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आदिवासी नामा adiwasinama

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    अत्याचार हों रहें है

     दोस्तो नमस्कार जय जोहार जय मां दन्तेष्वरी मै आप लोगो को अपने विचार से अवगत करवाना चाहता हूं। दोस्तों आज तक हमारे आदिवासी भाईयों एवं बहनों पर कई प्रकार कें अत्याचार हों रहें है। कई प्रकार कें प्रताडना षोशण का षिकार हो रहें हैं।हमें सवेंधानिक रूप से बहुत सारें अधिाकार दिये गये हैं।पर सब बेकार है।क्योकि हमारे भाई बहनों को उस अधिकार का प्रयोग करनें नही सिखाया गया है। आज मै देखता हूं। तो दुःख होता हैं।कि हमारे आदिवासी भाई आपस में लड़ रहें है। और धर्म भीरू लोग उस झगड़ा में पेट्रोल डालने का कार्य कर रहें है। हमारे आदिवासी भाईयों को कई प्रकार सें बहलाया फुसलाया जा रहा है। तथा उनका धर्म परिर्वतन कर उनको आपस में लडाया जा रहा है। कोई आदिवासी भाई अपने कों हिन्दु और कई आदिवासी भाई अपनें को ईसाई और कई आदिवासी भाई अन्य धर्मो में संलग्न हो गयें हैं। सब अपनें मुल धर्म सें नजरें चुरा रहें है। वें अपनें आदिधर्म कों माननें में षर्म करतें है।तथा अपनें धर्म सें दुसरें कें धर्मो को अधिक ऊंच माननें कें कारण अपना धर्म निम्न लगता है।  और इसलिए अपना धर्म त्याग रहें है। इसकें पीछें एक बहुत बडा कारण हैं। Tumesh chiram   धर्म के प्रचारक हर चीज को धर्म से जोडकर बतातें है। और हमारें आदिवासी भाई उस बात की वास्तविकता जानें बिना ही उस बात कों सही माननें लगतें है।जैसेः- हमारें कोई आदिवासी भाई कों कोई छोटा सा मलेरिया ही पकड़ लिया उसें हिन्दु धर्म कें मानने वाला डाॅक्टर कें पास सब भगवान कें उपर है। भाई वों चाहें तों आप जल्दी ठीक हों जायेंगें अगर वों, ठीक हों जायेगा तों वों फिर बोलेगा कि मै। कुछ नही किया हूं। भाई सब भगवान का किया है।इतना सुनकर हमारे आदिवासी भाई उनकें भगवान को अपना मानने लगता है। और धर्म परिवर्तन कर लेता है। इस काम में हमारें कुछ आदिवासी भाई पहले से अपना धर्म परिर्वतन कर चुके है। वे अपना चापलुसी दिखाते हुए और अधिक बड़ा चडा कें बतातें हैं।एक समय एैसा आता है। कि अपना आदिवासी भाई दुसरें धर्म कों अपना लेता है।भले वे उस धर्म कें बारें में पुर्ण रूप सें नही जानता तों क्या हूआ पर उसें अपना मानने लगता है। ठीक इसी प्रकार अगर वें रोज ईसाई धर्म कें माननें वाला व्यक्ति कों मिलता है।उसकें रहन सहन कों देखता है। और अधिक जानना चाहता है।तों सामनें वाला इसी बात का फायदा उठा कर सब गाॅड कि देन है। करके उस आदिवासी भाई कों धीरें सें धर्म परिवर्तन करवा लेंता है। ठीक इसी प्रकार और अनेेक धर्म कें ठेकेदार अपनें धर्म कों अन्य धर्म से अधिक अच्छा बताकर हमारें आदिवासी भाईयों कों बहला रहें है। चुंकि हमारें आदिवासी भाईयों एंव बहनों बहुत ही दयालु और भोला भाला होते है। किसी के भी बातों कों बिना सच्चाई जानें मान लेते है। 

