दोस्तो मै आज 1
हल्बी पहाड़ा भाग—1 कवर पेज
प्रमुख मुद्दा लेकर आया हुं। और वह मुद्दा है। हमारी समाज की बोली जिसका नाम हल्बी है। हल्बी बोली पहले केवल हल्बा जनजाति में बोली जाती थी किन्तु इस भाषा की सरलता, मधुरता एंव सुस्पष्टता के कारण यह अधिक लोकप्रिय भाषा हो गयी
, व धीरे—धीरे सभी जाति एंव जनजातियों में बोली जाने लगी। और यह धीरे—धीरे बस्तर रियासत की राज भाषा के रूप में बोली व समझी जाने लगी। इस भाषा को राज भाषा का दर्जा देने के पिछे इस भाषा की सरलता स्पष्टता व मधुरता ही नही वरन इस भाषा की भाषिक क्षमता, विशेषता, एंव साहित्यिक गुण भी विशेष है। जो हर प्रकार कि विशेषताओ से परिपुर्ण एंव एक दुसरे के मनोभाव की अभिव्यक्ति के लिए व किसी भी भाव को प्रकट करने की क्षमता रखता है।इसलिए इस भाषा को बस्तर रियासत की राजभाषा की दर्जा प्राप्त हुआ ।।
साथ ही वह हर तरह से हर परिक्षा में खरा उतरा।।
, व धीरे—धीरे सभी जाति एंव जनजातियों में बोली जाने लगी। और यह धीरे—धीरे बस्तर रियासत की राज भाषा के रूप में बोली व समझी जाने लगी। इस भाषा को राज भाषा का दर्जा देने के पिछे इस भाषा की सरलता स्पष्टता व मधुरता ही नही वरन इस भाषा की भाषिक क्षमता, विशेषता, एंव साहित्यिक गुण भी विशेष है। जो हर प्रकार कि विशेषताओ से परिपुर्ण एंव एक दुसरे के मनोभाव की अभिव्यक्ति के लिए व किसी भी भाव को प्रकट करने की क्षमता रखता है।इसलिए इस भाषा को बस्तर रियासत की राजभाषा की दर्जा प्राप्त हुआ ।।
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कुछ और जानकारी हल्बी बोली से संबंधित
बस्तर में दो वृहद रूप से पहचानी जाने वाली संस्कृतियाँ हैं – गोंड़ी तथा हलबी-भतरी परिवेशों में। भूतपूर्व बस्तर रियासत ने इन दोनों संस्कृतियों को भाषाई एकता के सूत्र में बाँधा था। एक लम्बे समय तक ‘हलबी’ बस्तर रियासत की राज भाषा रही किंतु इसका कारण किसी संस्कृति विशेष को महत्व दिया जाना अथवा जिसी जनजाति विशेष का वर्चस्व दिखाना नहीं था अपितु यह इस लिये किया गया था चूंकि रियासत में अवस्थित सभी जनजातियों की संपर्क भाषा तब हलबी ही थी। लाला जगदलपुरी की पुस्तक “बस्तर- लोक कला, संस्कृति प्रसंग” के पृष्ठ-17 मे उल्लेख है कि – “बस्तर संभाग की कोंडागाँव, नारायनपुर, बीजापुर, जगदलपुर और कोंटा तहसीलों में तथा दंतेवाडा में दण्डामि माडिया, अबूझमाडिया, घोटुल मुरिया, परजा-धुरवा और दोरला जनजातियाँ आबाद मिलती हैं और इन गोंड जनजातियों के बीच द्रविड मूल की गोंडी बोलियाँ प्रचलित है। गोंडी बोलियों में परस्पर भाषिक विभिन्नतायें विद्यमान हैं।
इसी लिये गोंड जनजाति के लोग अपनी गोंडी बोली के माध्यम से परस्पर संपर्क साध नहीं पाते यदि उनके बीच हलबी बोली न होती। भाषिक विभिन्नता के रहते हुए भी उनके बीच परस्पर आंतरिक सद्भावनाएं स्थापित मिलती है और इसका मूल कारण है – हलबी। अपनी इसी उदात्त प्रवृत्ति के कारण ही हलबी, भूतपूर्व बस्तर रियासत काल में बस्तर राज्य की राज भाषा के रूप में प्रतिष्ठित रही थी।….और इसी कारण आज भी बस्तर संभाग में हल्बी एक संपर्क बोली के रूप में लोकप्रिय बनी हुई है।”डॉ. हीरा लाल शुक्ल की पुस्तक “बस्तर का मुक्तिसंग्राम” के पृष्ठ-6 में उल्लेख मिलता है कि – ‘वर्तमान में निम्नांकित मुख्य जातियाँ बस्तर के भू भागों में रहती हैं – 1. सुआर ब्रामन, 2. धाकड, 3. हलबा,4. पनारा, 5. कलार, 6. राउत, 7. केवँटा, 8. ढींवर, 9. कुड़्क, 10. कुंभार, 11. धोबी, 12. मुण्डा, 13. जोगी, 14. सौंरा, 15. खाती, 16. लोहोरा, 17. मुरिया, 18. पाड़, 19. गदबा, 20. घसेया, 21. माहरा, 22. मिरगान, 23. परजा, 24. धुरवा, 25. भतरा, 26. सुण्डी, 27. माडिया, 28. झेडिया, 29. दोरला तथा 30. गोंड। उपर्युक्त मुख्य जातियों में 1 से 22 तक की जातियों की “हलबी” मातृबोली है
और शेष जातियों की हलबी मध्यवर्ती बोली है। कुछ जातियों की अपनी निजी बोलियाँ भी हैं जैसे क्रम 23 और 24 में दी गयी जातियों की बोली है परजी जबकि 25 और 26 की बोली है भतरी। क्रम 27 से 30 तककी बोलियाँ हैं माडी तथा गोंडी।” उपरोक्त उद्धरणों से यह बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि आज भी हलबी बोली बस्तर की एक मान्य और कोंटा से ले कर कांकेर तक बोली-समझी जानेवाली भाषा है। हलबी बस्तर के साहित्य की भी भाषा है और सौभाग्य से इसका अपना व्याकरण और शब्दकोश भी है।
इसी लिये गोंड जनजाति के लोग अपनी गोंडी बोली के माध्यम से परस्पर संपर्क साध नहीं पाते यदि उनके बीच हलबी बोली न होती। भाषिक विभिन्नता के रहते हुए भी उनके बीच परस्पर आंतरिक सद्भावनाएं स्थापित मिलती है और इसका मूल कारण है – हलबी। अपनी इसी उदात्त प्रवृत्ति के कारण ही हलबी, भूतपूर्व बस्तर रियासत काल में बस्तर राज्य की राज भाषा के रूप में प्रतिष्ठित रही थी।….और इसी कारण आज भी बस्तर संभाग में हल्बी एक संपर्क बोली के रूप में लोकप्रिय बनी हुई है।”डॉ. हीरा लाल शुक्ल की पुस्तक “बस्तर का मुक्तिसंग्राम” के पृष्ठ-6 में उल्लेख मिलता है कि – ‘वर्तमान में निम्नांकित मुख्य जातियाँ बस्तर के भू भागों में रहती हैं – 1. सुआर ब्रामन, 2. धाकड, 3. हलबा,4. पनारा, 5. कलार, 6. राउत, 7. केवँटा, 8. ढींवर, 9. कुड़्क, 10. कुंभार, 11. धोबी, 12. मुण्डा, 13. जोगी, 14. सौंरा, 15. खाती, 16. लोहोरा, 17. मुरिया, 18. पाड़, 19. गदबा, 20. घसेया, 21. माहरा, 22. मिरगान, 23. परजा, 24. धुरवा, 25. भतरा, 26. सुण्डी, 27. माडिया, 28. झेडिया, 29. दोरला तथा 30. गोंड। उपर्युक्त मुख्य जातियों में 1 से 22 तक की जातियों की “हलबी” मातृबोली है
और शेष जातियों की हलबी मध्यवर्ती बोली है। कुछ जातियों की अपनी निजी बोलियाँ भी हैं जैसे क्रम 23 और 24 में दी गयी जातियों की बोली है परजी जबकि 25 और 26 की बोली है भतरी। क्रम 27 से 30 तककी बोलियाँ हैं माडी तथा गोंडी।” उपरोक्त उद्धरणों से यह बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि आज भी हलबी बोली बस्तर की एक मान्य और कोंटा से ले कर कांकेर तक बोली-समझी जानेवाली भाषा है। हलबी बस्तर के साहित्य की भी भाषा है और सौभाग्य से इसका अपना व्याकरण और शब्दकोश भी है।
1224-1324ई.) का विकास हुआ जिसमें स्थानीयता का तेजी से सम्मिश्रण भी होने लगा। एक एसी भाषा में संस्कृत बदलने लगी जिसके बहुत निकट आज की हलबी प्रतीत होती है। इस कारण को प्रमुखता से पहडना होगा कि क्यों हलबी सभी जनजातियों के बीच बोली जाती है जाहे वे गोंड हो या हलबा।
हलबी और गोंडी में लिख दिया जाये”। यह प्रवीर ही थे जिन्होंने सबसे पहले आदिवासी आईसोलेशन के खतरे को भांपा और इसे रोकने के लिये एक एक्टिविस्ट की तरह प्रयास भी किये उन्होंने अजेर (हल्बी बोली में अजेर का अर्थ है उजाला) नाम का पत्र निकाला जो हिन्दी भाषा तथा आदिवासी बोलियों में संयुक्त रूप से प्रकाशित होता था। लाला जगदलपुरी नें भी बाद में इस बात की अहमियत को समझते हुए हिन्दी भाषा व जनजाति बोलियों में संयुक्त रूप से प्रकाशित होने वाला पत्र “बस्तरिया” प्रारंभ किया था जिनमें वे देश के ख्यातिनाम साहित्यकारों की रचनाओं का जनजातीय बोलियों में अनुवाद प्रस्तुत कर एक पुल बनाने का कार्य कर रहे थे। शायद यही सर्वश्रेष्ठ तरीका है समन्वय का क्योंकि जब आप बस्तर के जनजातीय क्षेत्रों की बात करते हैं तो केवल गोंडी कह कर स्पष्ट विभाजन नहीं किया जा सकता लेकिन इस सवाल पर उनका आईसोलेशन अवश्य किया जा सकता है चूंकि भाषा-बोली के सौहार्द वाले इस जनजाति क्षेत्र में तीस से अधिक बोलियाँ अवस्थित हैं। हलबी बोली नें सभी जनजातियों को एक सूत्र में पिरोने का कार्य नागयुगीन बस्तर से ही आरंभ कर दिया था यही कारण है कि यहाँ दो गोंड जनजातियाँ आपस में बात करते हुए अपनी अपनी बोली में जब गूंगी हो जाती हैं तो हल्बी उनकी ज़ुबान बनती रही है।
तथा इसका उस रियासत काल में हल्बी बोली का अपना लिपि नही होने के कारण हल्बी को सामान्य देवनागरी लिपि से ही प्रदर्शित किया जाता था किन्तु वर्तमान में हल्बी भाषा का लिपि निर्माण किया जा चुका है। और इसका श्रेय परम आदरणीय विक्रम सोनी जी को जाता है। जिसका कठिन परिश्रम,व लगन का ही परिणाम है। जो कि आज हमारे पास हल्बी बोली का अपना लिपि है। सोनी जी लगातार और प्रयासरत है।
कि हल्बी बोली को वैज्ञानिक बोली का दर्जा दिलाने हेतु विक्रम सोनी जी को अखिल भारतीय आदिवासी हल्बा हल्बी समाज छत्तीसगढ़ की तरफ से बहुत बहुत धन्यवाद व बहुत सारी शुभकामनाएं सदा ही हल्बी भाषा को आगे ले जाने हेतु हमेशा कार्य करते रहे इन्ही भावनाओ के साथ उनकी लम्बी उम्र की कामना करते है। उसने बहुत बडा काम किया है। जिनके लिए वे सदा ही लोगों के दिलों में व हल्बी भाषा प्रेमियों के लिए सदा ही मार्गदर्शक के रूप में जाने जायेंगें। वे इतना बडा काम बहुत ही लगन व कडी मेहनत से किया जिसके लिए उनका बार बार धन्यवाद करतें है। इस हल्बी पहाड़ा भाग—1
का कुछ फोटो भी आपके समक्ष सादर प्रेषित है। यह हल्बी पहाड़ा भाग—1 कक्षा 1 से 5 तक के बच्चो के लिए है। तथा हल्बी पहाड़ा भाग—2 कक्षा 6 से 8 तक के बच्चो के लिए है। इसके बारे में जल्द ही आपके सामने प्रेषित करूंगा। इस पहाड़ा की प्रकाशन के लिए हमें आपकी सहयोग की बहुत ही आवश्यकता है।
आप हमारें मदद करें । धन्यवाद
कि हल्बी बोली को वैज्ञानिक बोली का दर्जा दिलाने हेतु विक्रम सोनी जी को अखिल भारतीय आदिवासी हल्बा हल्बी समाज छत्तीसगढ़ की तरफ से बहुत बहुत धन्यवाद व बहुत सारी शुभकामनाएं सदा ही हल्बी भाषा को आगे ले जाने हेतु हमेशा कार्य करते रहे इन्ही भावनाओ के साथ उनकी लम्बी उम्र की कामना करते है। उसने बहुत बडा काम किया है। जिनके लिए वे सदा ही लोगों के दिलों में व हल्बी भाषा प्रेमियों के लिए सदा ही मार्गदर्शक के रूप में जाने जायेंगें। वे इतना बडा काम बहुत ही लगन व कडी मेहनत से किया जिसके लिए उनका बार बार धन्यवाद करतें है। इस हल्बी पहाड़ा भाग—1
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हल्बी पहाड़ा भाग—1 का पेजो का कुछ अंश डेमो के रूप मे देखने हेतु प्रस्तुत कर रहा हूं।
1-परिचय
2. सम्पादकीय
3.विषयाक्रम
4.गिनती
5.दिशा व कुछ हल्बी शब्द
6.कुछ शब्द व कुछ जरूरी वाक्य
7.लिपि, स्वर, व्यंजन
8.हल्बी वाक्य देवनागरी लिपि में
9.हल्बी वाक्य हल्बी लिपि में
1 Comments
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अपना विचार रखने के लिए धन्यवाद ! जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी !