अक्ति तिहार


आज भी हमर गांव गंवतरी में तीज तिहार ला तइहा जमाना के अनुसार मनाथन। बइसाख अंजोरी पाख दूज के संझौती बेरा गांव के ठाकुर, बइगा, सिरहा, पंच पटेल अऊ सियान मन ठाकुर देव में सकलाथें।
बाजा-गाजा के संग तेल हरदी, पान फूल दीया बांती हूम-धूप, नरियर, नीबू धवजा बंदन में अरजी बिनती करथें। इही दिन "भुमियार" के आदेशानुसार सिरहा हर अधरतिया अपन गांव के मेड़ोदाई/सियार (सीमा) ला बाहरी "अलहन" ले बचाय बर खूंठी गड़िया के बांधथे । इही ला गाँव बनाना केहे जाथेतीज माने अक्ती के दिन बड़े बिहिनिया ले गाँव में "लाकडाउन" लग जाथे। गांव भर के लइका सियान तेल हरदी धर के ठाकुर देव में सकलाथें। सिरहा बइगा अऊ पंच पटेल मन गांव के माई कोठी के धान ला ठाकुर देव में रखके हूम-धूप के संग अरजी बिनती करथे,
कि देख ठाकुर देव तोर परसादे में बीते बछर हमर फसल सोला आना होय रिहिस लांघन भूखन के नौबत नी अइस.. सब तोरेच किरपा हरे। एहू बछर आप से इही आशा हे.. तोरेच लईका आवन ..हमर बिसवास ला झन टोरबे.. हूम-धूप ला पाले हमला आशिर्बाद दे।
ठाकुर देव के ठीहा में गड़े अन्नकुवारी (गोल चिकना पत्थर) ला कोड़ के निकाथें अऊ पानी में धो मांज के पूजा करथें। ओकरे आगू में माई कोठी के धान ला "रास"बनाय जथे अऊ बांचे धान ला सबले पहिली ठाकुर देव ला अर्पित करत विही में बोंए जाथे। ए बेरा बीज(धान) बोए में जेन भी औजार के उपयोग करथन --
नागर,बख्खर,कोप्पर, पास, गैंती रापा कुदारी , खातू सिंचइय्या, बीज बोवइय्या अऊ पानी
बरसइय्या .., ओरी-ओरी कृषि औजार के संग प्रतिकात्मक प्रदर्शन करत ठाकुर देव के पांच परिक्रमा करथें।
फेर एक घांव हूम-धूप अऊ अरजी बिनती के बाद रास के धान ला गांव भर के किसानमन ला नवां साल के बीज बोंए बर बांट दे जाथे। यही ला "मुठ धरना" घलो कहे जाथे। वही धान ला किसानमन परसा पान के दोना/चिपटी बनाके बेला के डोरी में लपेट के बांध लेथें। ए दिन ठाकुर देव में नवा ओन्हारी फसल- चना, लाखड़ी, राहेर उरिद अऊ मंउहा फूल ला भूंजके परसाद बांटे जाथेसब गांव वाले मन ठाकुर देव ले आशिर्वाद लेके धान चिपटी के संग अपन अपन घर चले जाथें। घर के मुहाटी में "घरगोसाइन" हर लोटा में पानी अऊ थारी में आरती के साथ गड़हा अऊ बिजहा के पांव पलेगी करत अगवानी करथें।
तेकर बाद गांव के कोतवाल हा पानी-कांजी भरे बर हांका पारथे तब लाकडाउन हा खतम होथे। फेर आगे के कार्य ह विधि विधान करे के बाद उही परसा पान के दोना म धान ल धरके जम्मो किसान अपन घर लाए के बाद नवा झेंझरी (टोकनी) म हूम अगरबत्ती लोटा म पानी, कुदारी धर के खेत में जाके उही परसा पान के दोना के धान छित के कुदारी कोड के पुजा अरचना करथन कि हे धरती माता हे अक्ती महराज ए साल बने बने हमर खेती किसानी के चलय बने धन धान्य के बढ़ोतरी होवय हमर घर परिवार सुखी रहाय कहिके मनौती मनाए जाथे।
