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दंतेश्वरी कैसे हल्बा समाज की अराध्य देवी बनी danteshwari kaise halba samaj ki aaradhy devi bani

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    माँ दंतेश्वरी,हल्बा समाज,halba samaj,ma danteshwari,आर्यन चिराम,aaryan chiram,

    दंतेश्वरी कैसे हमारी अराध्य देवी बनी?


    दंतेश्वरी कब से हमारी अराध्य देवी बनी?

    दंतेश्वरी हमारे समाज का अराध्य देवी क्यों है?

    उपर लिखे प्रश्न कभी न कभी आपके मन में जरुर आया होगा या अक्सर आता होगा?
    भाइयो यह लेख एक भाई के कहने पर लिख रहा हूँ, आप लोगो के मन में जो भी संका समाधान या नये प्रश्न आयेंगे उनका भी उत्तर देने की पूरी कोशिश करूँगा जैसा की आप सभी जानते है की हमारे समाज की अराध्य देवी माँ दंतेश्वरी है यह कब से हमारी अराध्य देवी बनी इसको जानने से पहले [एक और प्रश्न जो आपके मन में आया होगा की एकता दिवस मानते है तब से पता चल रहा है की दंतेश्वरी हमारी अराध्य देवी है] थोडा से आप सभी को सरसरी निगाहों से इतिहास के पन्नो से जोड़ना चाहूँगा की ये दंतेश्वरी माँ है कौन? बस्तर के प्रथम काकतीय राजा अन्नदेव ने वारंगल से जब आया तो वारंगल की पेदम्मा [मणिकेश्वरी देवी जो वारंगल में बड़ी माँ के रूप में पूजा जाता है यंहा लाया] तो यंहा पेदम्मा को नया नाम माँ दंतेश्वरी के नाम से जाना गया चूँकि यह एक राज परिवार की कुल देवी थी इसलिए इस पर सभी की आस्था और श्रद्दा बनने लगा चूँकि अन्नम देव अपने विभिन्न कार्यो के संपादन के लिए विभिन्न महतवपूर्ण पदों पर लोगो को नियुक्त किये थे Tumesh chiram   जैसे जमींदार कपडदार, जिया, पुजारी, नायक, अंगरक्षक, मांझी, आदि उनमे से एक महतवपूर्ण पद था पुजारी, और वह गर्वान्वित पद केवल हल्बा लोगों को ही प्राप्त था, यह पूजा करते करते हल्बा भाइयो का आस्था माँ दंतेश्वरी के ऊपर दिनोदिन बढ़ने लगा, बढता भी क्यों नही, क्योकि जब तक राजा और राज शासन अस्तित्व में था पुजारी का पद केवल हल्बा लोग ही निर्वहन कर रहे थे इनका लिस्ट निचे दिया जा रहा है

    हल्बा समाज पुजारियों का लिस्ट


    क्रमांक राजा का नाम    नायक का नाम              सन्               वर्षो मे
    1.       अन्नमदेव                नीलकंठ            सन्1313 से1358    45 वर्ष
    2.       हमीरदेव                  नीलकंठ             सन्1358 से1379     21 वर्ष
    3.       भैरवदेव               लाला नायक           सन्1379 से1408      29 वर्ष
    4.       पुरुषोत्तमदेव      लाला नायक           सन्1408 से1439      31 वर्ष
    5.       जयसिंगदेव           चुडामन हल्बा          सन्1439 से1457     18 वर्ष
    6.      नरसिंगदेव           चुडामन हल्बा         सन्1458 से1501 43 वर्ष
    7.      प्रतापराजदेव           सोनाधर               सन्1501 से1524 23 वर्ष
    8.     जगदीशराज देव       बनसिंग हल्बा         सन्1524से153         14 वर्ष
    9.     वीर नारायणदेव       हरदास हल्बा          सन्1538 से1553    23 वर्ष
    10.     वीरसिंहदेव          गुरूदास हल्बा           सन्1553 से1590 37 वर्ष
                                         दिवान चुडामणी
    11.     दिक्पालदेव          सबल हल्बा          सन्1620 से1649        29 वर्ष
    12.     राजपालदेव          दशरथ हल्बा         सन्1649 से1716        67 वर्ष
    13.       दलपतदेव         मुरहा हल्बा           सन्1716 से1774      58 वर्ष
    14.     अजमेरदेव            मुरहा हल्बा          सन्1774 से1777       3 वर्ष
    15.     दरियादेव         लक्ष्मणधर हल्बा      सन्1777 से1800         23 वर्ष
    16.     महीपालदेव           कुलधर हल्बा         सन्1800 से1842 42 वर्ष
    17.     भूपालदेव          अंतु हल्बा ,               सन्1842 से1852      10 वर्ष
    18.        भैरमदेव       शुदर्शन हल्बा         सन्1852 से1891 29 वर्ष
    19.      रूदप्रताप देव    सोनाधर हल्बा ,  सन्1891 से1921 30 वर्ष
                                    राजधर,सूरत हल्बा
    20.    प्रफुल्लकुमारी देव    बलराम हल्बा     सन्1921 से1936 15 वर्ष
    21.  प्रवीर भंजदेव        कन्हई हल्बा          सन्1936 से1947       11 वर्ष


    और हल्बा भाई त्यौहार और अन्य मौको पर एक दुसरे से सुख और दुःख में मिलते थे तो उनका अभिवादन भी जय माँ दंतेश्वरी और माता के महिमा के बारे में बात करते गए और उस समय सभी हल्बाओ के मन में माँ दंतेस्वरी के ऊपर अपार आस्था बन गई, ऊपर दिए गए 

    बिंदु 14


     जब अजमेर सिह का शासन चला तब ही हल्बा विद्रोह हुआ 1774 में, अब अजमेर सिंग के बारे में संछिप्त में बताता हूँ अजमेर सिंह कांकेर के राजा का भांजा था और बस्तर विरासत का असली हकदार था दलपत देव के पटरानी के बेटा था, परन्तु छल पूर्वक दरियाव देव गद्दी को हथिया लिया था, जिससे हल्बा लोग न खुश थे और उनका पूरा समर्थन अजमेर सिह के पक्ष में था,जिसके कारण ही बस्तर का प्रथम विद्रोह हुआ, यह विद्रोह 1774 से प्रारंभ होकर 1779 में समाप्त हुआ,इसे ही हल्बा विद्रोह के नाम से जाना जाता है, इस विद्रोह के बाद दरियाव देव ने  हल्बा लोगो का क्रूरता पूर्वक क़त्ल करवाया और कई प्रकार से हल्बा लोगो को मृत्यु दंड दिया गया,ताड़ झोकनी, और अन्य तरीको से मारा गया,बचने के लिए कई हल्बा अपना पहचान बदलकर (सरनेम)जैसे ठाकुर,, उस स्थान को छोड़कर अन्यत्र चले गए अंत में कुछ हल्बा जनजाति के लोग बचे जो आगे से कभी भी विद्रोह न करने की बात कहकर माँ दंतेशवरी के सामने राज भक्ति की शपथ लिए इस विद्रोह के बाद हल्बा लोग कभी कोई विद्रोह में भाग नही लिए, यंहा पर भी माँ दंतेश्वरी के सामने सपथ से स्पष्ट हो जाता है की उनकी आस्था माँ दंतेश्वरी पर अगात थी उसके बाद

    1998 से

    पहले कई बार सभी महासभा के हल्बा भाई एक होने के लिए कई बार पहल कर चुके थे परन्तु असफल सिद्ध हो रहे थे परन्तु 25 दिसम्बर के रात 12 बजे के बाद अर्थात 26 दिसंबर सन 1998 को बड़े डोंगर में माँ दंतेश्वरी के छत्र-छाया में फिर एक होने की सभी की सहमती बन गई, यह कोई इतिफाक नही थी क्योकि इससे पहले कई बार एक होने  की असफल कोशिश हो चूका था तब माँ दंतेश्वरी को अपने अराध्य देवी के रूप में मानते आ रहे है अगर सही मायने में देखे तो सन 1313 से इनकी पूजा करते आ रहे है पर अगर अराध्य देवी के रूप में देखे तो सन 1998  से पूजा करते आ रहे है Tumesh chiram   आप लोगो ने मेरा यह पोस्ट बहुत बारीकी से पढ़े इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद अगर आपके मन में किसी भी प्रकार का कोई भ्रम और अन्य कोई प्रश्न हो तो पुछ सकते है दूर करने की कोशिश करूँगा
    कंही पर गलती हो तो सुधार कर पढ़े जय माँ दंतेश्वरी
                                   

    1 एकता दिवस पर मेरा लेख यंहा से पढ़ सकते है ➤➤लेख पढ़े
    2 दंतेश्वरी पर मेरा लेख यंहा से पढ़ सकते है   ➤➤लेख पढ़े

    // लेखक // कवि // संपादक // प्रकाशक // सामाजिक कार्यकर्ता //

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    5 Comments

    अपना विचार रखने के लिए धन्यवाद ! जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी !

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