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लिंगो पेन और गोंड जनजाति की उत्पत्ति के बारे में [आर्यन चिराम] lingo pen or gond janjati ke utpatti ke bare me [aaryan chiram]

पोस्ट दृश्य

     लिंगो पेन के बारे में


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    वर्तमान नारायणपुर जिले में रावघाट की पहाड़ियों की जो श्रृंखला है, उसी क्षेत्र में कभी सात भाई रहा करते थे। वह क्षेत्र 'दुगान हूर ` के नाम से जाना जाता था। उन सात भाइयों में सबसे छोटे भाई का नाम था 'लिंगो`। अपने छहों भाइयों की तुलना लिंगो शारीरिक, बौदि्घक, आदि सभी दृष्टि से बड़ा ही शि तााली और गुणी था। कहते हैं वह एक साथ बारह प्रकार के वाद्ययंत्र समान रूप से बजाता लेता था।


    खेत-खलिहान तथा अन्य काम के समय सभी छह भाई सवेरे से अपने- अपने काम में चले जाते थे। छहों भाइयों का विवाह हो चुका था। लिंगो सभी भाइयों का लाड़ला था। न केवल भाइयों का बल्कि वह अपनी छहों भाभियों का भी प्यारा था। वह संगीत-कला में निष्णांत तथा विशेषज्ञ था। सुबह उठते ही दैनिक कर्म से निवृत्त हो कर वह संगीत-साधना में जुट जाता। उसकी भाभियाँ उसके संगीत से इतना मन्त्र-मुग्ध हो जाया करती थीं कि वे अपने सारा काम भूल जाती थीं। इस कारण प्राय:

    उसके भाइयों और भाभियों के बीच तकरार हो जाया करती थी। कारण
    , न तो वे समय पर भोजन तैयार कर पातीं न अपने पतियों को समय पर खेत-खलिहान में भोजन पहुँचा पातीं। इस कारण छहों भाई लिंगो से भी नाराज रहा करते। वे थक-हार कर जब घर लौटते तो पाते लिंगो संगीत-साधना में जुटा है और उनकी पत्नियाँ मन्त्र-मुग्ध हो कर उसका संगीत सुन रहीं हैं। तब छहों भाइयों ने विचार किया कि यह तो संगीत से अलग हो नहीं सकता और इसके रहते हमारी पत्नियाँ इसके संगीत के मोह से मु त नहीं हो सकतीं। पहले तो


    लिंगो को समझाया कि वह अपनी संगीत-साधना बन्द कर दे। लेकिन लिंगो चाह कर भी ऐसा न कर सका। तब छहों भाइयों ने तय किया कि यों न इसे मार दिया जाये। न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी। एक दिन उन लोगों ने एक योजना बनायी और शिकार करने चले गए। साथ में लिंगो को भी ले गए। जब वे जंगल पहुँचे तो योजनानुसार एक पे़ड की खोह में छुपे
    'बरचे` (गिलहरी प्रजाति का गिलहरी से थोडा बड़ा जन्तु। बरचे का रंग भूरा और पूँछ लम्बी होती है। आज भी इसका शिकार बस्तर के वनवासी करते हैं और बड़े चाव के खाते हैं।) को मारने के लिये लिंगो को पे़ड पर चढ़ा दिया और स्वयं उस पे़ड के नीचे तीर-कमान साध कर खड़े हो गये। बहरहाल, लिंगो पे़ड पर चढ़ गया और बरचे को तलाशने लगा। इसी समय इन छहों भाइयों में से एक ने मौका अच्छा जान कर नीचे से तीर चला दिया। तीर लिंगो की बजाय पे़ड की शाख पर जा लगा। पे़ड था बीजा का। तीर लगते ही शाख से बीजा का रस जो लाल रंग का होता है, नीचे टपकने लगा। छहों भाइयों ने सोचा कि तीर लिंगो को ही लगा है

    और यह खून उसी का है। उन्होंने सोचा कि जब तीर उसे लग ही गया है तो उसका अब जीवित रहना मुश्किल है। ऐसा सोच कर वे वहाँ से तितर-बितर हो कर घर भाग आये। घर आ कर सब ने चैन की साँस ली। उधर लिंगो ने देखा कि उसके भाई पता नहीं यों उसे अकेला छोड कर भाग गये। उसे सन्देह हुआ। वह धीरे-धीरे पे़ड पर से नीचे उतरा और घर की ओर चल पड़ा। कुछ सोच कर उसने पिछले दरवाजे से घर में प्रवेश किया। वहाँ भाई और भाभियों की बातें सुनीं तो उसके रोंगटे खड़े हो गये। लेकिन उसने


    यह तथ्य किसी को नहीं बताया और चुपके से भीतर आ गया जैसे कि उसने उनकी बातचीत सुनी ही न हो। उसे जीवित देख कर उसके भाईयों को बड़ा आचर्य हुआ। खैर! बात आयी-गयी हो गयी। दिन पहले की ही तरह गुजरने लगे। इस घटना के कुछ ही दिनों बाद उसका भी विवाह कर दिया गया।


    उसका विवाह एक ऐसे परिवार में हुआ
    , जिसके परिवार के लोग जादू-टोना जानते थे। उसकी पत्नी भी यह विद्या जानती थी। समय बीतता रहा। Tumesh chiram   उनके परिवार में कभी कोई बच्चा या कभी भाई- भाभी बीमार पड़ते तो हर बार छोटी बहू पर ही शक की सुई जा ठहरती थी, कि वही सब पर जादू- टोना कर रही है। तब छह भाइयों ने छोटे भाई और बहू को घर से बाहर निकालने की सोची। एक दिन लिंगो के भाइयों ने स्पष्ट शब्दों में लिंगो से कह दिया, '

    तुम्हारी और तुम्हारी पत्नी की वजह से हम सभी लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अत: तुम लोग न केवल घर छोड कर बल्कि यह परगना छोड कर कहीं अन्यत्र चले जाओ। हम तुम्हें अपनी सम्पत्ति में से कुछ भी हिस्सा नहीं देंगे लेकिन यादगार के तौर पर तुम्हें यह


    'मोह्ट` (अँग्रेजी के 'यू` आकार की एक चौडी कील जिससे हल फँसी रहती है।


    इसे हल्बी परिवश में
    'गोली ' कहा जाता है) देते है ।

    ' लिंगो उसे ले कर अपनी पत्नी के साथ वहाँ से चल पड़ता है। रास्ते में कन्द-मूल खाते, उस परगने से बाहर जा पहुँचता है। चलते-चलते वे एक गाँव के पास पहुँचते हैं। फागुन-चैत्र महीना था। वहां उसने देखा कि


    धान की मिजाई करने के बाद निकला ढेर सारा पैरा (पुआल) कोठार (खलिहान) में रखा हुआ था। घर से निकलने के बाद से उन्हें भोजन के रूप में अन्न नसीब नहीं हुआ था। उसे देख कर उसके मन में अशा की किरण जागी और उसने विचार किया कि यों न इसी पैरा को दुबारा मींज कर धान के कुछ दाने इकट्ठे किये जाएं। यह सोच कर उसने उस कोठार वाले किसान से अपना दुखड़ा सुनाया और उस पैरा को मींजने की अनुमति माँगी। उस किसान ने उसकी व्यथा सुन कर उसे मिजाई करने की अनुमति दे दी।


    उसने गाँव लोगों से निवेदन कर बैल माँगे और उस
    'मोह्ट` को उसी स्थान पर स्थापित कर उससे विनती की, कि तुम्हें मेरे भाइयों ने मुझे दिया है। मैं उनका और तुम्हारा सम्मान करते हुए तुम्हारी ईश्वर के समान पूजा करता हूँ। यदि तुममें कोई शक्ति है, तुम मेरी लाज रख सकते हो तो इस पैरा से


    भी मुझे धान मिले अन्यथा मैं तुम्हारे ऊपर मल-मूत्र कर तुम्हें फेंक दूँगा। ऐसा कह उसने मिजाई शुरु की। वह मिजाई करता चला गया। मिजाई समाप्त होने पर न केवल उसने बल्कि गाँव वालों ने भी देखा कि उस पैरा से ढेर सारा धान निकल गया है। सब लोग आश्चर्य चकित हो गये और लिंगो को चमत्कारी पुरुष के रूप में देखने लगे। उसका यथेष्ट सम्मान भी किया। तब लिंगो ने उस
    'मोह्ट` की बड़ी ही श्रद्घा-भक्ति पूर्वक पूजा की। उसे कुल देवता मान लिया और पास ही के जंगल में एक झोपड़ी बना कर बस गया।
    लिंगो और उसकी पत्नी ने मिल कर काफी मेहनत की। उनकी मेहनत का फल भी उन्हें मिला। जहां उन्होंने अपना घर बनाया था कालान्तर में एक गाँव के रूप में परिर्तित हो गया। समय के साथ लिंगो उस गाँव का ही नहीं बल्कि उस परगने का भी सम्मानित व्यि त बन गया।

    उस गाँव का नाम हुआ
    'वलेक् नार`'वलेक्` यानी सेमल और नार यानी गाँव। हल्बी में सेमल को सेमर कहा जाता है। आज इस गाँव को लोग सेमरगाँव के नाम से जानते हैं।
     इस तरह जब उसकी कीर्ति गाँव के बाहर दूसरे गाँवों तक फैली और उसके भाइयों के कानों तक भी यह बात पहुँची। उसकी प्रगति


    सुन कर उसके भाइयों को बड़ी पीड़ा हुई। वे द्वेष से भर उठे। उन लोगों ने पुन: लिंगो को मार डालने की योजना बनायी और वे सब सेमरगाँव आ पहुँचे। उस समय लिंगो घर पर नहीं था। उन्होंने उसकी पत्नी से पूछा। उसने बताया कि लिंगो काम से दूसरे गाँव गया हुआ है। तब उसके भाई वहाँ से


    वापस हो गये और अपनी योजना पर अमल करने लगे। उन्होंने
    12 बैल गाड़ियों में लकड़ी इकट्ठा की और उसमें आग लगी दी। उनकी योजना थी लिंगो को पकड़ कर लाने और उस आग में झोंक देने की। अभी वे आग लगा कर लिंगो को पकड़ लाने के लिये उसके घर जाने ही वाले थे


    कि सबने देखा कि लिंगो उसी आग के ऊपर अपने क्त्त् वाद्ययंत्र (
    1. माँदर, 2. ढुडरा (कोटोड, ठु़डका, कोटोडका), 3. बावँसी (बाँसुरी), 4. माँदरी 5. पराँग, 6. अकुम (तोडी), 7. चिटकोली, 8. गुजरी बड़गा (तिरडुड्डी या झुमका बड़गी या झुमका बड़गा), 9. हुलकी, 10. टुंडोडी (टु़डबु़डी), 11. ढोल, 12. बिरिया ढोल, 13. किरकिचा, 14. कच टेहेंडोर, 15. पक टेहेंडोर, 16. ढुसिर (चिकारा), 17. कीकिड़, 18. सुलु़ड) बजाते हुए नाच रहा है। यह देख कर उन सबको बड़ा आचर्य हुआ। वे थक-हार कर वहाँ से वापस चले गये। वे समझ गये कि लिंगो को मारना सम्भव नहीं।

    लिंगो और उनके उन छह भाइयों के नाम 

    का उल्लेख डॉ. के. आर. मण्डावी अपने 'पूस कोलांग परब` शीर्षक लेख (बस्तर की जनजातियों के पेन-परब, 2007 : 79) में कांकेर अंचल के मुरडोंगरी ग्राम के पटेल एवं खण्डा मुदिया (आँगा देव) के पुजारी श्री धीरे सिंह मण्डावी के हवाले से इस तरह किया है : 1. उसप मुदिया, 2.


    पटवन डोकरा
    , 3. खण्डा डोकरा,धनोरा में है आचला लोग सेवा देते है 4. हिड़गिरी डोकरा, 5. कुपार पाट डोकरा, 6. मड़ डोकरा, 7. लिंगो डोकरा। उनके अनुसार लिंगो पेन तथा उनके छह भाई गोंड जनजाति के सात देव गुरु कहे गये हैं।

    और ग्राम तुमसनार के अनुसार ममता तेता{मरकाम},वर्तमान बड़े डोंगर में निवासरत के अनुसार लिंगो के पिता जी के नाम बूमडोकरा और लिंगो देव की 3 पत्नियों में एक का नाम सेडो डोकरी जो सोडेगाँव में है दो नाम अज्ञात है,

    और लिंगो की एक बहन भी है जिनका नाम कोहलाकोसो डोकरी है जिनकी सेवा गोटा लोग करते है
     मान्यता के अनुसार लिंगोदेव कुटकी कूटते कूटते काला हो गया है इसलिए लज्जा होता है और बांकी देवताओ से मिलने में थोडा हिचकिचाहट के कारण अकेला एक साइड रहे रहता है सेमरगाँव के नाम के पीछे भी एक मान्यता है की लिंगो और उनके 6 भाइयो के रूप में 7 सेमर का पेड़ है जिसके चलते लिंगो धाम का नाम सेमरगाँव पडा,

     गोंड जनजाति की उत्पत्ति सम्बंधित मान्यताये 

              गोंडवाना दर्शन में उल्लेख मिलता है कि माता रायतार जंगो के अनाथ आश्रम में माता रायतार जंगो और माता कली कंकाली के आश्रय, छत्रछाया में पल एवं बढ़ रहे मंडून्द (तैंतीस) कोट बच्चों को स्वभाव परिवर्तन, सुधार के लिए महादेव की आज्ञा से कोयली कचारगढ़ गुफा में बंद कर दिया गया था. गुफे के द्वार को एक बहुत बड़े चट्टान से बंद कर दिया गया था. यह चट्टान महादेव की संगीतमय मंत्र से पूरित था. इसे खोलने का उपाय केवल महादेव ही जानते थे. गुफे के शीर्ष में होल नुमा संकरा छिद्र था और आज भी है, जो पहाड़ में शीर्ष पर खुलता है. गुफे के अंदर से उन बच्चों का इस छिद्र के द्वार से निकल पाना संभव नही था.


    इसी छिद्र से उन बच्चों को माताओं के द्वारा भोजन पहुचाया जाता था. वर्षों तक बच्चे गुफा में ही बंद रहे. बच्चों के बिना माताओं (माता रायतार जंगो और माता कली कंकाली) का हाल बेहाल होने लगा. उनहोंने बच्चों को मुक्त करने के लिए महादेव से कई बार निवेदन किए, किन्तु महादेव ने


    उन्हें मुक्त करने में असमर्थता जताया. उधर बच्चों के बिना माता रायतार जंगो तथा माता कली कंकाली का मातृत्व ह्रदय और शरीर जीर्ण-क्षीण होने लगा था. माताओं की इस अवस्था को देखकर महादेव को दया भाव जागृत हुआ और वे उन बच्चों को गुफा से मुक्त किए जाने का मार्ग बताया.

    इसे कोई महान संगीतज्ञ ही खोल सकता है, जो दसों भुवनों और प्रकृति के चर-आचार, जीव-निर्जीव, तरल-ठोस सभी तत्वों की आवाज का ज्ञाता हो, संगीत विज्ञानी हो तथा उन आवाजो का लय बजा सकता हो या पूरी सृष्टि की लय जिसका संगीत हो. यह सुनकर माताओं के लिए दूसरी संकट खडी हो गई.


    महादेव ने ध्यान से आँखें खोलते हुए कहा- वह महामानव, संगीतज्ञ इस संसार में आ चुका है. केवल वही इस गुफा के द्वार का चट्टान अपनी संगीत विद्या की शक्ति से हटा सकता है.

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    कचारगढ़ के बड़ा गुफा का अग्र भाग जहां  मंडून्द कोट
    बच्चो को महादेव की आज्ञा से बंद किया गया था. इस
    गुफा में हजारों व्यक्तियों के एक साथ बैठेने के लायक
    पर्याप्त स्थान है. यहाँ पर स्वच्छ जल कुंड भी है, जो
    कभी भी नही सूखता.
     
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    गुफा के अंदर जल कुंड के ऊपर ही आसमान पर खुलने
    वाला यह होल/छिद्र है जहां से 
    बच्चों के लिए भोजन
    छोड़ा जाता था.



              पहंदी पारी कुपार लिंगो को जो दृश्य उनके अंतर्ज्ञान में दिखाई दिया था, वह विकट दृश्य माता कली कंकाली की मृत्यु का समाचार था. बताया जाता है कि माता अपने आश्रम के पास के विशालकाय बरगद के नीचे काम कर रही थी. अचानक आसमान पर बिजली कौंधी और


    उस बरगद के झाड़ पर आसमानी बिजली गिरी. इस आसमानी बिजली से कली कंकाली माता की मृत्यु हो गई. इस समय लोहगढ़, कचारगढ़ के उस स्थान पर बरगद पेड़ का कोई नामोनिशान नही है, किन्तु वहीँ पर कली कंकाली माता की मढ़िया हमारे पूर्वजों नें स्थापित कर दिया है.


    इस मढ़िया में समाज के भूमका-पुजारियों द्वारा सतत कोया मुनेमी रीति रिवाज से पूजा अर्चना की जाती है तथा माता जी के दर्शन के लिए देश के ओर-छोर से श्रद्धालु हर दिन मढ़िया में जाते रहते हैं. प्रतिवर्ष इस स्थान पर माघ पूर्णीमा में विशाल मेला भरता है


    . यह मेला पूर्णिमा के ४ दिन पहले से शुरू होकर पूर्णिमा के दिन समाप्त हो जाता है. देश भर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं और गढ़ माता की मढ़िया, कली कंकाली मई की मढ़िया, जंगो माई, लिंगो कुटी, बड़ादेव गुफा, बड़ा गुफा (जहां मंडून्द कोट बच्चो को बंद किया गया था)


    आदि का दर्शन कर कोया पुनेम का बीज मंत्र लेकर चले जाते हैं.

              मंडून्द कोट बच्चों को कोयली कचारगढ़ गुफा से मुक्त कर उन्हें उचित शिक्षा प्रदान करने के लिए कुपार लिंगो ने सर्वप्रथम 'गोटूल' नामक शिक्षा केन्द्र की स्थापना एकांतमय, शांतिपूर्ण वातावरण से शुरू की. पारी कुपार लिंगो ने उन मंडून्द कोट बच्चों का मानसिक, शारीरिक विकास किया.


    उन्हें सगा सामाजिक एवं धार्मिक शिक्षा दी. तत्पश्चात उन्ही के माध्यम से सम्पूर्ण कोयावंशीय मानव समुदाय में गोटूल संस्थाओं का निर्माण कराया गया. पारी कुपार लिंगो के मतानुसार छोटे बच्चो पर जन्म से ही माता-पिता के संस्कार आ जाते हैं. अच्छे-बुरे लोगों की संगत का प्रभाव उनपर होता है. हम जहां कहीं, जिस जगह में रहते हैं, उस पर्यावरण से हमारा जीवन प्रभावित होता है. यदि निवास स्थान के पास झगड़ा-फसाद करने वाले लोग रहते हैं, तो उसी वातावरण में लोगों के विचार व्यवहार प्रभावित होते हैं.


    अंत में उसी के मुताबिक वह अपना व्यवहार करता है. ऐसे अंधकारमय वातावरण में रहकर मनुष्य को "सुयमोद वेरची तिरेप" अर्थात सद्ज्ञान प्रकाश किरण का दर्शन नही हो पाता. मानव जीवन की मौलिकता इस अज्ञानता के पर्यावरण में फंस जाने से लुप्त हो जाती है. मनुष्य अपने वास्तविक रूप एवं स्वहित को देखने में असमर्थ हो जाता है. उसकी वैचारिक एवं बौद्धिक शक्ति कमजोर हो जाती है.


              माताएं महादेव के बताए मार्ग अनुसार उसे ढूँढने निकल पड़ीं और 'हीरासूका पाटालीर' के रूप में उसे पाया. महादेव की आज्ञा से हीरासूका पाटालीर ने अपने संगीत साधना से महादेव के द्वारा गुफा के द्वार पर बंद की गई मंत्र साधित चट्टान को हटा दिया. चट्टान के हटने और लुड़कने से उसमे दबकर हीरासूका पाटालीर की मृत्यु हो गई. उस संगीत विज्ञानी का यहीं अंत हो गया. बच्चे गुफा से मुक्त हो गए. अब महादेव और माताओं को बच्चों की भविष्य की चिंता सताने लगी.

    सभी मंडून्द कोट बच्चे केवल मांस के लोथड़े भर थे, उन्हें किसी भी तरह का सांसारिक व सांस्कारिक ज्ञान नही था. महादेव को मालूम था कि पेंकमेढ़ी सतपुड़ा पर्वत माला पर एक महान दार्शनिक, प्रकृति विज्ञानी पहांदी पारी कुपार लिंगो उनकी आज्ञा से गहन प्राकृतिक ज्ञान, धर्म की शोध-खोज, ध्यान,


    योग में जुटा हुआ है. वह ज्ञानी पुरुष ही इन बच्चों को जीवन ज्ञान से प्रकाशित कर सकता है. महादेव स्वयं उनकी खोज में निकल गए. Tumesh chiram   सुबह-सुबह ही महादेव पहंदी पारी कुपार लिंगो के साधना स्थल, उस पर्वत पर स्थित विशालकाय


    पेड़ के नीचे पहुच गए. इस एकांत निर्जन स्थान पर लिंगो लगभग ७ वर्षों से गहन आध्यात्मिक शोध में जुटे हुए थे. वे उस समय भी ध्यानमग्न थे. महादेव उनकी तंद्रा तोडनी चाही. उनकी तंद्रा टूटी किन्तु वे महादेव को देखकर भी उनके शरीर में हल-चल, जरा भी विचलन नही हुआ.


    महादेव उनके मन में उत्पन हल-चल को समझ रहे थे. पहंदी पारी कुपार लिंगो को उसी समय अंतर्ज्ञान की प्राप्ती हुई थी. अंतर्ज्ञान की प्राप्ति होते ही उसे अंतर्ज्ञान से एक स्त्री के ऊपर बिजली गिरने से उसकी मौत का समाचार उसे मिल चुका था. एक स्त्री की मौत का ज्ञान दर्शन होना उसे आश्चर्य कर दिया था, कि यह दृश्य उसे कैसे दिखाई दिया ! जिसके कारण वे महादेव की आवाज को ग्रहण और सुन नही पाए. महादेव उनकी मनःस्थिति को जान गए थे.

    महादेव ने लिंगो से कहा- जो तुमने अंतर्ज्ञान में दिखाई दिया, वह सत्य है पारी कुपार ! अब तुम्हे अंतर्ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी है. एका एक महादेव का वचन सुनते ही लिंगो की तंद्रा टूटी और वे महादेव को समक्ष में देखकर विचलित होकर खड़े हो गए. वह महादेव से जानना चाहा कि ऐसा क्यों हुआ और वह स्त्री कौन थी. महादेव ने कहा कि यह तुम अब सब कुछ जानने लगे हो, मेरे द्वारा अब यह बताने की आवश्यकता नही है. महादेव ने उन्हें उनके पास आने का कारण बताया और पारी कुपार लिंगो को अपने साथ ले गए.

    अन्य मत अनुसार




    गोंड समूह का उगम आशिया खंड की सबसे बड़ी गुफा, कचारगड़ की गुफा से हुवा ऐसे बहोतसे साहित्य उपलब्ध है।

    उन्ही साहित्यों के आधार से हम यह कह सकते है की,मादाव संभुशेक कोड़ापा ने कलिया दाई के 12 बच्चो को उस कचारगड़ की गुफा में बंद किया था।

    बाद में पारी कुपार लिंगो, हिरासुका लिंगो और जंगो रायताड़ दाई ने मिलकर,अपने अपने योगदान से उन 12 बच्चो को कचारगड़ की गुफा से मुक्त किया था।

    उन्ही (7+5)=12 बच्चो ने, गोंड समूह के उगम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

    उन 12 बच्चो में से 7 बच्चे आज के कोया पुनेम वाले,700 गोत्र से वास्ता रखनेवाले,कोयागणो के पूर्वज है तो बाकी के 5 बच्चे मुठवा पुनेम वाले,50 गोत्रो से वास्ता रखनेवाले मुठवा/गुरु/मार्गदर्शक/भूमकालो के पूर्वज है।

    जब पारी कुपार लिंगो ने गोंडी पुनेम का मार्ग दर्शन किया था,

    तब उन्होंने उनका कार्य आगे बढ़ाने हेतु,उन्ही 5 बच्चो को चुना था।




    पुरे गोंड समूह को,
    मुठवा पुनेम+कोया पुनेम=गोंडी पुनेम का सर्वोच्च कुदरती मार्ग दिखाया था।
    भविष्य में आगे बढ़नेवाले पुरे गोंड समूह को,12 बच्चो के हिसाब से,1 से 12 तक के पेनो में विभाजित किया था।
    इन 1 से 12 तक के पेन संख्या में,1 से 7 तक पेन वाले कोयागण थे और है तो 8 से 12 तक पेन वाले मुठवा थे।
    आज परिस्थिती ऐसी है की,1 से 7 तक के पेनवालो के,700 गोत्रो का तो अस्तित्व दिखाई देता है लेकिन 8 से 12 तक के पेन वाले 5 मुठवाओ के 50 गोत्रजो का अस्तित्व दिखाई नही देता है।


    ऐसा क्यों हुवा था या ऐसा क्यों हुवा है?
    इस सवाल का जवाब देने की हिम्मत या इतनी बड़ी उकल करने की हिम्मत किसीने दिखाई नही है।



    सिर्फ इतना ही बताया गया है की,
    दूसरे रायलिंगो ने 8 से 12 तक की पेनसंख्या वालो को 1 से 7 तक विसर्जित किया गया था।
    लेकिन यह भी पर्याप्त या समाधानकारक जवाब नही है।
    आज जो दौर चल रहा है,उस दौर का शिकार कही वो 5 मुठवाओ के वंशज तो नही हुवे?
    कही उन 5 मुठवाओ के वंशजो के वजूद का गायब हो जाने में किसीकी कोई चाल तो नही?


    मुठवाओ के वंशजो का अस्तित्व नकारकर कोई 750 को सिर्फ 700 तो नही बनाना चाहता?
    ऐसे कयी तरह के दुरदृष्टिपूर्ण सवाल खड़े होते है।
    8 से 12 तक के 5 मुठवाओ का,
    1 से 7 तक के कोयागणो में विसर्जित कर देना ही किसीकी सबसे बड़ी चाल है।
    इसी विसर्जित चाल की वजह से ही एक ही गोत्र के गोंड होकर भी,
    उनकी पेनसंख्या अलग अलग दिख रही है।
    बल्की पुरे गोंडबाना में कही पर भी जाओ तो हर गोत्र की पेनसंख्या फिक्स होनी चाहिये थी।



    लेकिन आज धुर्वा 6 भी है और 7 भी,
    नैताम 4 भी है और 6 भी,
    कुमराल 5 भी है और 6 भी,
    कन्नाके 5 भी है और 7 भी।
    इत्यादी.....!
    उपरके इस झोलझाल की वजह से ही 12 में से 5 मुठवाओ के वंशजो का अस्तित्व और 750 में से मुठवाओ के 50 गोत्रो का अस्तित्व गायब हुवा है।


    यु कहु तो किसीने तो भी बड़ी चाल चलकर पारी कुपार लिंगो द्वारा रचित गोंड समूह को,
    अपने फायदे के लिये पुनर्रचित किया हुवा है।
    इसीलिये 5 मुठवाओ का महत्वपूर्ण वारसा आज दिख नही रहा है और कोयागणो को दीक्षा के माध्यम से भूमकाल बनने की नौंबत आ रही है।





    उपरोक्त कहानियो और लेखो से ज्ञात होता है की पारी कुपार लिंगो और सभुसेक दोनों समकालीन थे साथ ही यह ज्ञात होता है की पारी कुपार लिंगो जो अन्य जनजाति का भी हो सकता है, वे गोंड जनजाति के सभी ३३ कोरी बच्चो(पूर्वजो को ज्ञान दिया) क्योकि वे एक ही समय के थे और अलग अलग स्थलों में बस रहे थे और साथ में यह भी ज्ञात होता है


    जिन ३३ कोरी बच्चे जिन्हे लिंगो ने ज्ञान दिया वही आगे चलकर गोंड कहलाये तो अब प्रश्न यह उठता है की खुद पारी कुपार लिंगो किस जनजाति से सम्बन्ध रखते थे ? और बहुत सारी प्रश्नों पर आगे  चर्चा करेंगे अब तक के लिए बस इतना ही आगे फिर किसी नए टॉपिक के साथ मिलेंगे 
    जय माँ दंतेश्वरी 




    सन्दर्भ सूचि




    // लेखक // कवि // संपादक // प्रकाशक // सामाजिक कार्यकर्ता //

    email:-aaryanchiram@gmail.com

    Contect Nu.7999054095

    CEO & Founder

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    3 Comments

    1. महादेव मतलब..... भगवान् शिव जी के बात hothe ki koi दूसरा महादेव h जी.....


      Au गोंड़ mn तो हिन्दू धर्म के भगवान् मन ला ni मानन kthe....

      Ta yemn कोने

      ReplyDelete
    2. खण्डा मुदिया का सेवा मण्डावी गोत्र (नाग)के लोग करते है।
      आचला लोग उसेह मुदिया का सेवा करते है जी ,सुधार कीजिये

      ReplyDelete
    3. जबरदस्त और बहुत उपयोगी

      ReplyDelete

    अपना विचार रखने के लिए धन्यवाद ! जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी !

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