कस्तूरबा गांधी बालिका आश्रम अंतागढ, आदर्श एक्लव्य आवासी बालक विद्यालय अंतागढ़, आदिवासी कन्या क्रीडा परिसर कांकेर, आदिवासी कन्या आदर्श कन्या आश्रम सिंगारभाट कांकेर, जवाहर नवोदय विद्यालय गोविन्दपुर कांकेर, केन्द्रीय विद्यालय नरहरदेव शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कांकेर, महिला आइ.टी.आई.कांकेर-पखांजूर, बालक आई.टी.आई, कांकेर, भानुप्रतापदेव कॉलेज कांकेर, इन्दरूकेंवट कन्या महाविद्यालय कांकेर, शहीद गैंद सिंह महाविद्यालय चारामा, शासकीय महाविद्यालय अंतागढ़, शासकीय महाविद्यालय भानुप्रतापपुर, शासकीय महाविद्यालय पखांजूर,
सांस्कृतिक सामाजिक एवं अन्य विशेषताएं-
तात्कालीन बस्तर जिले से विकास खण्ड, कांकेर, चारामा, भानुप्रतापपुर, नरहरपुर, कोयलीबेड़ा और दुर्गूकोन्दल, अंतागढ़, को अलग करके 25 मई 1998 को उत्तर बस्तर कांकेर जिले का गठन किया गया। कांकेर का इतिहास पाषाण युग से शुरू होता है। रामायण और महाभारत में दण्डकारण्य नामक घने जंगल युक्त क्षेत्र का नाम आता है। जिसमें कांकेर भी शामिल था। मिथकों के अनुसार कांकेर भिक्षुओं और ऋषियों की भूमि थी। ऋषियों का एक समुह जिसमें कंकऋषि, लोमेश ऋषि, श्रींगीऋषि, अंगीराऋषि आदि शामिल थे, यहां निवास करतें थे। छटे शताब्दी ईसा पूर्व यह क्षेत्र बौध्द धर्म से प्रभावित था।
कांकेर के इतिहास के अनुसार यह राज्य हमेशा स्वतंत्र रहा। कांकेर राज्य सातवाहन वंश के अधिन था ओर यहां का राजा सतकर्णी था। इसके बाद यहां नाग और वाकाटाक वंश ने भी राज्य किया। इसके बाद यहां नलवंश के वयाघ्रराज ने भी राज्य किया। इसके बाद भावदत्त वर्मा कांकेर के राजा बनें। वयाघ्रराज के बाद 475 ई. में स्कन्द वर्मा कांकेर के राजा बने। और 500 ईं तक कुशल्ता पूर्वक राज्य किया।
उसकी मौत के बाद कांकेर राज्य को अनेक हमलों का सामना करना पड़ा और यह कई भागों में विभाजित हुआ। नल राजाओं के पतन के बाद चालुक्य वंश के पुलकेशियन द्वितीय, विक्रामादित्य, विक्रमादित्य द्वितिय विन्यादित्य, किर्ति वर्मन, ने 788 ई तक राज्य किया। इसके बाद 1125 में कलचुरियों से राजसिंह नामक बहादुर व्यक्ति ने कांकेर राज्य जीता और सोम वंश की नीव रखी
और 1140 तक राज्य किया। इसके बाद कांकेर में राज्य सत्ता कल्चुरियों के अधिन रही। सोम वंश के भूप देव ने फिर से कांकेर में अपनी सत्ता स्थापित की। उसके दो पुत्र कर्णराज और सोमराज थे। कर्णराज ने 1206 तक कांकेर में राज्य किया। कर्ण की मृत्यु के बाद जैत राज ने 1258 तक राज्य किया। और 1306 तक कांकेर का राजा रहा। भानुदेव 1306 में राज बना और 1344 तक शासन किया
यहा सोम वंश का अंतिम राजा था। सोम वंश की समाप्ति के बाद कण्डरा राज वंश के राजा भरमदेव ने यहां राज्य किया। उसने 1345 से 1367 तक राज किया। कण्डरा राज वंश का शासन 1385 मे समाप्त हुआ। कण्डरा राज वंश के पतन के बाद चन्द्रवंश के वीर कन्हार देव, वीर किशोर देव, तानु देव, वासुदेव, हामीर देव, रूद्रदेव, हिमांचलदेव श्यामसाए देव, हरिहरसाय देव, लालसाय देव और घुरसाएदेव, हरपालदेव, धिरजसिंह देव, रामराज सिंह, श्याम सिंह देव, ने 1802 तक शासन किया। इसके बाद यहां मराठों ने
भी कुछ समय तक राज किया। इस बीच कांकेर राजय मराठो से अंग्रेजो के नियंत्रण आया। अंग्रेजों ने कांकेर की सत्ता नरहरीदेव को सौंप दी और शासन किया। सन् 1882 में कांकेर राज्य के नियंत्रण के लिए उपायुक्त रायपुर ने कांकेर का दौरा किया। नरहरीदेव ने कांकेर की प्रशासन से संबंधित एक रिर्पोट उन्हे प्रस्तुत की थी। नरहरीदेव ने बेहतर प्रशासन करते हुए पुस्तकालय राधाकिशन मंदिर रामजानकी मंदिर जगन्नाथ मंदिर और बालाजी मंदिर का निर्माण किया। कांकेर के पास उसने नरहरपुर नाम के शहर की स्थापना की थी। नरहरीदेव की दो पुत्रों की मृत्यु चौदह और सोलह वर्ष की उम्र में हो गई थी। नरहरीदेव के मृत्यु के बाद 1904 में कोमलदेव ने कांकेर का राजकाल सम्भाला। वह नरहरीदेव का भतीजा था। उसने एक अंग्रेजी हाईस्कूल और पन्द्रह प्राथमिक स्कूल कांकेर और सम्बलपुर में अस्पताल की स्थापना की थी। कांकेर के पास एक नए शहर गोविन्दपुर की स्थापना करके राजधानी बनाने का प्रयास किया था। 1925 में उसकी मृत्यु के बाद भानुप्रतापदेव राजा बने। वह कोमलदेव के रिश्तेदार थे। आजादी के बाद वे दो बार कांकेर विधान सभा क्षेत्र के विधायक चुने गए। और इनकी मृत्यु 1969 में हुई।
15 अगस्त 1969 को भानुप्रतापदेव के पुत्र उदयप्रतापदेव का राजअभिषेक किया गय के पुत्र उदयप्रतापदेव का राजअभिषेक किया गया। इनकी मृत्यु नवम्बर 2001 में हुई।
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