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प्राकृतिक देव और वर्तमान देवी देवता में अंतर व धर्म की उत्पत्ति (आर्यन चिराम)prakritik devi devta or vartmaan devi devta me antar va dharm ki utpatti(aaryan chiram)

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    धर्म की शुरुआत

    नमस्कार दोस्तों आज मै चर्चा करने वाला हूँ की धर्म की शुरुआत कंहा से और कैसे हुआ तथा देवी देवताओ का विकास पर चर्चा आगे बढ़ाने से पहले आप लोगों को से कुछ जानकारिया साझा करना चाहूँगा 
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    धरती के 4.6 बिलियन वर्ष इतिहास में जीवन का इतिहास इस प्रकार है-

    • पिछले 3.6 बिलियन वर्षों तक, सरल कोशिकाएँ (prokaryotes);
    • पिछले 3.4 बिलियन वर्षों तक, स्यानोबैकेटीरिया (cyanobacteria) प्रकाश संश्लेषण करता रहा;
    • पिछले 2 बिलियन वर्षों तक, जटिल कोशिकाएँ (eukaryotes);
    • पिछले 1 बिलियन वर्षों से, बहुकोशिकीय जीवन
    • पिछले 600 मिलियन वर्षों तक, सरल जन्तु;
    • पिछले 550 मिलियन वर्षों के लिए, द्विपक्षीय, सामने और पीछे के साथ जल जीवन रूपों;
    • पिछले 500 मिलियन वर्षों के लिए, मछली और आद्य-उभयचर;
    • पिछले 475 मिलियन वर्षों के लिए, भूमि वनस्पति;
    • पिछले 400 मिलियन वर्षों के लिए, कीड़े और बीज;
    • पिछले 360 मिलियन वर्षों के लिए, उभयचर;
    • पिछले 300 मिलियन वर्षों के लिए, सरीसृप;
    • 252 मिलियन साल पहले, त्रिलोबाइट्स, पर्मियन-ट्राइसिक विलुप्त होने की घटना में;
    • पिछले 200 मिलियन वर्षों के लिए, स्तनधारियों;
    • पिछले 150 मिलियन वर्षों के लिए, पक्षियों;
    • पिछले 130 मिलियन वर्षों के लिए, फूल;
    • 66 मिलियन साल पहले, क्रेटेशियस-पैलियोजीन विलुप्त होने की घटना में, पॉटरोसॉर और नॉनवियन डायनासोर।
    • पिछले 60 मिलियन वर्षों से, प्राइमेट्स,

    • पिछले 20 मिलियन वर्षों के लिए, परिवार होमिनिडे (महान वानर);
    • पिछले 2.5 मिलियन वर्षों के लिए, जीनस होमो (मानव पूर्ववर्तियों);
    • 2.4 बिलियन साल पहले, ऑक्सीजन की तबाही में कई ओरेबॉब्स को नष्ट कर देते हैं;
    • पिछले 200,000 वर्षों के लिए, शारीरिक रूप से आधुनिक मानव।
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    • ·        पाषाण ifuh 70000–3300 ई.पू.

      पुरापाषाण काल (Paleolithic Era)

      ·        २५-२० लाख साल से १२,००० साल पूर्व तक।

      मध्यपाषाण काल (Mesolithic Era)

      १२,००० साल से लेकर १०,००० साल पूर्व तक। इस युग को माइक्रोलिथ (Microlith) अथवा लधुपाषाण युग भी कहा जाता हैं।
      इस काल मेंअग्नि का आविष्कार हुआ था|
      नियोलिथिक युग, काल, या अवधि, या नव पाषाण युग मानव प्रौद्योगिकी के विकास की एक अवधि थी जिसकी शुरुआत मध्य पूर्व[1] में 9500 ई.पू. के आसपास हुई थी,
    • सभ्यता का विकास लगभग 8500 और 7000 ईपू के बीच
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    • पृथ्वी की प्रथम सभ्यता 

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    ऊपर जो जानकारिया आप लोगों से सेयर किया हूँ उनका जरुरत आगे पढने वाला है तो आप लोगों को सीधा ले चलता हूँ मानव जीवन की उत्पत्ति पर आज से लगभग ३००००० पूर्व पूर्व हुआ था माना जाता है तो धर्म की शुरुआत कैसे हुई होगी? सबसे पहले शुरुवाती जीवन में मानव जीवन का लक्ष्य केवल भोजन करना और अपनी सुरक्षा करना साथ ही प्रजनन कर अपने वंश वृद्धि करना मात्र था,
    पूरा पाषण यूग में के समय वातावरण बहुत ही अधिक तीव्र से प्रवर्तित हो रहा था और मानव एक पशु की जिंदगी व्यतीत कर रहा था, जैसे बांकी  पशु समूह में रहते थे वैसे ही मानव भी समूह में रहते थे, सिकार और कंद मूल फल खा कर तथा प्रजनन कर और अपना जीवन व्यतीत करते थे, उन्हें भी ठण्डी और गर्मी का अहसास होता था

    पानी से बचने के लिए पेड़ो और गुफाओ का सहारा लेना शुरू किये तथा अपने सुमह के बांकी लोगों को इशारे और एक प्रकार के आवाज से सुचना पंहुचा पाने लगे जैसे ख़ुशी में तथा दुःख में तथा खतरे की स्थिति में एक ही प्रकार के आवाज निकाल कर अपने समूह के लोगों को सुचना पहुचने लगे फिर धीरे धीरे अलग अलग स्थिति के अनुसार अलग अलग प्रकार से एक ही आवाज को निकलने लगे फिर धीरे धीरे अलग अलग स्थिति के लिए अलग अलग आवाज और शब्द निकालने लगे ,जैसे ख़ुशी के लिए एक अलग प्रकार का आवाज और एक अलग प्रकार की गतिविधि किया जाने लगा, फिर दुःख में आंसू निकालकर एक अलग प्रकार का आवाज और गतिविधि करने लगे, फिर सिकार न मिलने पर एक अलग प्रकार के भावना के साथ एक भिन्न प्रकार के गतिविधि करने लगे, और जिस दिन सिकार मिल जाता उस दिन सभी गुरप में मिलकर एक अलग प्रकार का गतिविधी कर उस खुसी को व्यक्त करने लगे,

    ,तथा दुःख को व्यक्त करने के लिए अलग प्रकार का शारीरिक गतिविधि और अलग प्रकार का  भावना व्यक्त करने लगे साथ ही अलग प्रकार का आवाज निकालने लगे और जब खुश होते थे तो अब समूह में मिलकर शारीरिक गतिविधि करते थे और समूह में एक अलग प्रकार के एक साथ आवाज निकालते थे व सभी समूह में अपने खुसी को व्यक्त करते थे ,,,दरअसल इसे भाषा का शिशु काल या भ्रूण काल कहा जा सकता है,,,,,समय बीतता गया और जीवन यापन और वातावरण परिवर्तित होता गया समय के साथ कई सारी गतिविधि बदल गई लाखो वर्षो बाद उनकी जीवन पद्धति


    कुछ ऐसी हो गई थी जैसे समूह में रहना और ठण्ड से बचने के लिए इकठ्ठे रहना भोजन को मिलकर खाना और समूह में सिकार करना आदि ,,,,,,,कुछ वर्षो बाद इनमे एक और भावना जागृत हो गई थी जिसे हम आज के यूग में आशा, विश्वास ,उम्मीद या भरोसा कह सकते है,,वे अपने समूह के लोगो में विश्वास करने लगे


    की ये हमे नुक्सान नही पहुचायेगा और और वे सब मिल जुल कर कंदराओ में रहना शुरू कर दिए और उम्मीद भी जागृत होने के कारण उन्हें एकात दिन अगर सिकार और फल फुल नही मिल पाता था तो ये उम्मीद कर लेते थे की अगले रोज सिकार या खाने को जरुर मिलेगा


    धर्म का भ्रूण काल

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    कुछ वर्ष पश्चात  इसी यूग में एक और भावना का भी विकास हो गया था आदिमानवो में वो है डर उन्हें अब डर भी होने लगा था की कंही अन्य जानवरों द्वारा नुक्सान न पहुचाया जाए इसलिए वे पेड़ो के ऊपर और गुफाओ में रहने लगे तथा बरसात से डरने लगे, गर्मी से डरने लगे रात से डरने लगे,ठण्ड से डरने लगे जानवरों से डरने लगे मौसम परिवर्तन से डरने लगे,


    भूकम्प ज्वालामुखी से डरने लगे, और बहुत सारी चीजे से वे डरने लगे अब जानते है डरने के कारण डरने का कारण पानी गिरने पर कई बार पेड़ पौधा गिर जाता था जंहा वे रहते थे जिससे कई बार कई उनके समूह के लोग मारे जाने लगे जिससे वे बरसात और पानी से डरने लगे,कई बार उनके सदस्य बिजली गाज के चपेट में आकर मृतु को प्राप्त हो जाते थे,


    भुकम्प्नो से भी डरने लगे क्योकि उस समय भू स्लेट अपना स्थिति बदल रहा था कई महाद्वीप बन रहे थे तो वे कंदराओ और गुफाओ में रहते थे जिससे उनके उप्पर पत्थर गिर जाते थे जिनसे उनके समूह के कई सदस्य दब कर मर जाते थे जिससे वे भू स्खलन और भूकम्प से डरने लगे व ,गर्मी के दिनों पर उन्हें पानी के कमी के


    कारण भी उनकी कई सदस्य अपने जान से हाथ धो बैठे इसलिए वे प्राकृतिक ऋतू परिवर्तनों से डरने लगे, कहने का तात्पर्य ये है की जिससे उनको व् उनके समूह के सदस्यों को खतरा था वे सभी चीजो से डरने लगे,कई जंगली जानवर जो रात में सिकार करते थे उनसे भी डरने लगे उनसे

    बचने के लिए गुफाओ में रहने लगे ,आग का खोज पूरा पाषण यूग में कर हो गया पर उनका उपयोग करना नही सीखे थे जिनके कारण आग से भी डरने लगे क्योकि आग में भी उनके कई सदस्य जलकर मर गये वे आग पर काबू पाना नही सिखे थे और आग को भयंकर दानव समझकर डरते थे,


    ,,ऐसे करते करते कई हजार वर्ष गुजारे फिर ,,,उन सभी चीजे और प्राकृतिक जिनसे उन्हें खतरा था ऋतू जिनसे उन्हें खतरा था उनसे डरते तो थे ही पर अब वे इन सब से भी बड़ा कोई शक्ति है जो ये सब करता है और करवाता है ऐसा विश्वास करने लगे इसे
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     धर्म का सही स्टार्ट अवस्था

    कहा जा सकता है तथा वे सिकार में जाने से पहले उस शक्ति को मन से याद करते थे की हमे सिकार मिले जाए,


    रात होता था तो भी उस शक्ति को याद करते थे की हमे बचाकर रखना ,आदि यह समय था पूरा पाषण यूग का उतरोतर और  मध्य पाषण यूग का शुरू उन्हें एक शक्ति का अहसास हो गया था की इस सब से भी बड़ा कोई शक्ति है जो ये सब खेल करवाता है समय बीतता गया और मध्य पाषण यूग आ गया मध्य पाषण यूग में लोग पत्थरो का नुकीले औजार का प्रयोग करना अछे से सिख गये वैसे पूरा पाषण यूग से पत्थरो का


    ओजार प्रयोग कर रहे थे परन्तु मध्य पाषण यूग में पत्थरो का ओजार अछे से प्रयोग करना सिख चुके थे और अब


    बात करते है उनके विश्वास और धर्म की जब वे अपना पत्थर के औजार नही देख पाते थे तो तिलमिला उठते थे और जब उन्हें मिल जाता था तो उन्हें बहुत ख़ुशी मिलती थी
     और अपने खुशी को व्यक्त करने के लिए अलग प्रकार के शारीरिक गतिविधि करते थे और एक अलग प्रकार के आवाज निकालते थे,पहले के अपेक्षा उनके शरीर भी कांफी बदल गये थे और वे चार पैरो में न चलकर दो पैरो में चलना सिख चुके थे,

    और उनका प्रकृति शक्ति पर विश्वास और अधिक होने लगा था समय बीतता गया और कई सारा प्राकृतिक परिवर्तन और


    जलवायु परिवर्तन हुआ और धीरे धीरे मध्य पाषण यूग के उतरोतर और नवपाषाण यूग के आगमन में मानव पुरे तरह से रहना और खाना और औजारों का उपयोग करना सिख गया था, और इनकी प्राकृतिक शक्ति पर विश्वास और गहरा हो चूका था अब वे प्राकृतिक चीजे जिनसे उनकी डर कम होती थी उन्हें उस शक्ति का

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    स्वरूप मानने लगे थे ,जैसे उनके औजार जिनसे वे शिकार करते थे तथा खुद की सुरक्षा करते थे उन्हें उस शक्ति का स्वरूप मानकर श्रद्दा रखने लगे जिस पेड़ में रहकर अन्य जंगली जिव से खुद की रक्षा करते थे उस वृक्ष पर श्रद्दा रखना चालू कर दिए जिस गुफा में वे रहते थे रात बिताते थे उनपर उस शक्ति का स्वरूप मानना शुरूकर दिए, इसी यूग में वे आग का उपयोग करना सिख चुके थे इसलिए वे आग को भी उस शक्ति का स्वरूप समझकर उनपर श्रद्दा रखना शुरू कर दिए, वे रात से डरते थे रात को सूर्य की रोशनी दूर कर देती थी जिससे उनको लगता था की उनकी रक्षा वह शक्ति करता है इसलिए सूर्य पर भी श्रद्दा


    रखना शुरू कर दिए और पानी पर भी श्रद्दा करना शुरू कर दिए थे इस नवपाषण यूग में यह बात तो स्पस्ट हो गया की लोग उन सभी वस्तु या प्राकृतिक चीजे जिनसे उनकी रक्षा होती थी उन सब को उस अविजयी शक्ति का स्वरूप मानकर उन पर श्रद्दा करना पूरी तरह सिख गए थे,,,, “एक बात मै स्पस्ट करना चाहता हूँ की मै केवल धर्म पर लेख लिख रहा हूँ तो पूरा पाषण काल में और क्या क्या हुआ क्या क्या सीखे या


    मध्य पाषण काल में और क्या क्या अन्य चीजे सीखे या नव पाषण काल में और क्या क्या विकास किये इन पर मै प्रकाश नही डाल रहा हूँ मै केवल धर्म की उत्पत्ति पर प्रकाश डाल रहा हूँ और आगे के यूगो (कास्य,लौह,) में भी केवल धर्म पर ही प्रकाश डालूँगा
    ” और नवपाषण यूग के उतरोतर में और कास्य यूग के प्रारम्भ में मानव अपने प्राकृतिक श्रदेय को अपने मन पसंद खाद्य सामग्री और
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    अन्य चीजे अर्पण करना सिख गये थे पर अभी भी लोग प्राकृतिक निर्मित चीजो पर ही अपना श्रद्दा रख रहे थे जैसे कोई शिकार में जाने से पहले अपने श्रदेय के पास कुछ समय के लिए एकत्रित होना Tumesh chiram   और सिकार में जो भी वस्तुए प्राप्त हो उसे कुछ मात्र में अपने श्रदेय को अर्पण करना शुरू में केवल खाद्य सामग्री अर्पित की जाने लगा,,, फिर  कास्य यूग में वे  धीरे धीरे अपने ओजार या अन्य उपयोगी चीजे अर्पित की जाने