ईही अक्ती म अपन अपन पुरवज ल अक्ती पानी दे के रिती रिवाज चले आए हे यहु म बडे फजर ले तरीया म नहाके कच्चा परिरे हाथ म करीया तिली उरीद के दार अउ जवा ल परसा के पान म ही अरपन करके पितर ल तरपन करे जाथे जेखर ले हमर पूरखा मन ला शांति मिलथे अउ पूरवज मन हा
पाके आशीरबाद देथे। अइसन किसम ले परसा पत्ता के महत्तम हे कहिके हमर सियान मन बताए हे। फेर का करबे आजकाली के नव छटहा लइका मन तो ए सब नेंग जोग ला माने बर नि धरे
संगवारी हो ए तिहार हर हमर आदिवासी समुदाय बर गजब महत्व रखथे। हमन प्रकृतिवादी हरन। पहिली जमाना में हमर दिनचर्या घलो प्रकृति के अनुसार ही चलत रिहिस। कोनो भी नवा काम ला करे के पहिली हमर आदिवासी समुदाय प्रकृति अऊ अपन पुरखा देव ला बिना जानकारी देय, बिना आदेश लेय बिना अरजी बिनती के शुरुआत नई करंय। पतझड़ के मौसम में जम्मो रूख-राई के डारा-पाना झर जाथे। फागुन ,चइत के महिना में फेर उल्होथे अऊ बइसाख महीना में "बऊरे" के लाइक हो जाथे।
इही अक्ती तिहार ले आदिवासी समुदाय के संगे-संग ग्रामीण समुदाय भी खेती किसानी के तैयारी करत नवां साल के शुरुआत करथन। हम नवां बछर के शुरुआत करत हावन तब हम अपन पुरखा ला कइसे बिसरा देबो,
मै अतके कहना चाहथों कि आदिवासी मन के जीवन प्रकृति के ऊपर निर्भर रिहिस अभी भी हावे। तेकरे सेती एक आदिवासी प्रकृति संग बिना कारन के, बेरा-कुबेरा क्रूर बेवहार नई करे।
बहुत अकन आदिवासी जाति अऊ गोत्र समूह वाले मन आज घलो फागुन के धरे ले अक्ती के आवत ले नवां फसल , भाजी, सब्जी, पत्ता आदि मन के उपयोग नई करें। काबर कि पतझड के बाद पत्ता
निच्चट कुंवर रहिथे। अक्ती के आवत ले पत्ता हा जुर (उपयोग के लायक) जाथे। फेर परसा के पत्ता ला भोजन करेबा उत्तम माने गेहे। हमर सियानमन एकरे सेती परसा पत्ता में अपन पुरखा ला पहिली भोजन परोसथे अऊ इही अक्ती के दिन ले परसा पान में भात खाये के चालू करथें। ओकर पहिली परसा पान के उपयोग मना रहिथे।
अउ एको साल गाँव मे एक्को ठन बिहाव नई होए त वो साल गाँव म पुतरा पुतरी(गौरा-गौरी) बनाके पूरा रीति रिवाज के संग उंकर बिहाव करे जाथे अउ उत्सव मनाए जाथे आप मन ला ये जानकारी कैसे लागिस बताये बर झन भुलाहु
आपमन के स्नेही
आर्यन चिराम
संदर्भ:-
1.गाँव के सियानो का मौखिक जानकारी
2. हल्बा क्रांति (1774-1779) व्हाटसप ग्रुप
त्रुटि मुक्त लेख व सुधार कार्य (ट्रू रीडिंग) आर्यन चिराम
3 Comments
बहुत बहुत धन्यवाद अतका सुग्घर जानकारी दे बर वाकीमे हमर पुरवज मनके नेग दस्तूर ह आदिकाल से चलत आवत हे तेन ला आज तक हमन मानत चले आवत हँन।।।।
ReplyDeleteबधाई लेख के माध्यम ले जानकारी देबर...
अपना नाम जरूर लिखे सर
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ReplyDeleteअपना विचार रखने के लिए धन्यवाद ! जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी !