी। संपादक जे.आर.वालर्यानी प्राध्यापक/संयोजक इतिहास विभाग द्वारा प्रकाशित छत्तीसगढ़ में आदिवासी आँदोलन नामक शोध पत्रिका में शोधकर्ता प्रदीप जैन सहायक प्राध्यापक (इतिहास) भानुप्रतापदेव शास. स्नातकोत्तर महाविद्यालय काँकेर ने अपने शोध पत्र में लिखा है कि भानुप्रतापपुर तहसील में स्थित भेलवापानी निवासी पातर हल्बा ने आदिवासियों में अंग्रेजों के विरुद्ध शंखनाद किया था। 1920 ई.में कंडेल आँदोलन के सिलसिले में महात्मा गाँधी धमतरी आये थे। पातर हल्बा अपने दो साथी इंदरू केंवट और कंगलू कुम्हार के साथ पैदल चलकर महात्मा गाँधी से मिला था। सन् 1933 ई.में पातर हल्बा ,इंदरू केंवट और कंगलू कुम्हार गाँधी से दुर्ग में मिले थे। सन् 1944-45 में पातर हल्बा ,इंदरू केंवट और कंगलू कुम्हार के नेतृत्व में काँकेर रियासत के दीवान टी,महापात्र द्वारा भू-राजस्व (लगान) में वृध्दि किये जाने के विरोध में आँदोलन चलाया गया। पातर हल्बा और उनके साथियों के कहने पर आदिवासियों ने बढ़े हुए भू-राजस्व को पटाने से इंकार कर दिया। ब्रिटिश प्रशासन ने पातर हल्बा, इंदरू केंवट और कंगलू कुम्हार व 429 आदिवासियों पर राजद्रोह का मुकदमा चलवाया। भू-राजस्व विरोधी आँदोलन की भयानकता को देखते हुए रियासत प्रमुख महाराजाधिराज भानुप्रतापदेव ने आँदोलनकारियों से समझौता कर लिया और आँदोलनकारियों पर चल रहे मुकदमों को वापस ले लिया गया। उक्त बातें शोधकर्ता प्रदीप जैन ने आजादी की लड़ाई का सच्चा सैनिक था पातर हल्बा नामक शीर्षक से प्रकाशित किया है। लेखक जे.आर.वाल्रर्यानी द्वारा लिखित 'क्रांतिवीर इंदरू केंवट (काँकेर रियासत का गाँधी)' नामक पुस्तक में लिखा है कि इंदरू केंवट के साथी सुखदेव पातर के भाषण से से प्रभावित होकर भानुप्रतापपुर के लोगों ने स्वदेशी वस्तुओं को अपनाना प्रारंभ किया। सन् 1923 ई.में कांग्रेस द्वारा झण्डा सत्याग्रह की घोषणा की गई। सुखदेव पातर,इंदरू केंवट और कंगलू कुम्हार ने सैकड़ों की संख्या में सत्याग्रह सैनिक तैयार किये। दिनांक 22.11.1933 को जब महात्मा गाँधी दुर्ग आये उस दिन सुखदेव पातर,इंदरू केंवट और कंगलू कुम्हार महात्मा गाँधी से मिले थे और हरिजन उध्दार कोष में चंदा भी दिया था। उपरोक्त विवेचना एवं दस्तावेजों के अवलोकन तथा जानकार लोगों के बयान से यह सिद्ध होता है कि स्व.सुखदेव उर्फ पातर हल्बा,इंदरू केंवट और कंगलू कुम्हार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, आजादी के सच्चे सिपाही थे,स्वतंत्रता समर के अमर शहीद थे। दुर्भाग्य की बात है कि इन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा आज तक नहीं मिल पाया। इनके साथी इंदरू केंवट की जीवनी छत्तीसगढ़ के पाठ्यपुस्तक में शामिल किया गया है। इस सुदूर वनांचल में रहकर इन आजादी के दीवानों ने देश को आजाद करवाने में अपने जान की परवाह किये बगैर महत्वपूर्ण योगदान दिया है। मेरे द्वारा जेल अधीक्षक काँकेर से संपर्क कर सुखदेव पातर के सजा की पुष्टि हेतु अभिलेखों का निरीक्षण किया गया। सुखदेव पातर को सजा हुई थी,ऐसा कोई अभिलेख प्राप्त नहीं हुआ। अधीक्षक केन्द्रीय जेल रायपुर के पत्र क्रमांक/1399/वारंट/06,दिनांक 13.4.06 के अनुसार स्व.श्री सुखदेव पातर पिता रघुनाथ जाति हल्बा निवासी भेलवापानी तहसील भानुप्रतापपुर जिला उत्तर बस्तर काँकेर का सन् 1942 एवं 1945 के जेल अभिलेख में नाम नहीं पाया गया। इससे स्पष्ट होता है कि सुखदेव पातर को जेल नहीं हुई थी। उसे भारत रक्षा कानून की धारा 38 के तहत 25 रूपये जुर्माना या जुर्माना नहीं पटाने पर 4 माह की सख्त कैद की सजा सुनाई गई थी। सुखदेव पातर द्वारा जुर्माने की राशि अदा की गई होगी इसलिए जेल नहीं भेजा गया था। उपरोक्त श्रीमान अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) भानुप्रतापपुर के माध्यम से सादर संप्रेषित। संलग्न सहपत्र- 1. ग्राम भेलवापानी का व्ही.सी.एन.बी.की छायाप्रति। 2.ग्राम चेमल का व्ही.सी.एन.बी की छायाप्रति। 3.प्रदीप जैन सहायक प्राध्यापक (इतिहास) शास.भानुप्रतापदेव स्नातकोत्तर महाविद्यालय काँकेर का शोधपत्र की छायाप्रति। जी.आर.बघेल तत्कालीन तहसीलदार,भानुप्रतापपुर 👆👆👆👆👆👆 उत्तर बस्तर काँकेर जिले के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखने योग्य गाँधीवादी सत्याग्रहियों की कहानियाँ धीरे-धीरे सामने आती जा रही है, जिन्हें अब तक अज्ञानियों तथा निहित स्वार्थ वालों ने रोके रखा था। पुराने रिकार्ड बताते हैं कि 1920 से ही इस क्षेत्र में अंग्रेजों के विरूद्ध सत्याग्रह,जुलूस, प्रदर्शन, चरखा झण्डे का प्रचार आदि शुरू हो चुके थे। इंदरू केंवट, सुखदेव उर्फ पातर हल्बा तथा कंगलू कुम्हार ने महात्मा गाँधी की जय के नारों के साथ क्षेत्र में एक जागरूकता पैदा कर दी थी। " चमन पे वक्त पड़ा था, तो खून हमने दिया- बहार आई,तो कहते हैं,तेरा काम नहीं।" यह स्थिति दूर होनी चाहिए। पुलिस के सामने सीना खोलकर नारे लगाने वाले आजादी के ये दीवाने मौत से भी नहीं डरते थे, फिर जेल कचहरी की बात ही क्या? आजाद भारत को 73 साल बीत गये,आजादी के परवानों में से स्व.सुखदेव पातर हल्बा को आज भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा नहीं मिल सका है। दुख की बात यह है कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को भी बार-बार स्वयं के सेनानी होने का सबूत देना पड़ रहा है। राजनीतिक दल हमेशा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को पार्टी विशेष से जोड़कर देखती हैं, यही कारण है कि सुखदेव पातर हल्बा जैसे एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आज तक सेनानी घोषित नहीं किया गया। आशा करते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार बिना किसी भेदभाव के संवेदनशीलता दिखाते हुए स्व.सुखदेव पातर हल्बा को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा जरूर देगी। जय भारत आपको मेरे द्वारा दी गई जानकारी कैसे लगा  बताना न भूलें 


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