    लगी इस यूग के आते आते इंसान कृषि और पशु पालन सिख चूका था, तो अछे फसल के लिए अपने प्राकृतिक शक्ति को प्रसन्न करना विनती करना सिख चुके थे तथा वे औधोगिक काल की और और उन्नति काल की और अग्रसर हो रहे थे साथ ही साथ उनकी उस अमूर्त रूप को मूर्त रूप देने की परम्परा का भी शुरुआत हो


    चूका था साथ ही लिपि और शैल चित्रों का भी प्रयोग और और संकेतो का भी प्रयोग का आरंभ हो चूका था और लौह यूग के आते आते कई सभ्यताए और निर्मित हो चुकी थी जो पहले के अदिमानवो से कांफी सभ्य और एक जगह बस कर नगरीय जीवन बिताने के लिए पूर्ण रूप से तैयार हो चुके थे, और इन्ही प्राकृतिक का मूर्त रूप का एक अच्छा उदहारण सिंदु घाटी सभ्यता का पशुपति  मिश्र की पिरामिंड और मेसोपोटामिया,

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    माया नगर, हड्ड्प्पा सभ्यता,सुमेर सभ्यता,में इनके कई उदाहरण देखने को मिलता है अब मानव परम शक्ति का सवरूप प्राकृतिक में न देखकर उनको मुर्हत रूप देने में लग गया था, और इन्ही सभ्यताओ के अंत तक व्यक्ति पूर्ण रूप से एक अविजयी शक्ति के स्वरूप को आत्मसाध कर लिया था परन्तु उन्हें मुहूर्त रूप देने में वे अपने कल्पना के अनुसार उस अविजयी शक्ति को मानवरूप देना एक प्रकार का अपने कल्पना का मानवीय रूपांतरण था,


    बल्कि इससे पहले पानी में अपने श्रदेय को देख रहे थे सूर्य में पेड़ में प्राकृतिक निर्मित वस्तुओ में देख रहे थे उस शक्ति को फिर अचानक कैसे उन्हें मानवीय रूप में साकार और मान लिया गया फिर

    लोह युग के मध्य काल में धीरे धीरे अपने श्रदेय को प्रसन्न करने के लिए तरह तरह का पूजा शुरू हो गया और अपने इच्छा हेतु कामना और चुकी यह सभ्यता के
     एक विस्तृत काल बाद यह लोह मध्य काल आया था इसे धर्म का जवानी रूप मान सकते है  इस यूग के आते आते अपने श्रदेय को प्रसन्न करने के लिए तरह तरह का उपाय किया जाने लगा चूँकि भाषा भी कांफी विस्तृत और सभ्यता भी कांफी विकसित हो चूका था और मानव का विवेक भी कांफी परिवर्तित हो चूका था परन्तु धर्म के प्रति अंधविश्वास के चलते वे अपने श्रदेय को प्रसन्न करने हेतू फल फुल और मानव बलि ,


    पशु बलि की शुरुआत हो गया था अब धर्म में कई प्रकार की कुरीति धीरे धीरे सामिल होते गया और नवपाषण यूग के आते आते ये अंध विश्वास कांफी फल फुल गया इस यूग में जंहां शिक्षा का एक नया युग प्रकाश फैला रहा था तो अंधविश्वास यूक्त धर्म भी अपना वर्चस्व कायम करने हेतु तरह तरह के उपाय करने लगे थे ,,कोई भी निर्माण कार्य में नर बलि पशु बलि तंत्र


    विद्या इस यूग का एक महत्वपूर्ण बिंदु रही .इस यूग में तंत्र विद्या और अन्धविश्वास कांफी बड़ा साथ में टोना टोटका और पूजा पद्धति में पूरी तरह परिवर्तन आ गया,,अब यहां से दो नया मोड़ निकला चुकी यह शिक्षा का प्रचार प्रसार पश्चात्य देशो में होने लगी वही अपने भारत में कल्पना शील संसार की विकास जोरो पर रही ,नव लोह यूग में लोगो के दिलो दिमाग में धर्म घर कर गया था अब आते है नये धर्म की काल्पनिक संसार मे
    काल्पनिक संसार
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    वैदिक काल में अनेक ग्रंथो और पुराणों और वेदों की रचना की गई साथ ही सभी लेखो अभिलेखों को लिपि बद्ध किया जाने लगा और इस तथा यह यूग सभ्यता के आने के लगभग २००० ई पु के बाद वैदिक काल का आरंभ हुआ और इस यूग में बलि प्रथा


    को और बल मिला और इस यूग में पुजा पद्धति पूरी तरह बदल गई पाली संस्कृत और मंत्रो द्वारा देवताओ को प्रसन्न करने हेतु यज्ञो हवन की निर्माण होने लगा, और पूजा में जो प्राकृतिक का पूजा किया जाता था उनके स्थान पर मुर्हत रूप देकर इंसानों जैसा सवरूप का कल्पना किया जाने लगा तथा उनका


    नाम करण किया गया इसी वैदिक काल का ही देन आज के इंद्र ब्रम्ह विष्णु शंकर आदि देव है तथा दान दक्षिणा और बलि प्रथा और सामाजिक वर्ण वयवस्था इसी काल्पनिक या वैदिक काल का ही देन है जो पुरे भारत को सामाजिक व अन्य क्षेत्रो में कार्यो के आधार पर विभाजित कर कई नये कुप्रथा का आरंभ कर दिया गया जो वैदिक काल के कई वर्षो तक हजारो गरीब और निचले वर्ण के लोगों को कुचलने का कार्य किया,और निचे वर्ण के लोगों को शिक्षा से दूर रखा गया ,

    ,इसी काल में कई वर्षो बाद अनेक काल्पनिक कथाओ का लेखन हुआ रामायण महाभारत और और अन्य कथाओ का जोरो से प्रचार प्रसार होने लगा जिन्हें हम वास्तविक मानकर चलने लगे जिन्हें आज हम वास्तविक मानने लगे जो आज से महज लगभग २५०० से १५०० वर्ष के आस पास माना जाता है

    वर्तमान देवी देवता और आदि देवी देवता में अंतर


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    और आदिमानव पहले उन सभी चीजो से डरता था जिनसे उन्हें खतरा था फिर धीरे धीरे जिनसे उनको खतरा था, तथा जिनसे वे उन खतरों से लड़ सकते थे उनकी पूजा करने लगा और धीरे धीरे वे उन सभी प्राकृतिक चीजे जिनसे उन्हें कुछ न कुछ प्राप्त होता है उन पर श्रद्दा रखने लगा और वे धीरे धीरे उन सभी प्राकृतिक चीजो से भी परे एक असीम व् अविजयी शक्ति की कल्पना करने लगे और धीरे धीरे उसी

    असीम शक्ति को वे प्राकृतिक वस्तुओ में देखने लगे और धीरे धीरे पुरे प्राकृतिक को श्रदेय की तरह मानने लगा और सभ्यता के आने से कुछ वर्षो पहले तक वे पानी,अग्नि,सूर्य,चाँद,पेड़,पौधे और ,पत्थरो का, औजारों का पूजा करना और खाद्य प्रदार्थ अर्पण करना शुरू कर चुके थे तथा सभ्यता के अस्तित्व में आने तक वे प्राकृतिक को मूर्त रूप में देना शुरू कर चुके थे सिंदु सभ्यता की पशुपति का मूर्ति उन्ही का एक सवरूप है और इस प्रकार प्रकृति से
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    आदमी धीरे धीरे काल्पनिक की ओर आते गया क्योकि यह मानव का विकासक्रम था और साथ ही प्रकृति भी अपने सवरूप में कई परिवर्तन कर रहा था और सभ्यता धीरे धीरे विस्तृत होते गया और मनुष्य का मस्तिष्क भी धीरे धीरे विकसित होते गया और उनकी कल्पना और सोचने समझने की क्षमता में अदितीय परिवर्तन हो चूका था वैदिक काल के आते आते वे एक


    पूर्ण सोचने समझने और क्या अच्छा और क्या बुरा है यह जानने में सक्षम हो चूका था ,अगर हम आदि देवी देवता और प्राकृतिक पर श्रदेय का असली शुरुआत माने तो नवपाषण यूग को मान सकते है जो वर्तमान से लगभग  ५००००० से १०००० ई पु मान सकते है और जब से सभ्यता आया लगभग ८०००से ३००० तक हम मूर्त रूप या मूर्ति पूजा का अस्तित्व मान सकते है और वर्तमान जो देवी देवताओ को नाम करण किया गया यह सब वैदिक काल में आज से लगभग ३००० से १२०० ई पु माना जा सकता है


    और इन सब का चित्र और फोटो का शुरुआत और उनको प्रसन्न करने का इतिहास जायदा पुराना नही है आज से लगभग २०० साल मान सकते है  आज से लगभग १७१ साल पहले राजा रवि दस वर्मा का जन्म त्रिवंपुरम किलिमानुर राजमहल में लगभग २९ अप्रेल १८४८ में हुआ जिन्हें आधुनिक देवी देवताओ के तैलीय चित्रों का जनक माना जाता है

    ठीक ऐसे ही गणेश पूजा का भी इतिहास आज से लगभग १५० साल पुराना है सन 1893 से गणेश पूजा का शुरुआत हुआ ,दुर्गा पूजा का इतिहास लगभग 1950 -५५ के आस पास देखने को मिलता है
    हमारे जीवन में आदि देव के स्थान पर वर्तमान देवी देवता कैसे आती गई ?
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    ऊपर पृत्वी के उत्पत्ति से मानव उत्पत्ति और युगों का शुरुआत और साथ में सभ्यता का शुरुआत बताया गया है समय के अनुसार हम सभी के पूर्वज जैसा की ऊपर बताया गया है Tumesh chiram   जैसे जैसे विकास और समझ में विकास होता गया वैसे वैसे प्राकृतिक को अपने श्रदेय मानते गये और धीरे


    धीरे उन्ही को मूर्त रूप देते गए उसके बाद उनकी कल्पना में वे देवी शक्ति का मानवीय रूपांतरण और कल्पना करने लगे तथा धीरे धीरे उनका मानवीय नामकरण भी करने लगे फिर धीरे धीरे अपने कल्पना के अनुसार उनका शक्ति वर्णित करते गये और सब की आरती वगैरा शुरू हुआ अब आते है ,,वैदिक काल के पश्चात सामाजिक वर्ण व्यवस्था लागु कर दिया गया काम के अनुसार उनकी सम्प्रदाय बना कर एक वर्ण शुद्र को सभी चीजो से वंचित रखा गया और उन्हें


    तरह तरह से प्रताड़ित किया जाने लगा उन्हें मंदिरों में प्रवेश से निषेध रखा जाने लगा उन्ही के विरोध में शुद्र मंदिरों में प्रवेश हेतु प्रयत्न करने लगे व कांफी विरोध पश्चात भी उन्हें कई अधिकारों से वंचित रखा गया परन्तु वे इन देवी देवतो को लगभग १७वि सताब्दी में अपना मानना शुरू कर दिए थे समय बीतता गया और १९वि शताब्दी आते आते पूरी


    तरह अपना चुके थे तथा जो वैदिक धर्म से जिनको लाभ हो रहा था उन्हें पता हो गया की सुद्रो से धर्म के नाम पर अछि खाशी कमाई की जा सकती है स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सभी को कोई भी धर्म मानने की छुट गई थी तो कई वैदिक धर्म चार्य जिन्हें आभास हो गया था की सुद्रो को मंदिरों से दूर रखने में नही अपितु मंदिर में प्रवेश देने से जायदा फ़ायदा है वे सुद्रो को मंदिर में प्रवेश देने के लिए सहमत हो गये और धीरे धीरे पूजापाठ के नाम से दान दक्षिणा मांग कर यंहा के आदिवासी और निचे तबके के लोग जिन्हें ये


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    प्रपच्कारी शुद्र कहते थे उनको लूटना चालू हो गया धर्म और पाखंड के नाम से फिर अनेक प्रकार से धर्म के नाम से लुट पाट किया जाने लगा गृह कलेश और शनी दशा मुहूर्त आदि आदि के नामो से और लगभग १८ वी १९ वी सताब्दी में ही ये हमारे परम्परागत त्योहारों में भी इनके पूजा पद्धति लागु हो चूका था नारियल अगरबत्ती गुलाल आदि तो हम कह सकते है आज से लगभग २ पीढ़ी पहले से

    ही यह भगवान जो वर्तमान में मान रहे है हमारे तीज त्योहारों में और हमारे आचार विचारो में प्रवेश किया है और बहुत सारा विचार है जिन्हें कभी अन्य पोस्ट में दर्शाउंगा आज के लिए बस इतना ही क्योकि लेख बहुत लम्बा हो चूका है और अंत में बस यह कहना चाहूँगा यह जो जानकारी है लगभग १० से १५ दिनों तक विभिन्न मुद्दों और सोर्स से प्राप्त जानकारियों के आधार पर निरिक्षण और अवलोकन के पश्चात लिखा हूँ परन्तु फिर भी यह बात कहना चाहुगा


    अनेक माध्यमो से लिए जब काल गणना देखा गया तो सभी में समय अलग अलग था तो केवल काल गणना में भिन्नता हो सकता है परन्तु जैसे एक धर्म की उत्पत्ति हुआ वह बहुत ही रोचक और रोमाचक रहा केवल धर्म की उत्पत्ति कैसे हुआ होगा इसपर अपना फोकस रखे कालगढ़ना आगे पीछे हो सकता है और मै कौन कौन सी धर्म की उत्पति कब कब हुआ यह नही बता रहा हूँ


    क्योकि मुझे धर्म की उत्पति के बारे में चर्चा करना था उनके प्रकारों और उनके बन्ने के कारण पर चर्चा करूँगा तो और बहुत लम्बा हो जायेगा टोपिक इस लिए ये लेख यही विराम करता हूँ 
    आपको लेख कैसा लगा जरुर बताये आगे एक पोस्ट और आने वाला है देवता होता है की नही इस टोपिक पर आप अपना विचार कमेट बोक्स में लिखे और कुछ जरुरी जानकारी जो आप पढना चाहे तो निचे लिंक के माध्यमो से पढ़ सकते है


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    पृथ्वी का इतिहास


    2. 

    पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व का इतिहास


    3. 
    4. 

    सिंधु घाटी सभ्यता


    5. 

    वैदिक सभ्यता


    6. 

    आर्य प्रवास सिद्धान्त



    8 सनातन धरम  


    10. 

    सुमेर सभ्यता


    11.

    विश्व इतिहास World History


    12.

    सभ्यता


    13. 

    मानव का विकास



    15.

    पाषाण युग

      




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    3 Comments

    1. Bahut hi sunder lekh chiram ji, Aapka sankalaan adbhut avam sarahniy hai.

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    2. Hello Sir, Your article is very good, I also liked it, I come to your website every day, and read your new articles. Thank you, sir

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    अपना विचार रखने के लिए धन्यवाद ! जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी !

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