    अपनें मुल धर्म कों मत त्यागों

    मै ऐ नही कहता की तुम आदिवासी धर्म लिखों मै तो ऐ कहता हूं।जों धर्म तुम मानतें आ रहें हों उसें लिखों जों तुम्हारें पीढीयों सें सदियों सें मानतें आ रहें हों उसें लिखों।मेरे कहनें का तात्पर्य यह है। कि आप अपनें मुल धर्म कों मत त्यागों किसी और धर्म में मत जाओं क्योंकि जिस धर्म कों तुम सदियों सें मानतें आ रहें हों उस धर्म में शांति नही मिलता तों जों कुछ दिन पहलें जान रहे हों वों धर्म क्या खाक षांति देंगा। धर्म कोंई बड़ा सा पहाड नही है। जिसपर लोग बहुत बहस करतें है।धर्म दो षब्दों से मिलकर बना है।जिसका अर्थ हैं।ः-धारण करनें योग्य और माननें योग्य जो भी चीज हों वों धर्म है। और यही सच्चाई कोई भी धर्म मानों जबतक खुद मेंहनत नही करोंगे कोेई खिलायेगा नही। सही बात बोलूं तों आस्था का दुसरा नाम ही धर्म है। जहां आस्था है। वहां भगवान ईष्वर अल्लाह .....आदि है। जहां आस्था खत्म वहां ऐ भी खत्म । मेरा किसी भी धर्म कों नीचा दिखाना यह मकसद बिलकुल भी नही है। मेरा बस यही निवेदन है। कि तुम जो भी धर्म मानतें आ रहें हो वही धर्म मानों दुसरें धर्म परिर्वतन मत करों चाहें नीजि स्वार्थ हेतू हों या सर्वजनिक स्वार्थ धर्म सें खिलवाड मत करों। उदा. जो मां बाप तुम्हे जन्म दिये है। वे तुम्हे जितना प्यार करतें है। सायद ही कोई मां बाप जो तुम्हे जन्म न दियें है वें तुम्हे उतना प्यार दें पायें। ठीक उसी प्रकार जो धर्म तुम्हे विरासत में मिला है।वह जितना खुषी व आनंद या षांति तुम्हे दे सकतें है। उतना षांति षायद ही कोंई अन्य धर्म दे पायें। मै तो धर्म परिवर्तन करनें वालें व्यक्ति को उस चापलुस कोयल कहुंगा जों मीठी मीठी बातें करता है। तथा खुद का घोसला भी नही बनाता और अंडे भी दुसरें कें घोसलें में देता है। कहनें का तात्पर्य यह है। कि कौआ बनना श्रेश्ठ मानुंगा चाहें वें काला है। चाहें उसका बोली कर्कस है।लेकिन वह अपना घोसला तों बनाता है। रहनें कें लिए और कोयल मिठी मिठी बातें करता है। अपना घोसला भी नही बना पाता।और जब यौवन आता है। तों दुसरें कें घोसलें में अपना अंडा देता है। ठीक इसी प्रकार धर्म परिवर्तन करने वालें लोग होतें है। जब तक वे छोटे रहतें है।तब तक अपना मुल धर्म मानतें है। लेकिन जैसे ही वें जाननें लायक होतें है अपना धर्म बदल लेतें है। अर्थात कोंयल की तरह दुसरें कें घोसलें में चले जाते है। अंडा देने, दुसरे धर्म अपना लेंतें है। अब आप तय करों की कोयल बनना श्रेश्ठ मानोंगें कि कौवा.....। हमारें आदिवासी भाईयों कों अंधविष्वासी कहा जाता है। अंधविष्वास कों मानने वाला कहकर गालिया दि जाति है। उन तमाम लोग जो आदिवासीयों को अंधविष्वासी और गंदी गाली देतें है। उनके लिए मेंरा 1 बात गठरी बांधकर रख लो हम जब तक अंधविष्वासी है।तब तक तुम्हारा वजुद है। Tumesh chiram   जिस दिन भी हम सच्चाई का पता लगाकर ही हर बात को मानना चालू करेगे न उस दिन तेरा वजुद 1 पल सांस लेने को तरसेगा हम भोले भाले है। इसलिए हर बात को चाहें सही हो या नही बिना जाने मानतें है। इसलिए हमे अंधविष्वासी कहतें हों क्या?,, जब तक अंधविष्वासी है हमारा षोशण करलों,अत्याचार करलों प्रताड़ित करलों जुल्म करलों लेकिन याद रखना जिस दिन भी षिक्षित और ज्ञान प्राप्त कर लेंगें न उस दिन एक-एक अत्याचार का बदला लेंगे हम तुम्मे इतना छेद करेंगे की तुम कन्फयूज हो जाओंगे कि सांस किधर से ले और.......... ।।।।।। हम बिना जानें आपकें बातों कों मान लेंनें वाले लोग है।इसलिए हमें मुरिया मुर्ख या गवांर न समझों साहेब हममें कल भी ज्ञान था आज भी ज्ञान है। हम कोंई झंझट नही चाहतें..................इसलिए खामोंष सब सहतें है। नही तों इतिहास उठाकर देख लों जब भी हमें कोंई दबानें का कोंषिष किया मिट्टी में मिल गया है।साहेब..
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    .. हमें मिटा सकें जमाने में दम नही ।
     जो समझतें हो तुम गंवार मुर्ख वो हम नही ।।
     जमाना हमसें हैं। जमाने से हम नही। 
    हमे असानी से समझ सको हमारा वजुद इतना कम नही।।

