नोतरा प्रथा/ notra pratha
दोस्तों नमस्कार आज हम जिस प्रथा के बारे में बात करने वाले हैं उस प्रथा का नाम है नोतरा प्रथा यह प्रथा मुख्यता झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में प्रचलित है नोतरा प्रथा को हम आर्थिक सामाजिक सहायता के रूप में भी देख सकते हैं इसके बारे में आगे विस्तृत जानकारी लेंगे तो चलो शुरू करते हैं आज का विषय नौतरा प्रथा। आदिवासियों का एक रिवाज है। यह किसी रिवर्ज बैक' से कम नहीं। क्यों कि इसमें भी बैंक की तरह ही रुपयों की सेविंग होती है और राशि चढकर मिलती है। यह
सामुदायिक संगठन को भी बल देता है। जरुरत के समय एक दूसरे की आर्थिक मदद का भी यह परिचायक है।
शादी-विवाह से लेकर मकान निर्माण के साथ ही अन्य विशेष
अवसर पर आर्थिक आवश्यकताओं को पूरी करने में नौतरे की अहम भूमिका है। समाज के जिस व्यक्ति को रुपयों की
आवश्यकता होती है वह नौतरे का आयोजन करता है। इसके लिए समाजजनों व परिचितों को पीले चावल के जरिए आमंत्रण दिया जाता है।
खाना-पीना व नाच-गाने के बाद नौतरे के तहत आयोजक परिवार को सभी अपनी क्षमतानुसार आर्थिक सहायता करते है, जिसे समाज के मौतीवीर एक रजिस्टर में अंकित करते है और पूरा रुपया एक मटकी में| एकत्र कर नोतरा देने वाले को सौपा जाता है। लेन-देन का हिसाब दुगुना करके लौटाया जाता है। किसी व्यक्ति ने यदि 100 रुपए दिए है तो उसके नोतरे में 200 रुपए लौटाए जाते है। वर्तमान समय में बैंक अकाउंट की अनिवार्यता के बीच भी यह परम्परा कायम है और समाजजन बड़ी खुशी के साथ इसका निर्वाहन करते हैं। लेकिन वर्तमान परिस्थिति में इस प्रथा को संचालित रखने में थोड़ा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि नोतरा प्रथा रखने से पहले अपने सगा जनों वह संबंधियों को पहले से आगाह करना पड़ता है किंतु वर्तमान में विभिन्न परिस्थिति जैसे मृत्यु संस्कार या अन्य समय जब पैसों की।एकाएक जरूरत पड़ता है तो नोतरा के समय दिए हुए पैसे को उन्हें वापस करने के लिए अन्य लोगों से उधार लेने की नौबत आ जा रही है चूंकि
बांसवाड़ा अंचल में गरीबी, अशिक्षा
और अज्ञानता के सामने आदिवासियो
और अन्य ग्रामीण पर सूदखोरो का शिकंजा कसा जा रहा है और इसमें सूदखोरो की कालापन व काली कमाई हैं। गाँव -गांव में सूदखोरों का आना लगा रहता है। कहने को ले ये गरीब, की मदद कर रहे है, लेकिन हकिकत में ये से प्रतिशत से भी अधिक मासिक मोटी ब्याज दर वसूल कर ग्रामीण को हमेशा के लिए कर्ज के दलदल में डुबोये रखने का खेल खेल रहे हैं। ताकि आदिवासी कभी कर्ज से उभर न पाए और सूदखोरों का या चलता रहे। ऐसा भी नहीं किया जाना चाहिए।। इस क्षेत्र के आदिवासियों के बैंक खाता भी मिलना मुश्किल है क्योंकि इनकी आधे से अधिक कार्य नोतरा प्रथा व सूदखोरो के कारण धन की बचत नही हो पाता परंतु वर्तमान परिदृश्य परिवर्तन हो रहा है
आपको मेरे द्वारा दी गई जानकारी कैसा लगा बताना न भूले जय माँ दंतेश्वरी

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