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पर्दा प्रथा एक बुराई // parda prtha ek burai

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    पर्दा प्रथा

     की हम बात करे तो कल से लेकर आज तक भारत के हर क्षेत्र में पर्दा प्रथा की छाप दिखाई पड़ता है पर कभी आपने सोचा है की यह पर्दा प्रथा आई कैसे और क्यों आई ऐसे क्या जरुरत पड़ा इस प्रथा का इन सब पर विषयों पर बारी बारी से बात करेंगे पर उनसे पहले वर्तमान में भारत के किस किस क्षेत्र में पर्दा प्रथा की छाप दिखती है वंहा से बात शुरू करते है  घूँघट की प्रथा उत्तर में राजस्थान में सबसे ज्यादा है फिर हरियाणा और फिर जैसे-जैसे आप पूरब उतरते चले आइये तो ये प्रथा कमते चला जाता है और अगर आप दक्षिण की तरफ उतरते चले आइये तो घूँघट की प्रथा ना के बराबर है पूरे इतिहास में बर्बर मुस्लिम आक्रमणकारियों के लिए “1947 के खंडित भारत वर्ष” का सबसे बड़ा प्रवेश द्वार राजस्थान रहा है और दिल्ली हो या आगरा ये बर्बर आक्रमणकारी राजस्थान और हरियाणा होकर ही आये थे, तो उन आक्रमणकारियों से अपने स्त्रियों और बहु बेटियों को बचाने के उद्देश्य से पराये पुरुषो के सामने पर्दा लेकर जाने की रिवाज बनाई गई Tumesh chiram   जो राजिस्थान में राजपूत लोगों के इतिहास में स्पष्ट दिखाई पड़ता है आप शायद पद्मावत देखे होंगे उसमे कई जगह पर्दा प्रथा को स्पष्टतः फिल्माया गया है उस समय व परिस्थिति के अनुसार पर्दा प्रथा थी परन्तु समय के साथ वह पर्दा प्रथा की आवश्यकता नही रही पर भी आज महिलाओं को पर्दा प्रथा को ढोना पड़ रहा है, कुछ महिलाए तो इस प्रथा को छोड़ना चाहते है पर हमारा समाज उन्हें यह सब करने नही देती क्योकि हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है महिलाओ की आजादी से हमे क्या लेना?? ऐसा सोच रखता है आज का समाज अगर सर ढंकना बंद कर दे तो आज का समाज यह सोचता है की बिलकुल भी सम्मान नही है या विनम्र भाव नही है ऐसा सोचता है और उसी के जगह सर ढंक ले तो वह संस्कारी हो जाता है सोचो अगर कल्पना चावला सर ढक कर रहती तो क्या वह कभी अन्तरिक्ष में जा पाती, क्या अगर इंद्रा गाँधी पर्दा डाल कर राजनीति कर पाती? क्या सानिया मिर्जा पर्दा डालकर टेनिश खेल पाती? क्या महिला क्रिकेटर घूँघट डाल कर क्रिकेट खेल पाती? क्या महिला घूँघट में रहते तो पायलेट डोक्टर वकील इंजिनियर बन पाते नही आज पुरुषो के साथ कंधो पे कन्धा मिला कर चल पा रहे है उसका कारण है की उन्हें पर्दा से छुट मिला तब वे बहुत अच्छे मुकाम में पहुची सोचो अगर कल के जैसा आज भी पर्दा प्रथा बहुत जायदा हावी होता तो क्या होता? पर्दा प्रथा के लाभ बहुत सिमित है परन्तु हानिया ढेरो है, पर्दा प्रथा के चलते महिलाओ का ज्ञान, अनुभव, तर्क , आदि कम होने लगते है व कुंठित मन के हो जाते है परन्तु जैसे ही उनका पर्दा हटा दी जाय तो उनका ज्ञान धीरे धीरे विस्तृत होते जाएगा और जैसे अभी की स्थिति है वह पर्दा प्रथा को हटाने का ही परिणाम है की महिला पुरुषो के साथ कदम में कदम मिलाकर आगे बढ़ रहे है

    इतिहास:-

     अब आते हैं तथाकथित हिन्दू-धर्म, वैदिक आर्य धर्म व् सनातन धर्म में प्रचलित पर्दा-प्रथा के इतिहास पर| इतिहास तो यही कहता है कि हिंदुस्तान की मूल जातियों-धर्मों वाले समाजों में पर्दा-प्रथा नहीं होती थी| ना ही इसका किसी वेद-ग्रन्थ-पुराण में इस प्रकार से जिक्र है कि यह आम-जीवन का हिस्सा बनाने जैसी चीज हो|

    भारत की मूल प्रजातियों में पर्दा प्रथा किसी मान्यता,परम्परा के तहत नहीं अपितु दसवीं सदी के इर्द-गिर्द विदेशी आक्रांताओं से अपनी नारी शक्ति की सुरक्षा हेतु मजबूरी में अपनाया गया एक अस्थाई सुरक्षा कवच था जो कि 1947 में भारतवर्ष की आज़ादी के साथ ही चला जाना चाहिए था| प्राचीन भारत

     का साहित्य पढ़िये, मृच्छकटिकम की वसन्तसेना से लेकर, अभिज्ञान शाकुन्तलम् की शकुन्तला और उसकी सखियों के वस्त्र देखिये। कमर पर बंधी धोती जो टाँगो को ढके रहती थी एवं आज के दुप्पटे जैसा एक लम्बा कपड़ा वक्ष पर बँधा हुआ जो कंचुकी कहलाता था। वर्षों यही पहनावा रहा। तो क्या कारण है कि इसी समाज में आगे चल कर स्त्रियाँ सिर्फ पूरी ढकी ही नहीं अपना चेहरा भी घूँघट में छिपा कर रखने लगीं।

    कभी आपने ध्यान दिया कि भारत का जो हिस्सा इस्लाम के सीधे सम्पर्क में आया वहीं वहीं घूँघट प्रथा पाई जाती है। इस्लाम में स्त्री और पुरुष दोनो के लिए ही अधिक कपड़े पहनने का प्रचलन है। यदि स्त्रियाँ नख शिख तक अर्थात पैर के नाख़ून से सिर तक ढकी बाहर निकलती हैं तो पुरुष भी नेकर अथवा आधी बाज़ू वाली क़मीज़ में नहीं दिखेंगे।

    जब दो भिन्न समाज सम्पर्क में आते हैं तो दोनो ही एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। परन्तु ध्यान देने वाली बात यह है कि घूँघट की प्रथा सीधे मुस्लिम समाज से नही ली गई परन्तु फिर भी इसका कारण इस्लाम का आगमन है।

    हमारे पूर्वज आज के पाकिस्तान के उत्तर पूर्वी प्रान्त के रहने वाले थे जो कि मुस्लिम बाहुल्य इलाक़ा था। कोई भी ख़ूबसूरत लड़की को उठा ले जाना वहाँ की आम बात थी अत: लड़कियों को बचा कर रखने का एक ही उपाय था, उन्हें घर के भीत्तर रखना और बाहर निकलने पर उनका नख शिख तक ढका होना। एक बात और हिन्दु धर्म में लड़की का कौमार्य बहुत महत्वपूर्ण है। इस्लाम में उतना नहीं और वह विवाहित स्त्री पसन्द आ जाने पर उसे भी उठा ले जाने से नहीं चूकते थे।

    यह बात मैं इस भाव से भी नहीं कह रही कि यह लड़की के कौमार्य पर हमारा जोर हमारी श्रेष्ठता है क्योंकि हमारी इसी सोच के कारण विधवा, परित्यक्ता को, बिना किसी अपराध के, घोर ज़लालत में जीना पड़ता है। अत: हमारे पूर्वजों के दौर में विवाहित स्त्रियाँ भी पूरी ढकी बाहर निकलती थीं, यहाँ तक कि स्त्रियों का टाँगे में बैठ कर बाहर जाने पर टाँगे के चारों तरफ़ भी पर्दा लगा रहता था।

    मुसलमान स्त्रियाँ घूँघट नहीं करतीं। उनका चेहरा ढकने का तरीक़ा भिन्न है। भारतीय उपद्वीप में बुर्के का प्रचलन था जिसमें आँखों के सामने जाली के इलावा पूरा बदन बुर्क़े के भीत्तर रहता है। परन्तु पंजाब की हिन्दु स्त्रियाँ जिनका पहनावा सलवार सूट रहा है वह दुपट्टे से घूँघट करने लगीं और राजस्थान की स्त्रियाँ अपनी ओढ़नी से। दोनो का मक़सद अपना चेहरा छुपा कर रखने का है।

    दक्षिण के हैदराबाद में भी मुस्लिम राज्य बना पर वहाँ इस्लाम ने वैसा आक्रामक रवैया नहीं अपनाया। उत्तर भारत में पश्चिमोत्तर से एक के बाद एक हमले और मुस्लिम राज्यों की स्थापना के कारण यहाँ इस्लाम का दबदबा अधिक रहा।

    दक्षिण में घूँघट तो क्या सिर ढकने का प्रचलन भी नहीं है। लड़कियाँ अपने विवाह के समय भी सिर नहीं ढकती। और कहीं कहीं तो स्त्री का सिर ढकना अपशकुन भी माना जाता है।


    पर्दा प्रथा करने के तीन कारण मुख्य है 

    भय या अपराध के डर से

    1) पर्दा-प्रथा कोई परम्परा नहीं, एक मजबूरी थी: घूंघट का इतिहास इतना प्राचीन भी नहीं है। इसका जिक्र ना तो वेदों में मिलता है और ना ही हमारे महाकाव्यों जैसे रामायण, महाभारत में। इन ग्रंथों के चित्रण में महिलाओं को हमेशा बिना किसी घूंघट या पर्दा के दर्शाया गया है। दरअसल घूंघट का जो विचार है उसके बारे में जो मान्यता है, वह इसके लिए मुगल काल को जिम्मेदार ठहराती है।
    भारत में जब मुगल काल का आरंभ हुआ तो पहले उन्होंने सम्पूर्ण देश पर अधिकार किया और उसके बाद धीरे धीरे उनके अत्याचार शुरू हुए। इस क्रम में उन्हें जो भी लड़की या महिला सुंदर दिखती, वे उसके साथ जबरदस्ती करते या उसको राजा को सौंप देते थे और जबरन शादी भी कर लेते थे। यह वो दौर था जब महिलाओं की स्थिति पूरे भारत के इतिहास में निकृष्ट हो गई थी। राजा, मंत्री और अन्य लोग एक से ज्यादा पत्नियां रख सकते थे और रास्ते चलते किसी भी स्त्री का अपहरण कर लेते थे।  इन सबसे बचने के लिए भारतीयों खासतौर से राजपूतों ने एक उपाय निकाला। उन्होंने इसके लिए महिलाओं के लिए घूंघट का प्रावधान किया, जिसके अन्तर्गत हर महिला बाहर जाते समय या किसी अनजान पुरुष के सामने आने पर घूंघट के द्वारा अपने चेहरे को छिपा लेती थी। जिस कारण उनके विरुद्ध अपराधों में तो कमी आती गई, परन्तु यह प्रथा धीरे धीरे उनकी संस्कृति का हिस्सा बनती चली गई और अपने पिता, पति और भाई के अतिरिक्त वह अन्य पुरुषों से अपने को छिपाने के लिए घूंघट करने लगी।
    इतिहास व रिति रिवाजो,धार्मिक, सामाजिक, कारण
    मुगलों के चले जाने के पश्चात भी यह समाज में इस तरह घुल गया कि लोग अकारण ही, अब इस प्रथा का अनुसरण कर रहे हैं।  इस तरह घूंघट भारतीय सभ्यता का प्रतीक बन गया। कुप्रथाओ को भी हम बडे शौक से अपना रीतिरिवाज मानते है और ढोते आ रहे है! कई धर्मो में पर्दा करना अनिवार्य है तथा कई समुदाय में भी पर्दा करना अनिवार्य है मैने पहले ही बोला था की उस समय अलग वातावरण था उस समय इसकी मांग थी परन्तु वर्तमान में नही भारत में तो महिलायें आजादी से जीवन जीती थीं. महिलाएं चाहे घर में होती या खेत खलियान में काम करती, उनकी सुरक्षा को कोई खतरा नहीं होता था. लेकिन जब भारत में बाहर से आये लोग सत्ता में आये तो उन्होंने स्थानीय महिलाओं को शिकार बनाना शुरू किया. सैकड़ों वर्षों तक यहाँ एक ऐसी भयावह स्थिति थी कि कोई भी महिला सुरक्षित नहीं थी, और कोई नहीं जानता था कि कब कौन सी कन्या अथवा महिला किसी मदांध दरिन्दे का शिकार बन जायेगी. अतः संभवतः एक शुरुआती सुरक्षा के माध्यम के रूप में घूँघट प्रथा शुरू हुयी ताकि कोई तुरंत यह न देख पाये कि उस कन्या अथवा महिला की उम्र क्या है और वह कितनी सुन्दर है. शायद यह अपेक्षा की जाती थी कि घूँघट ओढने से महिलाओं का इस तरह के दुर्दान्त आतताइयों से कुछ तो बचाव हो सकेगा. समय के साथ ऐसा हुआ कि मजबूरी में अपनाया गया एक सुरक्षा का उपाय सामाजिक प्रथा बन गया.
    इज्जत सुरक्षा व् संरक्षण का पर्दा
    १.इस पर्दा प्रथा को लोग अपने से बड़ों के सम्मान से जोड़कर देखते हैं, पर अब इसका कोई औचित्य नहीं है। हमें यदि आधुनिक समाज बनाना है, तो लोगों को इसकी जड़ों में जाके देखना पड़ेगा कि यह प्रथा क्यों शुरू हुई और अब इसकी प्रासंगिकता क्या है।
    २.अगर महिलाएं अपने बड़ों के सामने घुंघट नहीं करती  तो, उसे बेशर्म और गलत तरीके से हेय की दृष्टि से देखा जाता था।
    ३.घूंघट भारतीय परंपरा में अनुशासन और सम्मान का प्रतीक माना जाता है। घर की बहुओं को परिवार के बड़ों के सामने घूंघट निकालना होता है। गाँवो में तो यह अनिवार्य है ही, साथ ही कई महानगरीय परिवारों में भी ऐसा चलन है। यह है कि भारतीय परंपरा में घूंघट कब और कैसे आया ऊपर पहले ही चर्चा कर चुके है?
    4कुछ परिवारों में तो रीति-रिवाज तथा परम्पराओं के नाम पर महिलाओं पर पर्दा प्रथा अनावश्यक रूप से और जबरन थोप दी जाती है। समाज तथा परिवारों में पर्दा प्रथा देखते हुए लड़कियां भी यह सब अपने रीति-रिवाज व संस्कृति मानकर अपना लेती हैं। उन्हें भी पता होता है कि शादी के पश्चात उन्हें भी घूंघट में ही रहना पड़ेगा। घूंघट लेना एक तरह से महिला की विवशता ही है। पुरूष के वर्चस्व वाले समाज में इसके खिलाफ आवाज़ उठाना एक तरह से विद्रोह या मर्यादाहीनता की निशानी रही। इसी वजह से यह एक परम्परा के रूप में  पीढ़ी-दर-पीढ़ी फैलती रही। फिर चाहे महिला खेतों में काम कर रही हो या अपने कार्यालय में अथवा किसी शादी-ब्याह में उपस्थित हो, अधिकांशत: उसे विवशतावश घूंघट या सिर पर पल्लू लेना ही पड़ता है।

    पर्दा प्रथा की हानिया 


    (1) खुली हवा के न मिलने से स्वास्थ्य का नाश।

    (2) घर के बार न निकल सकने से अनुभव की कमी।

    (3) कुटुम्बी पुरुषों के ही आश्रित रहने से उनके द्वारा ठगाया जाना खासकर वैधव्य आदि में।

    (4) बैंक आदि बाहर की दुनिया से सम्बन्ध न कर सकने से असहाय, पंगु और पराश्रित, बनकर रह जाना।

    (5) भ्रमण आदि के आनन्द में बहुत कमी।

    (6) परारित होने से नौकर चाकरों के बिना काम न चल सकना, इससे खर्च का बढ़ाना या पड़ौसी आदि का सहारा लेने से ठगाया जाना और दीन बनाना।

    (7) हिम्मत की कमी से दुष्टों, दुर्जनों का सामना कर पाना।

    (8) पर्दे में रहने के कारण शिक्षण की दुर्बलता।

    (9) पर्दा आदि के कारण सज्जनों के भी काम न आ सकना, दोनों तरफ काफी असुविधा बढ़ाना।

    (10) नारीत्व का अपमान।
    11 पर्दा से स्त्रियों में मनोबल साहस आदि की इतनी कमी आ जाती है कि वह जल्दी ही दुष्ट पुरुषों का शिकार हो जायं। Tumesh chiram   जिसने खुले मुंह दुनिया देखी है और दुनिया का अनुभव और अभ्यास पाया है, उसे इतनी जल्दी बहकाया नहीं जा सकता।
    12  यह न्याय नहीं है कि पुरुषों के अपराध के लिए स्त्रियों को बन्धन में डाला जाय। पुरुषों में अगर दुष्टता है तो उसकी सजा उन्हें ही मिलनी चाहिये।

    13 कहा जाता है कि बाहर निकलने से या खुले मुंह रहने से बदमाश लोग टकटकी लगाते हैं, आक्रमण भी कर बैठते हैं इसलिए पर्दा जरूरी है।पहली बात तो यह है कि इस दृष्टि से एक्सप प्रथा का पालन किया ही नहीं जाता है। परिचितों में जहाँ गुंडापन कम संभव है वहाँ तो उजागर किया जाता है। अपरिचित स्थानों में घूंघट बुर्का हटा दिया जाता है। इसलिए टकटकी लगाने आदि की बात व्यर्थ है।


    संदर्भित सूचि

    भारत कोष पर्दा प्रथा



    // लेखक // कवि // संपादक // प्रकाशक // सामाजिक कार्यकर्ता //

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    1 Comments

    अपना विचार रखने के लिए धन्यवाद ! जय हल्बा जय माँ दंतेश्वरी !

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