     हम कल भी खुष थे और आज भी रहना चाहतें है। पर पता नही क्यों हमें परेषान किये बिना लोगों कि पेट नही भरता क्यों हमें सताया जाता है। क्यो तडपाया जाता है। क्यों हमें घर सें बेघर किया जाता है। क्यों हमसें जमीन छीना जाता है। क्यों हमें जात कौम की गाली दि जाती है। क्यों हमारें साथ अत्याचार किया जाता है। क्यों हमे जानवरों से बदत्तर जिन्दगी जिनें कों मजबुर किया जाता है।क्यों? क्यों हमारें मां बहनों कें ईज्जत कों सरीआम निलाम किया जाता है। क्यों हमें नक्सलाइट बोलकर जेलों में ठूसा जाता है। आखिर क्यो ????? उन तमाम् लोग जो हमसें जानवरों जैसा सलूक करतें है। उनसें 1 बात बोलना चाहूगां। कान खोल के सुन लें हम आदिवासी जंगल कें वों असली षेर है। उंगली मत करों जाग जायंेगें तों चिर फाड कर रख देगें।अगर षर्कस का षेर समझ रहें हों तों एैसा भुल दुबारा न करना।इसें वार्निग नही सलाह समझ लेना नही तों ऐ तों जानतें ही हो आप हम दिल में आतें है। समझ में नही और


    राजनीति चमचों 

     उन सब राजनीति चमचों से भी निवेदन है। कि अपना सडेला चेहरा हमारे सामने लेकर न आयें। चुनाव सें पहले चुनावी घोशणा पत्र में रंग रंग का घोशणा करतें है। कि ऐ करेगें वों करेगें जब जितकर आ जाते है। फिर ईद का चांद हों जातें है। अपना चेहरा भी नही दिखाते वे राजनीति चमचे हमें वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करतें है। चुनाव से 1 महिना पहले फिर पहुंच जायेगें उन वोट बैक समझनें वाले चमचो को ऐ नही पता की हम चोट भी बहुत अच्छा करतें है। हमारें गांव में पिनें कों पानी नही और वे प्युरीफायर पानी पीतें है। हम लोग रात कें अंधेरा में सोतें है हमारे घरों में दिया की धीमी रोसनी होती है। जिससे विशैले जंगली जीव जन्तुओं को भी नही देखा जा सकता।
    हमारें लोगों विशैले सांप डस लेते है। तब भी हम खामोंष है। षहरों के सडकों कों 2वे 4वे बनवाया जा रहा है। पर हमारें सुदूरसंवेदी गांव में आजादी कें 68 वर्श बाद भी पगड़डी रास्ता नही बना है। हमें आनें के लिए वही कटीलि जंगल से होकर गुजरना पडता है। स्वास्थ्य के लिए 108 सेवा चालू किये ऐ तो बताओं ऐ लेंड कहा करता हैं।या केवल षहर के रहनें वालों के लिए ऐ सुविधा मुहैया किया गया है। जब मेंरे गांव में सडक नही है। तो तेरा 108 को कौन सा पंख लगाकर मेंरे गांव लाओगे ये तों बताओं आपके षहर में हर 500 मी. में 1 नल है। हमारें गांव को पास के झरना सें गंदी पानी पिना पडता है। आवा जाही तो पता नही पर आने वाले कई सालों में यह सीख गया और जान गये कि सब अपने स्वार्थ के लिए करतें है। हम जंगल वालों कें लिए कुछ नही, आवा जाही से याद आया रेल लाइन बिछाया गया है। बैलाडिला रावघाट तक पर हम ये भी जानते है। वो हमारे लिए नही है। हमारें जंगलों में लोहा या अन्य खनिज पदार्थ नही निकलता तो आप ये रेलवे लाइन भी नही बिछातें । आप अपना स्वार्थ पुरा कर रहें है। पर हमारें लिए थोडी भी सुविधा नही कर रहे है। क्यो? आप हमारें जमीन छीन रहें है। हमारे आवास छीन रहें है।आप हमारें जंगल छीन रहे है। तब भी हम चुप है।यही सोचकर की कभी तो उन्नती होगी हमारे क्षेत्र की पर कोई आषा नजर नही आता है। विकास कि नक्सलवादी भी हमें डरातें है। हमारे साथ मार पीट करते है। हमारें लोगों को मारतें है। और आपके सैनिक भी हम चक्की के बीच पडें उस गेहुं की भाती है।जिसपर दोनो तरफ का समान दबाव व समान रूप से पीस रहें। है। अब हमारे जीने जो आषा है। Tumesh chiram   वो भी धीरे धीरे कम होती जा रही है। रेडियों में मन की बात सुनातें है। कभी हमारे मन की भडास सुनने का मौका मिले तो सच कहता हुं सुनते सुनते रो जायेगे या जो विकास हो रहा है।सोचते है। नही सोच पायेगे आप षहर के नेता कभी जंगल में 1 बार आकर देखो हम कैैसे जीवन जीते है। मंचों में चिकनी चुपडी बाते करके जो जनता से वोट लेते हों उनका कभी अपना कत्वर्य समझकर 1 काम भी करवालिया करों आप षहर में रहतें है। मोबाइल इंन्टरनेट का इस्तेमाल करते है। 4 जी फोर्थ जनरेषन का नेटवर्क प्रयोग करतें है। पर हमारे यहा 2 नेटवर्क के लिए तरसतें हैं। लोग क्या हमकों इनका इस्तेमाल का हक नही अगर हक है। तो क्यों हमे हमारें हक से दुर क्यों रखा जाता है। क्योकि हम सब सहन करने वाले लोग है। इसलिए ???षहरों में वाई फाई लगाया जा रहा है। हमारे गांव में कम से कम 2 जी नेटवर्क लगवा दो साहेब हम भी अपने रिष्तेदारों से बात करेंगें?? षहरों में सिटी बस हमारें यहां तों एक टैक्सी का भी बन्दोबस्त करदो साहेब हम भी आपको बोट दियें है। और षहर वाले भी पर सुविधा सिर्फ षहर वालो को क्यो?? क्या वे दो दो वोट देते है। आपको या और कुछ या वे बडे लोग है। और पढे लिखे लोग है। इसलिए कुछ तो बोलेगे साहेब??? अगर एैसा कुछ नही तो एक को अधिक सुविधा और एक को सुविधा हिनता क्यो ???विकास हो रहा है। विकास हों रहा है। कहा विकास हो रहा है। आपके आस पास साफ है।इसका मतलब यह हरगिज नही की पुरे देष साफ हो गया है। आपके यहा लाईट 24 घंटे रहते है। हमारें गांव में बिजली की पोल सालों सें गढें हैं। पता नही कब बिजली आयेगी ??? षहरों में बैंक है। मनरेगा में काम करने के बाद 25 किलोमीटर पैसा लेने जाना पडता है। 1 दिन जाओ 2 दिन जाओं एैसा करके कई सप्ताह कई महिना तक घुमना पड रहा है। क्या यही विकास है। पेंन्षन के लिए 5 किलोमिटर दुर आश्रित ग्राम में लेनें जाना पड रहा है। आने जाने का ठीकाना नही और 60 से अधिक उम्र के सियानों के साथ एैसा करके आपको मजा आता होगा न ???? राषन कार्ड को जब दिया तो एैसा लगा की चलो चांवल तो मिलेेगा कम से कम , इसीलिए आपको बोट दियें हम लोगो ने पर आप हमारा कार्ड ही निरस्त कर दिये एैसा तो चुनावी घोशणा पत्र में नही लिखा था ?? गांव गांव सेप्टिक बनाया जा रहा है।हमारे आस पास कोसो कोसों दुर तक जंगल फैला है। हमे सेप्टिक की जरूरत नही पर इंदिरा आवास का जरूरत है। 55 वर्शो से आवेदन दे रहे है। कब मिलेगा हमें इदिंरा आवास कुछ बतायेंगें भी हमारे आस पास स्कुल खोल दिये आपने पर उसमें पढानें कें लिए प्रयाप्त षिक्षक कब भेजेगें आज भेजेगें , कल भेजेगें , एैसा सोचकर कई सत्र निकल गये कई बच्चों का भविश्य खराब हो गया?? सब पेट पालने के लिए बोर गाडी जा रहे हैं। इसके जिम्मेदारी कौन लेगा आप या और कोई .....???? चापलुसी की हद होती है।
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     ऐ मिडियाकर्मीयों की जब हमारे आदिवासीयों पर जुल्म होते रहता है। तब कहा गये रहतें है। ये मिडियाकर्मी सोजाते है।या भग जाते है। अगर बडें लोग हग भी देते है। तो उसे मिडिया वाले गर्व से दिखातें है। और हमारे लोगो में कई प्रकार की अत्याचार होती है। हमारे बहनो की ईज्जत लुटी जाती है। तब किस बिल में छुप जातें है। मिडियाकर्मी अष्लील समाचार क्रिकेट यही सब देखाने में उनको फुरसत नही मिलता तो कहा से हमें कवर कर पायेगे। वे तो राजनीतिक नेता और बडें लोगो के चापलुस हो रहे है। अगर कोई अत्याचार को भी छपवाना चाहो तो उसके लिए उन्हे पैसा देना पडता है। वे दुसरो की भ्रश्टचार को दिखातें है। पर खुद के लोग जब पैसा लेते है। तो क्यो नही छापते उसे क्योकि वे उनके अपनें है। अगर ऐसा सोचतें है। देष के गददार तो किसी दुसरे का छापने का ठेका ले रखे है। क्या दुसरों का भी न छापे? आदिवासी नामा की अगली पोस्ट जल्द ही आपके सामने सादर सम्प्रशित किया जायेगा

    // लेखक // कवि // संपादक // प्रकाशक // सामाजिक कार्यकर्ता //

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