गोदना
जैसे की आप सभी जानते है की गोदना का हमारे आदिवासी सामाज में विशेष महत्व रहता था और रहता है कभी हमने और आपने इस बारे में सोचा है
की क्यो यह गोदना गुदवाते है क्या कारण है की पहले हमारे पूर्वज गोदना गुदवाना जरुरी समझते थे! और ये गोदना प्रथा कब से लागु हुआ और क्यों लागु हुआ इन सभी पक्षों पर आज हम चर्चा करने वाले है चर्चा में जोड़ने से पहले मै आप लोगों से कहना चाहूँगा की आपका जो भी डाउट हो जरुर हमसे चर्चा करें आज हम गोदना के तीनो पक्षों पर सामाजिक पक्ष ,सांस्कृतिक पक्ष ,वैज्ञानिक पक्ष और धार्मिक पक्ष पर चर्चा करेंगे
की क्यो यह गोदना गुदवाते है क्या कारण है की पहले हमारे पूर्वज गोदना गुदवाना जरुरी समझते थे! और ये गोदना प्रथा कब से लागु हुआ और क्यों लागु हुआ इन सभी पक्षों पर आज हम चर्चा करने वाले है चर्चा में जोड़ने से पहले मै आप लोगों से कहना चाहूँगा की आपका जो भी डाउट हो जरुर हमसे चर्चा करें आज हम गोदना के तीनो पक्षों पर सामाजिक पक्ष ,सांस्कृतिक पक्ष ,वैज्ञानिक पक्ष और धार्मिक पक्ष पर चर्चा करेंगे
गोदना का इतिहास
एक मान्यता के अनुसार गोदना का प्रारम्भ पाषण यूग से माना जाता है इस पर तर्क रखते हुए यह कहा जाता है की पहले लोग शिकार करते करते जख्मी हो जाते थे,या किसी प्रकार के घाव हो जाता था वंहा लोग लकड़ी के छिलके या रस को डालते थे तो वह उस जगह जन्हा घाव हुआ रहता था वंहा पर काले निशान बन जाता था और कुछ आकृति जैसे दिखाई देता था और कभी कभी शारीर के चमड़ी भी बहार निकल आता था परन्तु इनका वास्तविक अविष्कार
ईसा से 1300 साल पहले मिस्र में, 300 वर्ष ईसा पूर्व साइबेरिया के कब्रिस्तान में मिले हैं।...ऐडमिरैस्टी द्वीप में रहने वालों, फिजी निवासियों, भारत के गोड़ एवं टोडो, ल्यू क्यू द्वीप के बाशिंदों और अन्य कई जातियों में रंगीन गुदने गुदवाने की प्रथा केवल स्त्रियों तक सीमित है... मिस्र में नील नदी की उर्ध्व उपत्यका में बसने वाले लटुका लोग केवल स्त्रियों के शरीरों पर क्षतचिह्न बनवाते हैं।एक सबूत जो प्रागैतिहासिक लोगों को पता था और टैटू बनाने का अभ्यास करते थे, वे उपकरण हैं जो फ्रांस, पुर्तगाल और स्कैंडिनेविया में खोजे गए थे। ये उपकरण कम से कम 12,000 साल पुराने हैं और टैटू बनाने के लिए उपयोग किए गए थे। सबसे पुराने जीवित टैटू हैं, एज़्ज़ी द आइसमैन, मम्मी आल्प्स में Ötz घाटी में पाए जाते हैं और 5 वीं से 4 वीं सहस्राब्दी ईसा पूर्व तक डेटिंग करते हैं। हम यह भी जानते हैं कि जर्मनिक और केल्टिक जनजातियों ने भी खुद को गोद लिया था। प्राचीन मिस्र से अमुनेट की मम्मी और पज़्रिआर्क, साइबेरिया में ममीज़, (दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के अंत से डेटिंग), । इसलिए टैटू दुनिया भर में मानव इतिहास में बहुत पहले से जाना जाता था।जापान में टैटू अन्य देशों की तुलना में काफी बाद में आया / जापान में इसका चलन 1603 से 1868 के बीच ही मिलता है / यहाँ निम्न दर्जे के लोग ही टैटू बनाया करते थे ताकि सामाजिक पहचान कायम रह सके फिर 1720 से 1870 के मध्य कुछ जापानी अपराधियों में भी कानून टैटू बनाये जाने लगे ताकि उनकी पहचान हो सके /
एक मजेदार बात जापानी टैटू में यह थी कि यहाँ अपराधियों के कलाई पर रिंग बनाकर सजा ख़त्म होती थी अगर , दुबारा वही अपराधी आता था तो सजा समाप्ति पर दूसरा रिंग बना दिया जाता था
प्राचीन मिस्र और भारत ने उपचार के तरीकों के रूप में और धार्मिक पूजा के तरीकों के रूप में टैटू का उपयोग किया। वे एक समाज में एक स्थिति के निशान भी थे लेकिन एक सजा भी। फिलीपींस में टैटू रैंक और उपलब्धियों के निशान थे और वहां के लोगों का मानना था कि उनके पास जादुई गुण हैं।
भारत में गोदना का आरम्भ
1.सामाजिक पक्ष
भारत की बात की जाय तो गोदना सिन्धु घाटी सभ्यता के बाद आर्य लोगों के आगमन के बाद माना जाता है गोदना आरम्भ होने के पीछे की कई किवंदती है परन्तु अगर इसका असली बात में पंहुचा जाए तो यह बात सामने आती है की जब आर्य लोग भारत में आक्रमण किये तो यंहा के मूल निवासियों पर कई अत्याचार किये साथ ही साथ यहाँ के
मूल निवासियों के महिलाओ के साथ में दुराचार भी करते थे और जो स्त्री ज्यादा सुन्दर होती थी उन्हें अपने पठरानी बनाने के लिए ले जाते थे इससे परेशान होकर यंहा के मूल निवासी अपनी स्त्रिओ को कुरूप दिखे इसलिए उनके शारीर में गोदना गुदवाना शुरू कर दिए ताकि किसी महिला को आर्य लोग अपने साथ न ले जाये ! यही धीरे धीरे सभी वर्गों और जाति के सांस्कृतिक धार्मिक और सामाजिक, वैज्ञानिक पक्ष में जुड़ गया
मूल निवासियों के महिलाओ के साथ में दुराचार भी करते थे और जो स्त्री ज्यादा सुन्दर होती थी उन्हें अपने पठरानी बनाने के लिए ले जाते थे इससे परेशान होकर यंहा के मूल निवासी अपनी स्त्रिओ को कुरूप दिखे इसलिए उनके शारीर में गोदना गुदवाना शुरू कर दिए ताकि किसी महिला को आर्य लोग अपने साथ न ले जाये ! यही धीरे धीरे सभी वर्गों और जाति के सांस्कृतिक धार्मिक और सामाजिक, वैज्ञानिक पक्ष में जुड़ गया
2.सांस्कृतिक पक्ष
गोदना को शारीर का आभूषण माना जाता है और आदिवासी में इसका बहुत ही अधिक महत्व होता है कहा भी जाता है की मायके से कोई चीज यह चिन्ह लाया है तो वो है गोदना, कई लोग शौक से भी गोदना गुदवाते है
देखने में अच्छा लगता है करके परन्तु अगर आदिवासी संस्कृति के अनुसार देखा जाय तो गोदना को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है तथा आदिवासियों का मत है की जिनके ऊपर गोदना है उन पर बुरी छाया का प्रकोप नही पड़ता तथा गरीब का गहना माना जाता है क्योकि आज के महगाई में हम गहना नही दे सकते इसलिए गोदना रूपी गहना को दिया जाता है ऐसा मान्यता है , आदिवासी समाज में अपने टोटम चिन्ह गुदवाने की परम्परा है जैसे सूर्य,चद्र,गृह ,पेंड जिव जंतु आदि शोकिये लोग अपने नाम और सरनेम और प्रेमी प्रेमिका और आदि नाम बनवाते है
3.धार्मिक पक्ष
गोदना के प्रति लोगों का ऐसा मान्यता है की यम राज अपने बेटा और उनकी पत्नी को यह आदेश किया की स्त्री और पुरुषो को उनके मान्यता के अनुसार चिन्ह अकित करना तांकि उनके पहचान किया जा सके और जिनके शरीर में गोदना है उन्हें मुक्ति मिल पायेगा और जिनके ऊपर गोदना का निसान नही पाया गया उन्हें मृतु के बाद सब्बल से गोदा जायेगा ऐसी किवदंती जन समूह में सुनने को मिलता है ,मुझे तो यह एक कहानी मात्र लगता है पर देवार और आदिवासी समाज में इस प्रकार का भ्रम आज भी सुनने को मिल जायेगा , और यह माना जाता है की जिनके शरीर में गोदना है उन्हें कोई भी जादू टोना आसानी से नही लगता और न ही कोई देवी प्रकोप जल्दी से लगता है
4.वैज्ञानिक (चिकित्सा) पक्ष
गोदना गोद्वाने के पीछे वैज्ञानिक करना यह है की अगर कोई
बच्चा चलने में कोई तकलीफ हो रहा है नही चल पा रहा
है तो उसको गोदना गोद्वाने से चलने लगता है, और गोदना से
गठियाबात के इलाज के रूप में भी प्रयोग किया जाता है
पोलियो जिसे बीमारी होने से रोकता है, रक्त संचार सुद्रिण करता
है तथा रक्त से सम्बंधित बीमारियों को दूर करने में सहायक है
गोदना गोदने वाली जाति
गोदना गोदने के लिए देवार जाति को अधिक दक्ष माना जाता है
परन्तु गोंड जनजाति भी अपने परिवारों वालो का
गोदना खुद गोद लेती है
गोदना के अन्य नाम
दक्षिण भारत में इसे पच कुर्थू कहते है
गोदना स्याही के प्रकार और बनाने का तरीका -
गोदना गोदने की
प्रथा पीढ़ी-दर पीढ़ी हस्तांतरित होती चली आ रही
है । गोदना का कार्य समान्यत: देवार जाति के लोग करते हैं वैसे
कई अन्य जातियों के लोग भी यह कार्य करते हैं
पहले गोदना का कार्य परिवार की कोई बुजुर्ग महिला करती थीं,
परंतु अब इसे व्यावसायिक तौर पर अपना लिया
गया है। सरगुजा में मलार जाति की महिलाएं गोदना का कार्य
करती हैं, जिन्हें गोदनहारी या गुदनारी कहा जाता
है। गोदना जिस उपकरण से बनाया जाता है
, उसे सुई या सुवा
, उसे सुई या सुवा
कहा
जाता है। गोदना गोदने के लिए तीन या इससे
अधिक सुवा एक विशेष ढंग से बांधकर सरसों के तेल में चिकने
किए जाते हैं। इन तीन या चार सुइयों के जखना
काजर बिठाना कहते हैं काजर बनने के बाद इसे
पानी में घोल लिया जाता है फिर शुरू होती है गोदना बनाने की
शुरुआत। इसके तहत सबसे पहले चीन्हा बनाया
जाता है। इस क्रिया को लिखना भी कहते हैं। बांस की पतली
सींक
या झाड़ू की काड़ी से गुदनारी गोदना गुदवाने
वाले के शरीर पर विशेष आकृति अंकित करती है। तत्पश्चात
गुदनारी अंग विशेष पर दाहिने हाथ की कानी उंगली
से टेक लेकर अंगूठे और तर्जनी उंगली की सहायता से फोसा की
मदद से गोदने गोदती हैं। गोदना पूरा होने के
बाद
काजर में डूबी जखनादार सुई से उसमें रंग भर दिया जाता है
।
।
गोदना गुदने पर अंग में सूजन आ जाती है। इसे
दूर करने गोबरपानी और सरसों का तेल का लेप लगाया जाता है।
गोदना वाला शरीर का स्थान पके न इसके
लिए
हल्दी और सरसों का तेल लगाया जाता है। करीब सात दिनों में
गोदे हुए स्थान की त्वचा निकल आती है और
शरीर की सूजन खत्म हो जाती है। बैसे तो गुदना गुदवाने का
काम
साल भर चलता है, परंतु ग्रीष्म ऋतु में
गोदना
गुदवाना उचित नहीं है। इस दौरान गोदना पकने का सबसे ज्यादा
खतरा होता है।
गोदना गुदवाने का सबसे अच्छा
गोदना गुदवाने का सबसे अच्छा
समय शीत ऋतु माना जाता है। गुदना प्रथा के लिए वे भिलवां
रस,
मालवन वृक्ष रस या रमतिला के काजल को तेल के घोल में
फेंट कर उस लेप का इस्तेमाल किया जाता है। बैगा आदिवासी मुख्यत जिन जड़ी-बूटियों का उपयोग करते हैं उनमें वन अदरक, बांस की पिहरी, कियोकंद, तेलिया कंद, वन प्याज, वंश लोचन, सरई की पिहरी, काली हल्दी, वन सिंघाड़ा, ब्रह्म रकास, तीखुर, बैचांदी, बिदारी कंद आदि प्रमुख हैं। इन्हीं जड़ी-बूटियों के सहारे बैगा युवक अपने शरीर की सुन्दरता के लिये गुदना गुदवाते हैं। बैगा युवतियां गुदना गुदवाने के लिये बीजा वृक्ष के रस या रमतिला के काजल में दस बारह सुइयों के समूह को डुबाकर शरीर की चमड़ी में चुभोकर गुदवाती है। खून बहने पर रमतिला का तेल लगाते हैं। इनकी ऐसी धारणा है कि गुदना गुदवाने से गठिया वात या चर्म रोग नहीं होते।
गोदना के नुक्सान
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शरीर विज्ञान विभाग द्वारा किए गए एक शोध अध्ययन से यह पता चला है कि (गोदना का वर्तमान रूप) के कारण त्वचा और हड्डी के कैंसर की संभावना बढ़ती है। इससे कई चर्मरोग पैदा होते हैं। फिलहाल गोदना से होने वाले कैंसर पर शोध कार्य जारी है।
यूरोपीय आयोग ने बकायदा एक स्वास्थ्य चेतावनी जारी कर रखी है और कहा है कि यूरोपीय देशो की सरकारें सुरक्षा के लिए कदम उठाए। दरअसल एक शोध में कहा गया है कि गोदने में उपयोग में लाए जा रहे रसायनों से संक्रमण का खतरा हो गया है। जो लोग अपने शरीर पर गोदना गुदवाने की योजना बना रहे हैं, उनसे यूरोपीय आयोग ने सवाल पूछा है कि क्या वे अपने शरीर में कार पेंट का उपयोग करना चाहते हैं।
यूरोपीय आयोग ने बकायदा एक स्वास्थ्य चेतावनी जारी कर रखी है और कहा है कि यूरोपीय देशो की सरकारें सुरक्षा के लिए कदम उठाए। दरअसल एक शोध में कहा गया है कि गोदने में उपयोग में लाए जा रहे रसायनों से संक्रमण का खतरा हो गया है। जो लोग अपने शरीर पर गोदना गुदवाने की योजना बना रहे हैं, उनसे यूरोपीय आयोग ने सवाल पूछा है कि क्या वे अपने शरीर में कार पेंट का उपयोग करना चाहते हैं।
शोध में कहा गया है कि गोदने में उपयोग में लाए जाने वाले ज्यादातर रसायन औद्योगिक रसायन होते हैं, जिनका उपयोग वाहनों के पेंट या फिर स्याही बनाने में होता है। इन रसायनों का उपयोग शरीर के किसी भी हिस्से में करना बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है। सूई द्वारा शरीर पर किया जाने वाला टैटू यानी गोदना कुष्ठ रोग के फैलाव का प्रमुख कारण हो सकता है। कुष्ठ रोग के व्यापक प्रभाव वाले राज्यों में शामिल छत्तीसगढ़ को आधार मिल रहा है कि शरीर की त्वचा पर सुई चुभाकर उसके सहारे रंगों के प्रवेश के स्थायी निशान बनाने की कला गोदना, कुष्ठ रोग के जीवाणु के संवहन का प्रमुख कारण हो सकती है। आज भले ही लोग एक छोटे से आपरेशन या कुछ रसायनों से इसे मिटाने का दावा करते हैं, लेकिन सच तो यह है कि गोदना मिटाने की कारगर विधियां अभी विकसित नहीं हुई हैं और वांछित उपचार के बाद भी इसके निशान जीवनभर बने रहते हैं।
यूरोपीय देशों में लागू कानून के तहत टैटू बनाने वाले या गोदना गोदने वाले व्यक्ति को दस्ताने पहनना और अपनी सुई को जीवाणुरहित रखना जरूरी है। लेकिन इन देशों में गोदने के उपयोग में आने वाले रसायन को लेकर कोई कानून नहीं है। इसके अलावा यूरोपीय आयोग ने चेतावनी दी है कि पिछले साल शरीर छिदवाने से दो लोगों की मौत हो गई। शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि जो लोग गोदना गुदवा रहे हैं या शरीर छिदवा रहे हैं उन्हें हेपेटाइटिस और एचआईवी का खतरा हो सकता है।
यूरोपीय आयोग के शोध आयुक्त फिलिप बसक्विन का कहना है कि यह चेतावनी सुरक्षा की दृष्टि से जारी की गई है। उनका कहना है कि आयोग चाहता है कि जो लोग गोदना गुदवाना चाहते हैं या शरीर छिदवाना चाहते हैं वे सावधानी बरतें। यूरोपीय आयोग वैज्ञानिकों, डाक्टरों और गोदना व शरीर छेदने के काम में लगे लोगों की एक बैठक कर चुका है और सबने स्वीकार किया है कि इससे सवधानी बरतने की जरूरत है। आयोग 45 देशों के साथ मिलकर इस फैशन पर नजर रखने जा रहा है। त्वचा या स्किन पर किसी भी बाहरी स्थाई चीज़ को लगाना चिकित्सकों के माने तो नुकसान देह है
जैसे इससे स्किन पर रिएक्शन हो सकता है , मेडिकल साइंस कहता है कि ब्लैक डाई का टैटू मानव शरीर की स्किन के लिए खतरनाक हो सकता है /
अगर पुरने सुई से गोदना बनाई जाती है तो टिटनेस या हैपेटाइटिस का खतरा बड़ सकता है , शराब पीकर गोदना नही बनाना चाहिए क्योंकि इससे खून बहते है और ब्लीडिंग जैसी समस्या बन सकती है
गोदना बनाने के बाद नार्मल होने में करीब दो हफ्ते का समय लगता है , इस दौरान उस जगह पर खुजलाना नही चाहिए / स्किन पर बुरा पड़ता है / और खास बात यह है कि गोदना वाले स्थान पर घाव न हो इस का ध्यान रखें /
नोट:- कुछ जानकारीयां विभिन्न इंटरनेट माध्यमो से प्राप्त जानकारी के अनुसार है
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