प्रति "ग्राम भेलवापानी के सुखदेव पातर हल्बा आजादी के लड़ाई में इंदरू केंवट और कंगलू कुम्हार के साथ कदम से कदम मिलकार लड़ाई लड़े थे। विडंबना है कि इंदरू केंवट और कंगलू को सेनानी होने का दर्जा तो मिल गया, लेकिन सुखदेव पातर को सेनानी का दर्जा अब तक नहीं मिल पाया। जबकि साक्ष्य प्रमाण सभी मिले हैं।
सुखदेव पातर का परिवार हर साल 9 जनवरी को शहादत दिवस मनाता है। परिवार के ढालसिंह पात्र, कन्हैया पात्र ने बताया कि इसके लिए लगातार प्रयास कर रहे है, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली है। अब सरकार बदल गई है, तो उम्मीद जागी है कि अब कुछ हो सकता है। पिछले वर्ष विधायक मनोज मंडावी ने भी भरोसा दिलाया था कि हमारी सरकार आएगी तो इस पर जरूर पहल होगी। पुराने रिकार्ड बताते हैं कि 1920 से ही इस क्षेत्र में अंग्रेजों के विरुद्ध सत्याग्रह, जुलूस, प्रदर्शन, चरखा झंडे का प्रचार आदि शुरू हो चुका था। इंदरू केंवट, सुखदेव उर्फ पातर हल्बा तथा कंगलू कुम्हार ने महात्मा गांधी के नारों के साथ क्षेत्र में जागरूकता पैदा कर दी थी। भानुप्रतापपुर के तहसीलदार द्वारा इन क्रांतिकारियों के बारे में ठोस सबूत कार्यालय तहसीलदार विस्तृत रिपोर्ट तथा सिफारिस सहित पातर हल्बा तथा कंगलू कुम्हार को स्वतंत्रता सेनानी घोषित करने को प्रेषित किया गया था, जो अपूर्ण था। इनके बारे में जांच करने पर जानकारी के अनुसार इंदरू केवट, कंगलू कुम्हार के साथी थे। 1932 में गांधी के अनुयायी हो गए थे तथा देश को आजाद कराने इनका महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
इनके राजनीतिक गतिविधियों को जानने, सुनने, एवं देखने वालों में से कुछ लोग आज भी जीवित हैं। अब इनके रिकार्ड भी ब्रिटिश समय के थाना रिकार्ड में से ढ़ूंढ कर सामने लाये गये हैं। भानुप्रतापपुर के तहसीलदार द्वारा इन क्रांतिकारियों के बारे में विस्तृत रिपोर्ट तथा सिफारिश प्रस्तुत है, तहसीलदार की विस्तृत रिपोर्ट तथा सिफारिश सहित पातर हल्बा तथा कंगलू कुम्हार के बारे में ठोस सबूत... कार्यालय तहसीलदार भानुप्रतापपुर जिला उत्तर बस्तर कांकेर (छ.ग.) :ज्ञापन: क्रमांक/ /रीडर/तह.2006,भानुप्रतापपुर, दिनांक 25.07.06 प्रति, अनुविभागीय अधिकारी,(राजस्व) भानुप्रतापपुर विषय:- स्व.सुखदेव पातर हल्बा को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित करने संबंधी। संदर्भ:- 1.विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी सामान्य प्रशासन विभाग मंत्रालय रायपुर का पत्र क्रमांक/136/02/वीआईपी/1-7-06,दिनांक 2.3.06 2. अधीक्षक केन्द्रीय जेल रायपुर का पत्र क्रमांक/1399/वारंट/06,दिनांक 13.04.06 संदर्भित विषयांतर्गत लेख है कि पूर्व में दिनांक 20.3.06 को इस कार्यालय द्वारा स्व.सुखदेव पातर हल्बा निवासी भेलवापानी को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित किये जाने हेतु जाँच प्रतिवेदन नायब तहसीलदार दुर्गूकोंदल द्वारा प्रेषित किया गया था, जो अपूर्ण था। पुनः तहसीलदार भानुप्रतापपुर द्वारा जाँच किया जाकर प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जा रहा है।
व्ही.सी.एन.बी ग्राम भेलवापानी के अवलोकन से पता चलता है कि स्व.सुखदेव पातर एवं कंगलू कुम्हार को भारत रक्षा कानून के तहत दिनांक 17.4.1943 को 25 रूपये का जुर्माना एवं अदम अदायगी 4 माह की सख्त कैद की सजा हुई थी। अतः स्व.सुखदेव उर्फ पातर हल्बा निवासी भेलवापानी एवं कंगलू कुम्हार निवासी घोटुलमुंडा को स्वतंत्रता सेनानी घोषित करने हेतु अनुशंसा करता हूँ। संलग्न- जाँच प्रतिवेदन तहसीलदार भानुप्रतापपुर न्यायालय तहसीलदार भानुप्रतापपुर जिला उत्तर बस्तर कांकेर (छ.ग.) रा.प्र.क्र./बी-121/2005-06 ग्राम -भेलवापानी तहसील- भानुप्रतापपुर विषय: स्व.सुखदेव उर्फ पातर हल्बा को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित करने विषयक। प्रस्तुत प्रकरण में छत्तीसगढ़ शासन सामान्य प्रशासन विभाग मंत्रालय दाऊ कल्याण सिंह भवन रायपुर को पत्र क्रमांक 136/2/व्हीआईपी/1-7 रायपुर 2.3.06 के द्वारा स्व.सुखदेव उर्फ पातर हल्बा निवासी भेलवापानी को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित करने हेतु जाँच एवं प्रतिवेदनार्थ कलेक्टर उत्तर बस्तर कांकेर के माध्यम से प्राप्त हुआ है। प्रकरण इस न्यायालय में पंजीबद्ध कर जाँच की कार्यवाही की गई एवं स्व.सुखदेव पातर हल्बा के परिवार के सदस्यों से पातर हल्बा के संबंध में जानकारी रखने वालों से जानकारी ली गई। 1. स्व.सुखदेव उर्फ पातर हल्बा स्व.रघुनाथ हल्बा का पुत्र था। इसका जन्म ग्राम राऊरवाही में संभवतः 1892 के आसपास हुआ होगा। वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इंदरू केंवट, कंगलू कुम्हार के साथी थे और 1932 से गाँधी जी के अनुयायी हो गये थे। सुखदेव के पिता रघुनाथ,राऊरवाही से ग्राम भेलवापानी में आकर बस गये थे, यहीं से इनका राजनीति के प्रति रूझान पैदा हुआ अपने साथी इंदरू केंवट, कंगलू कुम्हार के साथ मिलकर देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। इनके राजनीतिक गतिविधियों को जानने, सुनने एवं देखने वालों में से कुछ लोग आज भी जीवित हैं, इनसे संपर्क कर बयान लेखबद्ध किया गया। सुखदेव पातर की दो पत्नियाँ थीं और दोनों से एक-एक संतानें हैं। पहली पत्नी लखमी बाई से एक पुत्री इतवारीन बाई जिसकी शादी ग्राम चेमल में हुई थी। दूसरी पत्नी थनवारीन बाई थी,जिसका पुत्र श्री रामानंद पिता सुखदेव पातर है। 2. स्व.सुखदेव पातर की गतिविधियों को जानने वालों में से श्री जंगलूराम पिता जितऊ हल्बा उम्र 80 वर्ष ने अपने बयान में बताया कि एक बार खण्डी नदी के पास पातर बगीचा में पहली बार बैठक हुई थी जिसमें लगभग एक-डेढ़ हजार लोग उपस्थित हुए थे। मानपुर, राजनांदगांव जिला से लेकर आसपास के लोग उपस्थित हुए थे। वे अपना भोजन साथ लेकर आये थे।
लोग अपने साथ चरखा युक्त तिरंगा झण्डा लेकर आये थे। झण्डे को आम के वृक्ष में सभी लोग रखे एवं उसकी पूजा की,उस आम के वृक्ष को आज भी लोग झण्डा आमा के नाम से जानते हैं। इस बैठक में सुखदेव पातर और कंगलू कुम्हार तथा इंदरू केंवट ने भाषण दिया था। एक बार कोड़ेकुर्से के बाजार में भी जुलूस निकाले थे। सुखदेव पातर और कंगलू कुम्हार को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेजा था। 3. दुआरूराम पिता उजियार जाति हल्बा उम्र 70 वर्ष ने अपने बयान में बताया है कि सुखदेव पातर,कंगलू कुम्हार, रंजन हल्बा, विनायकपुर का भूरका माँझी मिलकर स्वराजी झण्डा लेकर गाँव-गाँव में घूमते थे। ग्राम चेमल में स्वराज आंदोलन की शुरुआत हुई थी। उस समय मेरी उम्र 10-12 साल की रही होगी। वे निम्नानुसार गीत गाते थे- 1. झण्डा ऊँचा रहे हमारा, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा... 2. भारत देश आजाद हो-आजाद हो। 3.छिन में गोली खईले, पर हित जान जईले, नाम तेरा अमर रहिबो गाँधी बाबा जी अपने विजय लगईले, लड़कर विजय लगईले, नारीओं को जेल भेजईले चक्की में पेरईले,कोल्हू में पेरईले हाथ में हथकड़ी लगवाये बाबा गाँधी जी। 4. जरे अंगरेजवा के रिंगी चिंगी कपड़ा, गाँधीजी हमला बताईसे, चरखा चलाई दिये,राहंटा कटई दिए, खादी के कपड़ा पहिनाये गाँधी बाबा जी। झण्डा आमा पातर बगीचा में है यहाँ कभी-कभी स्वराज वाले बैठक करते थे। पातर हल्बा,कंगलू कुम्हार और इंदरू केंवट पहले दुर्ग गये और बाद में धमतरी गये वहीं से उनको चरखा वाला झण्डा मिला। सुखदेव पातर की मृत्यु 1962 में हुई। 4.धरमूराम पिता जयराम जाति हल्बा उम्र 79 वर्ष ने अपने बयान में बताया कि मैं ग्राम सुरूंगदोह में इंदरू केंवट के घर में नौकरी करता था। सुखदेव पातर,कंगलू कुम्हार और इंदरू केंवट को पुलिस गिरफ्तार करने के लिए ढ़ूंढती रहती थी। एक बार इंदरू केंवट की पत्नी और पुत्री मिलकर पुलिस वालों को गाली-गलौज कर भगा दिये उस समय मैं वहीं था। एक बार पुलिस सुरूंगदोह के घर से इंदरू केंवट को गिरफ्तार किये और कांकेर जेल ले गये। सजा नहीं हुई रिहा किया गया। सुखदेव पातर,कंगलू कुम्हार अपनी जान की परवाह किये बगैर स्वराजी आँदोलन चलाते थे। गाँव-गाँव पैदल जाकर ग्रामीणों को समझाते थे और जुलूस निकालते थे। अंग्रेज भागे,उस दिन इंदरू, सुखदेव और कंगलू अपने-अपने गाँव में रहकर लोगों को इकट्ठा किये। जंगल से सागौन वृक्ष काट कर लाये और झण्डा बनाकर पूजापाठ करके त्यौहार के रूप में स्वतंत्रता दिवस मनाया। ग्राम सुरूंगदोह और गोटुलमुंडा में आज भी 1947 का गाड़ा हुआ खम्भा मौजूद है। 5. भारतसिंह पिता घड़वा उम्र 75 वर्ष ने अपने बयान में बताया कि मैं सुखदेव पातर,कंगलू कुम्हार,इंदरू केंवट को जानता हूँ। ये लोग झण्डा लेकर गाँव-गाँव जाते थे और लोगों को बताते थे कि अंग्रेजों को भगाना है और कांग्रेस को लाना है। सन् 1941-42 में सात आठ लोग इंदरू केंवट,सुखदेव पातर,कंगलू कुम्हार, ठंगू पातर,रोहिदास गोंड़,ढोंगिया ठाकुर आदि हमारे गाँव अमोड़ी में आये और अपने साथ लाये झण्डों को गाँव के देवगुड़ी के खम्भे में गाड़ दिये। गाँव वाले को इकट्ठा किये एक बकरा लाये,देवगुड़ी में पूजा किये और बकरे की बलि चढ़ाये भारत माता की जय,महात्मा गाँधी की जय,नारा लगाये और भाषण दिये। दोपहर भोजन के बाद शाम को चले गये। इस तरह इन लोगों का आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान था।
स्व.सुखदेव पातर के संबंध में और जानकारी प्राप्त करने के लिए पुलिस थाना दुर्गूकोंदल एवं भानुप्रतापपुर में संधारित व्ही. सी.एन.बी. ( विलेज क्राईम नोट बुक) का अवलोकन किया गया। ग्राम चेमल के व्ही.सी.एन.बी.में दिनांक 7.12.1941 में लिखा गया है कि इस मौजे में आजकल स्वराजी हरकत की गड़बड़ शुरू हुआ है। इंदरू केंवट के बहकावे में इस अतराफ के लोग स्वराज में शामिल हो रहे हैं। मानपुर से (राजनांदगाँव जिला) स्वराजी झण्डीयाँ खरीद कर लाये हैं और अपने-अपने घरों में रखे हैं। दिनांक 22.3.42 को लिखा गया है कि आज खास खण्डी घाट में कंगलू कुम्हार ने एक बड़ा बैठक झण्डी वालों का किया इस बैठक में करीब 200-300 आदमी जमा हुए। 30-32 झण्डा वाले भी थे,इस बैठक के मुखिया 4 थे। कंगलू कुम्हार, सुखदेव हल्बा भेलवापानी, इंदरू केंवट कोड़ेकुर्से, सहगू गोंड़ पालवी। सुखदेव पातर ने अपने भाषण में कहा है कि लड़ाई के काम में चंदा, बरार या किसी तरह की मदद नहीं देंगे। इसकी इत्तला मजिस्ट्रेट को दी गई। दिनांक 5.4.1942 को भानुप्रतापपुर बाजार में जब भानुप्रतापपुर डाक बंगले में जु.साहब बहादुर का मुकाम था। स्वराजी झण्डे वाले जुलूस के साथ आये इसमें मुखिया कंगलू कुम्हार, सुखदेव हल्बा एवं दारसू गोंड़ हेटारकसा थे।
प्रिय पाठकों इससे पहले भी हमने हमारे समाज के गौरव व हमारे स्वतंत्रता सेनानी सुखदेव पातर जी के बारे में संक्षिप्त जानकारी ले चुके है फिर भी आज हम उनके ऊपर की गई कानूनी कार्यवाही व कुछ ऐतिहासिक दस्तावेजो के बारे में इस भाग में जानेंगे तो आइए शुरू करते है आज का चर्चा
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अपना विचार रखने के लिए धन्यवाद ! जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी !